Thursday, October 29, 2020

'बौद्ध-ग्रथों का ब्राह्मणीकरण: एक विमर्श'

'बौद्ध-ग्रथों का ब्राह्मणीकरण: एक विमर्श'

'बुद्धा एंड हिज धम्मा' के 'परिचय' में बाबासाहब अम्बेडकर ने दीघनिकाय आदि पालि ग्रंथों में वर्णित बुद्धचरित के कई प्रसंगों अथवा बुद्ध के नाम पर प्रचारित कई बुद्ध-उपदेशों के तारतम्य में जो चिंता और असहमति व्यक्त की है, पाठक भली-भांति परिचित हैं. ग्रन्थ लिखने के बाद यदि वे और जीवित रहते तो निस्संदेह उस पर बौद्ध जगत के सामने खुल कर कहते. लेख के अंत में उन्होंने अपेक्षा की है कि उनके द्वारा उठाये प्रश्नों पर लोग चिन्तन करेंगे.

बुद्ध के धम्म का केंद्र समाज है, बल्कि एक सामाजिक आन्दोलन है. यह धर्मान्तरित बौद्धों के लिए सामाजिक दासता से आजादी है. उनके लिए धम्म का अर्थ समता, स्वतंत्रता और भातृत्व है. यह व्यक्तिगत कदापि नहीं है.

किसी भी समाज के लिए, उसके धर्म-ग्रन्थ और उनमें वर्णित पात्र आदर्श होते हैं. लोग उनसे प्रेरणा लेते हैं. अपने इतिहास को जानते, समझते हैं. धर्म-ग्रन्थ समाज की धरोहर होते हैं.

डॉ अम्बेडकर को ति-पिटकाधीन हजारों ग्रन्थ होने के वावजूद क्यों 'बुद्धा एंड हिज धम्मा' लिखना पड़ा ? सनद रहे, यह किसी ग्रन्थ की अट्ठकथा अथवा टीका नहीं है, जैसे कि अन्यय ति-पिटक ग्रंथों पर पूर्व में लिखी जाती रही है. क्योंकि इसमें पारंपरिक स्थापनाओं से हट कर न सिर्फ बुद्धचरित का वर्णन है बल्कि उपदेशों में मौलिक अंतर हैं. धर्मान्तरित बौद्धों के लिए यही आधार-ग्रन्थ है.

पारंपरिक स्थापनाओं से हट कर चिंतन कितना दुरूह और हिम्मत का काम है, यह वही जानता है, जो इस पथ पर चलता है. 'इन्टरनेशनल पालि फाउन्डेशन' बाबासाहब के उसी चिंतन को आगे बढाता है. फाउन्डेशन की स्थापना के समय ही हमने अपना मंतव्य स्पष्ट कर दिया था. ति-पिटकाधीन ग्रंथों का अध्ययन 'बुद्धा एंड हिज धम्मा' की दृष्टि से हमारा लक्ष्य है. हम उसी दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. 'बौद्ध-ग्रथों के ब्राह्मणीकरण पर विमर्श' इसी कड़ी का हिस्सा है. प्रयास होगा कि यह एतिहासिक विमर्श पुस्तक के रूप में उपलब्ध हो. भवतु सब्ब मंगलं.

संख्या

 संख्या 

(पञ्चासातो सतं)

एकपञ्चासा                द्विपञ्चासा

तिपञ्चासा              चतुपञ्चासा

पञ्चपञ्चासा            छपञ्चासा

सत्तपञ्चासा            अट्ठपञ्चासा

एकूनसट्ठि                 सट्ठि

एकसट्ठि                    द्विसट्ठि

तिसट्ठि                    चतुसट्ठि

पञ्चसट्ठि                  छसट्ठि

सत्तसट्ठि                    अट्ठसट्ठि

एकूनसत्तति                सत्तति

एकसत्तति                    द्विसत्तति

तिसत्तति                    चतुसत्तति

पञ्चसत्तति                छसत्तति

सत्तसत्तति                अट्ठसत्तति

एकूनासीति                असीति

एकअसीति                द्वासीति

तियासीति                चतुरासीति

पञ्चासीति               छळासीति

अट्ठासीति                एकूननवुति

नवुति                        एकनवुति

द्विनवुति                    तिनवुति

चतुनवुति                  पञ्चनवुति

छनवुति                     सत्तनवुति

अट्ठनवुति                एकूनसतं

सतं


Wednesday, October 28, 2020

वेळ गेलेली असते.

 एका कॉलेजमध्ये "फिलॉसफीचे" एक प्रोफेसर शिकवायचे...ते वेगवेगळ्या पध्दतींनी विद्यार्थ्यांना आयुष्यातील लहान-लहान गोष्टी समजावण्याचा प्रयत्न करायचे...


एक दिवस प्रोफेसरने आपल्या सर्व विद्यार्थ्यांना बोलावले आणि म्हणाले की, आज मी तुम्हाला एक खूप महत्त्वपूर्ण गोष्ट समजावणार आहे.


सर्व विद्यार्थी लक्षपूर्वक ऐकत व बघत होते.


प्रोफेसरने पाण्याने भरलेले एक भांडे घेतले आणि त्यामध्ये बेडूक टाकला. पाण्यात जाताच बेडूक आरामात पोहू लागला. यानंतर प्रोफेसरने ते भांडे तापायला ठेवले.


भांड्यातील पाणी हळुहळू गरम होत होते. भांड्यामध्ये जो बेडूक होता तो पाण्याच्या वाढत्या तापमानानुसार स्वतःला अॅडजस्ट करत होता. हळुहळू पाणी जास्त गरम होत होतं, पण बेडकाला काहीच फरक पडत नव्हता. तो स्वतःला तापमानानुसार तयार करत होता.


काही वेळानंतर पाण्याचे तापमान खूप वाढले आणि पाणी उकळू लागले. तेव्हा बेडकाचीहि सहनशक्ती संपली. त्याला त्या भांड्यात थांबणे कठीण झाले. तेव्हा बेडकाने उडी मारुन भांड्याबाहेर येण्याचा प्रयत्न केला.


बेडकाने पूर्ण शक्ती लावूनहि त्याला त्या भांड्यातून बाहेर पडता आले नाही. प्रोफेसरने तात्काळ त्या बेडकाला बाहेर काढले. प्रोफेसरने विद्यार्थ्यांना विचारले की, बेडूक भांड्याबाहेर उडी कां मारु शकला नाही ???


सर्वांनी वेगवेगळी उत्तरे दिली.


तेव्हा प्रोफेसर म्हणाले - बेडूकाची इच्छा असती तर तो पाणी तापायला ठेवल्याबरोर बाहेर येऊ शकत होता. पण बेडूक स्वतःला वातावरणानुसार अॅडजस्ट करण्याचा प्रयत्न करत होता. जेवढे तो सहन करु शकत होता, तेवढे त्याने केले.


पण जेव्हा त्याला वाटले की, जीव वाचवण्यासाठी बाहेर पडावेच लागेल, तेव्हा तो उडी मारु शकला नाही, कारण अॅडजस्ट होण्याच्या प्रयत्नात त्याची सर्व एनर्जी नष्ट झाली होती. जर मी त्याला बाहेर काढले नसते, तर बेडूक मरुन गेला असता.


                🎯 लाइफ मॅनेजमेंट


प्रोफेसरने आपल्या विद्यार्थ्यांना ऐकवले - 


सर्व लोकांसोबत असेच होते. आपण नेहमी आपल्या परिस्थितीशी जुळवून घेतो. पण त्यामधून बाहेर पडण्याचा प्रयत्न करत नाही. पण जेव्हा आपण पूर्णपणे परिस्थितींमध्ये अडकतो तेव्हा आपल्याला वाटते की, मी योग्य वेळी बाहेर पडायला पाहिजे होते. पण तोपर्यंत वेळ गेलेली असते.


