Tuesday, December 17, 2013

'बोर्ड चौराहे' का नाम डा आंबेडकर चौराहा क्यों नहीं ?

डा भीमरॉव आंबेडकर पुण्य-स्मृति(6 दिस.) दिवस -

इस बार, बाबा साहब की पुण्य स्मृति दिवस पर हम लोग भोपाल में थे। मेरे बेटे ऐश्वर्य ने क्वार्टर हबीबगंज रेलवे स्टेशन के पास ही किराए से ले रखा है।

यहाँ , पास ही में 'अशोक बुद्ध विहार' है। बिहार काफी बड़ा और रोड पर है। प्रत्येक रविवार को सभी बुद्धिस्ट जो बुद्ध विहार के आस-पास रहते हैं, यहाँ धम्म वंदना के लिए आते हैं। अभी-अभी ही यहाँ इंदौर से आए एक भंते जी ने  वर्षा-वास किया था।

 पिछले रविवार , 1 दिस को यह तय हो गया था कि आने वाले  6 दिस के प्रात :  बाबा साहब चौराहा (बोर्ड आफिस के सामने ) अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार चलना है।

तय शेड्यूल के अनुसार हम लोग पहले बुद्ध विहार आए।  यहाँ मालूम हुआ , सीधे कार्य-क्रम स्थल पहुँचाना है। हमने मार्ग में फूलों के हार रख लिया ।  कार्य-क्रम स्थल पर पहले से ही लोगों का ताँता लगा था। लोग ग्रुप बनाकर आ रहे थे।  इनमे बच्चें थे, बूढ़े थे, महिलाऐं थी।  चारों दिशाओं से आ रहे लोग, ' बाबा साहेब अमर रहे' के नारे लगाते हुए जहाँ बाबा साहब की स्टेचू थी , उस तरफ बढ़ रहे थे।

ध्यान रहे , यह बहुत ही व्यस्ततम चैराहा है।  यह एजुकेशन बोर्ड आफिस के सामने है।  शायद , इसी कारण इस स्थल को 'बोर्ड चौराहा' कहा जाता है। मुझे ताज्जुब हुआ कि इस चौराहे का नाम  डा आंबेडकर चौराहा  क्यों नहीं है ?

यहाँ बीजेपी की गवर्नमेंट है।  बीजेपी  को स्कूल, आफिस, बाजार काम्प्लेक्स, बस स्टेंड आदि का नाम   पं. दिनदयाल उपाध्याय के नाम रखने से फुरसत मिले तो वह इस तरफ सोचे ?

मैंने देखा , ट्रेफिक पुलिस जहाँ चुस्त-दुरुस्त थी वहीँ,  खाकी वर्दी की पुलिस भी पर्याप्त मात्रा में थी।  लोगों के हुजूम-के हुजूम आने के बाद भी ट्रेफिक रुकने जैसी कोई स्थिति नहीं हो रही थी।


बेशक, व्यवस्था में लगे रहे अधिकारीयों की सफलता थी।  मगर, उससे कहीं ज्यादा खुद पब्लिक बधाई की पात्र थी। लोग स्वत: संज्ञान ले रहे थे कि आने-जाने वालों को दिक्क्त न हो। 

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