Tuesday, July 16, 2019

अलविदा; राजा ढाले

दलित पेंथर' को फिर जिन्दा करने की जरुरत
दलित पेंथर के तीन सूत्रकारों में एक सूत्रकार राजा ढाले अंतत: चल बसे. काश, वे चन्द्रशेखर जैसे दलित योद्धाओं को यह बता गए होते कि क्यों कर उन्हें दलित पेंथर बनाना पड़ा था. हमें लगता है कि परिस्थितियां उससे भी आज ज्यादा खतरनाक हैं.
ढाले, ढसाल हों या अरुण कामले, अथवा पासवान, आठवले हों या उदित राज, क्रांति इनके बस में नहीं है. ये क्रांति को अपनी मौत मरते देखने वाले हैं.
एक दलित क्रन्तिकारी, किस-किस तरह के समझौते करता है, करने बाध्य होता है, राजा ढाले हो या ढसाल इसके उदहरण हैं. दलित पेंथर किस तरह खत्म हो गया, दलित आन्दोलनकारियों के लिए अन्वेषण का विषय है.
वर्त्तमान परिदृश्य में, तमाम शक्ति और सामर्थ्य के साथ लड़ने के बावजूद कितने ही दलित आन्दोलनकारी किस तरह चुनाव में खेत रहें, हम देख ही रहे हैं. 
तो भी हमारा सेल्यूट है, उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को. निस्संदेह, उनकी रचनाओं में जो उष्णता है, वह ठन्डे गोश्त में भी उबाल पैदा करती है.

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