 बोध.... 


योग्य वेळी योग्य निर्णय घेण्याची कला म्हणजेच जीवन जगण्याची कला होय.

चि/चन पयोगा

 चि/चन(एकवचन) पयोगा

1. बालको बुद्धविहारं गच्छति.

(बालक बुद्धविहार जाता है)

को(कौन) बुद्धविहारं गच्छति?

कोचि(कोई) बालको बुद्धविहारं गच्छति.  

अथवा,  

कोचन(कोई) बालको  बुद्धविहारं गच्छति.

 अतीतकाले, वाराणसियं बुद्धदत्त नामेन राजा अहोसि(हुआ करता था).

अतीतकाले, वाराणसियं कोचि/कोचन(कोई) राजा अहोसि.

-इसी प्रकार वाक्य बनाये ?


Tuesday, October 27, 2020

Brhmanisation of Buddhist Scriptures. A critical Study

बौद्ध-ग्रंथों का संस्कृतिकरण: चुनौतियाँ और समाधान-  

Brhmanisation of Buddhist Scriptures. Challenges and  remedy?

Zoom Conference on Sunday 

1st Nov. 2020( in 2nd Half).

Speakers and Topics-

1. डॉ. अम्बेडकर ने 22 प्रतिज्ञाओं को 'धम्म-दीक्षा' का हिस्सा क्यों बनाया?  

  Why Dr. Ambedkar included 22 Pladges, as a part of Dhamma-Diksha.

    1. प्रो. हेमलता महिस्वर, दिल्ली  Dr. Hemlata Mahiswar, Dehli

    2.  डॉ. राहुलसिंह, दिल्ली  Dr. Rahul Singh Dehli

    3. अशोक सरस्वती बोधि  नागपुर  Ashok Sarswati Bodhi, Nagpur


2 . बौद्ध-ग्रंथों का संस्कृतिकरण: चुनौतियाँ और समाधान-  

Brhmanisation of Buddhist Scriptures. Challenges and how to overcome ?

   1. प्रो. मनोज कुमार, दिल्ली  Pro. Manoj Kumar, Dehli

    2. डॉ. नीलिमा चौहान मेरठ. Dr. Nilima Chawan, Meerut

    3. कुलदीप सिंह  हिसार,  हरियाणा Hon. Kuldeep Sinh Hisar, Hariyana


3. धम्मपद में ब्राह्मणवग्गो: एक आलोचनात्मक दृष्टी: - 

Brahmnvaggo in Dhammapad:  A critical view

    1. प्रो ताराराम, जोधपुर   Pro. Tararam, Jodhpur Raj.

    2.  आयु. अनिल गोलाईत भोपाल  Hon. Anil Golait, Bhopal

    3. सिद्धार्थ गौतम इंदौर  Siddharth Gautam Indore


4. धम्मलिपि का संस्कृतिकरण: चुनौतियाँ और समाधान- 

Brahmisation of Dhammalipi

    1.  आयु अतुल भोसेकर,  मुंबई  Hon. Atul Bhosekar Mumbai

    2.  आयु. मोतीलाल आलमचन्द्र,  भोपाल  Hon. Motilala Alamchandra Bhopal


5. पालि भाषा का संस्कृतिकरण: चुनौतियाँ और समाधान-

Brahmnisation of Pali Language

     1. प्रो. प्रफुल्ल गढ़पाल, लखनऊ  Pro. Prafull Gadhapal Lakhanow

    2. जयपालसिंह आर्य,  मुंबई  Hon. Jaypal Sinh Arya Mumbai


6. परित्तं गाथाओं में ब्रह्मादि देवता: चुनौतियां और समाधान - 

'Brahma' and 'Devata' in Parittam Gathas

    1. अ. ला. ऊके, भोपाल  A. L. Ukey Bhopal

    2. आयु. अनिल रंगारी, दुर्ग  Hon. Anil Rangari, Durg

रित/बिना पयोगा-

 रित/बिना पयोगा-

पण्णानि बिना रुक्खो न सोभति.

जलं बिना मिना न  जीवति.

सीलं रिते भिक्खु न सोभति.

बाबासाहब पटिबिम्बो रिते बुद्धविहारं न होति.

सेत परिधानं बिना बुद्ध-उपासक/उपासिका न सोभति.

भगवा धम्मस्स रिते भारत देसो न पभासेति.

असोकचक्क बिना देसस्स राजमुद्दा न सोभति.

Monday, October 26, 2020

 'अत्थं' पयोगा-

(के लिए)

1. अहं दिक्खा भूमिं दस्सनत्थं नागपुर गच्छामि.

2. विवेको पठनत्थं इध आ गच्छि.

3. पालि सिक्खनत्थं बुद्धविहारे समोचित ववत्था करणीयं.

4. गमनत्थ वाहनं आवस्सकं.

5. लेखनत्थं लेखनी आवस्सकं. 

6. पञ्ञा अत्थं सम्मा दिट्ठि आवस्सकं.

7. बुद्धोपासकत्थं सीलं पालनं आवस्सकं.

इसी प्रकार अपनी ओर से 3 बना कर लिखें.


Sunday, October 25, 2020

धम्मचक्क पवत्तन

धम्मचक्कपवत्तनं

(दिन्नं मित्तानं सल्लापं)

राहुलो- मितं! जयभीम.

धम्मचक्क पवत्तन दिवसं सुभकामना.

आनन्दो- सादरं जयभीम.

भवन्तं अपि धम्मचक्क पवत्तन दिवसं सुभकामना.

राहुलो-  जानन्तो भवं, अज्ज येव दिवसं बाबासाहब अम्बेडकरो धम्मचक्क पवत्तयि ?

आनन्दो- आम! मितं, अज्जेव दिवसं बाबासाहब अम्बेडकरो नागपुर नगरे धम्मचक्क पवत्तयि.

ते ठानं दिक्खा भूमि. ता पुञ्ञ भूमि. 

अस्मिं दिक्खा भूमियं अज्ज असंख्य जना भारता अपि च नाना देसस्स लोका सद्धाय इध आगच्छन्ति.

ते इध आगच्छन्ति, अयं धम्म भूमियं नमन्ति,  वन्दन्ति, चुम्बन्ति.

राहुलो- सच्चं वदतु भाता. तत्थ अपार, असंख्य लोका दिट्ठं लोमहंसति, हदय फंदति.

अयं न सरनीयं, एतिहासिकं.

वदतु भवं,  अयं  महोत्सवो घर-परिवारे कथं आचरणीयं?

आनन्दो-  घरस्स सम्मुज्जनं करिस्साम. 

बुद्धविहारं अपि सुद्धं च विमलं करिस्साम.

गेहं साज-सज्जा करणीयं. 

पन्तिसु दीपमालायो सज्जन्ति.

परिवार-सह बुद्ध विहारं गच्छन्ति.


राहुलो- अपि च नव वत्थानि कीणन्ति.

विविधानि मिट्ठानानि च पाकानि पच्चन्ति.

आनन्दो- आम ! मितं,  महिलायो न केवलं घरे 

विविधानि मिट्ठानानि च पाकानि पच्चन्ति.

अपितु मित्तानं ञातकानं आमन्तेति

मिट्ठानानि च पाकानि वितरन्ति.

राहुलो-  अयं अम्हाकं दुक्ख-हरण दिवसो.

सामाजिक पताड़नाय मुत्ति दिवसो.

आनन्दो- आम! मितं, सच्चं वदतु

बाबासाहब अम्बेडकरो अम्हाकं मुत्तिदाता.

सो चक्खुदाता, सो  मग्गदाता. 

