बाबासाहब डा अम्बेडकर क्या 14 अक्टू 1956 के पहले धम्म-दीक्षा ले चुके थे ? प्रश्न अजीब-सा लगता है। किन्तु, नवीनतम निष्कर्षों से ऐसे ही प्रमाण मिलते हैं ।
सामान्यत: हमें यही मालूम है कि बाबासाहब डा. अम्बेडकर ने 14 अक्टू 1956 को नागपुर में धम्म-दीक्षा दीक्षा ली थी । यही नहीं, वरन इसके साथ ही, इसके तुरंत बाद वहां लाखों की संख्या में एकत्र अपने अनुयायियों को 22 प्रतिज्ञाओं के साथ धम्म दीक्षा दी थी ।
किन्तु महाराष्ट्र शासन द्वारा 'डा. अम्बेडकर; लेखन और भाषण' खंड- 17 में दिए गए विवरण के अनुसार, बाबासाहब डा. अम्बेडकर वर्ष 1950 में ही धम्म-दीक्षा ले चुके थे। दिए गए विवरण के अनुसार बुद्ध पूर्णिमा के दिन प्रात: डा. अम्बेडकर ने अपनी पत्नी डा. सविता अम्बेडकर के साथ दिल्ली के महाबोधि बुद्ध विहार(बिरला मंदिर के पास) में बाकायदा विधिवत धम्म-दीक्षा ली थी।
आइए, अब देखें कि इस तथ्य के समर्थन में क्या और भी प्रमाण हैं जो उस बात की पुष्टि करते हैं। अपने ग्रंथ 'धम्मचक्र प्रवर्तन के बाद के परिवर्तन'में इसकी चर्चा करते हुए डा. प्रदीप आगलावे उन घटनाओं का सिलसिलेवार ब्यौरा दिया है, जो निस्संदेह, उक्त खुलासे की पुष्टि करते हैं -
1. 2 मई 1950 को बाबासाहब डा. अम्बेडकर की अध्यक्षता में बुद्ध जयंती मनाई गई थी जिस में देश-विदेश के राजदूत और बौद्ध भिक्षु शामिल हुए थे। अपने उदबोधन में डा आंबेडकर ने कहा था- 'मुझे तो बौद्ध धम्म में ही सच्चे ज्ञान की किरण दिखाई देती है और बौद्ध धर्म के कारण ही भारत देश की महानता को हम सारे विश्व को बता सकते हैं'। धर्मान्तर के लिए किस धर्म का चुनाव करना चाहिए, इस का उत्तर देते हुए डा. अम्बेडकर ने बौद्ध धर्म अपनाने की सलाह दी। डा. अम्बेडकर ने कहा था कि बुद्ध का दर्शन जाति और वर्ग के विरुद्ध है (पृ 83 )।
2. महाबोधि सोसायटी के 'महाबोधि' जर्नल के मई 1950 के अंक में बाबासाहब डा. अम्बेडकर का एक लेख 'बुद्ध और उनके धम्म का भविष्य' प्रकाशित हुआ था। इस लेख में बाबासाहब डा. अम्बेडकर ने लिखा था - "केवल अच्छा बौद्ध बनना ही एक बौद्ध का कर्त्तव्य नहीं है बल्कि बुद्धा धम्म का प्रचार एवं प्रसार करना भी उसका कर्त्तव्य है (पृ 83 )।
3. 25 मई से 6 जून 1950 तक सीलोन बुद्धिस्ट कांग्रेस ने केन्डी (सीलोन) में 'विश्व बौद्ध भातृत्व सम्मलेन' का आयोजन किया था। पत्नी सविता अम्बेडकर सहित बाबासाहब डा. अम्बेडकर इस में शरीक हुए थे। सम्मेलन के दूसरे दिन 26 मई और अंतिम दिन 6 मई को डा. अम्बेडकर का भाषण हुआ था (पृ 84 )।
4. 6 जून 1950 को कोलम्बो में 'सीलोन दलित फेडरेशन' की ओर से आयोजित एक और कार्यक्रम में बाबासाहब डा. अम्बेडकर ने इस बात का खुलासा किया था कि अछूतों की मुक्ति के लिए बौद्ध धर्म के आलावा अन्य कोई दूसरा मार्ग नहीं है। तत्सम्बंध में वे इस निर्णय पर पहुंचे हैं(पृ 84 )।
