Friday, April 27, 2018

बुद्ध की दृष्टि में स्त्री

आनंद- "भगवान! स्त्रियों के सम्बन्ध में हमें कैसा बर्ताव करना चाहिए ?"
तथागत- "उन्हें देखो मत। "
आनंद- "अगर देखने की विवशता आ पड़े तो ?"
तथागत-  "उनसे बोलो मत। "
आनंद- "यदि वे ही हम से बोलने लगे तो ?"
तथागत- " शील पालन में सतर्क रहो ।"

उक्त प्रसंग सुत्तपिटक का है।  सुत्तपिटक, जो बौद्ध ग्रंथों में प्रमुख है, के महापरिनिब्बान सुत्त में उक्त कथानक आया है। इस कथानक के अनुसार महापरिनिर्वाण के कुछ ही क्षणों पूर्व बुद्ध ने अपने प्रमुख शिष्य आनंद को स्त्रियों के लिए 'अदर्शन' और 'असंलाप' की बात की थी।

इस तारतम्य में, बाबासाहब डा अम्बेडकर कहते  हैं कि ये ग्रंथ बौद्ध चिंतन शैली के लिए एकदम अपरिचित एवं अकल्पित, पुराण-पंथी मान्यताओं से भरे दिखाई देते हैं। इन में मूल विचारों को ब्राह्मणशाही ढंग से इस प्रकार तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया है कि जो लोग बौद्ध-शिक्षाओं के तत्व को जानते हैं, उन्हें उपलब्ध ग्रन्थ देखकर आश्चर्य होता है।"

डा अम्बेडकर के कथनानुसार, कई तथ्य हैं,जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि अनेक कथानकों के साथ यह कथानक भी भिक्खुओं द्वारा कालांतर में प्रक्षिप्त किया गया। यह सुविदित तथ्य है कि तथागत के महापरिनिर्वाण के 400 वर्षों तक ति-पिटक मौखिक ही रहा। दूसरे,  बुद्ध के समय ही उनके वचनों को तोड़-मरोड़ कर प्रचारित करने की घटनाएं होती रही हैं । एक और महत्वपूर्ण बात, जिन्होंने इसका संकलन और संपादन किया, वे भिक्खु थे। निस्संदेह, स्त्री संसर्ग से दूरी उनके लिए यथार्थ और आदर्श थी ।

डा अम्बेडकर  के अनुसार, कालामो को दिए गए बुद्ध उपदेश की कसौटी की तर्ज पर हम यह जांचे कि क्या ऐसे प्रश्न करना आनंद के लिए अभीष्ट थे ? ति-पिटक ग्रंथों में ऐसे कई प्रसंग हैं, जहाँ महिलाएं, आनंद के उपदेश से भाव-विभोर हो जाती हैं और जैसे ही आनंद चुप होते हैं, वे उदास हो जाती हैं। उनका व्यक्तित्व ही ऐसा था।  श्रद्धालु स्त्रियों से मिलना आनंद के लिए सामान्य बात थी। दूसरे, तथागत स्वयं भी स्त्रियों से मिलने में परहेज नहीं करते थे।

विशाखा ने, जो बुद्ध के प्रमुख शिष्यों में एक थी, क्या तथागत से दर्शन और संलाप किए बिना इतना बड़ा सम्मान का पद प्राप्त कर लिया था। राजनर्तकी अम्बपाली, जो स्वयं तथागत के पास गई थी और भिक्खुओं को भोजन के लिए अपने घर आमंत्रित किया था, क्या बुद्ध अथवा भिक्खुओं ने उससे कोई परहेज किया था ?  महाप्रजापति गौतमी 500 स्त्रियों को लेकर तथागत के पास धम्म का उपेदश लेने पहुंची थी,  क्या उन्हें देखकर बुद्ध भाग खड़े हुए थे ? महाराजा प्रसेनजित की महारानी मल्लिका का भगवान के उपदेश सुनने की लिए जब-तब उनके पास जाने का उल्लेख बौद्ध ग्रंथों में यहाँ-वहां मिलता है।

उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि बुद्ध, स्त्रियों से मिलने परहेज नहीं करते थे और न ही स्त्रियां उनके पास आने से डरती अथवा संकोच करती थी। इसके विपरीत उन्होंने भिक्खुओं से कहा था की वे समयानुकूल स्त्रियों को माता-बहन या पुत्री के रूप में देखें।

जहाँ तक स्त्रियों को घर से बेघर हो, प्रवज्या लेने की बात है अथवा भिक्खुनी-संघ को भिक्खु-संघ के अधीन रखने का मसला, दोनों हो प्रसंगों में बुद्ध की यह कतई देशना नहीं थी कि स्त्रियां पुरुषों से किसी भी मामले में कमतर हैं। आनंद के प्रश्न के उत्तर में तथागत ने स्पष्ट कहा था कि स्त्रियां निर्वाण का सुख प्राप्त करने की समान हकदार हैं। दरअसल,  बुद्ध के सामने व्यवहारिक कठिनाई थी। भिक्खु-संघ आचार और धम्म के मामले में अनुभवी था। किन्तु नई भिक्खुणियों को प्रशिक्षित किए जाने की जरुरत थी। दूसरे, स्त्री-पुरुष में एक-दूसरे के प्रति स्वाभाविक यौन आकर्षण के मद्देनजर यह आवश्यक था कि भिक्खुणियों का संघ भिक्खु-संघ से पृथक रहे(सन्दर्भ- भारतीय नारी का उत्थान और पतन: डा. बी. आर. आंबेडकर )।
  

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