'पालि' सीखना आवश्यक है.
भाषा, संस्कृति का हिस्सा है. बोल-भाषा और आचार-विचारों से ही संस्कृति का निर्माण होता है. हमारा देश बहु-भाषी देश है. निस्संदेह यहाँ संस्कृतियाँ अनेक हैं. हर समाज की अपनी भाषा और संस्कृति है.
भाषा, संस्कृति का हिस्सा है. बोल-भाषा और आचार-विचारों से ही संस्कृति का निर्माण होता है. हमारा देश बहु-भाषी देश है. निस्संदेह यहाँ संस्कृतियाँ अनेक हैं. हर समाज की अपनी भाषा और संस्कृति है.
पालि का सम्बन्ध जितना ति-पिटक से हैं, उससे कहीं अधिक सम्बन्ध बुद्ध की वाणी से है. पालि, बुद्ध की भाषा है. पालि बुद्ध के वचन है. आप पालि सीख कर बुद्ध वचनों को सीखते हैं.
जिस प्रकार, समाज और संस्कृति पर्यायवाची हैं, ठीक उसी प्रकार भाषा और संस्कृति पर्याय वाची है. आप संस्कृति से भाषा को अलग नहीं कर सकते. भाषा है तो संस्कृति है और संस्कृति है तो समाज है. और इसलिए बुद्ध को नष्ट करने के लिए सर्व-प्रथम उसकी भाषा अर्थात उसके ग्रंथों को जलाया गया. महीनों नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला, जगद्दल आदि बौद्ध विश्वविद्यालयों के विशाल ग्रंथालय जलते रहे.
पालि हमारी संस्कृति है, हमारी अस्मिता है. यह हमारी संस्कार-भाषा है. सारे बौद्ध संस्कार हमारे पालि में होते हैं और इसलिए, बाबासाहब अम्बेडकर द्वारा पुनर्स्थापित बुद्ध और उनके धम्म को बचाए रखना है, क्योंकि, तो पालि सीखना आवश्यक है.
पालि को जन-जन तक पहुँचाने की कार्य योजना-
पालि पढ़ाने की दिशा में बच्चों को पालि सीखाना सरल है. सामाजिक उत्थान की दिशा में कार्यरत हमारे लोगों द्वारा स्थान-स्थान पर कोचिंग क्लासेस लगा कर बच्चों को पढ़ाया जाता है. इसमें भाषा के तौर पर, पालि अतिरिक्त रूप से पढाई जा सकती है. प्रो. प्रफुल्ल गढ़पाल जैसे अधिकारी द्वारा वर्ग- 1 से वर्ग - 5 तक की पुस्तकें तैयार हैं. संस्कृत से अत्यंत सरल होने से प्रारंभिक स्तर पर पालि पढ़ाने किसी दक्षता की आवश्यकता नहीं है. स्मरण रहे, प्रो. गढ़पाल तत्सम्बंध में प्रशिक्षण के लिए बीच-बीच में 10 से 15 दिन के प्रशिक्षण शिविर आयोजित करते रहते हैं.
पालि को जन-जन तक पहुँचाने की कार्य योजना-
पालि पढ़ाने की दिशा में बच्चों को पालि सीखाना सरल है. सामाजिक उत्थान की दिशा में कार्यरत हमारे लोगों द्वारा स्थान-स्थान पर कोचिंग क्लासेस लगा कर बच्चों को पढ़ाया जाता है. इसमें भाषा के तौर पर, पालि अतिरिक्त रूप से पढाई जा सकती है. प्रो. प्रफुल्ल गढ़पाल जैसे अधिकारी द्वारा वर्ग- 1 से वर्ग - 5 तक की पुस्तकें तैयार हैं. संस्कृत से अत्यंत सरल होने से प्रारंभिक स्तर पर पालि पढ़ाने किसी दक्षता की आवश्यकता नहीं है. स्मरण रहे, प्रो. गढ़पाल तत्सम्बंध में प्रशिक्षण के लिए बीच-बीच में 10 से 15 दिन के प्रशिक्षण शिविर आयोजित करते रहते हैं.
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