5. 14 जन 1951 को वर्ली(मुंबई ) के बुद्ध विहार में बुद्धदूत सोसायटी की ओर से आयोजित कार्यक्रम में बाबासाहब डा. अम्बेडकर उपस्थित हुए थे। यहाँ, उन्होंने किसी भिक्षु का उदाहरण देते हुए कहा था- बौद्ध होना सरल नहीं है। मैं और मेरे लोग मिल-जल कर इसके लिए कुछ नियम बनाएंगें। जो उन नियमों का पालन करेगा, उनको ही दीक्षा दी जाएगी। दीक्षा लेने के बाद तुम लोग हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं को बुद्ध धर्म में नहीं ला पाओगे। घर में खंडोबा और बाहर बुद्ध ऐसा नहीं चलेगा(पृ 84 )।
6 . 19-20 और 21 मई 1951 को दिल्ली शेड्यूल्ड कास्ट्स वेलफेयर एसोसिएशन और महाबोधि सोसायटी के द्वारा आयोजित बुद्ध जयंती के कार्यक्रम में बाबासाहब डा. अम्बेडकर ने आव्हान किया था कि भारत के सारे अछूतों को बुद्ध धर्म अपना लेना चाहिए।(पृ 85) ।
7. 27 मई 1953 को बुद्ध जयंती के अवसर पर दिए गए अपने भाषण में बाबासाहब डा. अम्बेडकर ने कहा था- "मैं धम्म पर केवल बोलता ही हूँ , ऐसा नहीं है। मैंने अपना शेष जीवन धम्म प्रचार में खर्च करने का निश्चय किया है"(पृ 85 )।
8. 25 दिस. 1954 को पुणे के देहू रोड के बुद्ध विहार में डा. बाबासाहब अम्बेडकर के हाथों भगवान् बुद्ध की मूर्ति की स्थापना की गई थी। सफ़ेद पत्थर की यह मूर्ति स्वयं बाबासाहब अम्बेडकर रंगून (बर्मा) से लाए थे(पृ 85 )।
9. 3 अक्टू 1954 को आकाशवाणी दिल्ली केंद्र से 'मेरा निजी जीवन दर्शन' विषय पर भाषण करते हुए बाबासाहब डा. अम्बेडकर ने कहा था- "स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा यह अपना निजी जीवन दर्शन मैंने फ़्रांस की राज्य क्रांति से उधार लिए हैं, ऐसा किसी को भी नहीं समझना चाहिए। मैंने वैसा नहीं किया है। मैं यह स्पष्ट बता रहा हूँ कि मेरे दर्शन का मूल राजनीति से न हो कर धर्म से है। मैंने अपने गुरु भगवान बुद्ध की शिक्षा से ही यह दर्शन ग्रहण किया है"(पृ 86 )।
10. 4 दिस 1954 को रंगून में आयोजित तृतीय विश्व बौद्ध भातृत्व सम्मलेन में भाषण देते हुए बाबासाहब डा. अम्बेडकर ने कहा था- "इस जगह पर उपस्थित हम सभी लोग बुद्ध अनुयायी हैं।" - स्पष्ट है, बाबासाहब डा. अम्बेडकर 1956 के पहले ही धम्म दीक्षा ले चुके थे(पृ 86 )।
11. . संविधान की भाषा अनुसूची में पालि भाषा को स्थान दिलाना, राष्ट्रपति भवन में बुद्ध की मूर्ति स्थापित करना, मूर्ति के नीचे 'धम्मचक्क पवत्तनाय' अंकित करवाना, राष्ट्रीय ध्वज पर अशोक चक्र और अशोक स्तम्भ से ली गई चार सिहों की प्रतिकृति राजमुद्रा के तौर स्वीकृत करवाना - इस बात के साक्षी हैं कि बाबासाहब डा. अम्बेडकर धम्म दीक्षा इसके पूर्व ले चुके थे(पृ 86)।
12. 14 जन 1955 को मुंबई के वरली में बौद्ध धर्म सलाहकार समिति की ओर से आयोजित व्याख्यान में डा. अम्बेडकर ने अपने भाषण में कहा था- "मैंने बुद्ध धर्म ग्रहण कर लिया है। आप भी इसे स्वीकार करें। केवल अछूत समाज द्वारा ही इसे स्वीकारने से काम नहीं चलेगा। सारे भारत और उसके साथ ही सारे विश्व को बुद्ध धर्म स्वीकार करना चाहिए, ऐसे मेरी मनोकामना है(पृ 87)। "
4 मई 1955 को बाबासाहब डा अम्बेडकर ने बुद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करने भारतीय बौद्ध महासभा की स्थापना की थी(पृ 87 )।
5 मई 1955 के बुद्ध जयंती का दिन डा अम्बेडकर ने ठाना जिले के नाला सोपारा नामक स्थान में बिताया था। स्मरण रहे, भारतीय पुरातत्व विभाग को यहाँ अशोककालीन बौद्ध स्तूप और शिलालेख प्राप्त हुए हैं(पृ 87 )।
