Thursday, November 29, 2012

Dirty Politics


Political party require huge fund. The corporate lobby backs this fund for their business interest. But, Mr. Kejariwal is going to exposes the very business between corporate lobby and political parties. It would be interesting to see Mr.  Kejariwal and his party how long will sustain ?
Any body donate money, expect return. How much and to what extent, you will donate? In fact, politics become dirty due to this donation. At present, you can’t fight election on line of what called ‘Harish Chandra’.
Mr. Kejarival and his Guru Anna Hazare are not capable to take the remedial measure. Because belonging to Brahamins caste, they don’t know the evils of caste. Being a custodian of Dharm-Sansad and crore of Muths, they don’t know what is going on inside of these ?  They don’t know the social evils as it will go against their caste favour.To form a political party is no solution. It is simply means to enter in the very dirty game.  
The solution is lies between our social values. Our social values are the main culprits. To adopt double standard in social values, our lot become having two faces. In ethics, we show something and in society we practice other. This is the main cause of our social denigration. It reflects here and there. Unless and until your social values not changed, you can’t get success.
Some people blamed on our democratic set up. No, our democratic set up is right. But, to flourish this, the earth soil i.e. right social values are important. Dr. Ambedkar has already warned this in Constitution Assembly.
It is a matter of regret, every body look towards politics and politician. No body want to see social movement. Ranade,  and other upper caste social reformers are badly failed on social movement front. It is because, owing to their caste interest, the custodian of Dharm-Sansad and crores of Muths/temples were not interested to back up these reformers.
In our country, caste interest is primary. Constitutionally,  untouchability is abolished. But, no touch on caste system. It is going to stronger day by day. Mr. Anna Hazare and his counter parts have no words against this.   

Sunday, November 25, 2012

Buddhist Monastery(Ashoka Mission) Delhi

     While, we were Cambodian Buddhist Monastery, Mr. Vijay Pal, my friend at Gurgaon/Dehli informed me that 'Ashoka Mission' is not far away from this location. You must visit that also.Mr. Vijay Pal is Assistence professor in Delhi public College. He is Dalit activist.
     We headed for Ashoka Mission. At Meharauli, if you are new, it would be very difficult to find this place. During entering you sometimes feel awkwardness. No body is there to assist you.

     We, I means myself, wife and my daughter Prenana were wandering here and there. At one place perhaps residential, we find some one there. A young boy came on door and asked for what we are looking ? We told him that we had heard lot of about this place. That is why we came here. Would you tell something ? He told that Lamba ji right now no here. He is out side. He went Sanchi (M.P) for attending a Buddhist function.
    At once, Sanchi flashed in my mind. It was in news head lines since a few days. M.P. chief minister Mr. Chauhan is going to eshtablish a University having Buddhist Chair. I don't know what is the politics behind this but South Indian Tamil Group's tension on attending this function by Shri Lanka President, this news was flashing on Print and TV channels.
    He had no any further mater what we want to know. We passed half an hour there, but it was pleasing time . We relaxed there.
 Ashoka Mission Vihar was founded by Cambodian Monk Ven. Dharmavara Mahathera in 1948. He was a highly educated personality. Being impressed with his personality, the Indian first Prime Minister Pt. Jawaharlal Nehru had given him a piece of land in Mehrauli at South Delhi. Bhante opened Ashoka Mission there to convey the massage of Lord Buddha to the heart of Indian masses.Ven. Dharmavara Mahathera  had left for USA in 1975 and since then, Ven Lama Labzang came in leading role for this project.

Ven Lamba Lamzang, well known personality belongs to Ladakh. Ladakhi and other Himalayan region people are indebted to him as Lamba ji have been doing great service to them.The pateints of this region who are suffered with cancer like disease, he bring them AIIMS and other Hospital, free of cost under Medicare.

India is the birth place of Buddhism, the Dhamma that gave to the world the profound teaching of non-violence, compassion and wisdom. Lamba ji is conveying the Buddha teaching through serving needy people.

