Thursday, April 19, 2018

बुद्ध


बुद्ध
समझता हूँ,  मैं तुझे मानव
और करता हूँ वंदन, तुझे
करता हूँ नमन
तेरी करुणा, मैत्री  और बंधुत्व को
अनुप्रेरित होता हूँ
तेरे अभिनिष्क्रमण से।

सम्बोधि प्राप्ति के बाद
तेरा गृह नगर आना
स्व-जनों के साथ
यसोधरा को सांत्वना देना
मैं समझता हूँ तुझे और
तेरी मानवीय गरिमा को।

तू चाहता
तो वट-वृक्ष बन सकता था
संघ के सारे अधिकार
अपने पास रख सकता था
किन्तु कालमो को
स्व-विवेक को सर्वोपरिय बता
तूने बौद्धिक स्वतंत्रता के
युग का प्रारंभ कर दिया।

तेरे अनित्यता का सिद्धांत
जमीनी हकीकत है
तभी तो पेड़ पौधों को, मैं
बढ़ते और खिलते देखता हूँ
परिवर्तन प्रकृति का नियम है
तभी तो हर दुख के बाद
सुख को लहलाते देखता हूँ।

पूजा तो
मैं भी करता हूँ
तेरी, तेरे प्रतिमा की
घर में/बुद्धविहार में ,
किन्तु
नहीं चाहता कुछ
जला कर मोमबत्ती तेरे चरणों में
प्रकाशित होता हूँ मैं
तूने ही तो कहा था-
'अत्त दीप भव'


-अ. ला. ऊके


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