Monday, September 24, 2012

Buddhist Temple (Combodian) New Delhi


During stay at Gurgaon (New Delhi), I was in search of some Buddhist temples/ Viharas . Dr. Hemlata Mahiwshar who is presently residing in Delhi told me that while travelling via Metro, near Chhatarpur Metro stn, she had seen Buddhist Flage on a temple and hence, there must be a Buddhist Shrine. I noted this and decided to make a visit. Dr. Hemlata Mahishwar is Professor in Hindi Dept. at Jamia Milia Islamia University.
 
This Saturday, we decided to visit this place with my wife and my daughter Prerana. She is currently working in IATA. 

We reached at site at about 10.50 am. From outside, we were unable to identified the said temple as the Buddhist Shrine, being completely unknown with Cambodia architect. When we entered the gate, one young  man made queries. Even knowing that we are Buddhist, he was somewhat non co-operative. The Indian people to whom the foreign authorities kept as watch dog, try to be fool their Indian brothers. These watch dogs usually bestowed their head to only foreigners.

Within 10 minute, One Bhante came from his room with excuse. His heartly smile vaporized all the suspicions from the air.We greeted him in our traditional way, and followed him inside the temple.

Khiev Samavg, Ven. Bhante introduced himself. He belongs to Cambodia. This Buddhist Monastery was eshtablished in 1994 by Ven. Isi Maha Praserth Eka Panyo. The managment of these Monasteries within and outside of India are done by 'Khmer Buddhist community' from around the world.

Buddhism is deep rooted in Cambodian people since 5th century.  It is said that missionaries of King Ashoka introduced Buddhism in the Southeast Asia in the 3rd century BC.During the period of king  Rudravaraman, Buddhism was spreaded through 'Mahayan Thoughts of School' .Suryavarman( 1002-1050) and Jayavarman (1181-1215) were great devout Buddhist kings.After the 13th century, 'Thervada thoughts of School' became the way of life of the Cambodia people. At present, about 95% Cambodian people are the follower of Buddhism.

At about 13.00 Hrs, we thanks Ven Bhante ji and make good by. Indeed, Bhante were so kind and generous that we assured him to make frequent visit.
Address for communication - 
 Cambodian Buddhist Monastery
25, Andheria More : Mehrauli
Chhatarpur, New Delhi 110030

Thursday, September 20, 2012

लुक

   लुक 

"लड़का थोडा टकला है।"
"डैडी , आपको सारी चीजें नहीं मिल सकती।"
"ओके, मगर, टकला .."
"फिजिकल एपिरेंस मेरे लिए सेकेंडरी है। असल चीज लडके का स्वभाव है। अगर स्वभाव अच्छा है तो कंसिडर किया जा सकता है।"
"हाँ। मगर, सर पर अभी से बाल कम होना ..."
"मेरे लिए लुक मेटर नहीं करता ...."
"मुझे तआज्जुब है कि इस उम्र में तुम्हारी ये सोच है।"
"मगर, आप अपनी सोच मुझ पर लाद नहीं सकते।"
"ओके। मगर, मुझे यह जरुर लगेगा कि शायद मेरी लडकी में ही कोई कमी होगी ..."
"डैडी ....?"  लडकी ने आँखें तरेर कर बाप को देखा।


"डैडी , लड़का कह रहा है कि वह आपसे मिल कर संदेह मिटाना चाहेगा।"
"मगर, मुझे इसमें कोई रूचि नहीं है।"
"पर, मिल लेने में क्या हर्ज है ?"
"हर्ज ये है कि न चाहते हुए भी उसी मेटर पर सोचने को आप बाध्य किये जाते हैं।"
"ठीक तो है, हर एंगल से सोचने का आपको मौका मिलता है। आपके साथ कोई जबर्दस्ती तो कर नहीं रहा है।"
"ये एक तरह से जबरदस्ती ही होती है।"
"गलत, मैं नहीं मानती।"


"डैडी, लड़का आया हुआ है। क्या हम उसे लेने जाएँ ?"
"लेने जाने का क्या मतलब है ? वह आएगा, हम मिल लेंगे।"
" एक्चुअली, प्लान किया है कि पहले हम मिल लेते हैं और तब, अगर आपसे मिलाने लायक बात बनती है तो  ले आयेंगे।"
"नहीं। अगर, लड़का आ ही गया है तो सीधे उसे यहाँ आ जाने दो।"


"डैडी, हम लोग गलेरिया के एक केफे में  हैं। क्या लडके को लेकर आना है ?"
"हाँ, भई। जब तुम उसे रिसीव करने एयर पोर्ट गई हो। करीब-करीब दिन भर उसके साथ हो। ऐसी स्थिति में हम से मिलना तो उसका जरुरी हो गया है। आखिर अपने पेरेंट्स को वह क्या जवाब देगा ?"
"ओके।"


"डैडी, लडके के बारे में आपकी कैसी सोच है ?"
" बढ़िया है। गंभीर किस्म का लड़का लगा। नौकरी ठीक है, सोच पाजिटिव है। हल्कापन मुझे कहीं भी नजर नहीं आया उसकी पर्सनालिटी में।"