The campus is spreaded over an area of about 12.5 Acres. Greenery is surrounded there with trees of different varieties. A big Buddha statue is installed there under a Pipal tree. Having seat in Padmasana Loard Buddha appears gaving a massage to the visitor that world is like this Vihara and you have to flourish it what you desire. It was told that the then President of Myanmar, U Nu had planted the Bodhi tree in the prmises in 1953.
It was told that Buddha Purniam is being celebrated here regularly in addition to other  functions. Ashoka Mission apart from running Meditation centres and other welfare social activities, its research wing is act as  'Centre for studies in Transnational Buddhism and Civilizations.

'Hemalyan Research Centre for high altitude Diseases' is running here in the guidance of Lama Lobzang, which is the lifeline for Ladakh people.
First International conference was organized here during March 2003/Feb 2006 to highlight the heritage of Nalanda, the contribution as a seat of learning to the world.

The look of Buddhist Shrine is unique and unparalleled amongst Indian Buddhist Monasteries.

Saturday, November 24, 2012

Mumbai visit

बिटिया जब घर में होती है तो एक दिन उसकी शादी भी करनी होती है।शादी दो परिवारों का मिलन होता है। मगर, इधर शादी के मायने बदल रहे हैं। आजकल, शादी लड़का लड़की तक सीमित हो गई है। पेरेंट्स, परिवार और रिश्तेदारों  को झंझट समझा जाने लगा है।

धन्य हो शादी डाट काम वालों का कि उन्होंने इस  झंझट को और आसान बना दिया। हमारे यहाँ बड़े लडके की शादी शादी डाट काम के मार्फत हुई थी। शादी डाट काम से फायदा यह है की वाईड रेंज में च्वाईस मिल जाती है। मगर, इससे खतरे भी कम नहीं है। आपको सजातीय वर और पारिवारिक ट्रेडिशन सुनिश्चित करने में दिक्कत आ सकती है।

पहले, लडकी के लिए लड़का ढूढने का काम घर के बुजुर्ग और रिश्तेदार करते थे। मगर, बच्चों और परिवार में दूरियां इतनी बढ़ गई है कि  माँ बाप शहडोल में रहते हैं और लडकी दिल्ली में। एक रिश्तेदार बलाघाट में रहता है तो दूसरा पूना में। और फिर, रिश्तेदारों को फुर्सत कहाँ कि वह आपकी बेटी के लिए रिश्ता खोजे। उन्हें तो बेटी की सूरत याद हो, बड़ी बात है।
शहरों के अपने ठाट हैं, अपनी कहानी है। यहाँ बगल के कमरे में कौन रहता है, महोनों तक पता नहीं होता। लोग अपने घर और बंगलों के चारों ओर इतनी बड़ी चार दिवारी बना लेते हैं कि अन्दर कोई दुर्घटना घट जाए  तो कई दिनों तक पता नहीं चलता। जब पुलिस आ कर पूछ-ताछ करती है, तब मालूम होता है की कोई घटना घटी है।
दरअसल, शहर और खास कर दिल्ली, मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगा। प्रदुषण ऐसा है कि बाप रे बाप। उधर, धूप है कि मेहमान बन जाती है। मुझे तो यही आ कर समझ आया कि  लोग गोवा क्यों जाते हैं।
बहरहाल, बात शादी जोड़ने की हो रही थी। रिश्तों के बिखरने के कारण इधर, आज-कल सम्मेलन आयोजित किये जा रहे हैं। शादी डाट काम और इस तरह की साईट्स इसी का अडवांस वर्शन है। ये इलेक्ट्रानिक मल्टी मिडिया का जमाना है।
इस साईट पर लड़का लडकी के पूरे बायो डेटा  होते हैं। उनकी पसंद ना पसंद  मेंशन होती  है। कोई टेंशन नहीं। आपको कोई लडके की प्रोफाईल पसंद है, उसकी पसंद और नापसंद के दायरे में आते हैं, तो आप आगे बात करने के लिए मेसेज दे सकते हैं। अगर मेसेज पाने वाले को आपका प्रोफाईल पसंद आता है तो बात आगे बढ़ सकती है।

