Tuesday, November 29, 2011

हिन्दू मित्र की व्यथा

 पिछले दिनों, ट्रेन में सफ़र के दौरान एक मित्र से मुलाकात हुई। वे सपत्नीक थे। सफ़र के बीच एक बड़े-से स्टेशन में ट्रेन रुकी तो मित्र ने प्लेटफार्म से भोजन का पेकेट ले आया। तभी मुझे ध्यान आया कि घर में मैडम ने टिफिन रखने की बात कही थी। मैंने झट बैग टटोला और टिफिन निकाल कर भाभीजी के सामने रख दिया। घर का खाना स्वादिष्ट था। मित्र दम्पति को खूब भाया। बहरहाल, खाने के बाद चर्चा चल पड़ी ।  मित्र ने पूछा-
" सर, आपको बौद्ध धर्म का काफी  नाॅलेज है। आप, बौद्ध धर्म की कुछ खास बातें बताइये ?"
 "बुद्ध कहते हैं, कोई बात इसलिए मत मानों कि वह परम्परा से चली आ रही है, कोई बात इसलिए मत मानों कि वह किसी धर्म-ग्रन्थ में लिखी है। कोई बात इसलिए मत मानों कि वह किसी धर्म-गुरु ने कही है। बल्कि, इसलिए मानों कि वह तर्क की कसौटी पर खरी उतरती है, बहुजन-कल्याण की है और तुम्हारे बुद्धि को गम्य है." -मित्र की रूचि देख मैंने कहा।
"यह तो सचमुच आश्चर्यजनक है।"
मित्र फिर बोले-  सर, आप को हिन्दू धर्म-ग्रंथों का भी नाॅलेज है। आप, दोनों में क्या अंतर पाते हैं ?"
मैंने कहा-  अंतर तो बहुत है। जैन और बौद्ध धर्म वास्तव में, हिन्दू धर्म की तमाम बुराइयों के विरुध्द खड़े हुए थे.... ."
"सर, ये बताइये, आप ईश्वर को मानते है या नहीं ?"
 "नहीं।"
"ओह, बौध्द धर्म में ये सबसे बड़ी बुराई है. अब तो आप रहने दें. हमारी चर्चा अर्थपूर्ण हो नहीं सकती । " 

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