Monday, January 31, 2011

विलास वाघ- एक अनुकरणीय व्यक्तित्व


पिछले दिनों मेरा पुणे जाना हुआ. पुणे अर्थात 'पूना पेक्ट'. पुणे अर्थात पेशवाओं की नगरी. पुणे अर्थात 'ब्राह्मणों' का राजकारण. पेशवाओं के समय अछूतों को आम रास्ते पर चलने के दौरान अपने मुंह के पास एक मिटटी का बर्तन (गाढगा ) लटका कर चलना पड़ता था कि कहीं वे थूक दे तो उस जगह  'ब्राह्मण देवता' के पैर न पड़ जाय- ऐसे ही कुछ तस्वीर थी उस पुणे नगर की मेरे दिमाग में.

मगर अब, काफी कुछ  बदल चुका है.  अस्पृश्यता का कानूनन अंत हो चुका है और अब चमचमाती सडकों पर चलने के दौरान किसीको फुर्सत नहीं है कि वह आपकी जात पूछे.

पुणे की सड़के नापते वक्त मेरी भांजी जो जामिया-मिलिया में प्रोफ़ेसर है, का फोन आया कि में 'विलास वाघ' नामक एक शख्सियत से मिलूं और 'सावित्री बाई फुले' पर कुछ लिटरेचर हासिल करूँ.

डा हेमलता महिस्वर ने गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी बिलासपुर (म प्र) में हिंदी की हेड ऑफ़ डिपॉट रहते हुए 'दलित लिटरेचर' पर काफ़ी काम किया है. मुझे फक्र है कि हाई प्रोफाइल पद पर रहते हुए वह सिर्फ नौकरी न कर  'पे बैक टू सोसायटी' पर  भी काम करती है. बाबा साहेब आम्बेडकर की कृपा से दलितों में शिक्षा का प्रसार तो हो रहा है और दलित समाज की इक्का-दुक्का महिलाएं कुछ ऊँचे पदों पर पहुंच गई हैं।  मगर,  कितनी महिलाएं हैं, जो अपने और अपने परिवार की जिम्मेदारी के साथ-साथ, समाज के प्रति अपनी सहभागिता का निर्वहन करती हैं ?

बहरहाल,पूछते-पूछते आखिर मैंने 'सुगावा प्रकाशन' पा ही लिया. यह बुद्धिस्ट और आम्बेद्करी  साहित्य का ख्यात-प्राप्त संस्थान  562, सदाशिव पेठ के चित्रशाला बिल्डिंग में है. संस्थान में प्रवेश करते ही करीब 55 -60  वर्ष की एक शिष्ट महिला ने हम दोनों पति-पत्नी का स्वागत किया. मैं सामाजिक उद्देश्य के भ्रमण के दौरान अक्सर पत्नी को साथ रखता हूँ.पत्नी का आपकी सहभागिता में कदम-ब-कदम ताल मिलाना जरूरी है.
मिसेज वाघ ने बतलाया कि सावित्रीबाई फुले पर लिटरेरी कार्य उतना  नहीं हुआ है जितनी कि वह हकदार है. मैंने सहमती में सिर हिलाते हुए कहा कि उनके पास जो भी लिटरेचर उपलब्ध हो, मुझे दिखा दे. मिसेज बाघ ने एकदम छोटी-छोटी दो पुस्तकें मुझे दी. मैंने मेडम बाघ से निवेदन किया कि वह और सर्च करें।  मगर अफ़सोस, कुछ देर बाद ना में सिर हिलाते हुए मेडम काउंटर पर आ गई।

एक अन्य महिला लताबिसे सोनावने, जो महाराष्ट्र दलित महिला फोरम की नेत्री थी, से वही मुलाकात हुई. आप किसी महान उद्देश्य से जुड़े पर्सनालिटी से मिलते हैं या ऐसे संस्थान  में जाते हैं तो आप अनायास और भी कई हस्तियों  से मिलते हैं, जिन्हें आप अन्यथा मिलना चाहे तो काफ़ी प्रयास करना पड़ेगा. यह उन विभूतियों/ संस्थान के आस-पास घुमने वाले 'ओरे' का कमाल है.

