पद्म भूषण डा.कर्मवीर भाऊराव पाटिल का जन्म 22 सित 1887 को महाराष्ट्र के कम्भोज जिला कोल्हापुर में था। इनके पिताजी का नाम पैगोउनडा पाटिल और माता का नाम गंगूबाई था। भाउराव के पिताजी ईस्ट इण्डिया कम्पनी के रेवन्यू विभाग में सरकारी मुलाजिम थे। भाऊराव पाटिल का पैतृक निवास येतावड़े बुद्रुक जिला सांगली था।
भाउराव का जन्म जैन परिवार में हुआ था। परन्तु जैनियों के संस्कार भाऊराव में नहीं थे। जैन धर्म के नियमों को एक तरफ रखते हुए भाऊराव एक दूसरे ही रास्ते पर चल पड़े थे। यह रास्ता अशिक्षित पद-दलित जातियों की शिक्षा का था।
बचपन से ही भाउराव पाटिल अलग स्वभाव के थे। वे किसी भी तरह का अन्याय बर्दाश्त नहीं कर पाते थे। फिर वह अन्याय दूसरों पर ही क्यों न हो रहा हो। एक बार कुए में लगी पानी खींचने की राड और पुली उसने इसलिए तोड़ कर फैंक दी थी कि दलित जाति की महिलाओं को वहां पानी खींचने मना किया जाता था ।
भाउराव पाटिल की प्रारंभिक शिक्षा विटा, जिला सांगली में सम्पन्न हुई। आगे की पढाई के लिए भाऊराव को कोल्हापुर के 'राजाराम हाई स्कूल' में भर्ती किया गया। हाई स्कूल की पढ़ाई के दौरान बालक के दिलों-दिमाग पर रियासत के महाराजा राजश्री शाहू महाराज के सामाजिक कार्यों का गहरा असर पड़ा था। कोल्हापुर के महाराजा राजश्री शाहू महाराज ने अपने राज्य की दलित और पिछड़ी जातियों की शिक्षा के लिए अलग से स्कूल और होस्टल खोले थे। क्योंकि, सामान्य स्कूलों में उच्च जाति के लोग इन्हें पढने से रोकते थे ।
इसके पहले, सामाजिक क्षेत्र में काम करते हुए महामना ज्योतिराव फुले ने इन पद-दलित जातियों की शिक्षा के लिए दरवाजे खोले थे। सामाजिक समता के लिए फुले ने 'सत्य शोधक समाज' की स्थापना की थी । भाऊराव पाटिल इसके प्रमुख सदस्य थे।
दलित और पिछड़ी जातियों की शिक्षा के लिए महर्षि विट्ठल रामजी शिंदे ने भी अपने तई काफी काम किया था। बाबा साहब आंबेडकर, जो उस समय दलितों के मसीहा के रूप में उभरे थे, के कार्यों से भाऊराव पाटिल बेहद प्रभावित थे। समाज सुधारकों के द्वारा किए गए इन कार्यों का प्रभाव भाऊराव के मन-मस्तिष्क पर गहरा पड़ा था ।
ट्यूशन पढ़ाने के दौरान सतारा में रहते हुए भाऊराव पाटिल ने 'सत्य शोधक समाज ' के उद्देश्यों की पूर्ति के निमित्त अपने कुछ सहयोगियों के साथ बच्चों का एक होस्टल खोला। होस्टल में भर्ती के लिए किसी जाति/धर्म का बंधन नहीं था। कुछ ही समय बाद 4 अक्तू 1919 को भाऊराव पाटिल ने बहुजन की शिक्षा के लिए 'रयत शिक्षण संस्था' की स्थापना की। रयत अर्थात बहुजन। ऐसी शिक्षण संस्था जिस में बिना किसी जाति-भेदभाव के प्रवेश दिया जाता हो।
भाऊराव पाटिल, गांधीजी के अनुयायी थे। गांधीजी के नेतृत्व में जो आजादी का आन्दोलन चला था, भाऊराव पाटिल ने उस में हिस्सेदारी की थी। गांधीजी भी भाऊराव पाटिल के इन कार्यों से बहुत प्रसन्न थे। यही कारण है कि सतारा के उक्त हास्टल का नाम 25 फरवरी 1927 को गांधीजी के हाथों 'श्री छत्रपति शाहू बोर्डिंग हाउस' रखा गया था। आर्थिक सहयोग के रूप में गाँधी ने 'हरिजन सेवक फंड से इस होस्टल को प्रति वर्ष 500/- रूपये देना स्वीकार किया था। भाऊराव पाटिल ने अपने द्वारा खोले गए 100 से अधिक स्कूलों के नाम गांधीजी के नाम पर रखे थे। गांधीजी से प्रेरणा ले कर वे खुद खादी वस्त्र पहनते थे।
