बुद्ध के समकालीन जैन तीर्थंकर वर्द्धमान को सर्वज्ञ, सर्वदर्शी कहा जाता था। इसका प्रभाव पीछे बुद्ध के अनुयायियों पर भी पड़े बिना नहीं रहा । तो भी बुद्ध स्वयं सर्वज्ञता के ख्याल के विरुद्ध थे(राहुल सांकृत्यायन : बौद्ध संस्कृति : पृ 56)।
"सुतं मेतं, भन्ते- समणो गोतमो सब्बञ्ञू् सब्बदस्सावी।"
‘‘मैने ऐसा(मे-एतं) सुना(सुतं) है, भन्ते! समण गौतम सर्वज्ञ(सब्बञ्ञू् ), सर्वदर्शी(सब्बदस्सावी) हैं।
अपरिसेसं ञाणदस्सनं पटिजानाति।
निखिल(अपरिसेसं ) ज्ञान-दर्शन(ञाणदस्सनं) का दावा करते(पटिजानाति) हैं।
चरतो च मे तिट्ठतो च सुत्तस्स च जागरस्स च सततं समितं ञाणदस्सनं पच्चुपट्ठितं।
चलते(चरतो), खड़े(तिट्ठतो), सोते(सुत्तस्स) जागते(जागरस्स) निरन्तर(सततं) सदा ज्ञान-दर्शन उपस्थित(पच्चुपट्ठितं) रहता है।
कच्चि ते, भन्ते, भगवतो वुत्तवादिनो।
क्या भन्ते! ऐसा कहने वाले (ते) भगवान के प्रति(भगवतो) यथार्थ कहने वाले हैं?
न च भगवन्तं अभूतेन अब्भाचिक्खन्ति?"
कहीं, वे भगवान की असत्य(अभूतेन) से निन्दा तो नहीं करते?’’- वच्छगोत्त परिब्बाजक ने बुद्ध से पूछा।
"ये ते, वच्छ, एवमाहंसु- समणो गोतमो सब्बञञू .
वत्स! जो कोई(ये ते) मुझे ऐसा कहते (एवं-आहंसु) हैं- समण गोतम सर्वज्ञ हैं;
न मे ते वुत्तवादिनो, वे(ते) मेरे बारे में(मे) यथार्थ कहने वाले(वुत्तवादिनो) नहीं(न) हैं।
अब्भाचिक्खन्ति च पन मं असता अभूतेन।"
वह असत्य से मेरी(मं) निन्दा ही करते(अब्भाचिखन्ति) हैं।’’ -बुद्ध ने कहा(स्रोत- तेविज्जवच्छगोत्त सुत्तः मज्झिम निकाय)। प्रस्तुति- अ. ला. ऊके
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कच्चि - संदेहार्थक अव्यय
अब्भाचिक्खति- दोषारोपण/ निंदा करना (अब्भाक्खाति )
"सुतं मेतं, भन्ते- समणो गोतमो सब्बञ्ञू् सब्बदस्सावी।"
‘‘मैने ऐसा(मे-एतं) सुना(सुतं) है, भन्ते! समण गौतम सर्वज्ञ(सब्बञ्ञू् ), सर्वदर्शी(सब्बदस्सावी) हैं।
अपरिसेसं ञाणदस्सनं पटिजानाति।
निखिल(अपरिसेसं ) ज्ञान-दर्शन(ञाणदस्सनं) का दावा करते(पटिजानाति) हैं।
चरतो च मे तिट्ठतो च सुत्तस्स च जागरस्स च सततं समितं ञाणदस्सनं पच्चुपट्ठितं।
चलते(चरतो), खड़े(तिट्ठतो), सोते(सुत्तस्स) जागते(जागरस्स) निरन्तर(सततं) सदा ज्ञान-दर्शन उपस्थित(पच्चुपट्ठितं) रहता है।
कच्चि ते, भन्ते, भगवतो वुत्तवादिनो।
क्या भन्ते! ऐसा कहने वाले (ते) भगवान के प्रति(भगवतो) यथार्थ कहने वाले हैं?
न च भगवन्तं अभूतेन अब्भाचिक्खन्ति?"
कहीं, वे भगवान की असत्य(अभूतेन) से निन्दा तो नहीं करते?’’- वच्छगोत्त परिब्बाजक ने बुद्ध से पूछा।
"ये ते, वच्छ, एवमाहंसु- समणो गोतमो सब्बञञू .
वत्स! जो कोई(ये ते) मुझे ऐसा कहते (एवं-आहंसु) हैं- समण गोतम सर्वज्ञ हैं;
न मे ते वुत्तवादिनो, वे(ते) मेरे बारे में(मे) यथार्थ कहने वाले(वुत्तवादिनो) नहीं(न) हैं।
अब्भाचिक्खन्ति च पन मं असता अभूतेन।"
वह असत्य से मेरी(मं) निन्दा ही करते(अब्भाचिखन्ति) हैं।’’ -बुद्ध ने कहा(स्रोत- तेविज्जवच्छगोत्त सुत्तः मज्झिम निकाय)। प्रस्तुति- अ. ला. ऊके
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कच्चि - संदेहार्थक अव्यय
अब्भाचिक्खति- दोषारोपण/ निंदा करना (अब्भाक्खाति )
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