सो ञाणं दाता. 

सो दीपको, सो पदीपको.


राहुलो- आम ! साधुकारं मितं. तेसं साधुवादो.

कतुञ्ञो मयं सब्बे तेसं.  

आनन्दो- आम ! मितं, साधुवादो. 

अथ मम गच्छन्तं कालं.

राहुलो- साधुवादो मितं, पुनं मिलाम

आनन्दो- मितं! सुभ रत्तिं.

Saturday, October 24, 2020

यत्थ(यहाँ)/तत्थ(वहां) पयोगा

 यत्थ(यहाँ)/तत्थ(वहां) पयोगा 

यत्थ भगवा अत्थि तत्थ करुणा अत्थि.

यत्थ रुक्खो अत्थि तत्थ छाया अत्थि.

यत्थ मातु अत्थि तत्थ ममता अत्थि.

यत्थ  कम्मं अत्थि तत्थ विपाकं अत्थि.

यत्थ सुखं अत्थि तत्थ दुक्खं अत्थि.

यत्थ पदीपो अत्थि तत्थ पकासं अत्थि.

-इसी प्रकार के 5 वाक्य बनाईये?


Friday, October 23, 2020

  कते('के लिए') पयोगा

1. सञ्ञा(संज्ञा) के साथ चतुत्थी विभत्ति का प्रयोग 'को' अथवा 'के लिए'  होता है. यथा - 

बुद्धाय- बुद्ध को अथवा बुद्ध के लिए 

धम्माय- धम्म को अथवा धम्म के लिए 

बहुजनाय- बहुजन को अथवा बहुजन के लिए, आदि.

2. 'के लिए'  के अर्थ में किरिया के साथ 'तुं' प्रत्यय लगता है. यथा - 

लिखितुं(लिखति- लिखता है) - लिखने के लिए 

खादतुं(खादति- खाता है)- खाने के लिए

गच्छतुं(गच्छति- जाता है)- जाने के लिए

3. पालि में 'के लिए' के अर्थ में 'कते' अव्यय का भी प्रयोग होता है. 

यथा- 

1. अहं देसस्स कते सब्बत्थ निछावरं करिस्सामि. 

2. पालि भासा पसारणं कते अहं वायामं करोमि.

3. भगवा मानव कल्याणं कते देसना करि.

4. पालि सिखणं कते अहं इध आगच्छिं.

5. बाबासाहब अम्बेडकरो पबुद्ध भारत निम्माणं कते भारतस्स संविधानं लिखि.

6. माता सिसुं कते अत्तनो जीवनं निछावरं करोति.

7. बाबासाहब अम्बेडकरो दलितानं कते अत्तनो जीवनं निछावर अकरि.

8. भिक्खु संघो उपासक/उपासिकानं उपदेसं कते तस्मिं विहारे वस्सा वासं करोति.

9. ता बालिका सुन्दरा दिट्ठं कते नाना उबटनानि लेपवति.

10. अहं पञ्च सील आचरणं कते वायामो करोमि.

11. बहुजन कल्याण कते भगवा धम्मचक्क पवत्तयि.

12. अहं भिक्खुस्स दानं कते चीवरं सिब्बामि.

13. पबुद्ध भारत निम्माणं कते पालि सिक्खणं आवस्सकं.

14. भगवा धम्मं पकासनं कते पालि सिक्खणं आवस्सकं.

15. भारतीय सेना देसस्स रक्खणं कते अत्तनो पाणं निछावरं करोति.

16. अहं सब्बदा सच्चं वदनं कते वायामो करोमि.

17. अहं 14 अक्टू धम्मचक्क पवत्तनं दिवसे पञ्च महिलानं पालि भासा सिक्खनं कते पालि अधिट्ठानं अकरिं.

18. बालिका सम्मा नच्चनं कते वायामं करोति.

19. माता सिसुं सिनानं कते सिनानघरं नयति.

20. अहं  भगवा दस्सनं कते बोधगया महाबोधि विहारं गच्छामि.

21. अहं देसस्स लोकतंत्र्यस्स चिरं कते मतदानं करोमि.

22. अहं मात-पितून्नं उपट्ठानं कते तेहि संग निवस्सामि.

23. गत वस्से अहं सांची थूपो दस्सनं कते भोपाल नगरं गच्छिं.

24. मोतीलाल महोदयो धम्मलिपि पचारं कते अनुत्तरं कम्मं करोति.

25. पालि भासा पचार कते शेखर बौद्ध महोदयो विहारे-विहारे पालि-परिक्खा आयोजितं करोति.

26. अहं अवेरो अब्यापज्झो कते पयासं करोमि.

27. पबुद्ध भारत निम्माणं कते सततं पयासं आवस्सकं.

28. पबुद्ध भारत निम्माणं कते अत्तानं बालक/बालिकानं नामं परे 'बौद्ध' लिखनं आवस्सकं.

29. पबुद्ध भारत निम्माणं कते अत्तानं घरं/भवनानं नामानि बौद्ध नामानि करनीयं.

Thursday, October 22, 2020

पाटल-पुप्फं

 पालि किय सरला भासा!

पाटल-पुप्फं
पाटल-पुप्फं अतीव सुन्दरं।
अस्स नाना वण्णानि होन्ति।
रत्त-वण्णं पाटल-पुप्फं बहु सोभनं।
सेत वण्णं अपि बहु रोचेति।
विवाहोत्सवे, वर-वधू पाटल-पुप्फेन परस्परं स्वागतं करोन्ति।
पाटल-पुप्फहारो जना पसंसन्ति।
उय्याने विविध वणानि पाटल-पुप्फानि अतीव दस्सनीयानि।
पाटल-पुप्फं पुप्फानं राजा।
भगवता आसनं पदुम-पुप्फ़ेहि सोभति
पात काले पाटल-पुप्फ़स्स दस्सनं रुचिकरं.
मम घरस्स उय्याने विविधानि वण्णानि पटल-पुप्फानि विकसन्ति.
विसाखाय केस-बंधने पाटल-पुप्फं बहु सोभति.
पिय पाटल पुप्फेन पेयसिया पियायति.
पाटल-पुप्फ़स्स रसं गुलाब जलं.
गुलाब जलं नेत्तानं बाधा-हरणं ओसधि.
परित्तं पाठन्तरे गुलाब जलस्स सिंचनं वातावरणं सुद्धं करोति.
महाबोधि बुद्धविहारे देस-विदेसम्हा आगन्तुका जना
विविधानि वण्णानि पदुम-पुप्फानि भगवा पूजेन्ति.
................
पाटल-पुप्फं- गुलाब का फूल
रत्त- वण्णो- रक्त वर्ण। सेत- सफेद
जनानं- लोगों को। उय्याने- बगीचे में
दस्सनीयानि- मनभावन. पुप्फानं राजा- फुलों का राजा
भगवता- बुद्ध का. पदुम-पुप्फ़ेहि-कमल पुष्पों से

WHY DHAMMA DlKSHA ?

 WHY DHAMMA DlKSHA ?

“I have been of the opinion that the conversion of the laity is not conversion at all. It is only a nominal thing. The so-called Buddhist laity besides worshipping the Buddha also continued to worship other Gods and Goddesses which were set up by the Brahmins to destroy Buddhism. Buddhism disappeared from India largely of this wavering attitude of the laity. If hereafter Buddhism is to be firmly established in India the laity must exclusively be tied up to it. This did not happen in the past because in Buddhism there was a ceremoney for initiation into the Sangh but there was no such ceremony for initiation into the Dhamma, In Christianity there are two ceremonies. (1) Baptism which is initiation into the Christian religion, (2) Ordination of the priest. In this respect the new movement for the propagation of Buddhism in India must copy Christianity. To remove this dangerous evil in Buddhism I have prepared formula which I call Dhamma Diksha. Every one who wishes to be converted to Buddhism shall have to undergo through ceremony. Otherwise he will not be regarded as a Buddhist.”
- Dr. B.R. Ambedkar
Source : DR. BABASAHEB AMBEDKAR : WRITINGS AND SPEECHES VOL 17 (1)

हम पालि क्यों पढ़े ?

