बाबू एन. एल. हरदास( 1904 -1939)
हम उसी को याद करते हैं, जो इतिहास का निर्माण करते हैं। ‘जयभीम’ शब्द जो आज परस्पर सम्बोधन का पयार्यवाची बन गया है, के प्रणेता बाबू हरदास थे। यह वही शख्सीयत थे, जिन्होंने इस सम्बोधन का पहली बार भरी सभा में प्रयोग कर इतिहास का निर्माण किया था। जैसे हिन्दुओं में ‘नमस्कार’, मुस्लिमों में ‘आदाब-अर्ज’ और ईसाईयों में ‘गुड-मार्निंग’ का सम्बोधन प्रचलित हैं, ठीक उसी प्रकार दलित और बुद्धिस्टों में ‘जयभीम’ का जयघोष प्रचलित है।
बाबू एन. एल. हरदास, मध्य भारत और बरार (विदर्भ ) में दलित समाज के लोकप्रिय नेता थे। वे आल इण्डिया डिप्रेस्ड कास्ट्स फेडरेशन के कार्य कारिणी के सदस्य थे। वे प्रांतीय बीडी मजदूर संघ के सेक्रेटरी भी थे। वे स्वतंत्र मजदूर पक्ष (Independent Lab our Party) के जनरल सेक्रेटरी और बाद में अध्यक्ष नियुक्त किये गए थे। वे बाबासाहब के विश्वास पात्र थे।
अफसोस है, बाबू हरदास लम्बी उम्र नहीं जी सकें। वे मात्रा 35 वर्स की अल्पायु में ही चल बसे थे। किन्तु इतने कम समय में वे इतना काम कर गए कि लोग उनका नाम लेना गर्व का सबब समझते हैं। सच है, इतिहास गढ़ने के लिए लम्बी उम्र की दरकार नहीं होती?
बाबू हरदास का जन्म जन. 6, 1904 को कामठी (नागपुर) महाराष्ट्र के महार परिवार में हुआ था। उनके पिता लक्ष्मणराव नगरारे रेल्वे में क्लर्क के पद पर थे। हरदास ने मेट्रिक की पढ़ाई सन् 1920 मेें पटवर्धन हाई स्कूल नागपुर से उत्तीर्ण की थी। हरदास की पत्नी का नाम सहुबाई था। इनका विवाह 16 वर्ष की उम्र में हुआ था।
हरदास ने 17 साल की उम्र में दलित समाज में सामाजिक चेतना जाग्रत करने के लिए सन् 1921 में ‘महारठा’ नामक साप्ताहिक का प्रकाशन नागपुर में शुरू किया। काम बीड़ी कामगारों का शोषण रोकने यह बाबू हरदास ही थे जिसने कोऑपरेटीव आधार पर बीड़ी बनवाने की व्यवस्था आरम्भ की। आपने दलित महिलाओं को इस हेतु ट्रेनिंग देने के लिए नागपूर में एक महिला आश्रम स्थापित किया था।
बाबू हरदास ने महार समाज को संगठित करने के निमित्त सन् 1922 में एक संगठन तैयार किया था। वे इसके महासचिव थे। हिन्दू अत्याचारों से समाज के लोगों की रक्षा करने इन्होंने ‘महार सेवक संघ‘ नामक एक यूवाओं को स्वयं-सेवी संगठन बनाया था। बाबू हरदास चाहते थे कि डिप्रेस्ड कास्ट में जितनी जातियां आती हैं, वे सब एक बेनर के नीचे आएं। दरअसल, वे इन जातियों में उप-जाति की बाधा खत्म करना चाहते थे। सन्त चोखामेला की पुन्य-तिथि के समारोह में वे इन सभी उप-जातियों के लोगों को आमत्रित कर सह-भोज का आयोजन करते थे।