सित 12 के अंतिम सप्ताह में ताई ने बतलाया कि उसने एक लडके की रिक्वेस्ट एक्सेप्ट की है। वे मुम्बई के हैं। लड़का ठीक ठाक है और हम चाहे तो उनके पेरेंट्स से बात कर सकते हैं। बिटिया से ग्रीन सिग्नल मिलने पर हमने लडके के पेरेंट्स से बात की। यह ताकसांडे  परिवार था। लडके के पिताजी ने बतलाया कि वे वर्धा के रहने वाले हैं और मुंबई के लोकमान्य तिलक टर्मिनल के पास अणुशक्ति नगर के बार्क (भाभा एटामिक पावर रिसर्च कालोनी ) में सर्विस करते हैं।
आगे, लडके के पिताजी ने कहा कि उन्होंने हमारी बच्ची का प्रोफाईल देखा है। लडके ने सारी बातें बतला दी है। हमारी बिटिया उन्हें पसंद है और इस पर वे हमारी सहमती चाहते हैं।
हमारे पास भी एतराज करने का कोई कारण नहीं था। ताई ने बतलाया था कि लडके के सिर पर बाल कम है। बच्ची के नालेज में होने के बावजूद अगर उसने सिलेक्ट किया है तो जाहिर है कि वह इसे सेकेंडरी मानती है, हमने सोचा। कोई भी लड़का परफेक्ट नहीं होता। कोई न कोई कमी होती ही है। सारी बातें एक साथ  नहीं मिल सकती, यह अनुभव जन्य  तथ्य है।
कुछ दिनों बाद ताई ने बतलाया की लड़का, जिनका नाम बिपिन है, दिल्ली मिलने के लिए आ रहा है। हमने सोचा, बात इसी तरह आगे बढती है।
बिपिन एक अच्छा और सुलझा हुआ लड़का लगा। मुझे उसमें गंभीरता नजर आयी। मेरे यह पूछने पर कि तुम्हारे सिर के बाल क्या हुए, उसने मुस्करा कर कहा, अंकल, उड़ गए। आप लडकी और उनके पेरेंट्स से मिलने जा रहे हैं तो जाहिर है, ऐसे कमेंट्स के लिए तैयार होते हैं।  आजकल समय के पहले सिर के बालों का उड़ना या सफ़ेद होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
ताई ने बतलाया था कि उसके लिए लडके की पर्सनालिटी और वह अपनी बात कम्युनिकेट कैसे करता है, प्रायमरी है, न की फिजिकल एपियरेंस। मैंने कहा की फिजिकल एपियरेंस का अपना महत्त्व है।जब आप साथ में खड़े होते हैं तो फिजिकल एपियरेंस मेटर  करता है। ताई ने लडके के द्वारा भेजे गए पहले मेसेज का जिक्र किया। बिपिन ने लिखा था कि वह काफी दिनों से सर्च कर रहा था। मजे की बात है कि इस सर्चिंग में उसके छोटे भाई ने बाजी मार ली। पापा कहते रहे मगर, मेरी सर्च चलती रही और अंतत आपकी प्रोफाईल देख कर मुझे लगा की मेरी सर्च पूरी हुई।

ताई ने कहा कि इस पर उसे रिस्पांस करना है। भाभी से पूछा तो उन्होंने कहा कि फैसला उसे खुद करना है। दादा और भैया ने भी यही कहा। अब फाईनल मम्मी डेडी है, आप लोग बता दो कि क्या रिस्पांस करना है ? मैंने मेडम  की तरफ देखा। मेडम  ने कहा कि स्काईप पर जितनी बातें हुई, परिवार के लोग हम जैसे ही लग रहे थे। मैंने ताई को कहा की तू 'हाँ' का मेसेज दे दे।  कोई लड़का खुद अपनी ओर से एप्रोच करता है तो उसका वेटेज होता है।

हप्ता बीतते बिताते ताकसांडे जी का फोन आया कि हमें मुंबई की विजिट करनी चाहिए। हमने भी सोचा , लड़का दिल्ली की विजिट  कर चुका है। जाहिर है, अब हमारी बारी थी। हम 6 अक्टू  को मुंबई पहुंचे। बिपिन स्टेशन लेने आ गए थे।

