Monday, March 31, 2014

झूलेलाल

झूलेलाल

File:Jhulelal hindu deity.jpg
सिंधियों के इष्ट देवता झूलेलाल 

हम सभी ने यह कव्वाली हजार- हजार बार सुनी होगी -
'ओ लाल मेरी पत रखियो भला झूले लालन।  सिन्ध्री दा सेवन दा , सखी शहबाज़ कलंदर।  दमा दम मस्त कलंदर , अली दम दम के अंदर  ........  ।  दोस्तों , यह लेख पढने के बाद आप जरुर इस सूफियाना कव्वाली को एक बार और सूने। मेरा दावा है कि अब आपको एक नया मज़ा आएगा।    

सिंधी समाज में झूलेलाल का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। झूलेलाल का मतलब है , प्रकाश और जल का देवता।  झूलेलाल सिंधियों के लिए भगवान है। उनके तारक है , उद्धारक है।

14 अग 1947 को पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के बाद लाखों की संख्या में हिन्दू और सिक्ख पाकिस्तान छोड़कर भारत आए थे। ये शरणार्थी अधिकांशत: पाकिस्तान के सिंध प्रदेश और इसके आस-पास के भू-भाग की अपनी मातृ-भूमि छोड़ कर भारत आए थे। भारत सरकार की मदद से देश के विभिन्न भागों में इन्हे बसाया गया था।

यद्यपि , सिंध प्रदेश के आलावा हिन्दू पाकिस्तान के दूसरे इलाकों से भी शरणार्थी के रूप में भारत आए थे।  मगर, सिंध प्रदेश के निवासी ही सिंधियों के रूप में अपनी पहचान कैसे बचा पाए हैं , शोध का विषय है।

शोध का विषय तो यह भी है कि हिदुस्तान -पाकिस्तान बंटवारे को आज 67 वर्ष हो गए।  मगर, आज भी हमारे राष्ट्र गान में 'सिंध'  शब्द का समावेश है जो हमें लगातार स्मरण कराता है कि एक समय विश्व की महान सभ्यता रही 'सिंधु घाटी सभ्यता'(3300 -1700  ई पू )  के हम कभी वारिश थे , हैं और रहेंगे। सिंधी विद्वान् और लेखक दादाराम पंजवानी के शब्दों में,  निश्चित ही सिंधी,  हिन्दुस्थान और पाकिस्तान के अटूट दोस्ती की मिशाल है जिसे दोनों देशों के शासक चाहे भी तो नहीं मिटा सकते।
File:CiviltàValleIndoMappa.png
Source- Wikipedia

सिंध प्रदेश के निवासियों की एक खास संस्कृति रही होगी ।  नि:संदेह, सांस्कृतिक रूप से सिंधियों की अलग पहचान है । इनके धार्मिक संस्कारों में सूफी संतों और सिक्खों की गुरु नानक की शिक्षाओं का स्पष्ट प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। इनका रहन-सहन, बोल-भाषा अलग है। इनके नाम के अंत में 'राम ' , 'मल' , ' चंद ' और उपनाम के अंत में  ' नी ' प्राय: देखा जा सकता है।

सन 1967 में भारत सरकार ने सिंधी को एक पृथक भाषा के रूप में मान्यता दी। भारत सरकार के सन 2001  के आकड़ों के अनुसार सिंधियों की आबादी  2,571, 526  दर्ज है।

यद्यपि, सिंधियों को गुजरात में बसाया गया था,  क्योंकि यहाँ की आबो-हवा सिंध प्रदेश से मिलती-जुलती थी।  तथापि , सिंधी किसी क्षेत्र विशेष में घनीभूत न बस कर जिसको जहाँ लगा , बस गए। आज सिंधी जहाँ भी हैं , जैसे भी हैं , किसी न किसी व्यवसाय में लगे हैं।  किराने से लेकर कपडा मार्किट में  सिंधियों का दबदबा है। वे स्वभाव से मेहनती होते हैं। अब तो राजनीति में भी आपको सिंधी मिल जाएंगे। आचार्य कृपलानी, एल के आडवाणी जैसी हस्तियां इसके उदहारण हैं।