"बेटी, लडके के माँ-बाप पूछ रहें हैं, क्या जवाब देना है ?
"ठीक है  ...."
"जी नहीं, इस तरह जवाब नहीं दिया जा सकता। मुझे ठीक-ठीक बताओ, तुम्हे लड़का पसंद है ?"
"फ़िलहाल, इससे बेटर आप्शन भी तो अपने पास नहीं है।"
"मुझे लगता है कि लड़का ठीक है।"
"मगर, लुक ...."
"देखो, तुम अब लुक की बात मत करो। ....यु हेव लास्ट दी अपारचुनिटी टू टाक ऑन दिस मेटर।"


इन्टरव्यू


इन्टरव्यू 

तुम्हारा नाम ?
जी, रोहित मेश्राम।
किस जात के हो ?
महार।
व्हाट डू यु मीन बाई  'महार' ?
सर आई बिलोंग्स टू यस सी।
ओके, प्लीज सिट डाउन।

नेक्स्ट केन्डीडेट ...
यस सर
तुम्हारा नाम ?
जी, बंशीधर
बंशीधर के आगे ?
जी, सिर्फ बंशीधर।
किस जात के हो ?
जी, यस सी।
नानसेन्स, आई वान्ट टू नो यूवर कास्ट ?
सर, यस सी ..महार।
ओके, यू  केन  गो।

मेरी कुछ कविताएँ (1)

शान


जब तुम्हारी बेटी
किसी भंगी या मेहतर
के लड़के से प्यार करती है
तो यह तुम्हारे लिए
'ऑनर किलिंग ' होता है
मगर , जब यहीं काम
तुम्हारा बेटा करता है
तो यह तुम्हारी
'शान ' कैसे हो जाती है ?
.......................................

फर्क 


कविता,
जमीन में उगती है।
मगर, इसकी जड़े
आसमान में
फैली होती है।
जबकि कहानी,
आसमान में उगती है
मगर, इसकी जड़ें
जमीन में
धंसी  होती है।
..............................................


Tuesday, September 18, 2012

A visit to Qutb Minar


कुतुमिनार (टूरिस्ट स्पॉट)
दिल्ली की कुतब मीनार, ऐसी धरोहर है कि जिसे देखना हर कोई चाहता है। आप दिल्ली जायेंगे और कुतब मीनार न देखने जाएं , ऐसा हो नहीं  सकता। बल्कि , यह कहना ज्यादा सही होगा कि दिल्ली की पहचान कुतब मीनार है। बच्चें,  बूढ़े  और जवान हर कोई कुतब मीनार के पास खड़े हो कर फोटो खीचना चाहते है।


मुझे खुद याद नहीं है कि कुतब मीनार के बारे में, मैं कबसे जानता हूँ। गावं में पहले बाइस्कोप वाला  आता था। वह एक या दो पैसे में  तमाम बच्चों को कुतब मीनार, ताज महल दिखाता था। फ़िल्मी हीरो और हीरोईनों को हमने वहीँ देखा था।
मगर, अब जमाना बदल गया है। अब गावं में बाईस्कोप की जगह टी वी आ गया है। टी वी में बच्चें कुतब मीनार तो देखना चाहते हैं मगर, लाईट ही नहीं रहती।

कुछ लोगों का ख्याल है कि कुतब मीनार और इस तरह की अन्य इमारतें बनाने के लिए मंदिरों को तोडा गया था।

 हो सकता है, ऐसा हो। मगर, ऐसा था तब भी कोई  बात नहीं। क्योंकि, ऐसा तो हर शासक ने किया है। फिर, चाहे वह शासक मुस्लिम हो या हिन्दू।  इतिहास की दूसरी किताबों में साफ-साफ लिखा है कि हिन्दू शासकों ने बौद्धों और जैनियों के मन्दिरों को तोडा था। आपके पास सत्ता है तो आप कुछ भी तोड़ सकते हैं। अगर आप अधिसंख्य है तो बाबरी मस्ज़िद ढहा सकते हैं। 


ऐतिहासिक इमारतें हमें अपने इतिहास की जानकारी देती है। यही कि, यहाँ कौन आया, कौन गया। उसने क्या बनाया, क्या तोडा ? रियाया से उसका किस तरह का बर्ताव था। और फिर, वह मरा तो कैसे मरा ? अपनी मौत मरा या बेमौत  मरा ......?

Add caption
खैर, इतिहास तो इतिहास होता है। आप इतिहास की पुस्तकों में कुछ भी गोदा-गादी नहीं कर सकते। एक बार जो लिख दिया सो लिख दिया। मगर, आजकल ट्रेंड बदल गया है। हेरा-फेरी का खेल इतिहास के साथ भी किया रहा है। आगरे के ताज महल से अगर चिढ है तो आप कह सकते हैं कि इसे हिन्दू राजा ने बनवाया था। इक सिरफिरे से किसी ने पूछा- बताओ, पृथ्वी का केंद्र बिंदु कहाँ है ? सिरफिरे ने पावं के अंगूठे से गोल घेरा बना कर कहा-  यहाँ। यकीन न हो तो नाप कर देख लो ?