ताकसांडे परिवार बार्क कालोनी में रहते हैं। 7 अक्टू  की सुबह हम दोनों मियां बीबी प्रात: भ्रमण को निकले, जैसे कि हमारा रूटीन है। चचाई कालोनी जैसे ही माहौल लगा। बार्क, कालोनी एरिया है। मगर, सेक्युरिटी यहाँ काफी टाईट  दिखी। भाभा एटामिक रिसर्च का यह केन्द्रीय संस्थान जो है। भाभा पावर एटामिक रिसर्च सुनते ही अपने आप सेक्युरिटी का ख्याल जेहन में आता है। यहाँ दुहरे और तिहरे स्तर पर स्टेट और सेंटर की सेक्युरिटी तैनात है। मैंने मप्र  स्टेट इलेक्ट्री सिटी बोर्ड के थर्मल पावर स्टेशनों में सर्विस करते हुए 34 साल बिताया है। मगर, यहाँ मुझे अपने कई कंसेप्ट ढहते हुए नजर आये।

बार्क मुंबई के चेम्बूर साईड में समुद्र के किनारे है। कालोनी समुद्र से सटी हुई पहाड़ियों से घिरी हुई छिछली जगह जंगल झाड़ियों के बीच बसायी गई है। मौसम डेम्प मगर, सुहाना लगा। बीच बीच  में बरसात हो रही थी। यद्यपि बरसात ख़त्म होने की थी मगर, तेज बारिश से आप कभी भी भीग सकते थे।

साम को ताकसांडे परिवार के साथ हम लोग पनवल साईड घुमने गए। मुंबई जैसे महा नगर में एक अदद  मकान जरुरी होता है और लडकी के पेरेंट्स को यह बताना एक कस्टम है। ताकसांडे जी बार बार इसका जिक्र करते थे। मगर, तब हम लोग इस  तथ्य से वाकिफ नहीं थे। ताकसांडे जी इसी उद्देश्य से हमें ले गए थे।

ताकसांडे परिवार सम्बन्धों को रिश्ते का रूप देने के लिए काफी उत्सुक दिखे। हमें भी अच्छा लगा। मेडम ने ताई से बात की। ताई का कहना था कि अगर हमें ठीक लगता है तो हम आगे बढ़ सकते हैं। मेडम ने अपनी बात मिसेज ताकसांडे  को बता दी।  मेडम ने यह भी कहा कि ऐसी स्थिति में हम इस बाबद पक्का संदेश ले जाना चाहेंगे।
अगली सुबह सामाजिक विधि विधान से रिश्ते को पक्का करने की रस्म की गई। भोजन दान के साथ एक दूसरे को मिठाई खिला कर ख़ुशी के इस नए रिश्ते को हम दोनों परिवारों ने कबूल किया गया।

Friday, November 23, 2012

ओमप्रकाश वाल्मीकि से एक मुलाकात(Omprakash Valmiki)

ओमप्रकाश वाल्मीकि से एक मुलाकात

पता नहीं अच्छे लोगों को क्या हो जाता है। बात अक्टू  12 के मध्य की है। डा हेमलता महिस्वर ने पूछा था कि ओमप्रकाश वाल्मीकि जी बीमार है और वे  हास्पीटल में एडमिट है। वे उनका हाल-चाल जानने जा रही है और अगर मैं अगर चलना चाहूँ तो राजीव चौक में मिल सकता हूँ। डा हेमलता की खबर से मैं उछल पड़ा। तब मेरा आवास गुरगांव दिल्ली का रीजेंसी पार्क 2 था।

ओम प्रकाश वाल्मीकि को मैं अरसे से जनता हूँ। मगर, उनसे रुबरुं होने का मौका नहीं मिला था। लेखन या चिंतन क्षेत्र में मैं कोई हस्ती तो हूँ नहीं कि ओमप्रकाश वाल्मीकि जैसे देश के ख्यात प्राप्त लेखक और सामाजिक चिन्तक के साथ डायस शेयर करने का मौका मिले। डायस शेयर तो दूर की बात,अब तक दर्शक दीर्घा में बैठने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हो सका है।