सिंधी लोग झूलेलाल को बड़ी श्रद्धा से मानते हैं। 'चेती चाँद' का उनका धार्मिक महोत्सव इसका उदहारण है। वे उन्हें भगवान मानते हैं। बरहणा  साहिब (भ. झूलेलाल) की जब शोभायात्रा निकाली जाती है और छेजरिस (डांस में भाग लेने वाला दल ) गुजराती डांस 'डांडिया ' की तर्ज पर हाथों में डांडी लेकर जब गोलाकार  घूमते हुए डांस करता है तो राह चलते लोग जैसे थम जाते हैं । ये लोग 'पंजरा ' गाते हैं जो दरिया देवता के लिए स्तुति गान है।

भ. झूलेलाल को दरिया लाल , उदेरो लाल, दूल्हा लाल, लाल साईं , ज़िन्दाँ पीर  आदि कई नाम और विशेषणों से सम्बोधित किया जाता है। झूलेलाल का जन्म 10 वीं शताब्दी में हुआ था। सिंधी परम्परा अनुसार भ. झूलेलाल का जन्म  सन 951 के चैत्र शुक्ल द्वितिया को माना जाता है। चेती चाँद अर्थात चैत्र महीने का दूसरा दिन।

कहा जाता है कि बालक झूलेलाल को गोरखनाथ से दीक्षा दिलायी गई थी। गुरु गोरखनाथ ने झूलेलाल को  'अलख निरंजन ' का बीज मन्त्र दिया था।

 झूलेलाल के बारे में चमत्कारिक बातें कहीं जाती है। कहा जाता है कि सिंध (पाकिस्तान ) के ठट्टा नगर में मिरकशाह नामक मुस्लिम बादशाह था। मिरकशाह ने अपने राज्य में रह रहे हिंदुओं को आदेश दिया कि वे इस्लाम धर्म स्वीकार कर ले। हिंदुओं को इससे बड़ी ठेस लगी। वर्षों पुरानी उनकी संस्कृति और तहज़ीब वे बलात कैसे छोड़ सकते थे ?

एक दिन सारे हिन्दू ठट्टा नगर के पास से बहती सिंधु नदी के तट पर एकत्र हुए।  उन्होंने मन्नत मांगी की कि इस दुःख की घडी में कोई ईश्वरीय अवतार उनकी मदद करे । एकाएक नदी में लहरें उठने लगी। उन लहरों पर एक विशाल मछली के रूप में दिव्य पुरुष प्रगट हुए।  आकाशवाणी हुई कि सात दिन के बाद नसरपुर के भक्त रतनराय  की पत्नी देवकी के गर्भ में भगवान् अवतार लेंगे।

नीयत समय अर्थात सातवें दिन रतनराय उर्फ़ रतनचंद  की पत्नी देवकी के गर्भ में भगवान् ने जन्म लिया। बच्चे का नाम उदयचंद  रखा गया था। प्यार से बच्चे को 'दरिया लाल' या  'उदेरो लाल' (अर्थात पानी से जिसका उदय हुआ) तो कुछ 'अमर लाल'  कहने लगे । कहा जाता है कि जिस झूले पर बालक को रखा गया था , स्वत: अपने आप झूलने लगा था।  इसलिए बालक को 'झूलेलाल' के नाम से पुकारा जाने लगा।

झूलेलाल के जन्म के बाद ही माता का देहांत हो गया था। रतनराय उर्फ़ रतनचंद ने बाद में दूसरी शादी कर ली थी। बालक झूलेलाल या उदेरोलाल या अमर लाल के बारे में ऐसी कई चमत्कारिक घटनाएं बहु-श्रुत व प्रचलित हैं। बालक झूलेलाल जैसे-जैसे बड़ा होता है, चमत्कारिक घटनाओं की श्रंखला बढती जाती है।