 























Wednesday, October 21, 2020

संघ ही शास्ता

 संघ ही शास्ता

बुद्ध के महापरिनिर्वाण को अभी अधिक समय नहीं बीता था। इस समय आनन्द राजगृह में ही विहार कर रहे थे। प्रद्योत के भय से अजातसत्तु ने राजगृह की मरम्मत शुरू की थी और उस काम पर गोपक मोग्गलायन ब्राह्मण को नियुक्त किया था।
आयु. आनन्द पिण्डाचार के लिए निकले। परन्तु भिक्खाटन में अभी देरी थी, अतः वे गोपक मोग्गलान की ओर मुड़ गए। ब्राह्मण ने उसे आसन दिया और स्वयं उससे कम ऊंचे आसन पर बैठ कर पूछा-
‘‘क्या भगवान जैसा गुणवान भिक्खु और कोई है ?’’
‘‘नहीं है।’’ -आनन्द ने उत्तर दिया।
यह बात चल ही रही थी कि इतने में मगध देश का प्रधान-मंत्राी वस्सकार ब्राह्मण वहां आ गया और उसने आनन्द की बात सुनकर उससे पूछा-
‘‘क्या भगवान ने किसी ऐसे भिक्खु को नियुक्त किया है जो भगवान के अभाव में संघ का नेतृत्व करे ?’’
‘‘नहीं।’’ -आनन्द ने कहा।
‘‘तो क्या कोई भिक्खु है, जिसे संघ ने भगवान के स्थान पर चुन लिया है ?’’
‘‘नहीं।’’ -आनन्द ने कहा।
‘‘अर्थात आपके भिक्खु-संघ का कोई नेता नहीं है। तो फिर उस संघ में संगठन कैसे रहता है ?’’ -वस्सकार ने पूछा।
‘‘ऐसा नहीं समझना चाहिए कि हमारा कोई नेता नहीं है। भगवान ने विनय के नियम बना दिए हैं। हम जितने भिक्खु एक गांव में रहते हैं, वे सब एकत्र होकर उन नियमों को दूहराते हैं। जिससे दोष हुआ हो, वह अपना दोष प्रगट करता है और उसका प्रायश्चित करता है।’ - वस्सकार बाह्मण की शंका का भदन्त आनन्द ने समाधान किया(संदर्भ- गोपक मोग्गल्लान सुत्तः मज्झिम निकाय )।

 एकवचन                   अनेकवचन

अहं बुद्धं नमामि।                मयं बुद्धं नमाम ।

अहं विज्झालयं गच्छामि।   मयं विज्झालयं गच्छाम।

अहं खेतं गच्छामि।          मयं खेतं गच्छाम।

त्वं बुद्धं नमसि।                 तुम्हे बुद्धं नमथ।

त्वं विज्झालयं गच्छसि।   तुम्हे विज्झालयं गच्छथ।

त्वं खेतं गच्छसि।        तुम्हे खेतं गच्छथ।

सा बुद्धं नमति।                ते बुद्धं नमन्ति।

सो विज्झालयं गच्छति।   ते विज्झालयं गच्छन्ति।

सो खेतं गच्छति।       ते खेतं गच्छन्ति।


शब्दार्थ- 

अहं- मैं। बुद्धं- बुद्ध को। मयं- हम।

नमामि- नमन करता हूं। नमाम- नमन करते हैं।

त्वं- तू। तुम्हे- तुम लोग।

नमसि- नमन करता है। नमथ- नमन करते हो।

सो/पुल्लिंग- वह। सा/इत्थीलिंग- वह। ते- वे।

नमति- नमन करता है। नमन्ति- नमन करते हैं।

खेतं- खेत को। विज्झालयं- विद्यालय को।


ब. रित्तं ठानं पूरणीयं?

गच्छथ, नमामि,  नमसि, नमति, गच्छामि।

1. अहं बुद्धं ...........।     2.  अहं विज्झालयं ...........।

3. त्वं बुद्धं ...........।      4. तुम्हे खेतं ...........।

5. सा बुद्धं ...........। 

बौद्ध-ग्रंथों में ब्राह्मणवाद(1)

 Brahmaniism in Buddhsit Scriptures

(1) अनेक बुद्धों की कल्पना 

'ये च बुध्दा  अतीता च'

ये च बुध्दा  अतीता च,  ये च बुध्दा अनागता।

Ye ca Buddhâ atîtâ ca, ye ca Buddhâ anâgatâ 

ये जो बुद्ध अतीता(अतित-काल के) हैं और ये जो बुद्ध अनागता(अनागत-काल के) हैं 

The Buddhas of the past, The Buddhas of the future


पच्चुप्पन्ना च ये बुद्धा,  अहं  वन्दामि सब्बदा।।

Paccupannâ ca ye Buddhâ, ahañ vandâmi sabbadâ

(और) पच्चुपन्ना(वर्तमान) में जो बुद्ध हैं, मैं वन्दना करता/करती हूँ सदैव(सब्बदा)।

The Buddhas  of the present; I offer my reverence always.


 - पड़ोसी देश नेपाल, सिंहलद्वीप, बर्मा आदि की यात्रा कर ‘बौद्ध पूजा-पाठ’ नामक पुस्तिका जो बाबासाहेब डाॅ. आम्बेडकर ने तैयार की थी,  में उक्त पद सम्मिलित नहीं थे। 

Having study the Buddhist custom and practice in Nepal, Sinhaldveep, Barma like countries, Dr. Ambedkar had prepared a book, named 'Buddha Puja Patha', there was no mention of above stanza. 

दानं ददन्ता करणीया

 दानं ददं करणीयं 

(दान देते समय करणीय)

"अट्ठिमानि(आठ), भिक्खवे, सप्पुरिस-दानानि(सत्पुरुस दान)।
Atthamaanaani bhikkhave, sappurisa-daanaani.

कतमानानि(कौन-से हैं) अट्ठ(आठ)?
Katmaanaani Attha?
सुचिं(सुचिता से) देति(देता है), पणीतं(उत्तम ) देति,
Suchin deti, panitam deti
कालेन(समय पर) देति, कप्पियं(योग्य) देति,
Kaalen deti, kappiyam deti
विचेय्य(विचार-पूर्वक) देति, अभिण्हं(सतत) देति,
Viccheyya deti, abhinham deti
ददं(देते समय) चितं(मन) पसादेति(प्रमुदित होता है),
Dadam chitam pasaadeti
दत्वा(दे कर) अत्तमना(प्रसन्न) होति।
Datva attamanaa hoti.

इमानि(ये) खो, भिक्खवे,
Imaani kho, Bhikkhave
अट्ठ सप्पुरिसदानानि’ति(सप्पुरिसदान सुत्त-दान वग्गोः अट्ठक निपातो: अंगुत्तर निकाय)।
Attha Sappuris daanaani'ti.
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धम्म में दान की ‘सुचिता’ पर भारी बल दिया गया है। धार्मिक/सामाजिक कार्यों के अवसर पर दान देते समय उक्त बातें ध्यान में रखनी है।
'नि' पयोगा
पालि में ‘नि’ का प्रयोग सामान्य तौर पर नपुसंकलिंग बहुवचन को बतलाने प्रयोग होता है। अगर संज्ञा(दान) नपुसंकलिंग है तो उसका विसेसण(अट्ठिमानि) और किरिया(कतमानानि) भी नपुसंकनिग होगी। इसी प्रकार, अगर संज्ञा पुल्लिंग अथवा इत्थिलिंग है तो विसेसण और किरिया भी तदनुरूप होंगी।

Tuesday, October 20, 2020

संघ सामग्गी.