8 मई 1955 को मुंबई के नरे पार्क नामक स्थान में भारतीय बौद्ध जन समिति की और से आयोजित बुद्ध जयंती के कार्यक्रम में डा अम्बेडकर ने अपने भाषण में कहा था - "हमारा मुख्य कार्य धम्म प्रचार करने का है, हमें लोगों को बौद्ध बनाना है। आज यही हमारा परम कर्तव्य है"(पृ 87 )।
4 फर 1956 को डा अम्बेडकर ने अपने साप्ताहिक पत्रिका 'जनता' का नाम बदल कर 'प्रबुद्ध भारत' किया था(पृ ८७ )।
24 मई 1956 को भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण वर्ष के 2500 वे अवसर पर भारतीय बौद्ध जन समिति, जो बाद में भारतीय बौद्ध महा सभा कहलाई की ओर से नरे पार्क मुंबई में बाबासाहब अम्बेडकर ने अपने सम्बोधन में कहा था- "अब बौद्ध धर्म की लहर आ चुकी है तो वह कभी भी मिटने वाली नहीं"(पृ 87 )।
10 और 23 जून 1956 को भारतीय बौद्ध जन समिति की ओर से आयोजित कार्यक्रमों में डा आंबेडकर में शिरकत की थी(पृ 87 )।
डा आंबेडकर ने 1945 से बौद्ध धर्म के बारे में लोगों को जाग्रत करने का काम किया था। 1950 के बाद तो उनके इस कार्य में विशेष गति आ गई। 1950 के बाद प्रति वर्ष बुद्ध जयंती के कार्यक्रम आयोजित करना, विश्व बौद्ध सम्मेलनों में शिरकत करना, अछूतों को बौद्ध धर्म के बारे में सही जानकारी देना, उनके सर्वांगीण विकास के लिए बौद्ध धर्म ही एकमात्र मार्ग है; बतलाना आदि उनके कार्य इंगित करते हैं कि वे पूर्व में बौद्ध धर्म में दीक्षित हो चुके थे(पृ 88 )। यद्यपि, इसकी सार्वजनिक घोषणा उन्होंने कभी नहीं की।
सामान्यत: हमें यही मालूम है कि बाबासाहब डा. अम्बेडकर ने 14 अक्टू 1956 को नागपुर में धम्म-दीक्षा दीक्षा ली थी । यही नहीं, वरन इसके साथ ही, इसके तुरंत बाद वहां लाखों की संख्या में एकत्र अपने अनुयायियों को 22 प्रतिज्ञाओं के साथ धम्म दीक्षा दी थी ।
किन्तु महाराष्ट्र शासन द्वारा 'डा. अम्बेडकर; लेखन और भाषण' खंड- 17 में दिए गए विवरण के अनुसार, बाबासाहब डा. अम्बेडकर वर्ष 1950 में ही धम्म-दीक्षा ले चुके थे। दिए गए विवरण के अनुसार बुद्ध पूर्णिमा के दिन प्रात: डा. अम्बेडकर ने अपनी पत्नी डा. सविता अम्बेडकर के साथ दिल्ली के महाबोधि बुद्ध विहार(बिरला मंदिर के पास) में बाकायदा विधिवत धम्म-दीक्षा ली थी।
आइए, अब देखें कि इस तथ्य के समर्थन में क्या और भी प्रमाण हैं जो उस बात की पुष्टि करते हैं। अपने ग्रंथ 'धम्मचक्र प्रवर्तन के बाद के परिवर्तन'में इसकी चर्चा करते हुए डा. प्रदीप आगलावे उन घटनाओं का सिलसिलेवार ब्यौरा दिया है, जो निस्संदेह, उक्त खुलासे की पुष्टि करते हैं -
1. 2 मई 1950 को बाबासाहब डा. अम्बेडकर की अध्यक्षता में बुद्ध जयंती मनाई गई थी जिस में देश-विदेश के राजदूत और बौद्ध भिक्षु शामिल हुए थे। अपने उदबोधन में डा आंबेडकर ने कहा था- 'मुझे तो बौद्ध धम्म में ही सच्चे ज्ञान की किरण दिखाई देती है और बौद्ध धर्म के कारण ही भारत देश की महानता को हम सारे विश्व को बता सकते हैं'। धर्मान्तर के लिए किस धर्म का चुनाव करना चाहिए, इस का उत्तर देते हुए डा. अम्बेडकर ने बौद्ध धर्म अपनाने की सलाह दी। डा. अम्बेडकर ने कहा था कि बुद्ध का दर्शन जाति और वर्ग के विरुद्ध है (पृ 83 )।
