Wednesday, June 27, 2018

विवेक और प्रज्ञा(मिलिन्द पञ्ह)

विवेक और प्रज्ञा
"ननु भंते, योनिसो मनसिकारो  येव पञ्ञा ?"
"भंते, विवेक और प्रज्ञा(ज्ञान) एक ही है न  ?"
"महाराज, अञ्ञ मनसिकारो, अञ्ञा पञ्ञा।"
महाराज, विवेक अलग है और प्रज्ञा अलग है .
"पसुना मनसिकारो अत्थि, पन पञ्ञा तेसं नत्थि।"
पशुओं में विवेक तो होता है किन्तु प्रज्ञा नहीं होती .
"मनुस्सानं मनसिकारो अपि च पञ्ञा दुवे सन्ति ।"
मानुषों में विवेक और प्रज्ञा दोनों होते हैं .
"किंं लक्खणो मनसिकारो, किंं लक्खणा  पञ्ञा ?"
क्या लक्षण हैं विवेक के और क्या लक्षण हैं प्रज्ञा के ?
"ऊहन(बोध हो जाना) लक्खणो खो महाराज, मनसिकारो,
बोध होना विवेक का लक्षण है, महाराज और
छेदन(काटना) लक्खणा पञ्ञा।"
काटना प्रज्ञा का लक्षण है।
स्रोत- मिलिंद पञ्ह

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