 ''एक धम्मो, भिक्खवे! 

लोके उप्पज्जमानो उप्पज्जति

बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय 

बहुनो जनस्स अत्थाय हिताय 

सुखाय इत्थी-पुमानं.

कत्तमो एकधम्मो ?

संघ सामग्गी. 

संघे, खो पन भिक्खवे! 

समग्गे न चेव अञ्ञमञ्ञं  भंडानि(विवाद) होन्ति

न च अञ्ञमञ्ञं परिभासा(दोषारोपण) होन्ति

न च अञ्ञमञ्ञं परिक्खेपा(घेरना) होन्ति

न च अञ्ञमञ्ञं परिच्चजना(परित्याग) होन्ति

तत्थ अप्पसन्ना चेव पसीदन्ति

पसन्नानं च भियाेभाव होती''ति.

एतमत्थ  भगवा अवोच. (इतिवुत्तकं)


Monday, October 19, 2020

दुरंगना V/s दुर्गा

 वी. वी. मिराशी प्राचीन भारत के अभिलेखों तथा सिक्कों के विशेषज्ञ थे।

बात 1946 की है। तब हैदराबाद में हर्मज कौस सिक्कों के एक संग्रहकर्ता हुआ करते थे। कौस ने मिराशी को दो सिक्कों की स्याही - छवि भेजी।
मिराशी ने सिक्कों पर लिखे प्राकृत भाषा को पढ़े और बताए कि ये सिक्के महिस वंश के हैं। इस पर महिस वंश के राजा सागा माना महिस के नाम लिखे हैं।
मिराशी ने सागा को शक से संबंधित किया है, जबकि पार्जिटर पूर्व से ही शाक्य मानते रहे हैं .... शक्यमानाभवद्राजा महिषीणां महीपतिः।
दक्षिण भारत के महिस वंश पर मिराशी ने " दि इंडियन हिस्टोरिकल क्वार्टरली," मार्च, 1946 में शोध - पत्र लिखे।
फिर कोंडापुर और मास्की की खुदाई में दो सिक्के मिले। मिराशी ने 1949 में बताए कि ये सिक्के भी महिस वंश के हैं।
महिस वंश का शासन पूर्व हैदराबाद राज्य के दक्षिणी इलाके में था। सिक्के इन्हीं इलाकों से मिले हैं। वह समय ईसा की तीसरी- चौथी सदी थी।
कोई दो सौ साल हुकूमत के बाद महीस वंश का पतन हो गया।

Sunday, October 18, 2020

भारत में नाग परिवार की भाषाएँ "

 " आरुग्गबोहिलाभं " - जैन मुनियों के अध्ययन - अध्यापन के लिए बीकानेर में स्थापित संस्था है.....

इस संस्था के सीईओ नितिश जैन ने यह चिट्ठी भेजी है.....
चूँकि जैन मुनि स्वयं अपने हाथों से लिखकर पत्र - व्यवहार नहीं करते हैं और न इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों का इस्तेमाल करते हैं, सो सीईओ ने आदरपूर्वक मुझसे पत्राचार किया है....
जैन मुनिवरों के मन में मेरी एक पुस्तक " भारत में नाग परिवार की भाषाएँ " पढ़कर कुछ जिज्ञासाएँ उठी हैं, अति संक्षेप में समाधान करता हूँ .....
संस्कृत एक है और प्राकृतें अनेक हैं.....
भारत में अनेक गण थे, जनपद थे, भौगोलिक क्षेत्र थे, नाना प्रकार के लोग थे....
इसीलिए प्राकृतें अनेक हैं, यहीं भाषा की स्वाभाविक गति है......
संस्कृत एक है, मनु और शतरूपा के सिद्धांतों का अनुगमन करते हुए भाषावैज्ञानिकों ने बता दिया कि संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है, जैसे मनु सभी मनुष्यों के जनक हैं, यह भाषा की अस्वाभाविक गति है......
इसीलिए मैंने कहा कि भारत की सभी संस्कृतेतर देशी भाषाएँ प्राकृतों के पुरखे और वंशज हैं.....

सिक्किम राज्य में बौद्ध विश्वविद्यालय

 सिक्किम राज्य में बौद्ध विश्वविद्यालय * सिक्किम में जल्द ही बौद्ध विश्वविद्यालय ।

डेढ़ हजार साल पहले भारत में मंदिरों और तीर्थयात्रियों से ज्यादा महत्वपूर्ण शिक्षा संस्कृति थी । इसीलिए विक्रमशिला विश्वविद्यालय (मगध-बिहार राज्य), नालंदा विश्वविद्यालय (बिहार राज्य), तक्षशिला विश्वविद्यालय (रावलपिंडी-पाकिस्तान), उदंतपुरी विश्वविद्यालय (बिहार राज्य-पाल राजवत), सोमपुरा विश्वविद्यालय (बांग्लादेश), जगद्दाला विश्वविद्यालय (बांग्लादेश), वल्लाभी विश्वविद्यालय (गुजरात राज्य), कन्हेरी विश्वविद्यालय नामित एक बार भारत में थे । दक्षिण भारत में कई बौद्ध विहार छोटे शैक्षिक केंद्र थे । सैकड़ों शिक्षक इस विश्वविद्यालय और विहार में ज्ञान के लिए काम कर रहे थे ।
एशिया के कई देशों के हजारों छात्र सीखने आ रहे थे । ये बौद्ध शैक्षिक संस्थान सबके लिए खुले थे । हम इस बौद्ध शिक्षा संस्थान में बिना किसी भेदभाव के प्रवेश प्राप्त करते थे । ब्रह्मानी गुरुकुल विधि के अनुसार यहां एक ही गुरु का प्रभुत्व नहीं है, इन शैक्षिक संस्थानों को बढ़ाया गया है । त्रिपित्का के अलावा कई विषयों को यहां तर्क (उद्देश्य, व्याकरण और दर्शन (शब्दावली), दवा शिक्षा (चिकित्सा शिक्षा) की तरह सिखाया गया । प्रज्ञा विकसित करना बौद्ध शिक्षा प्रणाली की जड़ था । तो यह सच है कि कई भारतीय बौद्धों ने सबसे ज्ञानी पुस्तकें लिखी हैं ।
इसी परंपरा के चलते भारत के पूर्वोत्तर में सिक्किम राज्य बौद्ध विश्वविद्यालय का निर्माण किया जाएगा । इसके संबंध में संकल्प को हाल ही में 21 सितंबर 2020 को विधानसभा में मंजूरी दी गई थी । खांगचेंडज़ोंगा बौद्ध विश्वविद्यालय उर्फ केबीयू सिक्किम सरकार द्वारा स्थापित भारत में पहला स्वतंत्र बौद्ध विश्वविद्यालय होगा । मुख्यमंत्री प्रेमसिंह तमांग ने कहा कि सिक्किम की जनता की मांग कई दिनों से पूरी हो रही है । इस विश्व स्तरीय विश्वविद्यालय में सभी वर्गों के लोगों के पास प्रवेश होगा । इसके अलावा धम्म की शिक्षा प्रणाली के साथ यहां कई आधुनिक विज्ञान विषय पढ़ाया जाएगा । यह विश्वविद्यालय यूजीसी से जुड़ा होगा । सिक्किम में वज्रयान बौद्ध धर्म का बड़ा असर है । इसलिए यहां अन्य धर्म भी बौद्ध विहार में जाते हैं । इसलिए इस बौद्ध विश्वविद्यालय को बड़ा समर्थन मिला है
वास्तव में जिन राज्यों में बौद्ध संस्कृति की विरासत है, विश्वविद्यालय को अब तक भारत की इस एक बार संपन्न शिक्षा प्रणाली के विरासत के रूप में सरकारी बौद्ध विश्वविद्यालय स्थापित करना चाहिए था । क्योंकि केवल शिक्षा ही उपयोगी नहीं है । इसके साथ ही नई पीढ़ी को इन दिनों में मानवीय मूल्यों, नैतिकता, नैतिकता, ध्यान और ज्ञान विकास की आवश्यकता है । क्या ऐसा यूनिवर्सिटी बोरीवली में कन्हेरी गुफाओं और संजय गांधी नेशनल पार्क के पास खड़ा होगा?
--- संजय सावंत (www.sanjaysat.in)

