धम्मपद
बौद्धों का धम्मपद एक सर्व कालिक, सर्वाग्राही ग्रन्थ है। जिस तरह तमाम असहजता के बावजूद कबीर की साखियों को जब तब उद्धरित किया जाता है, ठीक उसी प्रकार धम्मपद की गाथाएं भी उद्धरित की जाती है। इसमें पंथ-सम्प्रदाय और धर्म विशेष का कोई लेना-देना नहीं है।
बौद्धों में तो धम्मपद को, एक पवित्र धर्म-ग्रन्थ का दर्जा प्राप्त है। यह वन्दनीय है, पूजनीय है। कई बुद्ध विहारों में तो श्रद्धा और सम्मान के साथ 'धम्मपदोत्सव' मनाया जाता है। यह 10 दिन का भी हो सकता है और सम्पूर्ण वर्षावास का भी। बुद्ध विहारों में इसका संगायन किया जाता है और भंते या धम्म प्रचारक फिर उस पर देशना करते हैं।
ऐतिहासिक और महत्ता की दृष्टी से देखें तो ति-पिटक ग्रंथों से यह उतना महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ नहीं है। ति-पिटक अर्थात तीन पिटक- 1. सुत्त पिटक 2. विनय पिटक और 3. अभिधम्म पिटक। फिर, सुत्तपिटक में 5 ग्रन्थ हैं- 1. दीघनिकाय 2. मज्झिम निकाय 3. संयुत्त निकाय 4. अंगुत्तर निकाय और 5. खुद्दक निकाय। दीघनिकाय, मज्झिम निकाय, संयुत्त निकाय और अंगुत्तर निकाय तो बड़े विशाल ग्रन्थ हैं और इनके कई भाग-अनुभाग हैं किन्तु पांचवे खुद्दक निकाय एक न होकर इसमें छोटे-बड़े कुल 15 ग्रन्थ हैं- 1. खुद्दक पाठ 2. धम्मपद 3. उदान 4. इतिवुत्तक 5. सुत्तनिपात 6. विमानवत्थु 7. पेतवत्थु 8. थेरगाथा 9. थेरीगाथा 10. जातक 11. निद्देश 12. पतिसम्मिदा मग्ग 13. अपदान 14. बुद्धवंश, 15.चरियापिटक।
धम्मपद में 423 गाथाएं 26 वर्गों में विभक्त हैं- 1. यमक वग्ग 2. अप्पमाद वग्ग 3. चित्त वग्ग 4. पुप्फ़ वग्ग 5. बाल वग्ग 6. पंडित वग्ग 7. अरहंत वग्ग 8. सहस्स वग्ग 9. पाप वग्ग 10. दंड वग्ग 11. जरा वग्ग 12. अत्त वग्ग 13. लोक वग्ग 14. बुद्ध वग्ग 15. सुख वग्ग 16. पिय वग्ग 17. कोध वग्ग 18. मल वग्ग 19. धम्मट्ठ वग्ग 20. मग्ग वग्ग 21. पकिण्णक वग्ग 22. निरय वग्ग 23. नाग वग्ग 24. तण्हा वग्ग 25. भिक्खु वग्ग 26. ब्राह्मण वग्ग।
धम्मपद, सुभाषित मानी गई कुछ गाथाओं का संग्रह है, जो ति-पिटक ग्रंथों से ली गई है। ये गाथाएं इतनी सुभाषित और सर्वग्राही हैं कि राहुल सांकृत्यायन के शब्दों में, संसार की सारी सभ्य भाषाओँ में इसके अनुवाद हो चुके हैं(पालि साहित्य का इतिहास)। इस पर टीकाएँ, अनु-टीकाएँ, टीकाओं पर टीकाएँ लब्ध-प्रतिष्ठित देश और विदेश की कई हस्तियों ने की हैं। बाबासाहब अम्बेडकर ने अपनी अमर कृति 'बुद्धा एंड हिज धम्मा' में कई स्थानों पर धम्मपद से उद्धरण लिए हैं।
आरम्भ में 4 निकाय थे- दीघ, मज्झिम, संयुत्त और अंगुत्तर निकाय(ति-पिटक, उत्पत्ति और विकास : डॉ सुरेन्द अज्ञात )। प्राचीन अभिलेखों में 'चतु निकायिक'(चार निकायों ) का ही प्रयोग हुआ है। बुद्धघोष भी सुत्त पिटक के चार निकायों को ही स्वीकारते हैं- 'सुत्तन्तरपिटके चतस्सो संगतियो' (निदान कथा :सुमंगलविलासनी)। निस्संदेह, पांचवा निकाय, जिसे खुद्दक निकाय कहते हैं, बाद का है और बुद्ध वचन के रूप में इसके अंतर्गत आने वाले 15 ग्रंथों की प्रमाणिकता संदेह के परे नहीं है। डॉ भरतसिंह उपाध्याय ने धम्मपद सहित इन 15 ग्रंथों को दूसरे दर्जे का माना है(ति-पिटक में धम्मपद का स्थान, पृ. 38)।
