Friday, December 29, 2017

सील

सील(शील) का अर्थ है, सदाचार। सील का अर्थ है, उच्च नैतिक आचरण। एक उपासक अथवा सामणेर के लिए सील सामान्यतः ‘निदेशक-तत्व’ होते हैं जबकि भिक्खु अथवा भिक्खुनी के लिए वे ‘नियम’ होते हैं। वह उन्हें तोड़ नहीं सकता अन्यथा संबंधित अपराध के दंड का भागी होता है। एक व्यक्ति सील पर प्रतिष्ठित हो, एक अच्छा व्यक्ति बन सकता है।

सील, जीवन जीने का मापदण्ड हैं। सवाल है, जीवन जीने का मापदण्ड क्यों होना चाहिए? इसलिए कि व्यक्ति जान सकें कि कितने मापदण्डों पर वह खरा है। और यही वह सोपान है, जहां धम्म की आवश्यकता होती है। अगर धम्म न हो तो एक गृहस्थ को अथवा भिक्खु को कैसे पता चले कि समाज/संघ में रहने के लिए उसे कैसे रहना चाहिए? किन मापदण्डों का पालन करना है?

सील मापदण्ड है, सामाजिक अथवा संघ के प्रत्येक सदस्य की सहभागिता का। अगर आप अकेले किसी निर्जन स्थान में रहते हैं, तो इस तरह के किसी मापदण्ड की आवश्यकता नहीं।

बौद्ध समाज में अलग-अलग वर्ग के लिए अलग-अलग मापदण्ड है- 1. गृहस्थों के लिए- पंचसील। खास अवसरों यथा अष्टमी, पूर्णिमा पर अष्टसील। सामणेरों के लिए दस सील और भिक्खु तथा भिक्खुणियों के लिए क्रमश: 227/322 सील बतलाएं गए हैं।

भिक्खु और भिक्खुणियों के सीलों को विनय में ‘पातिमोक्ख’ कहते हैं।
जीवहिंसा से विरत रहना, वेरमणी सील है। किन्तु यह मात्र निषेधात्मक नहीं है। इसका विधिपक्ष भी है। प्राणी मात्र के प्रति करुणा इसका विधायक पक्ष है। थेरवादी परम्परा में इसके निषेध पर, विरति पर अधिक जोर है। वहीं, महायान परम्परा में इसके विधायक पक्ष पर, करुणा पर जोर है।
प्रस्तुति- अ. ला. ऊके 

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