Friday, October 16, 2020

हिन्दू राष्ट्र के लिए अनशन की नौटंकी : कँवल भारती

 हिन्दू राष्ट्र के लिए अनशन की नौटंकी

अयोध्या में कोई परमहंस साधु हैं, जो भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए अनशन पर बैठ गए हैं. इनके पूरे माथे पर चन्दन का लेप है, भगवाधारी हैं. अद्भुत है कि ये कर्महीन नर हैं, पर इसके बावजूद इन्हें सकल पदार्थ उपलब्ध हैं. इसी तरह कोई प्रबुद्ध नन्द गिरि हैं, जो रामराज्य लाने के लिए रथयात्रा निकालने जा रहे हैं,उनका कहना है कि अगर वर्णव्यवस्था टूट गई, तो देश टूट जायेगा. सम्पन्नता में जीने वाले ये अकेले प्राणी नहीं हैं, ऐसे और भी बहुत से साधु-सन्यासी हैं, जो रामराज्य में जीने-मरने के अभिलाषी हैं.
आइए, देखते हैं कि इनकी असली समस्या क्या है? इनमें से शायद ही किसी को पता हो कि राष्ट्र का मतलब क्या है? जब ये हिन्दू राष्ट्र कहते हैं, तो इसका मतलब इनके लिए हिन्दू देश होता है,जैसे नेपाल कभी हिन्दू राष्ट्र था, जो अब नहीं है, जैसे, पाकिस्तान आज मुस्लिम राष्ट्र है. ये लोग राष्ट्र का मतलब देश समझते हैं, जबकि इसका मतलब है कौम. जब हम मुस्लिम राष्ट्र कहते हैं, तो यह बात सही हो सकती है, क्योंकि मुसलमान एक कौम है. पर क्या हिन्दू एक कौम है? चार वर्णों और हजारों जातियों में विभाजित हिन्दू समाज किधर से एक कौम है? क्या ब्राह्मण और ठाकुर एक कौम हैं? क्या ब्राह्मण और वैश्य एक कौम हैं? क्या ब्राह्मण और शूद्र एक कौम हैं? जब हिन्दू एक कौम नहीं हैं, तो वे एक राष्ट्र कैसे हो सकते हैं? अब रहा सवाल भारत का, तो जब भारत के निवासी एक कौम नहीं हैं, तो भारत हिन्दू राष्ट्र कैसे हो सकता है?
लेकिन भारत के ये साधन-संपन्न और कर्महीन नर, जिन्हें सकल पदार्थ उपलब्ध हैं, हिन्दू राष्ट्र की बात करते हैं, तो दूसरे शब्दों में वे यह कहना चाहते हैं कि भारत को लोकतंत्र की नहीं, रामराज्य की जरूरत है. मतलब, उनका असल मकसद लोकतंत्र को खत्म करके रामराज्य लाना है. यहाँ दो सवाल विचारणीय हैं : (एक), ये रामराज्य क्यों चाहते हैं? विष्णु के 24 अवतारों में केवल राम का ही राज्य क्यों चाहते हैं, कृष्ण का राज्य क्यों नहीं चाहते? और (दो), ये रामराज्य किन लोगों के लिए चाहते हैं? इन दोनों सवालों पर गौर करना जरूरी है. पहले सवाल का जवाब यह है कि केवल रामराज्य ही ऐसा राज्य है, जिसका राजा क्षत्रिय है, और शासन ब्राह्मण के नियंत्रण में है. यानी, रामराज्य एक ऐसा राज्य है, जो ब्राह्मण के रिमोट कंट्रोल से चलता है, जिसमें ब्राह्मण की मर्जी के बगैर पत्ता भी नहीं हिलता---जो वह चाहता है, वही होता है. कृष्ण के राज्य में शासन ब्राह्मण के नियंत्रण में नहीं था. कृष्ण ने ब्राह्मण के कहने पर आँख मूंदकर किसी भी निर्दोष की हत्या नहीं की. दूसरे सवाल का जवाब यह है कि ब्राह्मणों ने जनेऊ के आधार पर ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य को द्विज बना दिया है. यह हिंदुओं का उच्च वर्ग है. शेष को ब्राह्मण ग्रंथों में अनुलोम-प्रतिलोम वर्णसंकर जातियां लिखा गया है, जिसे आज दलित-पिछड़ी जातियां कहा जाता है. ये ही अछूत और शूद्र जातियां हैं. इसी को राजनीतिक शब्दावली में बहुजन समाज कहा जाता है. वर्णव्यवस्था में बहुजन जातियां द्विज वर्ग के अधीन रहने वाला सेवक वर्ग है. लेकिन लोकतंत्र में यह सेवक वर्ग द्विजों के समान हैसियत वाला समाज है. वह नीचे से ऊपर उठ गया है, और द्विज वर्ग की सत्ता के लिए चुनौती बन गया है. इसी चुनौती को खत्म करने के लिए आरएसएस का ब्राह्मण वर्ग रामराज्य लाना चाहता है.
सवाल है कि लोकतंत्र में अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय भी हैं, क्या वे द्विजों के लिए चुनौती नहीं हैं? जवाब है, नहीं हैं. वह इसलिए कि उनमें मुसलमान मुख्य अल्पसंख्यक हैं, जिनकी संख्या सबसे ज्यादा है. पर लगभग सभी सरकारों ने उनकी इतनी उपेक्षा की है कि वे दोयम दर्जे के नागरिक बनकर रह गए हैं. शासन-प्रशासन में उनकी नगण्य भागीदारी है. शिक्षा में भी उनका ज्यादा दखल नहीं है. उनकी बड़ी आबादी किसी न किसी हुनर को सीखकर अपनी जीविका चलाती है. आरएसएस के द्वारा उनके प्रति हिंदुओं में इतनी नफरत भर दी गई है कि वे हिंदुओं की हिंसा के आसानी से शिकार हो जाते हैं. आतंक और दंगों के नाम पर उनका इतना दमन हो चुका है कि अब वे चुनौती नहीं रहे. दूसरी बात यह भी है कि मुसलमानों का उच्च वर्ग भी ब्राह्मणों की तरह ही सोचता है.
इस विश्लेषण से यह स्पष्ट हो जाता है कि इन परमहंसों को लोकतंत्र से मुख्य शिकायत दलित-पिछड़ी जातियों के विकास की वजह से है, उनके समान स्तर पर आ जाने से है, और उनके द्वारा द्विजों के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने से है. इसे हाथरस की घटना और दलित अत्याचार निवारण के लिए बने क़ानून के संदर्भ से समझा जा सकता है. आपको याद होगा कि दो साल पहले इस कानून के खिलाफ साधु-सन्यासियों ने प्रदर्शन किया था और सुप्रीम कोर्ट ने भी इसको निष्प्रभावी कर दिया था. परिणामत: प्रतिरोध में दलितों ने देश व्यापी आन्दोलन चलाया था. आज हाथरस की घटना से आरएसएस के ब्राह्मण-ठाकुर ज्यादा दुखी हैं. वे दलित समाज की बेटी के साथ हुए बलात्कार से दुखी नहीं हैं, वे उसकी हत्या से भी दुखी नहीं हैं, यहाँ तक कि वे इस कांड से भी दुखी नहीं हैं कि हिन्दू संस्कृति के विरुद्ध उसकी लाश को रात के अँधेरे में प्रशासन ने जलवा दिया. इस सब से वे बिल्कुल विचलित नहीं हैं, क्योंकि वे दलित को हिन्दू समझते ही नहीं हैं. वे दुखी हैं, तो दलित परिवार के इस दुस्साहस से कि उसने ‘इज्जतदार’ ठाकुरों पर आरोप क्यों लगाया? इसी घटना ने ब्राह्मणों और ठाकुरों को यह अहसास करा दिया कि जब तक लोकतंत्र रहेगा, वे दलितों के साथ मनमानी नहीं कर सकेंगे. उन्हें रामराज्य की याद आ गई, जहाँ द्विजों के खिलाफ बोलने की शूद्रों की औकात नहीं थी. अगर आज रामराज्य होता, तो वे इस दलित परिवार को ऐसा दंड देते कि देश भर के दलित उससे सबक लेते. इसीलिए परमहंस और प्रबुद्ध नन्द गिरि जैसे लोग द्विजों की रक्षा के लिए रामराज्य को जरूरी समझते हैं.
लेकिन इन परमहंसों की दिक्कत भारत का संविधान भी है. ये इसे डा. आंबेडकर का संविधान समझते हैं, देश का नहीं. इसलिए उसके प्रति इनमें रत्ती भर सम्मान नहीं है. ये इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि इस संविधान के रहते उत्तर प्रदेश क्या, भारत में भी रामराज्य नहीं आ सकता. इसलिए जब ये हिन्दू राष्ट्र और रामराज्य की बात करते हैं, तो इनका मतलब संविधान पर ही आघात करना होता है. अटलबिहारी बाजपेयी की सरकार में संविधान बदलने के लिए एक समीक्षा समिति बना दी गई थी. हालाँकि यह विचार अब भी आरएसएस के विचाराधीन है, संभवत: इसकी पृष्ठभूमि तैयार की भी जा रही हो.
लेकिन भारत में संविधान के रहते हुए ही, एक मिनी रामराज्य या हिन्दू राष्ट्र कब का कायम हो चुका है, क्या यह परमहंस और प्रबुद्ध नन्द गिरि नहीं जानते हैं? दिल्ली में दंगे करवाकर उनका आरोपी दलितों और मुसलमानों को बनाया गया. क्या यह हिन्दू राष्ट्र नहीं है? कोरेगांव में उपद्रव करवाकर उसके आरोप में निर्दोष सामाजिक विचारकों और दलित लेखकों को जेल में डाल दिया गया, क्या यह मिनी रामराज्य नहीं है? गोरखपुर के डाक्टर कफीस को बिना किसी अपराध के रासुका में बंद रखा गया, क्या यह रामराज्य नहीं है? सहारनपुर में ठाकुरों ने दलितों पर जानलेवा हमला किया और उसके आरोप में दलित नेता चन्द्र शेखर को साल भर जेल में रक्खा, क्या यह हिन्दू राष्ट्र नहीं है? हाथरस कांड में दलित बेटी की हत्या के लिए उसके परिवार को ही दोषी बताना, क्या रामराज्य नहीं है? झूठ की बुनियाद पर बाबरी मस्जिद गिरा दी गई, झूठ की बिना पर ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा वहाँ रामलला विराजमान का स्थान बता दिया गया, बाबरी मस्जिद तोड़ने वाले सभी आरएसएस के अराजक नेता अदालत द्वारा बरी कर दिए गए, क्या यह हिन्दू राष्ट्र का प्रमाण नहीं है? इस देश में सब कुछ वही हो रहा है, जो आरएसएस चाहता है. क्या यह मिनी रामराज्य कायम होने का सबूत नहीं है?
हाँ, यह जरूर है कि अभी सवर्णों के अत्याचारों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने का दलितों का अधिकार समाप्त नहीं हुआ है. दलितों और पिछड़ों का आरक्षण भी अभी खत्म नहीं हुआ है. द्विजों के साथ दलितों की समान हैसियत भी संविधान के रहते बनी हुई है. भारत के साधन संपन्न कर्महीन नरों की मुख्य समस्या यही है. वे जानते हैं कि जब तक संविधान है, तब तक भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना कठिन ही नहीं, असम्भव भी है. इसलिए उनके हर कदम को संविधान समाप्त करने की दिशा में समझना होगा. वे अब भी शासक हैं, अब भी प्रशासक हैं, अब भी विधि-निर्माता और जज हैं. मगर संविधान भी है. जब संविधान के रहते वे मनुष्य नहीं बन पा रहे हैं, तो मनुस्मृति के विशुद्ध रामराज्य में वे बर्बरता की किस सीमा तक जा सकते हैं, इसकी कुछ लोमहर्षक झलक हमें मनुस्मृति के पन्नों से ही मिल जाती है.
(१२ अक्टूबर २०२०)