शाम के करीब ८ बज रहे थे।  घर-गृहस्थी भी कोई चीज होती है, शायद इसी वजह से मिसेज बाघ ने उठते हुए अपने असिस्टेंट को निर्देश दिया कि वह हमे लेकर घर पर आये. हम ना-नुकर करते हुए असिस्टेंट के पीछे हो लिए.

 बाघ साहब का आवास करीब ही था। हमारा स्वागत 60 -65  वर्ष के एक शांत-सोम्य व्यक्तित्व ने किया. आप विसाल बाघ ही थे जिन्हें मैं मिलने भारी उत्सुक था. घर क्या था, पूरा आफिस था. एक असिस्टेंट डिक्टेट ले रहा था. 15 -20  मिनट बाद ही बाघ साहब हमसे मुखातिब हुए. परिचय हुआ. मैंने सविस्तार खुद को इंट्रोड्यूज किया. बाघ साहब सामाजिक सहभागिता में मेरी तड़प और कुछ करने की ललक सुन काफ़ी प्रसन्न हुए.

विस्तार से उन्होंने खुद अपने बारे में और जिस सामाजिक उद्देश्य के लिए वे जीते हैं, कार्य करते हैं, बतलाई. उन्होंने बतलाया कि प्रोफ़ेसर के पद से रिजाइन कर वे सामाजिक उत्थान के क्षेत्र में कूदे. नौकरी के कारण उन्हें समय नहीं मिल पा रहा था. बाद में उनकी पत्नी भी नौकरी छोड़ इस कार्य में जुट गई. जैसे कि चर्चा हुई, मैं नोट तो नहीं कर रहा था, मगर कुछ बातें जो मुझे याद रही, इस प्रकार हैं:-

विलास वाघ-दम्पति के सामाजिक सहभागिता के प्रति अपने उत्तरदायित्व का सोपान शुरू होता है, पुणे शहर की कमर्सियल सेक्स वर्करों के बेसहारा बच्चों के रहवास और उनके शिक्षण के लिए स्थापित 'सर्वेषां सेवा संघ बाल-गृह'  से। यह बाल-गृह  जो पुणे शहर में सन 1979  से संचालित किया जा रहा है.

 तदन्तर  वाघ-दम्पति ने बाबा साहेब डॉ भीमराव आम्बेडकर के 'शिक्षित बनो,संघर्ष करो और संघठित हो ' से अनुप्रेरित होकर समाज के अन्तिम वर्ग के बालक-बालिकाओं के शिक्षा और उनके सम्पूर्ण विकास के लिए 'समता शिक्षण संस्था' की स्थापना की. इस संस्था के तहत शिक्षा संस्थान 'आनन्द आश्रम विद्यालय' तलेगांव ढमढेरे ( शिरूर ) में चल रहा है. इसी संस्था के निर्देशन में एक और शिक्षण सस्था 'डॉ बाबा साहेब समाज कार्य महाविद्यालय' मोराने जिला धुले में संचालित है.

इन रचनात्मक कार्यों के अलावा बुद्धिस्ट-अम्बेडकरी वैचारिक मंच पर विलास वाघ पिछले 40  वर्षों से एक सशक्त और समृद्ध पत्रिका मराठी मासिक 'सुगावा' का प्रकाशन निरंतर कर रहे हैं. बेशक,पुणे के  'रेड लाइट एरिया' की सेक्स वर्करों के बच्चों के लिए वाघ-दम्पति ने  होस्टल संचालित कर बुदिस्त-अम्बेडकरी वैचारिक मंच को एक नया आयाम दिया है। क्योंकि,रेड लाइट एरिया की सेक्स वर्कर अधिकतम दलित जातियों से हैं.
              
वाघ दम्पति का यह कृतित्व मैंने उनके पास से उठाई गई पत्र-पत्रिकाओं से लिया है ताकि सनद रहे और दलित समाज के वे लोग जिनको अपने समाज के प्रति कुछ कर गुजरने की तड़प है, पढ़े. "You decide who you want to be,by the light of your flame.Never let others tell you who are you." विलास वाघ का यह कोटेशन मुझे याद रहेगा.   

'बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व'(टूरिस्ट स्पॉट)

            
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व (टूरिस्ट स्पॉट)

पिछले 5 जन को मुझे अपने परिवार के साथ 'बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व पार्क' का विजिट करने का मौका मिला.यु मैं स गा ता वी केंद्र बिरसिंहपुरपाली में करीब 10 वर्षों तक रहा. वहां मैं पावर हॉउस में कार्य पालन अभियन्ता के पद पर था किन्तु बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व जाने का मौका नहीं आया था. फ़िलहाल मैं 31 दिस 10 को म प्र वी मंडल की सेवा से बतौर अधीक्षण अभियंता सेवानिवृत हो चुका हूँ. पावर हॉउस की लाइफ से निकलने के पहले श्रीमतीजी ने कहा कि इस क्षेत्र में 'बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व' तो दिखा दो ? बच्चे कहते हैं, 34 साल पापा इस एरिया में रहे पर पास का बांधवगढ़ अब तक हमें नहीं दिखाए. मैंने सोचा, टी वी में  डिसकवरी आदि चेनल में दिनरात एक से एक  प्रोग्राम आते हैं. पर ठीक है,चलो चलते हैं.
  हमने बिलकुल सुबह ही अपनी गाड़ी बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व पार्क की गेट पर लगा दी.करीब 7 बजे का वक्त रहा होगा. काउंटर पर करीब 1250 रूपये की रसीद काटी. बताया गया की पार्क के अन्दर घुमने के लिए 1300 रूपये की अलग से  जिप्सी करनी पड़ेगी. काउंटर से एक गाइड तैनात किया गया. उस दिन नलों में पानी जमने की खबरे थी. वाकई, ठंड गजब की थी. 7 बजे से जिप्सी पर घूमना शुरू हुआ. मोर दिखा,हिरन दिखा,सूअर बन्दर दिखे... और देखते-देखते 10.30 बजने को आ गये मगर, शेर या चीते का कही पता नहीं था. मुझे झल्लाहट होने लगी.मैंने अपनी झल्लाहट गाइड पर उतारनी शुरू की. हमें रास्ते में कई जिप्सी मिली. मगर, सभी सिर हिलाते नजर आये. किसीको भी 'टाइगर' के दर्शन नहीं हुए.सभी निराश थे. मुझे भारी निराशा थी.हम जैसे कई विजिटर्स काफ़ी वक्त और पैसा खर्च करके आते हैं और 'बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व पार्क' में टाइगर न मिलना, बड़ी अजीब सी बात लगी.आखिर इसे 'बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व पार्क' कहने का क्या तुक है, मैं सोच रहा था ?

