सनातनी पारंपरिक और वामपंथी ब्राह्मण वेदों को सबसे प्राचीन, लगभग 3500 वर्ष पुराने मानते हैं। क्या वेद दुनिया का सबसे प्राचीन ग्रन्थ है ?
नवीनत्तम खोजों से यह स्थापित हो चूका है कि बेबीलोन, सीरिया, मिस्र या ईरान की संस्कृति वैदिक संस्कृति से बहुत अधिक पुरानी है। 'एपिक ऑफ़ गिलगमेश', 'पैपिरस पांडुलिपियाँ' या 'डेड सी स्क्रोल्स' लगभग 3000-3500 वर्ष पुराने दुनिया के सबसे प्राचीन आलेख पुरातत्ववेत्ताओं को प्राप्त हुए हैं (पृ 57)। ये आलेख मिस्र, रसशाम्र और असीरियाई इलाकों में मिले हैं।
पिछले कुछ दशकों से सवर्ण वामपंथी वैदिक समाज की प्राचीनता के पूर्वाग्रह और मोह में मोहनजोदड़ो- हड़प्पा को वैदिक साबित करने की कवायद में लगे हैं। लन्दन के ब्रिटिश संग्रहालय में असीरियाई कीलाक्षर लिखित पकाई मिटटी की पट्टिकाएं हैं इनमें से अनेक सुमेर संस्कृति के समय की हैं(पृ 60 )।
बेबीलोन भारत की ब्राहमण संस्कृति से बहुत ज्यादा प्राचीन है। मिस्री संस्कृति के विशेषज्ञ जी. मास्पेरो ने उन्नीसवी सदी के अंत में इजिप्ट के प्राचीनत्तम साहित्य का अध्ययन किया था। मास्पेरो ने प्राचीन पत्र, कविताओं और एक उपन्यास या प्राचीन कथाकृति के अंश अपनी किताब 'न्यू लाइट ऑन एशियंट इजिप्ट' में उध्दृत किये हैं(पृ 61)।
निश्चय ही अब्राहमीय ब्राह्मण पश्चिम एशिया में मिस्र से लेकर कैस्पियन सागर और असीरिया क्षेत्र से गुजरते हुए युद्धों की अशांति से संत्रस्त होकर भारत आएt, उनकी किताबों में उक्त समूचे इलाके के लेखन और मिथकों की छायाएं मौजूद रहनी स्वाभाविक है(पृ 61)।
आर्यों के भारत में आने के पूर्व सिन्धु-उपत्यका में असीरिया(मेसोपोटामिया) की समसामयिक एक सभी जाति रहती थी जिसका सामंत शाही समाज अफगानिस्तान में दाखिल होने वाले आर्यों के पितृ-सत्तात्मक समाज से कहीं अधिक उन्नत अवस्था में था(दर्शन दिग्दर्शन पृ 381: राहुल संकृत्यायन पृ 380 )।
असभ्य लड़ाकू जर्मनों ने जैसे सभ्य संस्कृत रोमनों और उनके विशाल साम्राज्य को ईसा की चौथी शताब्दी में परस्त कर दिया, उसी तरह सर जान मार्शल के अनुसार, इन आर्यों ने सिन्धु-उपत्यका के नागरिकों को परस्त कर वहां अपना प्रभुत्व 18 00 ई.पू के आस-पास जमाया। यूरोपीय इतिहासकारों के अनुसार, यह वही समय है पश्चिम में भी हिंदी-यूरोपीय जाति की दूसरी शाखा यूनानियों ने यूनान में वहां के भूमध्य जातीय निवासियों को हराकर प्रभुत्व स्थापित किया(वही)।
मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाइयों से जो 'सिन्धु-सभ्यता' उभर कर आयी है, उससे पता चलता है कि मेसोपोटामिया के नागरिक जीवन की भांति सिन्धुवासी भी सभ्य समाज के नागरिक जीवन को बिता रहे थे। वह कृषि, शिल्प, वाणिज्य के अभ्यस्त व्यवसायी थे। ताम्र और पीतल युग में रहते हुए भी उन्होंने काफी उन्नति की थी। उनका एक सांगोपांग धर्म था। एक तरह की चित्रलिपि थी। यद्यपि चित्रलिपि में जो मुद्राएँ और दूसरी लेख-सामग्री मिली हैं, अभी वह पढ़ी नहीं जा सकी है, लेकिन दूसरी परीक्षाओं से मालूम होता है कि सिन्धु-सभ्यता असुर और काल्दी(Chaldean) सभ्यता की समसामयिक ही नहीं उनकी भगिनी-सभ्यता थी और उसी तरह के धर्म का ख्याल उसमें था। वहां लिंग और दूसरे देव-चिन्ह या देव-मूर्तियाँ पूजी जाती थी(वही, पृ 381 )।
