Sunday, September 1, 2019

किलिंग ऑफ़ अम्बेडकर थाट्स

किलिंग ऑफ़ अम्बेडकर थाट्स
विपस्सना हो या परित्राण पाठ, यह बुद्ध की देशना नहीं है. जो लोग इस तरह की बात करते हैं, वे अम्बेडकर के साथ-साथ बुद्ध के विचारों की हत्या करते हैं. बुद्ध कतई ऐसे नहीं है. बुद्ध का चिंतन, दर्शन कतई ऐसा नहीं है. बुद्ध आँख बंद करने की नहीं, आँख खोलने की बात करते हैं. 'कालाम सुत्त' आँख खोलने की बात करता है. 
गोयनकाजी ने बुद्ध को पारम्परिक हिन्दू सोच से पकड़ा. उनकी दृष्टि अम्बेडकरवादी नहीं थी. गोयनकाजी ने बुद्ध को किसी बीमारी के 'उपचार' के रूप में पकड़ा. जबकि अम्बेडकर ने उसे सामाजिक परिवर्तन का 'घोषणा-पत्र' कहा. गोयनकाजी की एप्रोच एक 'बीमार' की सोच है, जबकि अम्बेडकर की सोच एक 'युग दृष्टा' की सोच है. विपस्सना से मन को साधना वैसे ही है जैसे बाबा रामदेव के योगा से बिमारियों को ठीक करना।
बुद्ध के सम्बन्ध में पारम्परिक सोच का पर्दाफाश करने ही तो बाबासाहब अम्बेडकर ने 'बुद्धा एंड हिज धम्मा' लिखा. 'बुद्धा एंड हिज धम्मा' विपस्सना का कतई प्रचार नहीं करता. उलटे, गर्हा करता है. दरअसल, आम्बेडकर थाट्स को धीमे जहर से मारने का नाम है, विपस्सना. अम्बेडकरवादियों के उबलते खून को फ्रिज करने का नाम है, विपस्सना.
विपस्सना से सामाजिक 'समरसता' की बात करना ठीक वैसे ही है जैसे रामचरित मानस पाठ से 'रामराज्य' की स्थापना करना.

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