Monday, September 2, 2019

बुद्धा एंड हिज धम्मा

बुद्धा एंड हिज धम्मा'
'बुद्धा एंड हिज धम्मा' बाबासाहब डॉ अम्बेडकर का अप्रतिम ग्रन्थ है. यह एक परिणति है, जो बुद्धचरित, उनके दर्शन के प्रति, बाबासाहब क्या सोचते थे, को दर्शाता है. ति-पिटक में हजारों ग्रन्थ हैं. डॉ अम्बेडकर की दृष्टि में उन अन्यन्य ग्रंथों का निचोड़ 'बुद्धा एंड हिज धम्मा' है.
बुद्ध हमारे पथ-प्रदर्शक हैं. बुद्धिज़्म, जैसे कि बाबासाहब अम्बेडकर ने बतलाया, हमारे लिए जीवन जीने का एक ढंग है. अगर बाबासाहब हमें बुद्ध के बारे न बतलाते, तो बुद्ध हमारे लिए अपरिचित थे. हमारा प्रथम नमन बुद्ध को नहीं, बाबासाहब अम्बेडकर को है. बुद्ध हमारे लिए जीवन मार्गदाता हैं, जबकि बाबासाहब अम्बेडकर हमारे लिए मुक्तिदाता है.
बुद्धिज़्म के विभिन्न निकायों में, प्रारंभ से ही मतभेद रहें हैं. दरअसल, मतभेद के कारण ही विभिन्न निकाय हुए। बुद्धिज़्म, अपनी जन्म-भूमि से अवनत होने के बाद, अन्यन्य देशों में फैला, वहां की संस्कृति में रचा-बसा। 1956 में जब बाबासाहब अम्बेडकर ने बुद्धिज़्म को इस देश में पुनर्स्थापित किया, तब, बुद्धिस्ज्म बिलकुल भी वैसा नहीं था, जैसे बुद्ध ने देशना की थी। ब्राह्मणवाद उसे पूरी तरह निगल चूका था जैसे कबीर, रैदास आदि कई सामाजिक चितकों को निगल चूका है. ऐसी परिस्थिति में, बाबासाहब अम्बेडकर ने अन्य बुद्धिस्ट देशों से सहायता मांगी। बाबासाहब अम्बेडकर को बुद्धचरित तो मिला, उनका दर्शन भी मिला किन्तु वह उन देशों की संस्कृति और परम्पराओं को भी जाने-अनजाने साथ लाया जो उन देशों में प्रचलित हैं। 'परित्राण-पाठ' और 'विपस्सना' आदि क्रियाएं हमारी संस्कृति और संस्कारों का हिस्सा बन गई.
वर्षों की खोज, अध्ययन और चिंतन के बाद बाबासाहब अम्बेडकर, बुद्ध को ब्राह्मणवाद के चंगुल से अलग करने सफल हुए। उनके इसी प्रयास का नाम 'बुद्धा एंड हिज धम्मा' है। इसी ग्रन्थ में बाबासाहब अम्बेडकर ने बतलाया है कि बुद्ध के नाम पर प्रचलित मत-मतान्तरों, धारणाओं और परम्पराओं में क्या सही है, क्या गलत है ? यथा, हम अपने पडोसी देश सिंहलद्वीप की तरह बुद्ध के दांत के नाम पर पहाड़ की पूजा नहीं कर सकते ? बाबासाहब अम्बेडकर कृत 'बुद्धा एंड हिज धम्मा' हमारे लिए 'कालाम सुत्त' है। गोयनकाजी के विपस्सना केन्द्रों में 'बुद्धा एंड हिज धम्मा', जो अम्बेडकर अनुयायियों और धर्मान्तरित बौद्धों का पवित्र ग्रन्थ है, पर न तो बात होती है और न ही 'जय भीम' का अभिवादन किया जाता है। यहीं नहीं, इस तरह के आंबेडकर विरोधी संस्कारों से बौद्ध भिक्खुओं को प्रशिक्षित किया जाता है।
एक विपस्सी साधक, ध्यान रहे, 'साधक' और 'साधना' जैसे संस्कृति, धम्म में नहीं है; ने 'बुद्धा एंड हिज धम्मा' की यह कह आलोचना की है, कि अम्बेडकर ने बुद्ध के सिर्फ सामाजिक पहलू को पकड़ा है, जो कि भगवान् बुद्ध के धर्म का एक पहलू मात्र है. दूसरी ओर, बाबासाहब अम्बेडकर ही नहीं, चाहे पी. लक्ष्मी नरसू हो अथवा एडविन आर्नोल्ड, बुद्ध को मानवता का केंद्र कहते हैं, मानवता, जो सामाजिक रिश्तों को तय करती है।

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