Wednesday, October 3, 2012

सोहलियत का धर्म

                        सोहलियत  का धर्म

"तुम्हारा नाम क्या है ?" - सामने सोफे पर बैठी लडकी की तरफ मुखातिब हो कर मैंने कहा।
"प्रज्ञा।" - लडकी ने टी वी से ध्यान बिना हटाए जवाब दिया।
"आप यहाँ क्या कर रही है ?"
"आई ए एस की तैयारी ।" - लडकी की नजरे अब भी टी वी पर जमी थी।
"पिछले दिनों भी शायद, आप लोगों से मुलाकात हुई थी  ?"
"जी, पापा-मम्मी के साथ हम लोग माउंट आबू गए थे।"
"तफरीह के लिए ..?"
"जी नहीं, राधास्वामी वालों का कोई कार्यक्रम हुआ था।"
"राधास्वामी ! .. क्या तुम लोग राधास्वामी वालों को मानते हो ?"
"जी हाँ, मम्मी-पापा मानते हैं।"
"तो क्या तुम हिन्दू  हो ?" -  मैंने आश्चर्य से पूछा।
"जी।" लडकी ने सहजता से जवाब दिया।
"यानि घर में  'ॐ जय जगदिश हरे'  की आरती होती है ?"
"जी।"
"और तुम्हारे यहाँ शादी भी हिन्दू रीती-रिवाज से होती है ?" - मैंने अपने आश्चर्य को सम्भालते हुए कहा।
"जी नहीं, जैसे बाबा भीम वगैरे का फोटो लगाते हैं ... वैसे ही होती है।"  - लडकी ने मुझे समझाने के अंदाज में कहा।
मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि तुम क्या कह रही हो ? ......तुम आई ए एस की कोचिंग कर रही हो ? तुम्हारे पिताजी एक बहुत बड़े अधिकारी है और ...तुम ऐसा कैसे कह सकती हो ?" - मैंने खुद को अजीब-सी स्थिति में फंसा देख कहा।
"जी ?" - लडकी ने टी वी से नजरे हटा कर मेरी ओर देखते हुए कहा।
"यानि तुम, ये कहना चाहती हो कि तुम लोग अपनी सोहलियत के हिसाब से हिन्दू और बुद्धिस्ट बन जाते  हो ?" - मैंने थोडा इरिटेट होते हुए कहा।
"जी, हम ने कभी ऐसा नहीं सोचा।"  -लडकी ने मेरे इरीटेशन पर ध्यान न देते हुए पुन: नजरे टी वी पर गड़ा दी ।






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