Thursday, April 15, 2021

धम्मपद का ब्राह्मणीकरण

धम्मपद का ब्राह्मणीकरण

धम्मपद की यह गाथा 'मनुस्मृति' को भी पीछे छोड़ रही है-

न ब्राह्मणस्स पहरेय्य, नास्स मुञ्चेथ ब्राह्मणो

धि ब्राह्मणस्स हन्तारं, ततो धि यस्स मुञ्चति. 389

चीवरधारी ब्राह्मण ग्रन्थकारों ने विज्ञ पाठकों को संदेह का लाभ देने के लिए उक्त गाथा का अर्थ बहुत ही गड्ड-मड्ड किया है. बहुत कठिन शब्द नहीं हैं उक्त गाथा में. कोई भी प्रारंभिक पालि का अध्येयता बड़ी आसानी से इसका अनुवाद कर सकता है-

ब्राह्मण पर प्रहार न करे, न ब्राह्मण उस(प्रहार कर्ता) को जाने दे

धिक्कार है, ब्राह्मण की हत्या करने वाले को, धिक्कार उसको भी जिसको जाने देता है.

ईर्ष्या

 ईर्ष्या

एक धनि व्यक्ति था. उसके पास बहुत धन था. उसने शहर की सबसे अच्छी लोकेशन पर एक बड़ा और आलीशान  मकान बनवाया. यही नहीं, उसमें सुन्दर फर्नीचर, कालीन आदि बेशकीमती जरुरत की तमाम वस्तुओं से उसे सुसज्जित किया और अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहने लगा.

वह अपने मकान को देखकर बहुत प्रसन्न होता. जो भी मित्र आता, उसे घुमा-घुमा कर अपना मकान दिखाता और फर्नीचर तथा बेशकीमती वस्तुओं के बारे में जानकारी देता. 

कुछ समय उपरांत उसके एक मित्र उसके यहाँ आये तो वह बहुत उदास और चुप-चुप था.  मित्र में पूछा- "भाई, बात क्या है, आज हमें मकान नहीं दिखाओगे?" इस पर उस धनी व्यक्ति ने कहा- अब मकान क्या दिखाऊं, देखते नहीं, मेरे पडोसी ने मेरे घर से भी बड़ा मकान बना लिया है !


Wednesday, April 14, 2021

भिक्खुओं के लिए 7 अपरिहाणीय धर्म

भिक्खुओं के लिए 7 अपरिहाणीय धर्म


 "भिक्खुओ! तुम्हे 7 अपरिहाणीय धर्म उपदेश करता हूँ. उन्हें सुनो, कहता हूँ."

"अच्छा भंते !"

"1. भिक्खुओ! जब तक भिक्खु बार-बार बैठक करने वाले रहेंगे, तब तक भिक्खुओ!  भिक्खुओं की वृद्धि ही समझना, हानि नहीं. 

2. जब तक भिक्खुओ! एक होकर बैठक करेंगे, एक ही उत्थान करेंगे, एक ही संघ के करणीय को करेंगे, तब तक भिक्खुओ!  भिक्खुओं की वृद्धि ही समझना, हानि नहीं. 

3. भिक्खुओ! जब तक अप्रज्ञप्तों को प्रज्ञप्त नहीं करेंगे, प्रज्ञप्त का उच्छेद नहीं करेंगे, प्रज्ञप्त भिक्खु-नियमों के अनुसार व्यवहार करेंगे, तब तक भिक्खुओ! भिक्खुओं की वृद्धि ही समझना, हानि नहीं.

4. भिक्खुओ! जब तक  चिर प्रवजित, संघ के नायक थेर भिक्खु हैं, उनका सत्कार करेंगे, गुरुकार करेंगे, मानेंगे, पूजेंगे, उनको सुनने योग्य मानेंगे, तब तक भिक्खुओ! भिक्खुओं की वृद्धि ही समझना, हानि नहीं.

5. भिक्खुओ! जब तक भिक्खु  तृष्णा के वश में नहीं पड़ेंगे तब तक भिक्खुओ! भिक्खुओं की वृद्धि ही समझना, हानि नहीं.

6. भिक्खुओ! जब तक भिक्खु आरण्यक सयनासन की इच्छा वाले रहेंगे तब तक भिक्खुओ! भिक्खुओं की वृद्धि ही समझना, हानि नहीं.

7. भिक्खुओ! जब तक भिक्खु यह याद रखेगा कि अनागत में सुन्दर समण आये, सुख से विहरें,  तब तक भिक्खुओ! भिक्खुओं की वृद्धि ही समझना, हानि नहीं(महापरिनिब्बान सुत्त: दीघ निकाय)."

धर्म की आवश्यकता

1. यदि नए जगत को किसी धर्म को अपनाना ही हो, ध्यान रहे कि नया जगत पुराने जगत से सर्वथा भिन्न है और नए जगत को पुराने जगत की अपेक्षा धर्म की अत्यधिक जरुरत है, तो वह बुद्ध का धम्म ही हो सकता है. - डॉ अम्बेडकर : बुद्ध और उनके धर्म का भविष्य.

2. समाज को अपनी एकता को बनाये रखने के लिए या तो कानून का बंधन स्वीकारना होगा या फिर नैतिकता का. दोनों के अभाव में समाज निश्चय ही टुकडे-टुकड़े हो जायेगा.

