आओ पाली सीखें -
'मारं ससेनं महति विजेत्वा।' में 'विजेत्वा' का अर्थ- विजय प्राप्त कर होता है । इसी प्रकार के अन्य शब्द हैं -
गहेत्वा- ग्रहण कर। छिन्दित्वा- छिन कर। कत्वा/करित्वा- कर।
गन्त्वा - जाकर। वत्वा- कह कर। अभिवादेत्वा- अभिवादन कर।
निवासेत्वा- निवास कर। पविसित्वा- प्रवेश कर। सुत्वा- सुन कर।
हुत्वा- होकर। ठत्वा- खड़ा होकर। समेत्वा- मिल कर।
उपसङ्कमित्वा - पास जाकर। आगत्वा- आ कर। पित्वा/पिबित्वा- पी कर
पचित्वा- पका कर। चलित्वा- चल कर। खादित्वा/भुञ्जित्वा- खाकर।
चिन्तयित्वा- चिंता कर। कीळित्वा- खेल कर। रोदित्वा- रो कर।
वाक्यानि पयोगा (वाक्य में प्रयोग)-
सो मग्गे अभिधावित्वा विहारं गच्छति।
वह(वह) रास्ते पर(मग्गे) दौड़ते हुए बुद्ध विहार जाता है।
सो बाह्मणो पूरलासं अतिभुञ्जित्वा गिलानो जातो।
वह ब्राह्मण पकवान(पूरलासं) अत्यधिक खाकर बीमार(गिलानो) हुआ ।
तथागतो अनुकम्पं कत्वा धम्मं देसेति।
तथागत अनुकम्पा कर धम्म की देशना करते हैं।
भिक्खु तस्स उपकारं सरित्वा पब्बाजेसि।
भिक्खु उसका उपकार स्मरण कर(सरित्वा) पब्बज्जित करता है।
माणवा पातोव पबुज्झित्वा पोत्थके वाचन्ति।
माणवक(विद्यार्थी) प्रात ही(पातो-एव) समझ कर(पबुज्झित्वा) पुस्तकें पढ़ता है।
हत्थमत्तं भूमिं याचित्वा अपि नालद्धं।
हाथ भर भूमि याचना कर भी(अपि) नहीं प्राप्त हुई।
गोतमी कपिलवत्थुतो निक्खमित्वा बुद्ध सासने पब्बज्जं लभि।
गोतमी कपिलवस्तु से निकल कर बुद्ध शासन में (सासने) पब्बज्जा लाभित हुई।
महिला आपणं गन्त्वा आभरणं विक्किणाति।
महिला दुकान(आपणंं) जाकर आभूषण विक्री करती(विक्किणाति) है।
तच्छका रुक्खे छिन्दति, साखा-पलासे कन्तित्वा पीठं करोन्ति।
बढई(तक्छका) वृक्ष छांट कर शाखा- टहनियां काट कर कुर्सी(पीठं) बनाता है।
बोधिसत्तो गेहा निक्खमित्वा/निक्खम्म पदसा राजगहं अगमासि।
बोधिसत्व घर(गेहा) से निकल कर पैदल ही(पदसा) राजगृह आए(अगमासि) थे।
सुनखा अट्ठीनि गहेत्वा मग्गे धाविंसु।
कुता हड्डियों(अट्ठीनि) को पकड़ कर(गहेत्वा) रास्ते में दौड़ा था।
सकुणा खेत्तेसु वीहिं दिस्वा खादिंसु।
पक्षियों ने खेतों में(खेतों में) धान(वीहि) देख कर(दिस्वा) खाया/चुगा था।
अतिथि अम्हाकं घरं आगन्त्वा आहारं भुञ्जिसु ।
अतिथि ने हमारे घर आ कर आहार/भोजन किया था।
गहपतियो नरपतिनो पुरतो ठत्वा वदिंसु।
गृहपति यों ने नरपति के सामने(पुरतो) खड़े होकर(ठत्वा) बोला(वदिन्सु) था।
कपयो रुक्खं आरुहित्वा फलानि खादिंसु।
बंदरों(कपयो) ने वृक्ष पर(रुक्खं) चढ़ कर(आरुहित्वा) फलों को खाया था।