सन् 1923 में बाबू हरदास ने मध्य-प्रान्त और बरार के वायसराय से आग्रह किया था कि विधान-परिषद, डिस्ट्रिक लोकल बोर्ड और नगरपालिकाओं में डिप्प्रेस्ड क्लॉस के लोगों को नामित कर उन्हें प्रतिनिधत्व दिया जाए ताकि विघायिका और कार्यपालिका में उनकी सहभागिता सुनिश्चित हो सकें। सन् 1924 की अवधि में बाबू हरदास ने कामटी और नागपुर में महार समाज के लोगों के लिए कई रात्रि-कालीन विद्यालय खोलें। कामटी में आपने सन्त चोखामेला पुस्तकालय खोला था। वे हर प्रकार के अन्ध-विश्वास, सड़ी-गली परम्पराओं के विरूद्ध थे। इस निमित्त इन्होंने अक्टू. 1924 में ‘मण्डल महात्मे‘ नामक एक पुस्तक लिखकर समाज के लोगों में वितरित की। इसी प्रकार ‘वीर बालक‘ नामक एक नाटक का मंचन भी किया था।
सन् 1927 में बाबू हरदास ने मूर्ति-पूजा के विरूद्ध रामटेक(नागपुर) में एक सभा, किशन फागुजी बन्सोड़ की अध्यक्षता में आयोजित की थी, जो उस समय के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता थे। इस सभा में हरदास बाबू ने समाज के लोगों को आव्हान किया कि वे मदिर की सीढ़ियों पर लेटना छोड़ दे और साथ ही अम्बादा तालाब के गंदे पानी में न नहाएं। यद्यपि, आपने नाशिक के कालाराम मंदिर-प्रवेश के लिए चल रहे सत्याग्रह में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करने अपने आदमियों का एक दल 2 मार्च 1930 को भेजा था।
डिप्रेस्ड क्लासेस की कन्फ्रेन्स जो नागपुर में 8 अग. 1930 को हुई थी, के आयोजन में मुख्य भूमिका बाबू हरदास की थी। सनद रहे, इस कन्फ्रेन्स की अध्यक्षता बाबासाहेब अम्बेडकर ने स्वयं की थी। इस कन्फ्रेन्स में डिप्रेस्ड क्लासेस के लिए ‘पृथक चुनाव’ की मांग का प्रस्ताव पारित हुआ था। कन्फ्रेन्स में ऑल इण्डिया डिप्रेस्ड-क्लासेस फेडेरेशन का गठन हुआ था जिसका अध्यक्ष मद्रास के राव साहेब मूनिस्वामी पिल्लई को बनाया गया था। बाबू हरदास इसके सयुंक्त सचिव निर्वाचित हुए थे।
सन 1930 में ही ‘म. प्र. बीड़ी मजदूर संघ’ की स्थापना हुई थी जिसके सचिव बाबू हरदास और अध्यक्ष रामचन्द्र फुले थे। सन 1932 में ऑल इण्डिया डिप्रेस्ड क्लासेस फेडेरेशन का दूसरा अधिवेशन कामटी 7-8 मई का हुआ था। इस समय फेडरेशन की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का चुनाव हुआ था जिसमे वाइस प्रेसिडेन्ट एम. बी. मलिक बंगाल, एलए एन. हरदास को सचिव, स्वामी अच्छूतानन्द लखनउ को संयुक्त सचिव चुना गया था।
बाबू हरदास सन् 1936 में सीपी. एण्ड बरार के ‘इन्डीपेन्डेन्ट लेबर पार्टी’ के सचिव निर्वाचित हुए थे। आपने सन् 1937 में नागपुर-कामटी सुरक्षित क्षेत्र असेम्बली से चुनाव लड़ा था और निर्वाचित हुए थे। सन् 1938 में आप ‘इन्डीपेन्डेन्ट लेबर पार्टी’ सीपी. एण्ड बरार के अध्यक्ष नामित हुए थे।
