सुखावती-व्यूह
संस्कृत के सुखावती-व्यूह नाम के दो ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं, एक वृहत और एक संक्षिप्त। दोनों में अमिताभ बुद्ध का गुण गान है, वृहत सुखावती में कर्म का महत्त्व अक्षुण्ण है जबकि संक्षिप्त सुखावती में मृत्यु के समय अमित का नाम-चिंतन मात्र बुद्ध क्षेत्र में उत्पत्ति के लिए पर्याप्त समझा गया है।
बृहत सुखावती का प्राचीनतम चीनी अनुवाद 147-86 इस्वी के बीच हुआ था। संक्षिप्त सुखावती का प्राचीनतम चीनी अनुवाद कुमारजीव ने 402 ईस्वी में किया था। ऐसा प्रतीत होता है कि सुखवती व्यूह को 'अमितायुस्सुत्त ' अथवा 'अमितायुव्यूर्व-सुत्त' भी कहा जाता है। ये सूत्र जापान के 'जोड़ो' अथवा 'चीनी 'चि' एवं 'शिन' सम्प्रदाय के प्रधान ग्रन्थ हैं। इस सम्प्रदाय के अनुसार तथागत ने सुखावती व्यूह का लोक में प्रकाश अपने परिनिर्वाण के कुछ ही पहले किया था(महायान का उदगम और साहित्य: बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास, पृ 337: गोविन्द चन्द्र पाण्डेय )।
सुखावती व्यूह और 'अमितायुव्यूर्व-सुत्त में बुद्ध अमिताभ के साथ बोधिसत्व अवलोकितेश्वर का गुण-कीर्तन किया गया है। कारंडव्यूह में अवलोकितेश्वर का गुण कीर्तन किया गया है। कारंडव्यूह अथवा अवलोकितेश्वर-गुण-कारंड व्यूह' का एक प्राचीन तर गद्य रूप है तथा दूसरा अपेक्षा कृत उत्तरकालीन पद्य रूप है। पद्यात्मक कारंडव्यूह में एक प्रकार का ईश्वरवाद वर्णित है क्योंकि उसमे 'आदिबुद्ध' को ही ध्यान के द्वारा जगत स्रष्टा कहा गया है। आदिबुद्ध से ही अवलोकितेश्वर का आविर्भाव हुआ तथा अवलोकितेश्वर की देह से देवताओं का। गद्यात्मक कारंड व्यूह में आदिबुद्ध का ऊलेख नहीं है। यहाँ अवलोकितेश्वर की करुणा का प्रभूत विस्तार है। उनकी कृपा से अवीचि नरक का दिव्य रूपांतर हो जाता है तथा प्रेत भूख-प्यास से मुक्त हो जाते हैं।अवलोकि-तेश्वर पंचाक्षरी विद्या 'ॐ मणि पद्मे' हुँ' -को धारण करते हैं((वही, पृ 338)।
संस्कृत के सुखावती-व्यूह नाम के दो ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं, एक वृहत और एक संक्षिप्त। दोनों में अमिताभ बुद्ध का गुण गान है, वृहत सुखावती में कर्म का महत्त्व अक्षुण्ण है जबकि संक्षिप्त सुखावती में मृत्यु के समय अमित का नाम-चिंतन मात्र बुद्ध क्षेत्र में उत्पत्ति के लिए पर्याप्त समझा गया है।
बृहत सुखावती का प्राचीनतम चीनी अनुवाद 147-86 इस्वी के बीच हुआ था। संक्षिप्त सुखावती का प्राचीनतम चीनी अनुवाद कुमारजीव ने 402 ईस्वी में किया था। ऐसा प्रतीत होता है कि सुखवती व्यूह को 'अमितायुस्सुत्त ' अथवा 'अमितायुव्यूर्व-सुत्त' भी कहा जाता है। ये सूत्र जापान के 'जोड़ो' अथवा 'चीनी 'चि' एवं 'शिन' सम्प्रदाय के प्रधान ग्रन्थ हैं। इस सम्प्रदाय के अनुसार तथागत ने सुखावती व्यूह का लोक में प्रकाश अपने परिनिर्वाण के कुछ ही पहले किया था(महायान का उदगम और साहित्य: बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास, पृ 337: गोविन्द चन्द्र पाण्डेय )।
सुखावती व्यूह और 'अमितायुव्यूर्व-सुत्त में बुद्ध अमिताभ के साथ बोधिसत्व अवलोकितेश्वर का गुण-कीर्तन किया गया है। कारंडव्यूह में अवलोकितेश्वर का गुण कीर्तन किया गया है। कारंडव्यूह अथवा अवलोकितेश्वर-गुण-कारंड व्यूह' का एक प्राचीन तर गद्य रूप है तथा दूसरा अपेक्षा कृत उत्तरकालीन पद्य रूप है। पद्यात्मक कारंडव्यूह में एक प्रकार का ईश्वरवाद वर्णित है क्योंकि उसमे 'आदिबुद्ध' को ही ध्यान के द्वारा जगत स्रष्टा कहा गया है। आदिबुद्ध से ही अवलोकितेश्वर का आविर्भाव हुआ तथा अवलोकितेश्वर की देह से देवताओं का। गद्यात्मक कारंड व्यूह में आदिबुद्ध का ऊलेख नहीं है। यहाँ अवलोकितेश्वर की करुणा का प्रभूत विस्तार है। उनकी कृपा से अवीचि नरक का दिव्य रूपांतर हो जाता है तथा प्रेत भूख-प्यास से मुक्त हो जाते हैं।अवलोकि-तेश्वर पंचाक्षरी विद्या 'ॐ मणि पद्मे' हुँ' -को धारण करते हैं((वही, पृ 338)।
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