भाऊराव पाटिल ने 'महाराजा सयाजीराव हाई स्कूल' की स्थापना की थी, जो सतारा में था। यह अपने तरह का पहला नि: शुल्क आवासीय स्कूल था जिसकी स्थापना ' अर्न और लर्न' ( earn aur learn) के थीम पर की गई थी। इसके बाद की अवधि में भाऊराव पाटिल के द्वारा पूरे महाराष्ट्र में बहुत सारे स्कूल/ कालेज खोले गए। सन 1947 में भाऊराव ने सतारा में 'छत्रपति शिवाजी कालेज' की स्थापना की। इसी कड़ी में 'सद्गुरु गाडगे बाबा कालेज' की स्थापना करद में सन 1954 में की।
भाउराव पाटिल का कहना था कि समाज का यह जो गरीब तबका है, इसके पिछड़ने का कारण अशिक्षा है। उन्होंने इस मजदूर वर्ग को नारा दिया - 'कमाओ और शिक्षा प्राप्त करो'(Earn and learn)। आपने सतारा के काले नामक स्थान में सन 1919 दौरान जिस 'रयत शिक्षण संस्था' की नीवं रखी थी । आज इस शिक्षण संस्था के पास करीब 700 होस्टल हैं जिन में करीब 4,50,000 विद्यार्थी संस्था के विभिन्न स्कूल और कालेजों में शिक्षा प्राप्त करते हैं।
यह बात नहीं कि भाऊराव पाटिल का ध्यान सिर्फ अशिक्षितों की शिक्षा पर ही केन्द्रित था। बल्कि , वे शिक्षकों पर भी ध्यान दे रहे थे जिन की जरुरत इन अशिक्षित बच्चों को पढ़ाने के लिए आवश्यक थी। उस समय शिक्षकों की भारी कमी थी। इस कमी को भरने के लिए 'मौलाना अबुल कलाम आजाद' की स्मृति में कर्मवीर
भाऊराव पाटिल ने ' आजाद कालेज ऑफ़ एजुकेशन' की स्थापना सन 1955 में की।
महाराष्ट्र शासन ने भाऊ राव पाटिल के द्वारा समाज के लिए की गई उनकी सेवाओं को याद करते हुए उन्हें 'कर्मवीर' की मानद उपाधि से सम्मानित किया। भारत सरकार ने भी सन 1959 में उन्हें राष्ट्रीय सम्मान देते हुए 'पद्म भूषण' से अलंकृत किया। इसी वर्ष पूना विश्व विद्यालय ने उन्हें 'डी लिट्' की उपाधि से नवाजा। लीक से हट कर चलते हुए इस महान हस्ती दबे-कुचलों की शिक्षा के लिए जो कार्य किया, इतिहास याद रखेगा।
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* भाउराव पाटिल के एक घनिष्ट मित्र गणदेव ध्रुवनाथ घोलप थे। घोलप महार जाति से आते हैं। ये मुंबई विधान सभा के सदस्य बने थे।
भाउराव का जन्म जैन परिवार में हुआ था। परन्तु जैनियों के संस्कार भाऊराव में नहीं थे। जैन धर्म के नियमों को एक तरफ रखते हुए भाऊराव एक दूसरे ही रास्ते पर चल पड़े थे। यह रास्ता अशिक्षित पद-दलित जातियों की शिक्षा का था।
बचपन से ही भाउराव पाटिल अलग स्वभाव के थे। वे किसी भी तरह का अन्याय बर्दाश्त नहीं कर पाते थे। फिर वह अन्याय दूसरों पर ही क्यों न हो रहा हो। एक बार कुए में लगी पानी खींचने की राड और पुली उसने इसलिए तोड़ कर फैंक दी थी कि दलित जाति की महिलाओं को वहां पानी खींचने मना किया जाता था ।
भाउराव पाटिल की प्रारंभिक शिक्षा विटा, जिला सांगली में सम्पन्न हुई। आगे की पढाई के लिए भाऊराव को कोल्हापुर के 'राजाराम हाई स्कूल' में भर्ती किया गया। हाई स्कूल की पढ़ाई के दौरान बालक के दिलों-दिमाग पर रियासत के महाराजा राजश्री शाहू महाराज के सामाजिक कार्यों का गहरा असर पड़ा था। कोल्हापुर के महाराजा राजश्री शाहू महाराज ने अपने राज्य की दलित और पिछड़ी जातियों की शिक्षा के लिए अलग से स्कूल और होस्टल खोले थे। क्योंकि, सामान्य स्कूलों में उच्च जाति के लोग इन्हें पढने से रोकते थे ।
इसके पहले, सामाजिक क्षेत्र में काम करते हुए महामना ज्योतिराव फुले ने इन पद-दलित जातियों की शिक्षा के लिए दरवाजे खोले थे। सामाजिक समता के लिए फुले ने 'सत्य शोधक समाज' की स्थापना की थी । भाऊराव पाटिल इसके प्रमुख सदस्य थे।
दलित और पिछड़ी जातियों की शिक्षा के लिए महर्षि विट्ठल रामजी शिंदे ने भी अपने तई काफी काम किया था। बाबा साहब आंबेडकर, जो उस समय दलितों के मसीहा के रूप में उभरे थे, के कार्यों से भाऊराव पाटिल बेहद प्रभावित थे। समाज सुधारकों के द्वारा किए गए इन कार्यों का प्रभाव भाऊराव के मन-मस्तिष्क पर गहरा पड़ा था ।