बुद्ध ने न सिर्फ लोक भाषा के अन्यथा संस्कृत में उनके कथन को उद्धरित करने का निषेध किया वरन छंदोबद्ध पद्य-मय रूप से उनके उपदेशों को कहने सचेत किया (संयुत्त निकाय भाग- 1: पृ 308 )। इसी तरह बुद्ध ने अन्य उपदेश में छंदोबद्ध कविताओं व पद्यों को धम्म के लिए बड़ा भावी-भय और उसे नष्ट करने वाला बताया है(अंगुत्तर निकाय भाग- 2: पृ 326)। लेकिन धम्मपद सहित सारा खुद्दक निकाय काव्य-मय है, जिसमें भावुकता, पौराणिकता और हवाई कल्पना का भण्डार है। हम देखते हैं कि हमारे दैनिक जीवन में, आचार-संहिता के नाम पर हों या बुद्ध वंदना के नाम पर अथवा पूजा-पाठ की परितं गाथाएं; सारी की सारी छंदों-बद्ध पद्य-मय रचनाएँ हैं। ब्रह्मा, देवता, यक्ष, राक्षस सारे ब्राह्मणिक कल्पित पात्र स्वर्ग-नरक का भय दिखाते हुए हमारे घर और बुद्ध-विहारों में विराजमान हैं। भंते, मजे से इनका संगायन करते हैं और उपासक-उपसिकाएं परित्राण-पाठ के बाद सत्यनारायण की कथा की तरह हाथ में सूत्र बांध बाहर निकलते हैं !
धम्मपद के सर्वमान्य होने का कारण इसमें 'ब्राहमण महिमा' का बखान है. कोई भी ग्रन्थ जो ब्राह्मण के गुण गाए, 'सर्वमान्य' न होने से कैसे रह सकता ? धम्मपद का पूरा का पूरा एक परिच्छेद 'ब्राह्मण वग्गो', 'ब्राह्मण श्रेष्ठता' के लिए समर्पित है। इसमें 'ब्राह्मण हत्या' को धिक्कारा गया है- 'धि ब्राह्मणस्स हन्तारं'। प्रतीत होता है, बुद्ध के ब्राह्मण सावक, 'समण-ब्राह्मण' के रूप में अपनी शाख बचाने सफल हो गए।
बौद्धों का धम्मपद एक सर्व कालिक, सर्वाग्राही ग्रन्थ है। जिस तरह तमाम असहजता के बावजूद कबीर की साखियों को जब तब उद्धरित किया जाता है, ठीक उसी प्रकार धम्मपद की गाथाएं भी उद्धरित की जाती है। इसमें पंथ-सम्प्रदाय और धर्म विशेष का कोई लेना-देना नहीं है।
बौद्धों में तो धम्मपद को, एक पवित्र धर्म-ग्रन्थ का दर्जा प्राप्त है। यह वन्दनीय है, पूजनीय है। कई बुद्ध विहारों में तो श्रद्धा और सम्मान के साथ 'धम्मपदोत्सव' मनाया जाता है। यह 10 दिन का भी हो सकता है और सम्पूर्ण वर्षावास का भी। बुद्ध विहारों में इसका संगायन किया जाता है और भंते या धम्म प्रचारक फिर उस पर देशना करते हैं।
ऐतिहासिक और महत्ता की दृष्टी से देखें तो ति-पिटक ग्रंथों से यह उतना महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ नहीं है। ति-पिटक अर्थात तीन पिटक- 1. सुत्त पिटक 2. विनय पिटक और 3. अभिधम्म पिटक। फिर, सुत्तपिटक में 5 ग्रन्थ हैं- 1. दीघनिकाय 2. मज्झिम निकाय 3. संयुत्त निकाय 4. अंगुत्तर निकाय और 5. खुद्दक निकाय। दीघनिकाय, मज्झिम निकाय, संयुत्त निकाय और अंगुत्तर निकाय तो बड़े विशाल ग्रन्थ हैं और इनके कई भाग-अनुभाग हैं किन्तु पांचवे खुद्दक निकाय एक न होकर इसमें छोटे-बड़े कुल 15 ग्रन्थ हैं- 1. खुद्दक पाठ 2. धम्मपद 3. उदान 4. इतिवुत्तक 5. सुत्तनिपात 6. विमानवत्थु 7. पेतवत्थु 8. थेरगाथा 9. थेरीगाथा 10. जातक 11. निद्देश 12. पतिसम्मिदा मग्ग 13. अपदान 14. बुद्धवंश, 15.चरियापिटक।