Thursday, October 15, 2020

गठजोड़

गठजोड़

जब हमारी माँ-बहनों से बलात्कार हो 

हम शांति के गीत नहीं  गा सकते.

उन बलात्कारियों को पुलिस का संरक्षण हो

हम मुंह बंद  नहीं रख सकते.

जब सत्ता और प्रशासन का गठजोड़ हो 

हम हाथ पर हाथ धरे नहीं रह सकते.

जय घोष

 जय घोष

"एकं हिन्दू रूपेन

अहं जातं

पन, एकं हिन्दू रूपेन

न मरिस्सामि."

- बाबा साहब अम्बेडकरो

कटुकं पञ्हं (कडुआ प्रश्न)

कटुकं पञ्हं (कडुआ प्रश्न)

कतीनं जनानं
कितने लोग को,
वराह विय यं
सुअर की तरह जो
घरं-परिवार सह चरन्ति
घर और परिवार में व्यस्त है,
बाबासाहबस्स अयं पटिञ्ञा
बाबासाहब की यह प्रतिज्ञा
सरन्ति-
याद हैं-
"एकं हिन्दू रूपेन
एक हिन्दू के रूप में
अहं जातं
मैं पैदा हुआ
वसं एतं न आसि ममं
यह नहीं था बस में मेरे.
किन्तु, एक हिन्दू के रूप में
पन, एकं हिन्दू रूपेन
मरूँगा नहीं,
न मरिस्सामि
यह मेरे बस में है.
एतं मम वसं अत्थि."

Wednesday, October 14, 2020

सिद्धार्थ गौतम बुद्ध ने घर क्यों छोड़ा ?

 सिद्धार्थ गौतम बुद्ध ने घर क्यों छोड़ा ???'