Source-Sindh Festival
एक दिन बादशाह के आदेश पर झूलेलाल को दरबार में पेश किया गया।  झूलेलाल ने कहा कि मुस्लिम जिसे अल्लाह के नाम से पुकारते हैं और हिन्दू जिसे ईश्वर कहते हैं , दरअसल दोनों एक ही शक्ति के दो नाम हैं।और इसलिए हिन्दू और मुस्लिम कौम में सिर्फ नाम और पूजा पद्यति का फर्क है। झूलेलाल के तर्क का बादशाह को सलाह दे रहे मौलवियों में कोई फर्क नहीं पड़ा।  उलटे मौलवियों ने बादशाह को सलाह दी कि वह झूलेलाल को इस्लाम के अनुसार 'काफिर'  घोषित कर बंधक बनाने का सैनिकों को आदेश दे।

बादशाह ने सैनिकों को झूलेलाल को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। तभी वहाँ एकाएक समुद्री तूफान पैदा हुआ । जब उस समुद्री तूफान में बादशाह का महल डूबने लगा तो बाद्शाह ने झूलेलाल के आगे समर्पण कर दिया।

झूलेलाल के सोनाराम औए भेदोराम नाम के दो बड़े भाई और थे।  मगर , ऐसा लगता है , झूलेलाल से उनकी पटरी नहीं बैठती थी।  और यहीं कारण है , उन्हें अपने मिशन के आगे बढ़ाने के लिए अपने चचेरे भाई पगड़ गेतूराम का सहारा लेना पड़ा। भ. झूलेलाल ने जिस पंथ की नीवं रखी, उसे 'दरियाहि पंथ ' कहा गया ।

नसरपुर के करीब 10 की मी दूरी पर हाला गावं में 'उदेरोलाल-जो का मंदिर है।  कहा जाता है कि भ. झूलेलाल ने एक मुस्लिम परिवार से जमीन लेकर इसका निर्माण कराया था। बाद में ब्रिटिश हुकूमत में यहाँ एक रेलवे स्टेशन बना जिसका नाम 'उदेरोलाल '  है।

बारह वर्ष की उम्र तक आते-आते झूलेलाल ने भक्ति-भाव के अतिरिक्त हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए काफी काम किया था। उनके हजारों- हजारों शिष्य हुए।  उन्होंने कई मंदिर बनवाए।

झूलेलाल जब 13 वर्ष पार किये तब उन्हें लगा कि जिस उद्देश्य के लिए उनका जन्म हुआ , वह पूर्ण हो चूका है। तब, उन्होंने अपने प्रिय शिष्य पगड गेतुराम को बुला कर आवश्यक निर्देश दिए। उन्होंने पंथ के काम को आगे बढ़ाने के लिए निर्देश दिए। उन्होंने पगड गेतुराम से कहा उनके वंशज आगे से  'ठाकुर' और खुद भ. झूलेलाल  के अनुयायी  'सेवक' (shewaks ) कहलाएंगे। मंदिरों में पूजा-अर्चना करने वाले ' बाबो' नाम से पुकारे जाएंगे।

और अंत में उन्होंने झिझन नामक स्थान पर समाधी ली,  जहाँ पर उनके हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों के बड़ी मात्रा  में शिष्य उपस्थित थे।  यहाँ पर मुस्लिम बादशाह मिरकशाह  के प्रतिनिधि भी उपस्थित थे। सिंधी परम्परा के अनुसार यह तिथि  सन 964 के भाद्र पद चतुर्दशी थी।

हिन्दू मॅथोलॉजी में संत ज्ञानेश्वर के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने 13 वर्ष में ज्ञानेश्वरी लिखकर समाधि ले ली थी। यद्यपि, न तो ज्ञानेश्वर और न ही झूलेलाल की प्रतिमा देखकर ऐसा लगता है।  