ट्यूशन पढ़ाने के दौरान सतारा में रहते हुए भाऊराव पाटिल ने 'सत्य शोधक समाज ' के उद्देश्यों की पूर्ति के निमित्त अपने कुछ सहयोगियों के साथ बच्चों का एक होस्टल खोला। होस्टल में भर्ती के लिए किसी जाति/धर्म का बंधन नहीं था। कुछ ही समय बाद 4 अक्तू 1919 को भाऊराव पाटिल ने बहुजन की शिक्षा के लिए 'रयत शिक्षण संस्था' की स्थापना की। रयत अर्थात बहुजन। ऐसी शिक्षण संस्था जिस में बिना किसी जाति-भेदभाव के प्रवेश दिया जाता हो।
भाऊराव पाटिल, गांधीजी के अनुयायी थे। गांधीजी के नेतृत्व में जो आजादी का आन्दोलन चला था, भाऊराव पाटिल ने उस में हिस्सेदारी की थी। गांधीजी भी भाऊराव पाटिल के इन कार्यों से बहुत प्रसन्न थे। यही कारण है कि सतारा के उक्त हास्टल का नाम 25 फरवरी 1927 को गांधीजी के हाथों 'श्री छत्रपति शाहू बोर्डिंग हाउस' रखा गया था। आर्थिक सहयोग के रूप में गाँधी ने 'हरिजन सेवक फंड से इस होस्टल को प्रति वर्ष 500/- रूपये देना स्वीकार किया था। भाऊराव पाटिल ने अपने द्वारा खोले गए 100 से अधिक स्कूलों के नाम गांधीजी के नाम पर रखे थे। गांधीजी से प्रेरणा ले कर वे खुद खादी वस्त्र पहनते थे।
भाऊराव पाटिल ने 'महाराजा सयाजीराव हाई स्कूल' की स्थापना की थी, जो सतारा में था। यह अपने तरह का पहला नि: शुल्क आवासीय स्कूल था जिसकी स्थापना ' अर्न और लर्न' ( earn aur learn) के थीम पर की गई थी। इसके बाद की अवधि में भाऊराव पाटिल के द्वारा पूरे महाराष्ट्र में बहुत सारे स्कूल/ कालेज खोले गए। सन 1947 में भाऊराव ने सतारा में 'छत्रपति शिवाजी कालेज' की स्थापना की। इसी कड़ी में 'सद्गुरु गाडगे बाबा कालेज' की स्थापना करद में सन 1954 में की।
भाउराव पाटिल का कहना था कि समाज का यह जो गरीब तबका है, इसके पिछड़ने का कारण अशिक्षा है। उन्होंने इस मजदूर वर्ग को नारा दिया - 'कमाओ और शिक्षा प्राप्त करो'(Earn and learn)। आपने सतारा के काले नामक स्थान में सन 1919 दौरान जिस 'रयत शिक्षण संस्था' की नीवं रखी थी । आज इस शिक्षण संस्था के पास करीब 700 होस्टल हैं जिन में करीब 4,50,000 विद्यार्थी संस्था के विभिन्न स्कूल और कालेजों में शिक्षा प्राप्त करते हैं।
यह बात नहीं कि भाऊराव पाटिल का ध्यान सिर्फ अशिक्षितों की शिक्षा पर ही केन्द्रित था। बल्कि , वे शिक्षकों पर भी ध्यान दे रहे थे जिन की जरुरत इन अशिक्षित बच्चों को पढ़ाने के लिए आवश्यक थी। उस समय शिक्षकों की भारी कमी थी। इस कमी को भरने के लिए 'मौलाना अबुल कलाम आजाद' की स्मृति में कर्मवीर
भाऊराव पाटिल ने ' आजाद कालेज ऑफ़ एजुकेशन' की स्थापना सन 1955 में की।
महाराष्ट्र शासन ने भाऊ राव पाटिल के द्वारा समाज के लिए की गई उनकी सेवाओं को याद करते हुए उन्हें 'कर्मवीर' की मानद उपाधि से सम्मानित किया। भारत सरकार ने भी सन 1959 में उन्हें राष्ट्रीय सम्मान देते हुए 'पद्म भूषण' से अलंकृत किया। इसी वर्ष पूना विश्व विद्यालय ने उन्हें 'डी लिट्' की उपाधि से नवाजा। लीक से हट कर चलते हुए इस महान हस्ती दबे-कुचलों की शिक्षा के लिए जो कार्य किया, इतिहास याद रखेगा।
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* भाउराव पाटिल के एक घनिष्ट मित्र गणदेव ध्रुवनाथ घोलप थे। घोलप महार जाति से आते हैं। ये मुंबई विधान सभा के सदस्य बने थे।
कृपया। कर्मवीर भ.पा. इन्क कविता भेजे।
ReplyDeleteThis imformation is very impartant for studant
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