जन. 1935 को कामटी में ‘समता संगठन’ की एक बड़ी सभा में बाबू हरदास ने ‘जयभीम’ का नारा दिया था। इसमें ‘भीम’ शब्द बाबासाहेब आम्बेडकर के मूल नाम ‘भीमराव’ को दर्शाता था। इस जयघोष का आशय था- बाबासाहेब भीमरॉव अम्बेडकर की जय हो, विजय हो। सभा द्वारा हर्ष-ध्वनि से अनुमोदन किया गया था कि जो लोग देश में समता, स्वतंत्राता और बन्धुता की स्थापना में विश्वास रखते हैं, वे इनके प्रणेता बाबासाहेब अम्बेडकर का जयघोष इस अभिवादन से करें। यह ऐतिहासिक सत्य है कि ‘जय-भीम’ सम्बोधन जो बुद्धिस्ट-आम्बेडकरियों के बीच मेल-मुलाकात के अवसर पर जयघोष किया जाता है, के प्रणेता बाबू हरदास ही थे जिन्होंने सन् 1937 में इसका सार्वजनिक प्रयोग एक भरी सभा में किया था।
12 जन. 1939 को आपने 35 साल की अल्प अवधि में दलित समाज को अलविदा कर एक ऐसा रास्ता दिखाया जिस पर चलने को समाज का बच्चा-बच्चा गर्व की अनुभूति करता है।
उनके निधन से समाज की अपूर्णीय क्षति हुई। बाबू हरदास की शव यात्रा में लाखों लोग शरीक हुए थे। उन्हें कन्हान नदी के तट पर भारतीय सेना की भूमि पर दफनाया गया था। तब सेना की और से आब्जेक्शन लिया गया था। किन्तु बाद में मिलट्री हेड आफिस जबलपुर से अनुमति ले कर वहां एक बड़ा स्मारक बनाया गया। अब इस स्थान पर संक्रांति के दिन विशाल मेला लगता है, जिस में दलित जनता अपने प्रिय नेता को श्रध्दांजलि अर्पित करती है।
हम उसी को याद करते हैं, जो इतिहास का निर्माण करते हैं। ‘जयभीम’ शब्द जो आज परस्पर सम्बोधन का पयार्यवाची बन गया है, के प्रणेता बाबू हरदास थे। यह वही शख्सीयत थे, जिन्होंने इस सम्बोधन का पहली बार भरी सभा में प्रयोग कर इतिहास का निर्माण किया था। जैसे हिन्दुओं में ‘नमस्कार’, मुस्लिमों में ‘आदाब-अर्ज’ और ईसाईयों में ‘गुड-मार्निंग’ का सम्बोधन प्रचलित हैं, ठीक उसी प्रकार दलित और बुद्धिस्टों में ‘जयभीम’ का जयघोष प्रचलित है।
बाबू एन. एल. हरदास, मध्य भारत और बरार (विदर्भ ) में दलित समाज के लोकप्रिय नेता थे। वे आल इण्डिया डिप्रेस्ड कास्ट्स फेडरेशन के कार्य कारिणी के सदस्य थे। वे प्रांतीय बीडी मजदूर संघ के सेक्रेटरी भी थे। वे स्वतंत्र मजदूर पक्ष (Independent Lab our Party) के जनरल सेक्रेटरी और बाद में अध्यक्ष नियुक्त किये गए थे। वे बाबासाहब के विश्वास पात्र थे।
अफसोस है, बाबू हरदास लम्बी उम्र नहीं जी सकें। वे मात्रा 35 वर्स की अल्पायु में ही चल बसे थे। किन्तु इतने कम समय में वे इतना काम कर गए कि लोग उनका नाम लेना गर्व का सबब समझते हैं। सच है, इतिहास गढ़ने के लिए लम्बी उम्र की दरकार नहीं होती?