लेखन के क्षेत्र में दिलचस्पी होने के कारण पत्र -पत्रिकाएँ पढ़ते रहता हूँ। उनके लेख मुझे अपने चिंतन को सपोर्ट करते लगे। उन्हें पढ़ कर मुझे लगा कि श्यौराज सिंह बैचैन , ओमप्रकाश वाल्मीकि जैसे चिंतक दलित समाज को और दलित साहित्य को एक दिशा दे सकते हैं। मैंने कई लेखकों और समाज चिंतकों को पढ़ा। ओमप्रकाश वाल्मीकि ने चिंतन के क्षेत्र में, लेखन के क्षेत्र खास कर दलित साहित्य में जो मुकाम हासिल किया है, नि:संदेह बेमिशाल है। वे जो हैं, वहीँ लिखते हैं। कुछ लोग लिखते कुछ हैं और उनके घर में कुछ और होता है। विचारों में और व्यक्तित्व में एकरूपता बहुत जरूरी है।आपको लोगों को समझने के लिए उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानना जरुरी  नहीं होता। आत्मकथा और आलोचनात्मक लेख काफी होते हैं।

बहरहाल,बतलाए मेट्रो स्टेशन पर हम नियत समय पर पहुँच गए। मिसेज भी साथ थी। मै जब भी किसी  हस्ती से मिलने जाता हूँ तो मिसेज को भी साथ रखता हूँ। परिवार के वैचारिक समृद्धता के लिए यह एक कारगर कदम है। डा हेमलता जी हमारा इन्तजार ही कर रही थी। हम करोल बाग़ मेट्रो स्टेशन से उतर कर सीधे सर गंगा राम हास्पिटल गए। मगर, पता चला कि वे यहाँ नहीं सिटी हास्पिटल में एडमिट है।

डा हेमलता को देख कर ओमप्रकाश जी के चेहरे पर हर्ष की लहर दौड़ गई। वे सिरहाने के तरफ थोडा खिसक कर तकिए के सहारे और सीधे हो गए। वहां पलंग के पास मिसेज और मिस्टर विजय पाल , डा राज कुमार पहले से ही मौजूद थे। बाद में एक और सज्जन आ गए थे जिनके अंडर में वाल्मीकि जी किसी समय सरकारी मुलाज़िम  थे। मरीज के पास अगर कोई बात करने वाला हो, तो अच्छा लगता है। मरीज लेखक हो और उनके पास तीन -चार और लेखक बैठे हो तो फिर लेखक मरीज, मरीज न रह कर लेखक बन जाता है। यहाँ लेखक भी थे और यार भी थे। बाते चलती रही और चलती रही। इस बीच मिसेज वाल्मीकि कब कमरे से निकल कर हस्पिटल के सिटिंग हाल में आ गई, पता ही नहीं लगा।
करीब डेढ़ घंटा हो गया। इस बीच हास्पिटल की नर्स दो बार चक्कर लगा गई। शायद, विजिटिंग आवर्स ख़तम हो गया था। हमें लगा कि  ज्यादा देर रुकना न सिर्फ मरीज के लिए उचित है वरन, हास्पिटल का डिसिप्लिन भी बाधित होता है। लिहाजा हमने ओमप्रकाश जी से विदा लेना ठीक समझा।

ओमप्रकाश जी को उनकी इथोपेगस नली में केंसर बताया गया था। इफेक्टेड़ पोरशन रिमूह कर लिया गया था। इसी तारतम्य में इलाज चल रहा था। वे काफी कमजोर लग रहे थे। लिक्विड डाईट चल रहा था और मैं उनकी समर्थता की असमर्थता को टुकुर-टुकुर देख रहा था। मैं कभी उनके चेहरे को देखता तो कभी उनकी रचना-धर्मिता पर चिंतन करता। मगर, ओमप्रकाश जी है कि दिल खोल कर चहक रहे थे। जिन लोगों को देह और गेह का भान  हो जाता है, वे इसी तरह मस्त रहते हैं।
इस घटना के करीब 10-15 दिनों बाद फिर एक दिन डा हेमलता का फोन आया कि वे ओमप्रकाश जी से मिलने जा रही है। भला, मैं कैसे मिस कर सकता था। इस बार मिस्टर महिस्वर भी साथ में थे। हम तीनों नोयडा सिटी सेंटर से ऑटो लेकर खोजते-खोजते वाल्मीकि जी के आवास पर पहुँच ही गए। उस समय वे केंद्रीय विहार 2 सेक्टर 82 के पाकेट 1 में रहते थे। किसी शहर में पहले-पहल किसी अजीज का एड्रेस खोजना एक चुनौती पूर्ण कार्य होता है। दरअसल, तब वे वहां अपने रिश्तेदार के यहाँ ठहरे हुए थे। डा महिस्वर ने पहले ही उन्हें आने की सूचना  दे दी थी।