यक़ीनन, इतिहास की पुस्तकों के साथ छेड़कानी  की जा रही है। आप इतिहास को पलट
सकते हैं। अगर, आप सत्ता में है तो ऐसा, आसानी से कर सकते हैं। मगर, हाँ, आप इन इमारतों की इबारत नहीं बदल सकते ? उन पत्थरों पर उकेरे गए शब्दों की तहजीब नहीं मिटा सकते। लगता है, लोगों को इस बात का अंदाजा था कि आने वाले ज़माने में जनता के नुमाईन्दे इस तरह की ओछी हरकत करेंगे। शायद यही वजह है कि उन्होंने अपनी कब्र उसी ईमारत के नीचे रखने की जिद की। कुतब मीनार के पास कम-से-इल्तुतमिश की कब्र देख कर तो यही लगता है।

जब मैं पढता था तब एजुकेशनल टूर के नाम पर हमें दिल्ली की कुतब मीनार  दिखाई गयी थी। एक-दो जगह और ले जाये गए थे मगर, वह सब याद नहीं। मुझे तो कुतब मीनार ही याद है। मगर, जिस समय हम लोग आये थे तब की कुतब मीनार और आज की कुतब मीनार में फर्क है। तब की कुतब मीनार को देख कर लगता था कि कोई पुराने ज़माने की चीज है। मगर, आज बदला-बदला नजारा दीखता है। कभी-कभी तो लगता है कि यह दो-चार साल पहले बनाई गई हो।

हमें गाईड ने बताया था कि इसे 12 वी शदी के दौरान कुतुबुददीन ऐबक नामक एक मुस्लिम बादशाह ने बनाया था। क्यों बनाया था ?  यह गाईड ने नहीं बतलाया। सच तो ये है कि हम में से ये किसी ने पूछा भी नहीं था। एजुकेशनल टूर में किस में हिम्मत होती है कि इस तरह के उलुल-जुलूल सवाल करे ?

अगर मैं भूल नहीं रहा तो कुतब मीनार की ऊंचाई तब गाईड ने 72.5 मी बतलाया था। इतनी ऊंचाई पहले बहुत होती थी। मगर, अब तो पावर हॉउस की चिमनी 150 मी तक होती है। हम लोग एक-आध घंटे कुतब मीनार के परिसर में रहे होंगे। इस दौरान कई प्लेन परिसर के ऊपर से उड़ते दिखे। मुझे लगता है, आर्किअलाजिकल सर्वे आफ इण्डिया ने इसे नोटिस में लिया होगा। और न भी ले तो हम क्या उखाड़ लेंगे ?

कहा जाता है कि तब कुतब मीनार के ऊपरी तल पर चढ़ कर अजान दी जाती थी ताकि आवाज दूर-दूर तक सुनाई दे। हो सकता है, यह बात सही हो। क्योंकि, तब लाउड स्पीकर  नहीं थी।

दिल्ली अब ग्रीनरी के लिए जाना जाने लगी है। यह जरुरी भी है। 6 X 2 के लेन  में गाड़िया ऐसे सरकती  है जैसे बाला जी के दर्शन करने मंदिर की ड्योडी पर भक्तों की भीड़। आप खड़े हैं या चल रहे है, पता ही नहीं चलता। दिल्ली जैसे शहर में, अगर ग्रीनरी न हो तो लोग सांस कैसे ले ? कुतब मीनार परिसर में भी खूब ग्रीनरी है। वाकई, चरने का मन करता है।

कुतब मीनार, बेशक चाहे जिसने बनाई हो। मगर, वाकई में यह हिन्दू-मुस्लिम तहजीब का संगम है। मीनार के पास खड़ा ऊंचा लोह स्तम्भ अशोक के लाट की याद ताजा  करता  है। परिसर में स्थित अन्य और भी कई इमारतें हैं जो यह साबित करने के लिए काफी है।

पांच मंजिली कुतब मीनार के नीचे की दो मंजिल लाल
पत्थर (red sand stone) से निर्मित है और ऊपर की तीन सफेद संगमर मर  (white marble) की। मगर, इसके बनाने में यह ध्यान रखा गया है कि पूरी मीनार एक समान लगे। इसके प्रथम तल का व्यास 14.3 और ऊपरी पांचवें तल का व्यास 2.75 मी बतलाया जाता है ।

कुतब मीनार कई स्टेज में बनी है। कुतबुद्दीन ऐबक ने तो इसका फाउनडेशन रखा था। इसके बाद मुहम्मद गोरी ने इसे आगे बढाया।  तब कहीं जा कर शमसुद्दीन इल्तुत्मिश ने इसे पूरा किया।

कहा जाता है कि कुतब मीनार की तरह एक दूसरी मीनार खड़ी करने का प्रयास अलाउद्दीन खिलजी ने किया था।  मगर, बेचारा मर गया। अफ़सोस इस का नहीं की वह मरा बल्कि, इसका कि उसके अधूरे काम को किसी ने आगे नहीं बढाया। क्योंकि, तब एक नहीं, दो कुतब मीनार होते।