बाबू हरदास का जन्म जन. 6, 1904 को कामठी (नागपुर) महाराष्ट्र के महार परिवार में हुआ था। उनके पिता लक्ष्मणराव नगरारे रेल्वे में क्लर्क के पद पर थे। हरदास ने मेट्रिक की पढ़ाई सन् 1920 मेें पटवर्धन हाई स्कूल नागपुर से उत्तीर्ण की थी। हरदास की पत्नी का नाम सहुबाई था। इनका विवाह 16 वर्ष की उम्र में हुआ था।
हरदास ने 17 साल की उम्र में दलित समाज में सामाजिक चेतना जाग्रत करने के लिए सन् 1921 में ‘महारठा’ नामक साप्ताहिक का प्रकाशन नागपुर में शुरू किया। काम बीड़ी कामगारों का शोषण रोकने यह बाबू हरदास ही थे जिसने कोऑपरेटीव आधार पर बीड़ी बनवाने की व्यवस्था आरम्भ की। आपने दलित महिलाओं को इस हेतु ट्रेनिंग देने के लिए नागपूर में एक महिला आश्रम स्थापित किया था।
बाबू हरदास ने महार समाज को संगठित करने के निमित्त सन् 1922 में एक संगठन तैयार किया था। वे इसके महासचिव थे। हिन्दू अत्याचारों से समाज के लोगों की रक्षा करने इन्होंने ‘महार सेवक संघ‘ नामक एक यूवाओं को स्वयं-सेवी संगठन बनाया था। बाबू हरदास चाहते थे कि डिप्रेस्ड कास्ट में जितनी जातियां आती हैं, वे सब एक बेनर के नीचे आएं। दरअसल, वे इन जातियों में उप-जाति की बाधा खत्म करना चाहते थे। सन्त चोखामेला की पुन्य-तिथि के समारोह में वे इन सभी उप-जातियों के लोगों को आमत्रित कर सह-भोज का आयोजन करते थे।
सन् 1923 में बाबू हरदास ने मध्य-प्रान्त और बरार के वायसराय से आग्रह किया था कि विधान-परिषद, डिस्ट्रिक लोकल बोर्ड और नगरपालिकाओं में डिप्प्रेस्ड क्लॉस के लोगों को नामित कर उन्हें प्रतिनिधत्व दिया जाए ताकि विघायिका और कार्यपालिका में उनकी सहभागिता सुनिश्चित हो सकें। सन् 1924 की अवधि में बाबू हरदास ने कामटी और नागपुर में महार समाज के लोगों के लिए कई रात्रि-कालीन विद्यालय खोलें। कामटी में आपने सन्त चोखामेला पुस्तकालय खोला था। वे हर प्रकार के अन्ध-विश्वास, सड़ी-गली परम्पराओं के विरूद्ध थे। इस निमित्त इन्होंने अक्टू. 1924 में ‘मण्डल महात्मे‘ नामक एक पुस्तक लिखकर समाज के लोगों में वितरित की। इसी प्रकार ‘वीर बालक‘ नामक एक नाटक का मंचन भी किया था।
सन् 1927 में बाबू हरदास ने मूर्ति-पूजा के विरूद्ध रामटेक(नागपुर) में एक सभा, किशन फागुजी बन्सोड़ की अध्यक्षता में आयोजित की थी, जो उस समय के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता थे। इस सभा में हरदास बाबू ने समाज के लोगों को आव्हान किया कि वे मदिर की सीढ़ियों पर लेटना छोड़ दे और साथ ही अम्बादा तालाब के गंदे पानी में न नहाएं। यद्यपि, आपने नाशिक के कालाराम मंदिर-प्रवेश के लिए चल रहे सत्याग्रह में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करने अपने आदमियों का एक दल 2 मार्च 1930 को भेजा था।
