Friday, July 13, 2018

ककच-उपम सुत्त (म. नि.)

जैसे भिक्खुओं, किसी गावं या नगर के पास
सेय्याथापि भिक्खवे, गामस्स वा निगमस्स वा अविदुरे
एरंड की झाड़ियों से आच्छादित बड़ा-सा शाल वन हो
एळण्डेहि सञ्छन्न महन्तं सालवनं। 
वहां कोई अर्थकारी हितकारी पुरुष आ जाए ।
तत्थ कोचि हितकामो अत्थकारी पुरिसो आगच्छेय्य। 
वह उस शालवन के ओज को अपहरण करने वाली
सो सालवनस्स ता ओजहरणियो
टेढ़ी-मेढ़ी लकड़ियों को काट कर बाहर ले जाए।
कुटिला साल-लट्ठियो तच्छेत्वा बहिधा निहरेय्य
वन के भीतरी भाग को अच्छी तरह साफ़ कर दे
अंतोवनं सु विसोधितं विसोधेय्य।
और जो शाल-शाखाएं सीधी सुन्दर हैं,
या पन ता साल-लट्ठियो उजुका सुजाता
उन्हें अच्छी तरह रखे।
ता सम्मा परिहरेय्य।
इस प्रकार भिक्खुओं, वह शाल वन
एवं च हेतं, भिक्खवे, सालवनं
बाद समय पीछे वृद्धि,विपुलता को प्राप्त हों।
अपरेन  समयेन वुद्धिं वेपुल्लं आपज्जेय्य।

ऐसे ही भिक्खुओं, तुम भी अकुशल विचारों को छोड़ो
एवमेव, खो भिक्खवे, तुम्हे अपि अकुसलं अपजहथ।
और कुशल विचारों की अभिवृद्धि के लिए प्रयत्न करो।
कुसलेसु  धम्मेसु आयोगं करोथ।
इससे तुमें भी इस धम्म विनय में
एवं हि तुम्हे पि इमस्मिं धम्म विनये
वृद्धि, वेपुलता प्राप्त होगी।
वुद्धिं वेपुल्लं आपज्जिस्सथ।
 (स्रोत- मज्झिम निकाय: ककच-उपम सुत्त)

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