Monday, September 11, 2017

बुद्ध सर्वज्ञ नहीं (Buddha rejected that He is omniscient)

बुद्ध के समकालीन जैन तीर्थंकर वर्द्धमान को सर्वज्ञ, सर्वदर्शी कहा जाता था।  इसका प्रभाव पीछे बुद्ध के अनुयायियों पर भी पड़े बिना नहीं रहा । तो भी बुद्ध स्वयं सर्वज्ञता के ख्याल के विरुद्ध थे(राहुल सांकृत्यायन : बौद्ध संस्कृति : पृ 56)।

"सुतं मेतं, भन्ते- समणो गोतमो सब्बञ्ञू् सब्बदस्सावी।"
 ‘‘मैने ऐसा(मे-एतं)  सुना(सुतं) है,  भन्ते! समण गौतम सर्वज्ञ(सब्बञ्ञू् ), सर्वदर्शी(सब्बदस्सावी) हैं।
अपरिसेसं ञाणदस्सनं पटिजानाति।
निखिल(अपरिसेसं ) ज्ञान-दर्शन(ञाणदस्सनं) का दावा करते(पटिजानाति) हैं।
चरतो च मे तिट्ठतो च सुत्तस्स च जागरस्स च सततं समितं ञाणदस्सनं पच्चुपट्ठितं।
चलते(चरतो), खड़े(तिट्ठतो), सोते(सुत्तस्स) जागते(जागरस्स) निरन्तर(सततं) सदा ज्ञान-दर्शन उपस्थित(पच्चुपट्ठितं) रहता है।
कच्चि ते, भन्ते, भगवतो वुत्तवादिनो।
 क्या भन्ते! ऐसा कहने वाले (ते) भगवान के प्रति(भगवतो) यथार्थ कहने वाले हैं?
न च भगवन्तं अभूतेन अब्भाचिक्खन्ति?"
कहीं, वे भगवान की असत्य(अभूतेन) से निन्दा तो नहीं करते?’’- वच्छगोत्त परिब्बाजक ने बुद्ध से पूछा।

"ये ते, वच्छ, एवमाहंसु- समणो गोतमो सब्बञञू .
वत्स! जो कोई(ये ते) मुझे ऐसा कहते (एवं-आहंसु) हैं- समण गोतम सर्वज्ञ हैं;
न मे ते वुत्तवादिनो, वे(ते) मेरे बारे में(मे) यथार्थ कहने वाले(वुत्तवादिनो) नहीं(न) हैं।
अब्भाचिक्खन्ति च पन मं असता अभूतेन।"
वह असत्य से मेरी(मं) निन्दा ही करते(अब्भाचिखन्ति) हैं।’’ -बुद्ध ने कहा(स्रोत- तेविज्जवच्छगोत्त सुत्तः मज्झिम निकाय)। प्रस्तुति- अ. ला. ऊके
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कच्चि - संदेहार्थक अव्यय
अब्भाचिक्खति- दोषारोपण/ निंदा करना (अब्भाक्खाति )