सवर्ण स्त्रियों में और सवर्ण पुरूषों में आजकल एक नया फ़ैशन है बुद्ध को गाली दे कर स्त्री विरोधी बताने का, कि वो पत्नी को धोके से छोड़ गए थे| जबकि सच्चाई यह है कि उन्होंने रोहिणी नदी के पानी को लेकर पड़ोसी राज्य से एक भयंकर युद्ध के ख़िलाफ़ अपने ही मंत्रिमंडल से बग़ावत कर युद्ध करने से इनकार कर दिया था, तब उनके पास प्रव्रज्या (देश निकाला स्वीकारने) के अतिरिक्त कोई अन्य रास्ता दे देख उसे स्वीकार किया था| उनके देश निकाले की ख़बर से उनकी पत्नी और पिता बहुत शोकाकुल हुए, और उन्हें जाते वक्त राज्य की सीमा तक छोड़ने आये थे| बामनों ने इस कहानी में अपना विषाक्त मेरिट घुसेड़ते हुए उन्हें रात के अंधेरे में भगोड़ा साबित करने की सैंकड़ो किताबें लिख ड़ाली, लेक़िन पुरातन ओरिजिनल स्क्रिप्ट और हज़ारों सालों पहले दीवारों पर उकेरे गयी तस्वीरों की कहानी से बुद्ध का सच स्पष्ट पता चलता है| इसी सच को पूरे रेफरेंस के साथ, जैसे के वैसे डॉ. आंबेडकर ने जब ‘#बुद्ध_एंड_हिज़_धम्म
में लिखा, तो ब्राह्मणों के होश फाख्ता हो गए और उन्होंने बुद्ध को बदनाम करने वाली किताबें, सबूतों के अभाव में छापना कम कर दिया| यदि इन so called सवर्ण faminists को बामनों के तथ्यहीन बुद्ध कहानी पर इतना ही भरोसा है तो बामनों के दूसरे धुरंधर महाग्रंथ मनुस्मृति को भी आँख मुंद कर स्वीकार क्यों नही कर लेती, क्यों नही मानती कि वे नर्क का द्वार है, शुद्र है और मात्र sex उपभोग की वस्तु? रोहिणी नदी के जल बटवारे का विवाद (शाक्य व कोलिय राज्य के मध्य) जो युद्ध का रूप ले रहा था, को रोकने के लिये बुद्ध को देश छोड़ने पड़ा| परिणामस्वरूप युद्ध टल गया| बुद्ध ने सोचा कि थोड़ी अवधि के लिये देश छोड़ने से दो राज्यों में शांति आयी है तो उन्होंने विश्व शांति हेतु महाभिनिष्क्रमण का विचार किया| परिणाम विश्व के सामने है| मनुवादियों ने तथ्यों को तोडकर कहानियों को गढा है| इसका कारण यह है कि इनके द्वारा ही बौद्ध धर्म का विनाश किया गया परन्तु जन मानस की भावना को दृष्टिगत रखते हुए पूरा U-turn भी तो नहीं लिया जा सकता था अतः बुद्ध को विष्णु का नवां अवतार भी घोषित करना पड़ा, जबकि क्या उनकी मुर्ति हिन्दू मंदिरों में से किसी एक में भी लगाई गई ?! कपिलवस्तू की संघ सभा मे सिद्धार्थ गौतम ने जो देशत्याग की घोषना की थी उसका पता माता यशोधरा को सिद्धार्थ के महल पहुँचने से पहले ही चल गया था| महल पहुँचने के बाद यशोधरा से कैसे सभा की बातें और उनकी देशत्याग की घोषना के बारे मे खुलासा किया जाए यह सोचकर सिद्धार्थ स्तब्ध हो गए थे,
कि यशोधरा ने ही स्तब्धता को भंग करते हुए कहा, "संघसभा मे आज जो कुछ भी हूआ उसका पुरा वृतांत मुझे मिल चुका है|आपकी जगह मैं होती तो मैं भी कोलियों के विरुद युद्ध में सहभागी न होते हूए वहीं कदम उठाती जो आपने उठाया है| मैं भी आपके साथ प्रवज्या का स्वीकार करती, लेकिन राहूल की जिम्मेदारी की वजह से मै ऐसा नही कर सकती हूँ|" और बाद में बुद्ध संघ में शामिल हो गई थी| बहुत बड़ी जानकारी है लोगों को ब्राह्मणों ने गलत जानकारी देकर बेवकूफ़ बनाया है इसलिए आंबेडकरवादी और बुद्धिस्ट लोगों का कर्तव्य है कि #इस_पोस्ट_को_ज्यादा_से_ज्यादा_शेयर_करें|
बौद्धों पर हमला होगा तो अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बनेगा, पूरे विश्व के बुद्धिस्ट देश साथ देंगें, मुस्लिम पर हमला होगा तो अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बनेगा, पूरे विश्व के मुस्लिम देश साथ देंगे, ईसाई पर हमला होगा तो अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बनेगा, पूरे विश्व के ईसाई देश साथ देंगे,
हिन्दुओ पर हमला होगा तो कोई भी साथ नहीं देगा जानिए क्यों??? क्योंकि पहली बात कोई भी हिन्दू देश नहीं है और दूसरी सबसे बड़ी बात कि नीच जाति के हिन्दुओं के दुश्मन खुद ऊंच जाति के हिन्दू ही हैं| हिन्दुओ में, वाल्मीकि, पर हमला होगा चमार जाटव भी साथ नहीं देगा जबकि दोनों ही नीच और अछूत होते हैं लेकिन आपस में ऊंच नीच भेदभाव करते हैं| और बामन,
क्षत्रिय, वैश्य, यादव, सैनी, जाट गूजर आदि साथ नहीं देगा क्योंकि वो आपको नीच जाति का मानते है और यही लोग ही खुद हमलावर हैं| मुस्लिम, ईसाई सिख भी साथ नहीं देंगे क्योंकि उनके नजर में आप हिन्दू है और दूसरे देशों को पता ही नहीं चलेगा| यादवों, कुर्मी, सैनी, जाट, गूजर पर हमला होगा तो भी कोई वाल्मीकि, चमार, जाटव आदि साथ नहीं देगा क्योंकि और वाल्मीकि और चमार आदि को नीच मानते हैं और ब्राह्मण, क्षत्रिय, बनिया भी साथ नहीं देंगे क्योंकि वे यादवों, सैनी, जाट,
गुजर आदि को नीच मानते हैं और ब्राह्मण, क्षत्रिय, बनिया ही सभी लोगों पर हमला करते हैं| अब राजपूतों पर हमला होगा तो भी कोई भी नहीं आयेगा क्योंकि राजपूत ब्राह्मणों से नीच है और यादव, खटीक, वाल्मीकि, चमार आदि के पक्के दुश्मन हैं| अब बनिया पर हमला होगा तब भी कोई बचाने नहीं आयेगा क्योंकि बनिया ब्राह्मणों का पक्का गुलाम होता है और सभी को अपने से नीच मानना है| अब जब ब्राह्मणों पर हमला होगा तो बचाना तो दूर सभी खुश हो जायेंगें क्योंकि ब्राह्मणों ने सभी को सदियों से बेवकूफ़ बनाकर आपस में लड़ाया है और ठगी करके खा रहे हैं|
इस प्रकार हिन्दूओं बन कर आपस में ही लड़ेंगे मरेंगे और कोई भी देश हिंदुओं को बचाने वाला नहीं होगा क्योंकि कोई भी हिन्दू देश नहीं है और दूसरे देशों तक बात जायेगी ही नहीं| इसलिए ऊंच नीच भेदभाव की जातियों की बीमारी के कारण ही हिन्दू धर्म आपस में ही लड़ेंगे और लड कर खत्म हो जायेंगें ! सबसे ज्यादा अपमानित होने वाले और सदियों से मार खाने वाले शूद्रों (OBC +SC +ST) के हित में है कि सम्राट अशोक और आधुनिक भारत के निर्माता सिंबल आफ नालेज भारतीय संविधान निर्माता बाबा साहब डॉ अंबेडकर की मान कर विश्व गुरु तथागत गौतम बुद्ध के विचारों को अपना कर बौद्ध धम्म ग्रहण कर लें और बुद्धिस्ट देशों के साथ अपना रिश्ता जोड़ लें और खुद को और अपने आने वाली पीढ़ी को अपमान भरे जीवन से आजाद कराएँ और मान सम्मान से जिये|