Tuesday, October 28, 2008

जातिगत आधार पर जनगणना के निर्देश

समाचार दैनिक भास्कर जबलपुर (म.प्र) २८ नव. ०८ के अनुसार, मद्रास हाई कोर्ट ने केन्द्र सरकार से देश में जातिगत आधार पर जनगणना करने को कहा है। आरक्षित कोटे के तहत विचारार्थ याचिका को स्वीकार करते हुये कोर्ट ने यह निर्देश दिए .जस्टिस अलिये धर्माराव समेत दो जजों की बेंच ने कहा की जातिगत जनगणना आज के समय की मांग है और इससे केन्द्र सरकार को सामाजिक न्याय का लक्ष्य सही रूप में प्राप्त करने भी मदद मिलेगी।

स्मरण रहे की १९३१ के बाद से देश में जाती के आधार पर कोई जनगणना नहीं हुई है। निश्चित तोर पर आरक्षित वर्गों की जनसँख्या बढी है। अनु.जाती/जन-जातियों की हमेशा से मांग रही है की देश में जनसँख्या के आंकडे जातिगत आधार पर तैयार कराए जाए। मगर, यहाँ सुनता कौन है? अनु.जाती/जन-जातियों की औकात ये है की उनके १५० सांसद राष्ट्रपति से मिलने जाते हैं तो देश का राष्ट्रपति उनसे मिलने इंकार कर देता है। जहाँ तक राजनैतिक दलों की बात हैं,उनके करता-धर्ता सब गैर आरक्षित वर्ग के हैं। वे क्यों जातिगत जनगणना का समर्थन करने लगे ?

हिंदू बहुसंख्यक देश में जहाँ हिंदू दिमाग पर मुट्ठी-भर ब्राहमणों का कब्जा हो,यह सम्भव भी नहीं है.

bhartiya rajniti ka vikrat chehara:raj thakare and kampani

राज ठाकरे and कंपनी जो कुछ कर रही है, वह भारतीय राजनीती का एक ऐसा चेहरा है जिसका अनुमान शायद ही संविधान निर्माताओं को होगा। सवाल है, राज ठाकरे जैसे लोग ऐसी बाँटने की राजनीती क्यों करते हैं। क्या लोगों को जोड़ने की बातें उनको घर/परिवार और समाज से विरासत में नहीं मिलती ?
देखा jaye तो राज ठाकरे की गलती नहीं है। गलती उसके संस्कारों की है जो उसे विरासत में मिले है। बाल ठाकरे का पूरा जीवन उद्दंड राजनीती का रहा है और लोगों ने, राजनितिक पार्टियों ने अपने-अपने कारणों से उसका साथ दिया , बाला साहेब बढ़ते गए, बढ़ते गए और जब शरीर थकने लगा तो विरासत राजठाकरे के कन्धों पर आन पड़ी। अब इसमे गलती कहाँ है ? मगर, राजठाकरे जैसे लोगों को मालूम होना चाहिए की वक्त बदलता है और की वह, किसी की परवाह नहीं करता। चाहे बालठाकरे हो या उनका बाप कोई और।
जो लोग राष्ट्र और राष्ट्रीयता की बातें करते हैं, भारत माता का चित्र और फोटो लगा कर उसकी पूजा करते हैं या पूजा करने का नाटक करते हैं, उनका चेहरा ऐसा होगा, शायद ही sanvidhaan ड्राफ्टिंग कमेटी ने सोचा होगा।
देश की राजनितिक पार्टियों को अपना सोच रखने की स्वतंत्रता है। उस सोच पर कार्य करने की स्वतंत्रता है . मगर,यह स्वतंत्रता swachchhand नहीं है, मनमानी नहीं है। इसके लिए एक फ्रेमवर्क है। राजनितिक पार्टियों को उसी फ्रेमवर्क के तहत सोचना है, अपना अजेंडा बनाना हैं। यह राज ठाकरे एंड कंपनी को यह बात मालूम होना चाहिए। आप लोगों के दिलो-दिमाग पर छाने के लिए कुछ भी नहीं कर सकते।
कम-से कम अब लोगों को samajhna होगा। राज ठाकरे जैसे लोगों के विकृत चेहरों को ठीक करना होगा। बिहार ही क्यों, देश के तमाम लोगों को इस तरह की विकृत राजनीतिक का जवाब देना होगा.