Tuesday, September 3, 2019

नंदक सुत्त

एक समय भगवान बुद्ध सावत्थी में अनाथपिण्डीक से जेतवनाराम में विहार कर रहे थे। उस समय उपस्थानशाला में बैठे हुए आयु. नंदक भिक्खुओं को धार्मिक प्रवचन से शिक्षित कर रहे थे।
एकं समयं भगवा सावत्थियं विहरति जेतवने अनाथपिंडीकस्स आरामे। तेन खो पन समयेन आयस्मा नन्दको उपट्ठान सालायं भिक्खूनं धम्मिया कथाय संदस्सेति।
उस समय भगवान संध्या हो जाने पर एकांत सेवन से उठ जहाँ उपस्थानशाला थी, पहुंचे। वहां पहुँच कर नंदक के प्रवचन के समाप्त होने तक बाहर बरामदे में ही खड़े रहे।
अथ खो भगवा सायण्ह समये पटिसल्लाना वुट्ठितो येन उपट्ठानसाला तेनुपसंकमि।  उपसंकमित्वा बहि द्वारं कोट्ठके अट्ठासि कथा परियोसानं आगमयमानो।
जब भगवान ने जाना कि धार्मिक प्रवचन समाप्त हो गया तो वे जोर से खांसे और उन्होंने कुण्डी (सांकल) ख़ट खटायी। भिक्खुओं ने भगवान के लिए प्रवेश द्वार खोला।
अथ खो भगवा कथा परियोसानं विदित्वा उक्कासेत्वा अग्गळं आकोटेसि। विवरिन्सु खो ते भिक्खू भगवतो द्वारं।
तब भगवान उपस्थान शाला में प्रविष्ट हुए और बिछे आसन पर बैठे। बैठ चुकने पर भगवान ने आयु.  नंदक को यह कहा- "नंदक! तुमने भिक्खुओं को बड़ा लम्बा उपदेश दे दिया। धार्मिक प्रवचन की समाप्ति की प्रतीक्षा में द्वार के बाहर खड़े-खड़े मेरी पीठ दुखने लग गई।"
अथ खो भगवा उपट्ठान सालं पविसित्वा पञ्ञतासने निसीदि। निसज्ज खो भगवा आयस्मंतं नंदकं एतद वोच- "दीघो खो त्यायं, नंदक, धम्म परियायो भिक्खूनं पटिभासि। अपि मे पिट्ठि  आगिलायति बहि द्वार कोट्ठके  ठितस्स कथा परियोसानं  आगमयमानस्स।
ऐसा कहे जाने पर आयु. नंदक को लज्जा अनुभव हुई और वह दुक्ख प्रगट करते हुए बोले- "भंते! हम नहीं जानते थे कि भगवान बाहर बरामदे में खड़े हैं।  भंते यदि हम यह जानते कि आप बरामंदे में खड़े हैं, तो प्रवचन इतना लम्बा न होता।"
एवं वुत्ते आयस्मा नन्दको सारज्जमान रूपो भगवन्तं एतद वोच- "न खो पन मयं, भंते! जानाम, भगवा बहिद्वारं कोट्ठके ठितो। सचे हि मयं, भंते, जानेय्याम, भगवा बहिद्वार कोट्ठके ठितो, एत्तकं अपि नो न पटि-भासेय्य।"
भगवान ने जब यह देखा की आयु. नंदक लज्जा का अनुभव कर रहे हैं तो उन्होंने आयु. नंदक को कहा - "नंदक! बहुत अच्छा, बहुत अच्छा। साधु नंदक साधु। तुम्हारे जैसे कुलपुत्रों के लिए यही योग्य है कि तुम धार्मिक वार्ता करते रहो।"
अथ खो भगवा आयस्मंत नंदक सारज्जमान रूपं विदित्वा आयस्मंतं नंदकं एतद वोच- "साधु, साधु नंदक!  एतं खो नंदक, तुम्हाकं पतिरूप कुलपुत्तानं, यं तुम्हे धम्मिया कथाय संदस्सेय्याथ" (अ. नि.: नवक निपात) ।
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 संदस्सति- प्रशिक्षित करना।उक्कासेति- खांसना। अग्गळं - कुण्डी (सांकल) आकोटन- ख़ट खटाना।  आगिलायति- दर्द/ पीड़ा होना। 

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