मिसेज वाल्मीकि का सहारा ले कर जब वे ड्राईंग रूम में तशरीफ़ लाये तो वे काफी कमजोर लग रहे थे। वे ड्राईंग रूम  में हम लोगों के साथ काफी  देर बैठे। हम लोगों के बीच विभिन्न विषयों पर लम्बी बातचीत हुई। डा हेमलता महिस्वर से उनकी पुरानी जान -पहचान थी। शायद, वे कई मौकों पर डायस भी शेयर कर चुके थे। मैंने देखा कि इतने बीमार होने के बावजूद उनके चहरे का नूर जरा भी निस्तेज नहीं था।
कभी समय था कि केंसर का नाम सुनते ही लोग निराश हो जाते थे। मगर, जय हो युवराज का कि उन्होंने  एक नया संदेश दिया। युवराज ने लोगों के सोचने का नजरिया बदल दिया। देश के करोड़ों-करोड़ों दलित ओमप्रकाश जी के साथ हैं। मुझे जानकारी है की वे तेजी से रीकव्हर हो रहे हैं। वे इस बदतमीज बीमारी से जल्दी ही मुक्ति पा लेंगे, इसी दुआ के साथ।
---------------------------------------------------------------------------------

ओम  प्रकाश वाल्मीकि की कुछ कविताएं

(1 )

मरते-मरते मेरा बाप
थमा गया
मेरे हाथ में कलम
झाड़ू की जगह
काल-ग्रस्त अंधेरों की सिसकियाँ
और मुक्ति का घोषणा-पत्र
लिखने के लिए
-------------------------------------------
                             -

Monday, November 19, 2012

Hunger


Hunger
Some people born what called "God gifted". They born with talent  They don't need support. They  goes high and high with their own (what they thinks). they earn paisa, prestige and huge property. But, there is law of cotradiction Its nature.Its law of nature.
Recently, what happened in Gurgaon, has made cold blood severing. One thing is clear, and that is who goes to accumulate the property and huge paisa, should think twicely for their hunger. Accumulation of property and paisa generates two enemies. One in competition market and other, in his own house. Enemy in competition market is open enemy and can deal properly if you have market talent. But, enemy in your own house is typical one. This enemy is very dangerous as he comes from your blood relation. In most cases, this enemy is your own brother. Since, he knows all loop holes, that is why he stands bitterly. You cannot deal your own brother so easy until you have mother like Anil Ambani.
We saw Pramod Mahajan murder case. He was sought dead by his own brother. By the way, he was sought in his home. And there were no their own security guards as in Ponti Chadda case.
People accumulate huge property and keeps security guards in person and at residence. These security guards may acts dangerously. They don’t know whose brother who is? They only know the safety of their owner.
Property and paisa brought luxuries. But, on what cost? If you deal things rightly than okay, otherwise….. That is why, Buddha said..right speech..right view…right livelihood…….. 

Sunday, November 18, 2012

Dowry's mis-conception


“Daddy, jewelry and Tv, Fridge..what you placed in home need head, are unnecessary. It’s a dowry. I am totally opposed of it. Dowry is social evil.” –said a son on the eve of his own sister marriage.
"Son, I think, you have misconception about dowry. In fact, dowry is upper caste evil. It is no concern with our society. Dowry is purely upper caste’s problem. Bride burning, you wouldn't have seen in our society. Customary, it is a tradition to give nominal jewelry and some home needs in daughter’s marriage. This is solely parent’s pleasure, what they want to give." 
"....On the other hand, dowry is intentionally forceful act. It gives pressure on parents. Sometimes, this pressure comes up in form of suicide or hanging of father.Dowry is a tradition of upper castes."
 Dalits are basically enemy of upper caste and their tradition, their rituals and custom. We have anti-upper caste culture. In our society, man and woman are equal. We have no denigration towards our women part. Dowry means purchasing a Damaad. Our society have no this partiality. We have no ‘Tilak’ like custom.” – Father tried to clear his misconception.
“But, giving jewelry..Tv..Fridge are somehow part of dowry. And justifying it ? It is a sick mentality. I strongly  condemn this.”
“Okay my son !  Than why there should be huge decoration, DJ and heavy bride garments?  Dr. Ambedkar never asked our people to do so? Why our ‘educated lot’ have no hesitation to drains huge money on this head? How it is justified? And if this is fair, than how jewelry and home needs are unfair ?” –asked father.