2. महाबोधि सोसायटी के 'महाबोधि' जर्नल के मई 1950 के अंक में बाबासाहब डा. अम्बेडकर का एक लेख 'बुद्ध और उनके धम्म का भविष्य' प्रकाशित हुआ था। इस लेख में बाबासाहब डा. अम्बेडकर ने लिखा था - "केवल अच्छा बौद्ध बनना ही एक बौद्ध का कर्त्तव्य नहीं है बल्कि बुद्धा धम्म का प्रचार एवं प्रसार करना भी उसका कर्त्तव्य है (पृ 83 )।
3. 25 मई से 6 जून 1950 तक सीलोन बुद्धिस्ट कांग्रेस ने केन्डी (सीलोन) में 'विश्व बौद्ध भातृत्व सम्मलेन' का आयोजन किया था। पत्नी सविता अम्बेडकर सहित बाबासाहब डा. अम्बेडकर इस में शरीक हुए थे। सम्मेलन के दूसरे दिन 26 मई और अंतिम दिन 6 मई को डा. अम्बेडकर का भाषण हुआ था (पृ 84 )।
4. 6 जून 1950 को कोलम्बो में 'सीलोन दलित फेडरेशन' की ओर से आयोजित एक और कार्यक्रम में बाबासाहब डा. अम्बेडकर ने इस बात का खुलासा किया था कि अछूतों की मुक्ति के लिए बौद्ध धर्म के आलावा अन्य कोई दूसरा मार्ग नहीं है। तत्सम्बंध में वे इस निर्णय पर पहुंचे हैं(पृ 84 )।
5. 14 जन 1951 को वर्ली(मुंबई ) के बुद्ध विहार में बुद्धदूत सोसायटी की ओर से आयोजित कार्यक्रम में बाबासाहब डा. अम्बेडकर उपस्थित हुए थे। यहाँ, उन्होंने किसी भिक्षु का उदाहरण देते हुए कहा था- बौद्ध होना सरल नहीं है। मैं और मेरे लोग मिल-जल कर इसके लिए कुछ नियम बनाएंगें। जो उन नियमों का पालन करेगा, उनको ही दीक्षा दी जाएगी। दीक्षा लेने के बाद तुम लोग हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं को बुद्ध धर्म में नहीं ला पाओगे। घर में खंडोबा और बाहर बुद्ध ऐसा नहीं चलेगा(पृ 84 )।
6 . 19-20 और 21 मई 1951 को दिल्ली शेड्यूल्ड कास्ट्स वेलफेयर एसोसिएशन और महाबोधि सोसायटी के द्वारा आयोजित बुद्ध जयंती के कार्यक्रम में बाबासाहब डा. अम्बेडकर ने आव्हान किया था कि भारत के सारे अछूतों को बुद्ध धर्म अपना लेना चाहिए।(पृ 85) ।
7. 27 मई 1953 को बुद्ध जयंती के अवसर पर दिए गए अपने भाषण में बाबासाहब डा. अम्बेडकर ने कहा था- "मैं धम्म पर केवल बोलता ही हूँ , ऐसा नहीं है। मैंने अपना शेष जीवन धम्म प्रचार में खर्च करने का निश्चय किया है"(पृ 85 )।
8. 25 दिस. 1954 को पुणे के देहू रोड के बुद्ध विहार में डा. बाबासाहब अम्बेडकर के हाथों भगवान् बुद्ध की मूर्ति की स्थापना की गई थी। सफ़ेद पत्थर की यह मूर्ति स्वयं बाबासाहब अम्बेडकर रंगून (बर्मा) से लाए थे(पृ 85 )।
9. 3 अक्टू 1954 को आकाशवाणी दिल्ली केंद्र से 'मेरा निजी जीवन दर्शन' विषय पर भाषण करते हुए बाबासाहब डा. अम्बेडकर ने कहा था- "स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा यह अपना निजी जीवन दर्शन मैंने फ़्रांस की राज्य क्रांति से उधार लिए हैं, ऐसा किसी को भी नहीं समझना चाहिए। मैंने वैसा नहीं किया है। मैं यह स्पष्ट बता रहा हूँ कि मेरे दर्शन का मूल राजनीति से न हो कर धर्म से है। मैंने अपने गुरु भगवान बुद्ध की शिक्षा से ही यह दर्शन ग्रहण किया है"(पृ 86 )।