3. हर व्यक्ति का अपना दर्शन होना चाहिए. एक ऐसा मापदंड होना चाहिए जिससे वह अपने जीवन का आचरण परख सकें. क्योंकि जीवन में ज्ञान, विनय, शील, सदाचार का बड़ा महत्व है.

4. मनुष्य सिर्फ पेट भरने के लिए जिंदा नहीं रहता है. उसके पास मन है. मन के विचार को भी खुराक की जरूरत होती है. और धम्म मानव मन में आशा का निर्माण करता है, उसे सदाचार का सुखी जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है.

5. कुछ लोग धर्म को व्यक्तिगत समझते हैं. जबकि, बाबासाहब अम्बेडकर के अनुसार बुद्ध का धर्म सामाजिक है. उसका केंद्र बिंदु समाज है. एक आदमी का दूसरे आदमी के बीच व्यवहार का नाम धर्म है. आदमी अगर अकेला है तो उसे धर्म की आवश्यकता नहीं होगी. किन्तु आदमी अकेला नहीं है, वह समाज का अंग है. जहाँ दो आदमी होंगे, वहां धर्म की आवश्यकता होगी.


Monday, April 12, 2021

प्रो. पी. लक्ष्मी नरसू

प्रो. पी. लक्ष्मी नरसू

1. लेखक से मेरी भेट कभी नहीं हुई. डॉ. पट्टाभिसितारामैय्या, जो प्रो. नरसू के मित्र थे, से ही मुझे उनके बारे में जानकारी प्राप्त हुई.  प्रो. पी लक्ष्मी नरसू  डायनामिक्स के प्रतिष्ठित प्रोफ़ेसर थे. इसके अलावा  वे एक बड़े समाज सुधारक थे. प्रो. नरसू ने जाति-पांति की प्रथा के विरुद्ध अपनी पूरी ताकत से संघर्ष किया. हिन्दू धर्म में इस कुप्रथा के फलस्वरूप जो अत्याचार होता था, उसके खिलाफ विद्रोह का झंडा खड़ा किया था. 

वे बौद्ध धर्म के बड़े प्रशंसक थे और इसी विषय पर सप्ताह-दर-सप्ताह व्याख्यान दिया करते थे. अपने विद्द्यार्थियों में बड़े प्रिय थे. उनका व्यक्तिगत स्वाभिमान और राष्ट्राभिमान दोनों उच्च कोटि के थे. 

पिछले कुछ समय से लोग बौद्ध धर्म के बारे में किसी अच्छे ग्रन्थ की जानकारी चाहते थे. उनकी इच्छा पूर्ति के लिए मुझे प्रो. नरसू के इस ग्रन्थ की सिफारिश करने में कुछ भी हिचकिचाहट नहीं है. मैं सोचता हूँ की अभी तक बौद्ध धर्म के सम्बन्ध में जितने भी ग्रन्थ लिखे गए हैं, उनमें यह ग्रन्थ सर्व श्रेष्ठ है('दी इसेन्स ऑफ़ बुद्धिज्म' के तृतीय संस्करण प्रकाशन: डॉ अम्बेडकर). 

2. प्रो. नरसू मद्रास में डायनेमिक्स के जाने-माने विद्वान थे. आपके साथ ही सी. अयोध्यादास जी भी काम करते  थे. प्रो. नरसू और सी. अयोध्यादास ने साउथ बुद्धिस्ट एसोसियन' की स्थापना की थी और इसके माध्यम से 1910 में भारत सरकार से बौद्धों की अलग से जनगणना कराई. उस समय 18000 बौद्ध मद्रास राज्य में थे.  

3. मद्रास शहर में उस समय महाबोधि नाम की एक बौद्ध संस्था थी. उस संस्था के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर लक्ष्मी नरसू नायडू व सचिव सिंगारावेलू थे.  

मद्रास में परिहार (पराया) अति शुद्र जाति के बहुत से लोगों ने बौद्ध धर्म स्वीकार लिया था. इन नव बौद्धों के नेता पंडित अयोधीदास थे. इन लोगों ने रायपेट में एक घर किराये से ले लिया और उसमें  बौद्ध आश्रम की स्थापना की थी. मैं उसमें पालि सुत्त कहा करता था और सिंगारावेलू उसका तमिल में अनुवाद करते थे.

प्रो. नरसू प्रत्येक शुक्रवार को सायं के समय बौद्ध आश्रम आते थे. आप महाविद्यालय के वाचनालय से कुछ पुस्तके मेरे वचन के लिए लाते थे. किसी विषय का तुलनात्मक अध्ययन किस प्रकार करना चाहिए, यह मैंने पहली बार प्रो. नरसू से सीखा था. प्रो. नरसू का व्यवहार बहुत ही अच्छा था.  उनमें किसी भी प्रकार का बुरा व्यसन नहीं था. वे एक खुले दिल के व्यक्ति थे. मद्रास राज्य के समाज सुधारकों में उनकी  गणना होती थी(धर्मानन्द कोसम्बी; आत्मचरित्र  आणि चरित्र: जगन्नाथ सदाशिव सुखठणकर).