Sunday, March 30, 2014

अनुत्तरित प्रश्न


 अनुत्तरित प्रश्न 


  ऐसा क्यों होता है कि लड़की को उसके पति और ससुराल द्वारा मार -पीट कर घर से निकाल दिए जाने के बाद भी उसे कहा जाता है कि वह पति से माफ़ी मांगे , उसी सास और ससुर के पास जा कर नाक रगड़े ?  क्या लड़की पर इस तरह का दबाव उसे आत्म-हत्या के लिए नहीं उकसाता ?

ससुराल से निकाल दिए जाने के बाद लड़की के लिए मायका ही आसरा होता है।  वह सीधे मायके आती है। घटना की जानकारी होने पर तमाम सुभचिन्तक और रिश्तेदार लड़की को समझाते हैं, उसे ढांढस देते हैं। मगर, इस समझाईश और ढांढस का साफ-साफ मतलब होता है कि लड़की का स्थान पति और ससुराल है। झगड़े तो होते रहते हैं। किसके यहाँ झगड़े नहीं होते ?

 जिंदगी एक झगड़ा है।  झगड़ा अर्थात संघर्ष। मगर, क्या लड़की ससुराल में झगड़ा करने जाती है ? निश्चित रूप से वह समझौता करती है। पति से , सास-ससुर से।  देवर से , देवरानी से।  गोया उस घर की प्रत्येक चीज से वह समझौता करती है।  जो चीज जहाँ है , वह उसे वहाँ रखने का प्रयास करती है। लड़की का एटीट्यूड कभी भी पंगा लेने का नहीं होता।  क्योंकि , एकदम से मिले नए घर और परिवेश में उसे खुद को स्थापित करना होता है।

दूसरी ओर , अगर देख जाए तो पति और सास-ससुर का एटीट्यूड मालिक का होता है।  घर में आए नए सदस्य को वे तौल कर देखते हैं। लड़की को बड़े ही धैर्य और मजबूती से उसे अपनी जगह बनानी होती है। कोई जरुरी नहीं कि पति की फ्रीक्वेंसी उससे मैच हो।  मगर, लड़की को ही अपनी फ्रीक्वेंसी को घटा -बढ़ा कर पति से ट्यून करना होता है।

यह कहना गलत होगा कि पति और सास-ससुर अहंकारी और तानाशाह होते हैं। कि उनके यहाँ लड़की नहीं होती।  मगर, यह सच है कि लड़की के आत्म-हत्या करने या उसे जला कर मार डालने में पति और सास -ससुर जिम्मेदार होते हैं।

झगड़ा की वजह जो भी हो , मरना लड़की को होता है।  पत्नी और सास- ससुर ने मिल कर पति को जला कर मार डाला , ऐसा कभी नहीं होता । जबकि इसके विपरीत पति और सास-ससुर ने मिल कर बहू को जला कर मार डाला, आये दिनों होता है।   

Friday, March 28, 2014

अपराध धाराएं और गिरफ्तारी/सजा

भारतीय दंड संहिता

भारतीय समाज को क़ानूनी रूप से व्यवस्थित रखने के लिए सन 1860 में लार्ड मेकाले की अध्यक्षता में भारतीय दंड संहिता (Indian Pinal Code) बनाई गई थी। इस संहिता में विभिन्न अपराधों को सूचीबद्ध कर उस में गिरफ्तारी और सजा का उल्लेख किया गया है। इस में कुल मिला कर 511 धाराएं हैं।  कुछ खास धाराएं निम्न हैं -

धारा (Section)   अपराध (Offence)         सजा (Punishment)               जमानत/गिरफ्तारी   (Bail provision)