10. 4 दिस 1954 को रंगून में आयोजित तृतीय विश्व बौद्ध भातृत्व सम्मलेन में भाषण देते हुए बाबासाहब डा. अम्बेडकर ने कहा था- "इस जगह पर उपस्थित हम सभी लोग बुद्ध अनुयायी हैं।" - स्पष्ट है, बाबासाहब डा. अम्बेडकर 1956 के पहले ही धम्म दीक्षा ले चुके थे(पृ 86 )।
11. . संविधान की भाषा अनुसूची में पालि भाषा को स्थान दिलाना, राष्ट्रपति भवन में बुद्ध की मूर्ति स्थापित करना, मूर्ति के नीचे 'धम्मचक्क पवत्तनाय' अंकित करवाना, राष्ट्रीय ध्वज पर अशोक चक्र और अशोक स्तम्भ से ली गई चार सिहों की प्रतिकृति राजमुद्रा के तौर स्वीकृत करवाना - इस बात के साक्षी हैं कि बाबासाहब डा. अम्बेडकर धम्म दीक्षा इसके पूर्व ले चुके थे(पृ 86)।
12. 14 जन 1955 को मुंबई के वरली में बौद्ध धर्म सलाहकार समिति की ओर से आयोजित व्याख्यान में डा. अम्बेडकर ने अपने भाषण में कहा था- "मैंने बुद्ध धर्म ग्रहण कर लिया है। आप भी इसे स्वीकार करें। केवल अछूत समाज द्वारा ही इसे स्वीकारने से काम नहीं चलेगा। सारे भारत और उसके साथ ही सारे विश्व को बुद्ध धर्म स्वीकार करना चाहिए, ऐसे मेरी मनोकामना है(पृ 87)। "
4 मई 1955 को बाबासाहब डा अम्बेडकर ने बुद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करने भारतीय बौद्ध महासभा की स्थापना की थी(पृ 87 )।
5 मई 1955 के बुद्ध जयंती का दिन डा अम्बेडकर ने ठाना जिले के नाला सोपारा नामक स्थान में बिताया था। स्मरण रहे, भारतीय पुरातत्व विभाग को यहाँ अशोककालीन बौद्ध स्तूप और शिलालेख प्राप्त हुए हैं(पृ 87 )।
8 मई 1955 को मुंबई के नरे पार्क नामक स्थान में भारतीय बौद्ध जन समिति की और से आयोजित बुद्ध जयंती के कार्यक्रम में डा अम्बेडकर ने अपने भाषण में कहा था - "हमारा मुख्य कार्य धम्म प्रचार करने का है, हमें लोगों को बौद्ध बनाना है। आज यही हमारा परम कर्तव्य है"(पृ 87 )।
4 फर 1956 को डा अम्बेडकर ने अपने साप्ताहिक पत्रिका 'जनता' का नाम बदल कर 'प्रबुद्ध भारत' किया था(पृ ८७ )।
24 मई 1956 को भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण वर्ष के 2500 वे अवसर पर भारतीय बौद्ध जन समिति, जो बाद में भारतीय बौद्ध महा सभा कहलाई की ओर से नरे पार्क मुंबई में बाबासाहब अम्बेडकर ने अपने सम्बोधन में कहा था- "अब बौद्ध धर्म की लहर आ चुकी है तो वह कभी भी मिटने वाली नहीं"(पृ 87 )।
10 और 23 जून 1956 को भारतीय बौद्ध जन समिति की ओर से आयोजित कार्यक्रमों में डा आंबेडकर में शिरकत की थी(पृ 87 )।
डा आंबेडकर ने 1945 से बौद्ध धर्म के बारे में लोगों को जाग्रत करने का काम किया था। 1950 के बाद तो उनके इस कार्य में विशेष गति आ गई। 1950 के बाद प्रति वर्ष बुद्ध जयंती के कार्यक्रम आयोजित करना, विश्व बौद्ध सम्मेलनों में शिरकत करना, अछूतों को बौद्ध धर्म के बारे में सही जानकारी देना, उनके सर्वांगीण विकास के लिए बौद्ध धर्म ही एकमात्र मार्ग है; बतलाना आदि उनके कार्य इंगित करते हैं कि वे पूर्व में बौद्ध धर्म में दीक्षित हो चुके थे(पृ 88 )। यद्यपि, इसकी सार्वजनिक घोषणा उन्होंने कभी नहीं की।
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