Telent and Competion

कभी ऐसा था कि म्यूजिक कम्पोजर के जैसा गीत उसी लय में गाने के लिए कहा जाता था। मगर, आज खुद म्यूजिक कम्पोजर सामने डायस पर बैठ कर कहता है कि यार, तुमने तो मुझे भी पीछे छोड़ दिया। मैं, तुम्हारे सामने कुछ भी नहीं हूँ
डांस हो या म्यूजिक: सभी क्षेत्र में टेलेंट इतना हाई है कि आँखें चका-चौंध रह जाती है। मगर तब, यही बात  कम्पीटीशन में क्यूँ नजर नहीं आती ? बात नेशनल लेवल की हो या इंटर-नेशनल। 

Tuesday, November 13, 2012

अयोध्या और भगवान् राम

अयोध्या और भगवान् राम 

भगवान् राम अयोध्या में विवादित जगह ही पैदा हुए थे। क्योंकि, करोड़ों हिन्दू  सदियों से ऐसा मानते हैं। और फिर, हिन्दुओं के तमाम धार्मिक ग्रन्थ इसके प्रमाण है (हाई कोर्ट के जज का विवादित फैसला )। 

Monday, November 12, 2012

Govt Duty

Parents should not have any expectation from their kids.- said son.
But, who should have care to them ? - asked father.
They should take care themselves. - said son.
Parents look-after their kids and give education hopping that they will look-after at their old age ? - said father.
No, It's their duty. Animals and birds do the same ? - said son.
Okay, but human being isn't animal. And, be a human being; he has some obligations towards his parents, family and society ?
No, man is a social animal. And, he has the same family life as animal have ? said son.
That means, parents should be left to die on their fate ? - Father raised the voice.
No, I don't mean that. If kids are in a position to take care then they should do. But, it shouldn't be an obligation on them.
If, it shouldn't be an obligation on them and if, parents are unable to take care in their old age, then ? asked father.
Then, it's Govt. duty to take care, as it going to happened in European countries. -replied son.

टेम्पो ड्राइवर (Tempo Driver)

  टेम्पो ड्राइवर


घटना, बोरीबरी से नागपुर के बीच की है। बोरीबरी, नागपुर के आऊट स्कर्ट में है। हम लोग, जब टेम्पो खाली था, आगे की सीट पर बैठ गए थे। ड्राइवर तभी आगे बढ़ा था जब टेम्पो फुल हो चूका। मगर , तब भी वह जहाँ सवारी देखता , टेम्पो रोक कर सवारी को ठूंसता। बोरीबरी से अभी तीन-चार कि मी ही चला था कि फिर,  टेम्पो रुका।
 "ये अम्मा, थोडा हट कर बैठो। वहां 5 सवारी बैठती है।" - टेम्पो ड्राइवर ने पीछे की थ्री सीटर पर बैठी एक औरत को लगभग डपटते हुए कहा।
"अब इहाँ कहाँ जगह है, जो तुम उसे बैठने को बोल रहे हो ? चार तो पहले ही बैठे हैं।" - महिला ने प्रतिवाद किया।
"मैंने तुमको पहले ही बोला था कि सट कर बैठो ?" - ड्राइवर ने मुहं से बहुत सारी पिक जमीन पर थूकते हुए कहा।
"भैया, पहले ही हम सिकुड़-सिकुड़ कर बैठे हैं। तुम खुद आ कर देख लो।" -महिला ने प्रार्थना भरे स्वर में कहा।
"ये मैया, बकर बकर मत कर। वहां 5 सवारी आती है, उसे बैठने दे ।" - ड्राइवर ने झिडक दिया।
                                                                                                                         -अ ला उके