13- जुआ खेलना/सट्टा लगाना                  1 वर्ष की सजा और 1000 रूपये जुर्माना
      -सांप्रदायिक दंगा भड़काने में लिप्त    5 वर्ष की सजा
99  से 106 -व्यक्तिगत प्रतिरक्षा के लिए बल प्रयोग का अधिकार -
147-बलवा करना (Rioting)                      2 वर्ष की सजा/जुर्माना या दोनों   गिरफ्तार/जमानत होगी
161-रिश्वत लेना/देना                              3 वर्ष की सजा/जुरमाना या दोनों  गिरफ्तार/जमानत नहीं
171-चुनाव में घूस लेना/देना                     1 वर्ष की सजा/500 रुपये जुर्माना  गिरफ्तार नहीं/जमानत होगी
177- सरकारी कर्मचारी/पुलिस को गलत सूचना देना  6 माह की सजा/1000 रूपये जुर्माना
186-सरकारी काम में बाधा पहुँचाना          3 माह की सजा/500 रूपये जुर्माना                          "
191 - झूठी गवाही देना
193-न्यायालयीन प्रकरणों में झूठी गवाही  3/ 7 वर्ष की सजा और जुरमाना                              "
216- लुटेरे/डाकुओं को आश्रय देने के लिए दंड
224/25 -विधिपूर्वक अभिरक्षा से छुड़ाना   2 वर्ष की सजा/जुरमाना/दोनों
231/32 - जाली सिक्के बनाना                  7 वर्ष की सजा और जुर्माना  गिरफ्तार/जमानत नहीं
255-सरकारी स्टाम्प का कूटकरण           10 वर्ष या आजीवन कारावास की सजा                      "
264-गलत तौल के बांटों का प्रयोग            1 वर्ष की सजा/जुर्माना या दोनों      गिरफ्तार/जमानत होगी
267- औषधि में मिलावट करना              
272- खाने/पीने की चीजों में मिलावट          6 महीने की सजा/1000 रूपये जुर्माना /दोनों गिरफ्तार नहीं/जमानत होगी
274 /75- मिलावट की हुई औषधियां बेचना
279- सड़क पर उतावलेपन/उपेक्षा से वाहन चलाना  6 माह की सजा या 1000 रूपये का जुरमाना
292-अश्लील पुस्तकों का बेचना                2 वर्ष की सजा और 2000 रूपये जुर्माना    गिरफ्तार/जमानत होगी  
294- किसी धर्म/धार्मिक स्थान का अपमान           2 वर्ष की सजा
302- हत्या/कत्ल (Murder)                      आजीवन कारावास /मौत की सजा   गिरफ्तार/जमानत नहीं
306- आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरण            10 वर्ष की सजा और जुरमाना
309- आत्महत्या करने की चेष्टा करना     1 वर्ष की सजा/जुरमाना/दोनों     गिरफ्तार/जमानत
311- ठगी करना                                   आजीवन कारावास और जुरमाना       गिरफ्तार/जमानत नहीं
323- जानबूझ कर चोट पहुँचाना          
354- किसी स्त्री का शील भंग करना        2 वर्ष का कारावास/जुरमाना/दोनों     गिरफ्तार/जमानत
363- किसी स्त्री को ले भागना(Kidnapping)   7 वर्ष का कारावास और जुरमाना  गिरफ्तार/जमानत
366- नाबालिग लड़की को ले भागना  
376- बलात्कार करना(Rape)               10 वर्ष/आजीवन कारावास   गिरफ्तार नहीं /जमानत होगी
377-अप्राकृतिक कृत्य अपराध(Un natural offence)  5 वर्ष की सजा और जुरमाना गिरफ्तार/जमानत नहीं
379-चोरी (सम्पत्ति) करना                 3 वर्ष का कारावास /जुरमाना/दोनों  गिरफ्तार/जमानत
392-लूट                                              10 वर्ष की सजा
395-डकैती (Decoity)                           10 वर्ष या आजीवन कारावास   गिरफ्तार नहीं/जमानत
417- छल/दगा करना (Cheating)           1 वर्ष की सजा/जुरमाना/दोनों   गिरफ्तार नहीं/जमानत होगी
420- छल/बेईमानी से सम्पत्ति अर्जित करना   7 वर्ष की सजा और जुरमाना
446-रात में नकबजनी करना              
426- किसी से शरारत करना (Mischief)  3 माह की सजा/जुरमाना/दोनों
463- कूट-रचना/जालसाजी                  
477(क)-झूठा हिसाब करना                  
489-जाली नोट  बनाना/चलाना               10 वर्ष की सजा/आजीवन कारावास  गिरफ्तार/जमानत नहीं
493- पर स्त्री से व्यभिचार करना            10 वर्षों की सजा
494-पति/पत्नी के जीवित रहते दूसरी शादी करना 7 वर्ष की सजा और जुरमाना गिरफ्तार नहीं/जमानत होगी
498/अ- अपनी स्त्री पर अत्याचार -          3 वर्ष तक की कठोर सजा
497- जार कर्म करना (Adultery)              5 वर्ष की सजा और जुरमाना
500- मान हानि                                       2 वर्ष  की सजा और जुरमाना
509- स्त्री को  अपशब्द कहना /अंगविक्षेप  करना   सादा  कारावास या जुरमाना