Sunday, January 30, 2011

सरकारी जाँच आयोग और उनकी हकीकत

          दैनिक भास्कर, जबलपुर ३० जन २०११ के फ्रंट पेज पर छपी खबर के अनुसार, केन्द्रीय कानून मंत्री वीरप्पा मोईली ने कर्नाटक में गिरजाघरों पर हुए हमलों में संघ परिवार को क्लीन चिट दिए जाने पर हैरानी जाहिर करते हुए पुरे मामले की  सी बी आई  से जाँच कराने की मांग की है. उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार ने सोमशेखरन आयोग को हाईजैक कर रिपोर्ट अपने पक्ष  में करवाई है.विदित हो कि सन २००८ में  कर्नाटक के कई जिलों में इसाई गिरजाघरों पर हुए हमलों पर राज्य सरकार द्वारा  गठित  जाँच आयोग ने पिछले वर्ष फर. में पेश अपने अंतरिम रिपोर्ट में हिन्दू संगठन 'बजरंग दल' का स्पष्ट उल्लेख किया था. श्री मोइली ने आयोग की रिपोर्ट को अस्वीकार करते  हुए कहा कि इससे सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता.
       हमारे देश में विभिन्न जाँच आयोग गठित होते रहते हैं. ये जाँच आयोग राज्य या केन्द्रीय सरकार द्वारा गठित किये जाते हैं. उद्देश्य होता है- घटनाओं के पीछे कौन जिम्मदार हैं, उन्हें कानून के कटघरे में खड़ा करना और साथ ही ऐसी व्यवस्था सुनिशित करना के भविष्य में पुनरावर्ती  न हो.
       ये अर्थ निकालना  कि मोयलीजी की टिप्पणी भाजपा के विरूद्ध है, तस्वीर का एक पहलु होगा. वास्तव में, राज्य या केंद्री सरकारों द्वारा नियुक्त जाँच आयोग लोगों का तत्कालिक गुस्सा शांत करने के लिए होते है. आयोग तो वही रिपोर्ट देता है, जो सरकार चाहती है.अगर कोई आयोग अपनी 'औकात' के बाहर जाता है तो सरकार वैसी रिपोर्ट को 'पब्लिक इंटरेस्ट' के खिलाप घोषित कर रद्दी की टोकरी में फैंक देती है.
            कुछ और बानगी दृष्टव्य है.गोधरा कांड(२७ फर.२००२ को साबरमती एक्सप्रेस के कोच एस ६ में आग लगाए जाने की घटना) पर अब तक गठित तीन आयोगों की रिपोर्ट :-
राज्य के मोदी सरकार द्वारा गठित नानावती आयोग-     आग जानबूझ कर लगायी गई.बाहरी लोगों ने आग लगायी.आग लगने से जलकर हुई मौत.रेलवे स्टेशन पर भीड़ थी.बाहर से बंद थे ट्रेन के डिब्बे.
केंद्र के तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव द्वारा गठित बनर्जी कमीशन-    दुर्घटना-वश लगी आग.दम घुटने से हुई मौत.इस साजिश में कोई बाहरी व्यक्ति शामिल नहीं था.स्टेशन पर भीड़ नहीं थी.राह चलते लोग मौजूद थे.ट्रेन के डिब्बे बंद नहीं थे.

Wednesday, January 26, 2011

कबीर

स्वामी रामानंद को अपने पितरों का श्राद्ध करने गाय के दूध की आवश्यकता हुई। स्वामीजी ने दूध लाने कबीर को भेजा। चलते-चलते कबीर ने देखा कि रास्ते में एक गाय मरी पड़ी है। कबीर को युक्ति सूझी। उन्होंने कहीं से घास का गट्ठर लिया और मृत गाय के मुंह के पास रख दिया। कबीर इन्तजार करने लगे कि गाय दूध दे तो वे गुरु के पास ले जाए।

काफ़ी समय बीत गया।  स्वामीजी कबीर का रास्ता देखते-देखते थक गए।  उन्होंने दूसरे शिष्य को दौड़ाया। शिष्य ने पूरा माजरा स्वामीजी को कह सुनाया। इस बीच कबीर भी स्वामीजी के सामने उपस्थित हो चुके थे। स्वामीजी आश्चर्यचकित हो कबीर को देखने  लगे।

कबीर ने कहा - "स्वामीजी! मैंने सोचा, मृत पितरों का श्राद्ध के लिए मृत गाय का दूध ही अच्छा रहेगा।  लेकिन वह गाय घास नहीं खाती और दूध भी नहीं देती। "  स्वामीजी बोले -"कबीर! मृत गाय कभी घास खाती है क्या ?" तब, कबीर ने झट कहा - "स्वामीजी! अगर कल की मरी गाय घास नहीं खाती तो वर्षों से मृत पितर दूध कैसे पियेंगे ?" स्वामीजी, कबीर को देखते रह गए।

यह किस्सा हम वर्षों से पढ़ते आ रहे हैं।  किन्तु न  तो स्वामीजी बदलें और न कबीर ही। स्वामीजी अलग-अलग भेष में आ रहें हैं तो दूसरी ओर, कबीर हार कर बैठ गया हो; ऐसा भी नहीं है । यह देखना दिलचस्प होगा कि सत्ता के गठजोड़ से स्वामीजी कितने दिनों आशाराम बने रहेंगे ?