नरपति हत्थेन असिं गहेत्वा अस्सं आरुहि।
नरपति हाथ से तलवार पकड़ कर अश्व पर चढ़ा था(आरुहि)।
धम्मं सुत्वा गहपतीनं बुद्धे सद्धा उप्पज्जि।
धम्म सुन कर गृहपति को बुद्ध में श्रद्धा उपजी थी।
पचित्वा- पका कर। चलित्वा- चल कर। खादित्वा/भुञ्जित्वा- खाकर।
चिन्तयित्वा- चिंता कर। कीळित्वा- खेल कर। रोदित्वा- रो कर।
वाक्यानि पयोगा (वाक्य में प्रयोग)-
सो मग्गे अभिधावित्वा विहारं गच्छति।
वह(वह) रास्ते पर(मग्गे) दौड़ते हुए बुद्ध विहार जाता है।
सो बाह्मणो पूरलासं अतिभुञ्जित्वा गिलानो जातो।
वह ब्राह्मण पकवान(पूरलासं) अत्यधिक खाकर बीमार(गिलानो) हुआ ।
तथागतो अनुकम्पं कत्वा धम्मं देसेति।
तथागत अनुकम्पा कर धम्म की देशना करते हैं।
भिक्खु तस्स उपकारं सरित्वा पब्बाजेसि।
भिक्खु उसका उपकार स्मरण कर(सरित्वा) पब्बज्जित करता है।
माणवा पातोव पबुज्झित्वा पोत्थके वाचन्ति।
माणवक(विद्यार्थी) प्रात ही(पातो-एव) समझ कर(पबुज्झित्वा) पुस्तकें पढ़ता है।
हत्थमत्तं भूमिं याचित्वा अपि नालद्धं।
हाथ भर भूमि याचना कर भी(अपि) नहीं प्राप्त हुई।
गोतमी कपिलवत्थुतो निक्खमित्वा बुद्ध सासने पब्बज्जं लभि।
गोतमी कपिलवस्तु से निकल कर बुद्ध शासन में (सासने) पब्बज्जा लाभित हुई।
महिला आपणं गन्त्वा आभरणं विक्किणाति।
महिला दुकान(आपणंं) जाकर आभूषण विक्री करती(विक्किणाति) है।
तच्छका रुक्खे छिन्दति, साखा-पलासे कन्तित्वा पीठं करोन्ति।
बढई(तक्छका) वृक्ष छांट कर शाखा- टहनियां काट कर कुर्सी(पीठं) बनाता है।
बोधिसत्तो गेहा निक्खमित्वा/निक्खम्म पदसा राजगहं अगमासि।
बोधिसत्व घर(गेहा) से निकल कर पैदल ही(पदसा) राजगृह आए(अगमासि) थे।
सुनखा अट्ठीनि गहेत्वा मग्गे धाविंसु।
कुता हड्डियों(अट्ठीनि) को पकड़ कर(गहेत्वा) रास्ते में दौड़ा था।
सकुणा खेत्तेसु वीहिं दिस्वा खादिंसु।
पक्षियों ने खेतों में(खेतों में) धान(वीहि) देख कर(दिस्वा) खाया/चुगा था।
अतिथि अम्हाकं घरं आगन्त्वा आहारं भुञ्जिसु ।
अतिथि ने हमारे घर आ कर आहार/भोजन किया था।
गहपतियो नरपतिनो पुरतो ठत्वा वदिंसु।
गृहपति यों ने नरपति के सामने(पुरतो) खड़े होकर(ठत्वा) बोला(वदिन्सु) था।
कपयो रुक्खं आरुहित्वा फलानि खादिंसु।
बंदरों(कपयो) ने वृक्ष पर(रुक्खं) चढ़ कर(आरुहित्वा) फलों को खाया था।
नरपति हत्थेन असिं गहेत्वा अस्सं आरुहि।
नरपति हाथ से तलवार पकड़ कर अश्व पर चढ़ा था(आरुहि)।
धम्मं सुत्वा गहपतीनं बुद्धे सद्धा उप्पज्जि।
धम्म सुन कर गृहपति को बुद्ध में श्रद्धा उपजी थी।
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