परस्पर विरोधी बुद्ध वचन
प्रतीत्य समुत्पाद का नियम कहीं तो कहता है कि अविद्या के होने से संस्कार होता हैं और कहीं कहता है कि संस्कारों के होने से अविद्या होती है(आनंद कौसल्यायन: दर्शन वेद से मार्क्स पृ 55 )। इन दोनों कथनों में जो विरोधाभास होता है, वह विशेष महत्त्व का नहीं। क्योंकि इससे सारभूत भाव तो निकल आता ही है।
प्रतीत्य समुत्पाद का नियम कहीं तो कहता है कि अविद्या के होने से संस्कार होता हैं और कहीं कहता है कि संस्कारों के होने से अविद्या होती है(आनंद कौसल्यायन: दर्शन वेद से मार्क्स पृ 55 )। इन दोनों कथनों में जो विरोधाभास होता है, वह विशेष महत्त्व का नहीं। क्योंकि इससे सारभूत भाव तो निकल आता ही है।
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