Thursday, March 13, 2014

संगत

संगत

शास्त्रीय गायन पेश हो रहा था।  मंच पर पंडित रामशरण शर्मा अपनी प्रस्तुति में बुरी तरह लीन थे।  इस बीच पंडितजी को तानपुरे की आवाज मिसिंग लगी। उन्होंने पीछे मुड़ कर देखा।  तानपुरे पर जो मोहतरमा संगत दे रही थी , सो गई थी।
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भोलापन 

पिछले सन्डे को बगल के अशोक बुद्ध विहार में बुद्ध वंदना हो रही थी।  बुद्ध वंदना के बीच पीछे बैठे एक बच्चे ने मुझे टोका - अंकल, आपके मोज़े गंदे हैं।
वो तो आपके भी होंगे ? - मैंने अपने पैरों को छुपाते हुए कहा।
पर मैं तो मोज़े पहना ही नहीं ?  - बच्चे ने भोलेपन से कहा। 

Saturday, March 1, 2014

Aishwarya Engagment

यह फर 14 , 2014 का दिन था।  दो दिन पहले ही अर्थात 12 फर को हम लोग भिलाई पहुँच गए थे। एक दिन का हमें रेस्ट चाहिए था। तक़रीबन 16 -18 घंटे सफ़र के बाद यह जरुरी भी होता है,  खास कर हम जैसे उम्र दराज लोगों के लिए।
भिलाई में काफी रिश्तेदार हैं।  14 फर. एन्गेजमेन्ट प्रोग्राम के बारे में आवश्यक परामर्श करना था। दूसरे , दल्ली राजहरा जाने के लिए गाड़ियों का इंतजाम भी करना था।

यूँ हमने और किसी को निमंत्रण नहीं दिया था।  भिलाई से ही काफी  लोग हो रहे थे। एंगेजमेंट में अधिक से अधिक 15  से 20  मेहमान भले प्रतीत होते हैं।

भिलाई में मेरे एक दोस्त हैं -ओ पी वैश्य साहब। बड़े ही सीधे, शांत और हँस मुख।  धैर्य, तो जैसे प्रकृति ने इन्हे उपहार में दिया है।  मिलनसार,  इतने कि कई बार झल्लाहट होती है।  हर आदमी जैसे रुक कर इन से बात करना चाहता है। और यह भी जनाब,  आराम से बात करते हैं।  कहीं कोई जल्दी नहीं।

मैंने वैश्य साहब को पहले ही सूचना दे दी थी कि दल्ली राजहरा में बेटे की  बात पक्की हो गई है और एंगेजमेंट की तारीख लड़की वाले 14  फर तय कर गए हैं।

