प्रेम और दया
एक दिन बुद्ध वेलुवन जा रहे थे। मार्ग में उन्होंने एक ब्राह्मण को देखा जो नहा-धोकर मन्त्र पढ़ते हुए अच्छत(चावलों के दाने) धरती और आकाश की ओर बिखेर रहा था। बुद्ध के पूछने पर उसने बताया-
"मैं देवों और पितरों को अच्छत चढ़ा रहा हूँ ताकि वे मेरा कल्याण कर सकें।"
" तो ब्राह्मण ! तुम उस हेतु अपने चारों ओर प्रेम और दया क्यों नहीं बिखेरते ?
एक दिन बुद्ध वेलुवन जा रहे थे। मार्ग में उन्होंने एक ब्राह्मण को देखा जो नहा-धोकर मन्त्र पढ़ते हुए अच्छत(चावलों के दाने) धरती और आकाश की ओर बिखेर रहा था। बुद्ध के पूछने पर उसने बताया-
"मैं देवों और पितरों को अच्छत चढ़ा रहा हूँ ताकि वे मेरा कल्याण कर सकें।"
" तो ब्राह्मण ! तुम उस हेतु अपने चारों ओर प्रेम और दया क्यों नहीं बिखेरते ?
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