Wednesday, October 3, 2012

आरक्षण


                     आरक्षण
      एक रिपोर्ट के अनुसार आज देश भर में MBBS के लिए कुल 26,000 सीटें हैं जिन में से सिर्फ 13,000 सीटें सरकारी मेडिकल कालेजों में हैं। अर्थात 50%  बच्चें ऐसी संस्थाओं से पढ़ कर डाक्टर बनते हैं जहाँ पर फ़ीस 30 से 40 लाख रूपये हैं।  

फैसला

फैसला


"मी लार्ड, मेरे साथ बलात्कार हुआ है।"  - भवरी देवी ने चीख-चीख कर जज को आप बीती सुनाई।
"मगर, तुम्हारे साथ वे बलात्कार कैसे का सकते हैं ? ... उनके लिए तो तुम्हारा स्पर्श भी पाप है।" - जज ने भवरी के आरोपों को दरकिनार करते हुए फैसला सुनाया।

सोहलियत का धर्म

                        सोहलियत  का धर्म

"तुम्हारा नाम क्या है ?" - सामने सोफे पर बैठी लडकी की तरफ मुखातिब हो कर मैंने कहा।
"प्रज्ञा।" - लडकी ने टी वी से ध्यान बिना हटाए जवाब दिया।
"आप यहाँ क्या कर रही है ?"
"आई ए एस की तैयारी ।" - लडकी की नजरे अब भी टी वी पर जमी थी।
"पिछले दिनों भी शायद, आप लोगों से मुलाकात हुई थी  ?"
"जी, पापा-मम्मी के साथ हम लोग माउंट आबू गए थे।"
"तफरीह के लिए ..?"
"जी नहीं, राधास्वामी वालों का कोई कार्यक्रम हुआ था।"
"राधास्वामी ! .. क्या तुम लोग राधास्वामी वालों को मानते हो ?"
"जी हाँ, मम्मी-पापा मानते हैं।"
"तो क्या तुम हिन्दू  हो ?" -  मैंने आश्चर्य से पूछा।
"जी।" लडकी ने सहजता से जवाब दिया।
"यानि घर में  'ॐ जय जगदिश हरे'  की आरती होती है ?"
"जी।"
"और तुम्हारे यहाँ शादी भी हिन्दू रीती-रिवाज से होती है ?" - मैंने अपने आश्चर्य को सम्भालते हुए कहा।
"जी नहीं, जैसे बाबा भीम वगैरे का फोटो लगाते हैं ... वैसे ही होती है।"  - लडकी ने मुझे समझाने के अंदाज में कहा।
मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि तुम क्या कह रही हो ? ......तुम आई ए एस की कोचिंग कर रही हो ? तुम्हारे पिताजी एक बहुत बड़े अधिकारी है और ...तुम ऐसा कैसे कह सकती हो ?" - मैंने खुद को अजीब-सी स्थिति में फंसा देख कहा।
"जी ?" - लडकी ने टी वी से नजरे हटा कर मेरी ओर देखते हुए कहा।
"यानि तुम, ये कहना चाहती हो कि तुम लोग अपनी सोहलियत के हिसाब से हिन्दू और बुद्धिस्ट बन जाते  हो ?" - मैंने थोडा इरिटेट होते हुए कहा।
"जी, हम ने कभी ऐसा नहीं सोचा।"  -लडकी ने मेरे इरीटेशन पर ध्यान न देते हुए पुन: नजरे टी वी पर गड़ा दी ।






तो माजरा कुछ और होता

     जंगल में शेर और शिकारी के बीच बहस हो रही थी कि दोनों में क्ष्रेष्ठ कौन है ? काफी देर तक माथा-पच्ची करने के बाद शिकारी ने एक कागज शेर की ओर बढ़ा कर कहा-
"देखो इस चित्र में शिकारी ने शेर को मार डाला है। अब तुम ही सोच कर बताओ कि मनुष्य क्ष्रेष्ठ हुआ की शेर ?"
" यह तुमने बनाया है। अगर ये चित्र हम बनाते तो माजरा कुछ और होता।" - शेर ने कागज को परे फेंकते हुए  कहा।
  

अछूत बच्चा और गांधीजी

वाकया  8 मई 1933 का है-
एक अछूत का बच्चा देर सायं 6 बजे गांधीजी से मिलने आया। बच्चे ने गाँधी जी को प्रणाम कर बड़ी विन्रमता से कहा कि घंटों धक्का-मुक्की के बाद वह बड़ी मुश्किल से यहाँ पहुंचा है और एक छात्रवृति के सन्दर्भ उनकी मदद चाहता है ।
"ठीक है। मैं अपने किसी सहयोगी को कहता हूँ ।" - गांधीजी ने बच्चे की ओर देख कर कहा।
"मुझे आपके सहयोगियों में विश्वास नहीं है।" - बच्चे ने अपने साथ लाए कुछ फूल गांधीजी के चरणों पर रखते हुए कहा।
"लेकिन यदि मेरे सहयोगी अविश्वनीय हैं तो फिर,  मैं भी उन में से एक हूँ। बेहतर होगा तुम मुझ में भी विश्वास न करो।"- गांधीजी ने प्रश्न सूचक दृष्टी से बच्चे की ओर देखा।
"नहीं-नहीं,  ऐसा मत कहिए ? आप खुद कहते हैं कि आपके चारों ओर रहने वाले लोग ठीक नहीं हैं और आपको उपवास करके मर जाना चाहिए।"  - बच्चे के आंसू फूट पड़े।
"अरे नहीं भई, सभी ऐसे नहीं होते हैं....अच्छा आओ, हम लोग एक अनुबंध करते हैं। 29 मई की सुबह सोमवार के दिन दोपहर तुम एक संतरा ले कर आना। उसके रस से मैं अपना उपवास तोडूंगा। फिर हम लोग तुम्हारी छात्रवृति के सिलसिले में बात करेंगे। क्या तुम अब संतुष्ट हो ?" -गांधीजी ने मुस्करा कर कहा।
"हाँ।" - बच्चा ख़ुशी से खिल उठा।
"तो तुम अनुबंध पर कायम रहोगे ?"  - गांधीजी ने पूछा ।  इस पर वहाँ बैठे गांधीजी समेत सारे लोग हंस पड़े।