नवीनत्तम खोजों से यह स्थापित हो चूका है कि बेबीलोन, सीरिया, मिस्र या ईरान की संस्कृति वैदिक संस्कृति से बहुत अधिक पुरानी है। 'एपिक ऑफ़ गिलगमेश', 'पैपिरस पांडुलिपियाँ' या 'डेड सी स्क्रोल्स' लगभग 3000-3500 वर्ष पुराने दुनिया के सबसे प्राचीन आलेख पुरातत्ववेत्ताओं को प्राप्त हुए हैं (पृ 57)। ये आलेख मिस्र, रसशाम्र और असीरियाई इलाकों में मिले हैं।
पिछले कुछ दशकों से सवर्ण वामपंथी वैदिक समाज की प्राचीनता के पूर्वाग्रह और मोह में मोहनजोदड़ो- हड़प्पा को वैदिक साबित करने की कवायद में लगे हैं। लन्दन के ब्रिटिश संग्रहालय में असीरियाई कीलाक्षर लिखित पकाई मिटटी की पट्टिकाएं हैं इनमें से अनेक सुमेर संस्कृति के समय की हैं(पृ 60 )।
बेबीलोन भारत की ब्राहमण संस्कृति से बहुत ज्यादा प्राचीन है। मिस्री संस्कृति के विशेषज्ञ जी. मास्पेरो ने उन्नीसवी सदी के अंत में इजिप्ट के प्राचीनत्तम साहित्य का अध्ययन किया था। मास्पेरो ने प्राचीन पत्र, कविताओं और एक उपन्यास या प्राचीन कथाकृति के अंश अपनी किताब 'न्यू लाइट ऑन एशियंट इजिप्ट' में उध्दृत किये हैं(पृ 61)।
निश्चय ही अब्राहमीय ब्राह्मण पश्चिम एशिया में मिस्र से लेकर कैस्पियन सागर और असीरिया क्षेत्र से गुजरते हुए युद्धों की अशांति से संत्रस्त होकर भारत आएt, उनकी किताबों में उक्त समूचे इलाके के लेखन और मिथकों की छायाएं मौजूद रहनी स्वाभाविक है(पृ 61)।
आर्यों के भारत में आने के पूर्व सिन्धु-उपत्यका में असीरिया(मेसोपोटामिया) की समसामयिक एक सभी जाति रहती थी जिसका सामंत शाही समाज अफगानिस्तान में दाखिल होने वाले आर्यों के पितृ-सत्तात्मक समाज से कहीं अधिक उन्नत अवस्था में था(दर्शन दिग्दर्शन पृ 381: राहुल संकृत्यायन पृ 380 )।
असभ्य लड़ाकू जर्मनों ने जैसे सभ्य संस्कृत रोमनों और उनके विशाल साम्राज्य को ईसा की चौथी शताब्दी में परस्त कर दिया, उसी तरह सर जान मार्शल के अनुसार, इन आर्यों ने सिन्धु-उपत्यका के नागरिकों को परस्त कर वहां अपना प्रभुत्व 18 00 ई.पू के आस-पास जमाया। यूरोपीय इतिहासकारों के अनुसार, यह वही समय है पश्चिम में भी हिंदी-यूरोपीय जाति की दूसरी शाखा यूनानियों ने यूनान में वहां के भूमध्य जातीय निवासियों को हराकर प्रभुत्व स्थापित किया(वही)।
मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाइयों से जो 'सिन्धु-सभ्यता' उभर कर आयी है, उससे पता चलता है कि मेसोपोटामिया के नागरिक जीवन की भांति सिन्धुवासी भी सभ्य समाज के नागरिक जीवन को बिता रहे थे। वह कृषि, शिल्प, वाणिज्य के अभ्यस्त व्यवसायी थे। ताम्र और पीतल युग में रहते हुए भी उन्होंने काफी उन्नति की थी। उनका एक सांगोपांग धर्म था। एक तरह की चित्रलिपि थी। यद्यपि चित्रलिपि में जो मुद्राएँ और दूसरी लेख-सामग्री मिली हैं, अभी वह पढ़ी नहीं जा सकी है, लेकिन दूसरी परीक्षाओं से मालूम होता है कि सिन्धु-सभ्यता असुर और काल्दी(Chaldean) सभ्यता की समसामयिक ही नहीं उनकी भगिनी-सभ्यता थी और उसी तरह के धर्म का ख्याल उसमें था। वहां लिंग और दूसरे देव-चिन्ह या देव-मूर्तियाँ पूजी जाती थी(वही, पृ 381 )।
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