डिप्रेस्ड क्लासेस की कन्फ्रेन्स जो नागपुर में 8 अग. 1930 को हुई थी, के आयोजन में मुख्य भूमिका बाबू हरदास की थी। सनद रहे, इस कन्फ्रेन्स की अध्यक्षता बाबासाहेब अम्बेडकर ने स्वयं की थी। इस कन्फ्रेन्स में डिप्रेस्ड क्लासेस के लिए ‘पृथक चुनाव’ की मांग का प्रस्ताव पारित हुआ था। कन्फ्रेन्स में ऑल इण्डिया डिप्रेस्ड-क्लासेस फेडेरेशन का गठन हुआ था जिसका अध्यक्ष मद्रास के राव साहेब मूनिस्वामी पिल्लई को बनाया गया था। बाबू हरदास इसके सयुंक्त सचिव निर्वाचित हुए थे।
सन 1930 में ही ‘म. प्र. बीड़ी मजदूर संघ’ की स्थापना हुई थी जिसके सचिव बाबू हरदास और अध्यक्ष रामचन्द्र फुले थे। सन 1932 में ऑल इण्डिया डिप्रेस्ड क्लासेस फेडेरेशन का दूसरा अधिवेशन कामटी 7-8 मई का हुआ था। इस समय फेडरेशन की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का चुनाव हुआ था जिसमे वाइस प्रेसिडेन्ट एम. बी. मलिक बंगाल, एलए एन. हरदास को सचिव, स्वामी अच्छूतानन्द लखनउ को संयुक्त सचिव चुना गया था।
बाबू हरदास सन् 1936 में सीपी. एण्ड बरार के ‘इन्डीपेन्डेन्ट लेबर पार्टी’ के सचिव निर्वाचित हुए थे। आपने सन् 1937 में नागपुर-कामटी सुरक्षित क्षेत्र असेम्बली से चुनाव लड़ा था और निर्वाचित हुए थे। सन् 1938 में आप ‘इन्डीपेन्डेन्ट लेबर पार्टी’ सीपी. एण्ड बरार के अध्यक्ष नामित हुए थे।
जन. 1935 को कामटी में ‘समता संगठन’ की एक बड़ी सभा में बाबू हरदास ने ‘जयभीम’ का नारा दिया था। इसमें ‘भीम’ शब्द बाबासाहेब आम्बेडकर के मूल नाम ‘भीमराव’ को दर्शाता था। इस जयघोष का आशय था- बाबासाहेब भीमरॉव अम्बेडकर की जय हो, विजय हो। सभा द्वारा हर्ष-ध्वनि से अनुमोदन किया गया था कि जो लोग देश में समता, स्वतंत्राता और बन्धुता की स्थापना में विश्वास रखते हैं, वे इनके प्रणेता बाबासाहेब अम्बेडकर का जयघोष इस अभिवादन से करें। यह ऐतिहासिक सत्य है कि ‘जय-भीम’ सम्बोधन जो बुद्धिस्ट-आम्बेडकरियों के बीच मेल-मुलाकात के अवसर पर जयघोष किया जाता है, के प्रणेता बाबू हरदास ही थे जिन्होंने सन् 1937 में इसका सार्वजनिक प्रयोग एक भरी सभा में किया था।
12 जन. 1939 को आपने 35 साल की अल्प अवधि में दलित समाज को अलविदा कर एक ऐसा रास्ता दिखाया जिस पर चलने को समाज का बच्चा-बच्चा गर्व की अनुभूति करता है।
उनके निधन से समाज की अपूर्णीय क्षति हुई। बाबू हरदास की शव यात्रा में लाखों लोग शरीक हुए थे। उन्हें कन्हान नदी के तट पर भारतीय सेना की भूमि पर दफनाया गया था। तब सेना की और से आब्जेक्शन लिया गया था। किन्तु बाद में मिलट्री हेड आफिस जबलपुर से अनुमति ले कर वहां एक बड़ा स्मारक बनाया गया। अब इस स्थान पर संक्रांति के दिन विशाल मेला लगता है, जिस में दलित जनता अपने प्रिय नेता को श्रध्दांजलि अर्पित करती है।
No comments:
Post a Comment