आखिरकार वह दिन भी आया जिसके लिए सैकड़ों और हजारों लोगों ने दुआएं मांगी थी। मगर, क्या आप सोचते है, वह अछूत बच्चे के हाथों संतरे का जूस पीकर गांधीजी ने उपवास तोडा था ? जी नहीं। ऐसा कुछ नहीं हुआ।

दरअसल, उस बच्चे का एड्रेस गांधीजी के सहयोगियों को भी पता नहीं था। वह बच्चा नहीं आया और एक महिला ठाकरसे के हाथों पिलाये संतरे के जूस से गांधीजी ने अपना उपवास तोडा था।

बाद में 1 जून को बैरंग ख़त मिला। ख़त में उस बच्चे ने लिखा था - " बापू ,  मैं इस नतीजे पर पहुंचा है कि आप में और आपके सहयोगियों में कोई अंतर नहीं है !"


Tuesday, October 2, 2012

थर्मामीटर

 काठियावाड़  के एक गावं में एक अछूत अध्यापक की पत्नी को बच्चा हुआ। वह अस्वस्थ थी। डा. को देखने के लिए बुलाया गया। अछूत स्त्री होने के कारण सवर्ण डाक्टर स्वयं उसे थर्मामीटर नहीं लगा सकता था। डा. ने सीधे थर्मामीटर उस अच्छूत अध्यापक को नहीं दिया। पहले एक मुसलमान को दिया। फिर उस मुसलमान  ने उसे अध्यापक को दिया। अध्यापक ने थर्मामीटर पत्नी को लगाया। फिर उस मुसलमान को दिया और मुसलमान ने उसे डाक्टर को दिया। डाक्टर दवा बता कर और अपनी फ़ीस ले कर चला गया। उचित इलाज के अभाव में उस स्त्री का देहांत हो गया।
एक अछूत अध्यापक की ऐसी दुर्दशा के बारे में यह पत्र गांधीजी के सहयोगी अमृतलाल ठक्कर जो अछूतोध्दार में लगे हुए थे, ने  सन 1927 की गर्मियों में गांधीजी को लिखा था(गांधीजी के पत्र  'यंग इण्डिया' के 5 मई  1927 के अंक में छपे एक लेख का मजमून)। 

Monday, October 1, 2012

दलित मूर्तिकार

   दलित मूर्तिकार   

 दलित मूर्तिकार ने एक मूर्ति बनाई। मूर्ति बहुत ही लाजवाब थी।मूर्ति को इस तरह तराशा गया था कि वह सजीव हो उठी थी। लोग मूर्ति को देख कर अचंभित थे । खुद मूर्तिकार अपनी कला को देख हतप्रभ था।लोगों ने सलाह दी कि इसे किसी बड़े मन्दिर में प्रतिष्ठापित किया जाय। और अंतत: शहर के एक बड़े चौराहे पर स्थित मन्दिर में बड़ी ताम-झाम के साथ ब्राहमण पंडितों के मंत्रोचार से मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा की गयी।
        एक दिन मूर्तिकार को ख्याल आया कि वह उस मूर्ति को देख आये जिसे बड़ी मेहनत से उसने बनाया था। वह शहर के उस चौराहे पर स्थित मन्दिर में गया। मगर, वहा ब्राहमण पंडितों ने उसे मूर्ति को करीब से देखने को रोक दिया। ब्राहमण पंडितों ने कहा कि वह नीच जाति का है और इसलिए उसे अन्दर नहीं जाने दिया जा सकता।
'मगर, मूर्ति मैंने बनाई है ? उसका एक-एक अंग मैंने अपने इन हाथों से तराशा है ?
तो क्या हुआ ? मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा हो चुकी है और अब तुम, मूर्ति का स्पर्श नहीं कर  सकते ?
मगर, क्यों ?
क्योंकि, तुम नीच जाति के हो।
मगर, इसमें मेरा क्या दोष है ? किस जाति में पैदा होना है, यह मेरे वश की बात नहीं थी ?
नहीं, ये तुम्हारे पूर्व-जन्म के कर्मों का परिणाम है।
मगर, तुम ये कैसे कह सकते हो ?
क्योंकि, ऐसा हमारे शास्त्रों में लिखा है।
शास्त्र तो तुम ने बनाये है ?
अच्छा है, तुम अपनी हद में रहो। धर्म-ग्रंथों की निंदा में तुम्हें जेल भी हो सकती है।
मूर्तिकार ने पल भर सोचा और कहा -
भाड़ में जाओ तुम और तुम्हारे धर्म-ग्रन्थ। मैं जा कर इससे भी अच्छी दूसरी मूर्ति बनाता हूँ।