धम्मपद में 423 गाथाएं 26 वर्गों में विभक्त हैं- 1. यमक वग्ग 2. अप्पमाद वग्ग 3. चित्त वग्ग 4. पुप्फ़ वग्ग 5. बाल वग्ग 6. पंडित वग्ग 7. अरहंत वग्ग 8. सहस्स वग्ग 9. पाप वग्ग 10. दंड वग्ग 11. जरा वग्ग 12. अत्त वग्ग 13. लोक वग्ग 14. बुद्ध वग्ग 15. सुख वग्ग 16. पिय वग्ग 17. कोध वग्ग 18. मल वग्ग 19. धम्मट्ठ वग्ग 20. मग्ग वग्ग 21. पकिण्णक वग्ग 22. निरय वग्ग 23. नाग वग्ग 24. तण्हा वग्ग 25. भिक्खु वग्ग 26. ब्राह्मण वग्ग।
धम्मपद, सुभाषित मानी गई कुछ गाथाओं का संग्रह है, जो ति-पिटक ग्रंथों से ली गई है। ये गाथाएं इतनी सुभाषित और सर्वग्राही हैं कि राहुल सांकृत्यायन के शब्दों में, संसार की सारी सभ्य भाषाओँ में इसके अनुवाद हो चुके हैं(पालि साहित्य का इतिहास)। इस पर टीकाएँ, अनु-टीकाएँ, टीकाओं पर टीकाएँ लब्ध-प्रतिष्ठित देश और विदेश की कई हस्तियों ने की हैं। बाबासाहब अम्बेडकर ने अपनी अमर कृति 'बुद्धा एंड हिज धम्मा' में कई स्थानों पर धम्मपद से उद्धरण लिए हैं।
आरम्भ में 4 निकाय थे- दीघ, मज्झिम, संयुत्त और अंगुत्तर निकाय(ति-पिटक, उत्पत्ति और विकास : डॉ सुरेन्द अज्ञात )। प्राचीन अभिलेखों में 'चतु निकायिक'(चार निकायों ) का ही प्रयोग हुआ है। बुद्धघोष भी सुत्त पिटक के चार निकायों को ही स्वीकारते हैं- 'सुत्तन्तरपिटके चतस्सो संगतियो' (निदान कथा :सुमंगलविलासनी)। निस्संदेह, पांचवा निकाय, जिसे खुद्दक निकाय कहते हैं, बाद का है और बुद्ध वचन के रूप में इसके अंतर्गत आने वाले 15 ग्रंथों की प्रमाणिकता संदेह के परे नहीं है। डॉ भरतसिंह उपाध्याय ने धम्मपद सहित इन 15 ग्रंथों को दूसरे दर्जे का माना है(ति-पिटक में धम्मपद का स्थान, पृ. 38)।
बुद्ध ने न सिर्फ लोक भाषा के अन्यथा संस्कृत में उनके कथन को उद्धरित करने का निषेध किया वरन छंदोबद्ध पद्य-मय रूप से उनके उपदेशों को कहने सचेत किया (संयुत्त निकाय भाग- 1: पृ 308 )। इसी तरह बुद्ध ने अन्य उपदेश में छंदोबद्ध कविताओं व पद्यों को धम्म के लिए बड़ा भावी-भय और उसे नष्ट करने वाला बताया है(अंगुत्तर निकाय भाग- 2: पृ 326)। लेकिन धम्मपद सहित सारा खुद्दक निकाय काव्य-मय है, जिसमें भावुकता, पौराणिकता और हवाई कल्पना का भण्डार है। हम देखते हैं कि हमारे दैनिक जीवन में, आचार-संहिता के नाम पर हों या बुद्ध वंदना के नाम पर अथवा पूजा-पाठ की परितं गाथाएं; सारी की सारी छंदों-बद्ध पद्य-मय रचनाएँ हैं। ब्रह्मा, देवता, यक्ष, राक्षस सारे ब्राह्मणिक कल्पित पात्र स्वर्ग-नरक का भय दिखाते हुए हमारे घर और बुद्ध-विहारों में विराजमान हैं। भंते, मजे से इनका संगायन करते हैं और उपासक-उपसिकाएं परित्राण-पाठ के बाद सत्यनारायण की कथा की तरह हाथ में सूत्र बांध बाहर निकलते हैं !
धम्मपद के सर्वमान्य होने का कारण इसमें 'ब्राहमण महिमा' का बखान है. कोई भी ग्रन्थ जो ब्राह्मण के गुण गाए, 'सर्वमान्य' न होने से कैसे रह सकता ? धम्मपद का पूरा का पूरा एक परिच्छेद 'ब्राह्मण वग्गो', 'ब्राह्मण श्रेष्ठता' के लिए समर्पित है। इसमें 'ब्राह्मण हत्या' को धिक्कारा गया है- 'धि ब्राह्मणस्स हन्तारं'। प्रतीत होता है, बुद्ध के ब्राह्मण सावक, 'समण-ब्राह्मण' के रूप में अपनी शाख बचाने सफल हो गए।
- अ. ला. ऊके @ amritlalukey.blogspot.com
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