हमने एक टवेरा गाड़ी की।  दूसरी मारुती वेन दिवंगत डी जे नागदेवे साहब की थी। डी जे नागदेवे मेरे काका ससुर हैं जिनके यहाँ अक्सर हम भिलाई प्रवास में रुकते हैं।  तीसरी गाड़ी वैश्य साहब की थी।  कुल मिला कर लेडिस-जेंट्स  18 मेहमान हो रहे थे।

करीब दोपहर एक बजे हम लोग दल्ली राजहरा के लिए प्रस्थान कर सके।शेंडे जी लगातार अनुरोध कर रहे थे कि हम लोग जल्दी पहुंचे।  मगर, अगर बारात का मामला हो तो फिर, आप जानते हैं कि क्या होता है ?  लोगों को कलेक्ट करना वाकई,  बहुत बड़ा काम है।
  
यह करीब तीन बज रहा होगा कि हम सब लोग आगे-पीछे दल्ली राजहरा पहुंचे। गाड़ी से उतरते ही स्वागत का आदान-प्रदान हुआ ।

सभी फ्रेश हो जल्दी ही कार्यक्रम -स्थल पर आ गए।  वहाँ पहले से ही लड़की पक्ष के मेहमान और स्थानीय गणमान्य लोग विराजमान थे।

शेंडे जी ने ज्यादा ताम-झाम से बचते हुए निज निवास स्थल के छत पर कार्यक्रम आयोजित किया था। फरवरी का महीना वैसे ही सुहावना होता है।  न अधिक ठंडी और न अधिक गर्मी।  लोग रिलेक्स फिल कर रहे थे।

जल्दी ही भावी वर और वधु ने अपना-अपना स्थान ग्रहण किया। एकाएक ही सभी लोगों के आकर्षण का केंद्र  वर -वधु हो गए।

दरअसल, यह एक ऐसा वक्त होता है,  जब पंडाल में बैठे सभी लोगों की नजरें वर-वधू  की ओर होती हैं। जबकि वर-वधु की हालत बहुत पतली होती है।  वर को समझ नहीं आता कि वह क्या करे ? वही वधू जमीन पर नजरें गड़ाए होती है।

 इससे अच्छा तो पुराने ज़माने की शादियां थी जिस में वर-वधु के हाथ में बांस की खपच्चियों के पंखे थमा दिए जाते थे कि जरुरत पड़ी तो हवा करते और नहीं तो रखे हैं हाथ में।

इसी समय मुझे ध्यान आया कि सगाई की रस्म सम्पन्न कराने वाले बौद्ध प्रचारक/कार्यकर्त्ता को आवश्यक टीप  दे दिया जाए।

पिछली बार ऐसा ही हुआ।  मेरी भांजी कई बार कह चुकी थी कि वह अपनी सगाई /शादी में वर के पैर नहीं पड़ेगी। परन्तु बेचारी,  देखती रह गई।

इस बार,  मैंने तय किया कि प्रिवेंटिव स्टेप उठाया जाए।  मैंने उन्हें पास बुला कर कहा -
'कई स्थानों में वर-वधू  को गुलदस्ते से एक-दूसरे का स्वागत करने के दौरान वधू को वर के पैर पड़ने को भी कहा जाता है।  वधु द्वारा वर के पैर पड़ना एक गलत परम्परा है।  इससे समाज में गलत संदेश जाता है। मैं चाहूंगा कि आप इसका ध्यान रखे।'

'आपका टोकना यद्यपि मुझे अच्छा नहीं लगा ।  मगर, बात आपने ठीक कही है। - मेरी बात का हल्का-सा बुरा मानते हुए उन्होंने मेरी ओर देख कर कहा।  मैंने मासूम-सा चेहरा बनाते हुए उनसे क्षमा मांग ली ।