Friday, June 8, 2018

कुम्म सुत्त(सं.नि.)

भगवा एतद वोच-
कुम्मो कच्छपो,  भिक्खवे, सायण्ह समयं
भिक्खुओं! एक कछुआ, भिक्खुओं! सायंकाल
अनु-नदी-तीरे गोचर-पसुतो अहोसि।
नदी किनारे आहार की खोज में निकला हुआ था।
सिगालोपि खो, भिक्खवे, सायण्ह समयं
एक सियार भी भिक्खुओं! सायंकाल
अनु-नदी-तीरे गोचर-पसुतो अहोसि।
नदी किनारे आहार की खोज में निकला हुआ था।

अद्दसा खो भिक्खवे, कुम्मो कच्छवो
देखा, भिक्खुओं! कछुए ने
सिंगालं दूूरतोव गोचर-पसुतं।
सियार को दूर से ही आहार की खोज में निकले ।

दिस्वान सो अङगानि सके कपाले
देखते से ही अंगों को अपनी खोपड़ी में
समोदहित्वा तुण्हिभूतो अभवि ।
समेट कर निस्तब्ध हो गया।

सिंगालोपि खो भिक्खवे, अद्दसा कुम्मं कच्छपं दूरतोव।
सियार ने भी, भिक्खुओं! देखा कछुए को दूर से ही।

दिस्वान येन कुम्मो कच्छपो तेनुपसंकमि।
देखते से जहां कछुआ था, वहां गया।

उपसंकमित्वा कुम्मं कच्छपं पच्चुपट्ठितो अहोसि-
जा कर कछुए पर ताक लगाए खड़ा रहा-

यदायं कुम्मो कच्छपो
जैसे ही यह कछुआ
अपने सरीर का कोई न कोई अंग निकालेगा,
अङगानं अञ्ञतरं वा अञ्ञतरं वा अङग अभिनिन्नामेस्सति,
तदेव नं गहेत्वा उद्दालित्वा खादिस्सामि।
वैसे ही उसको(नं) पकड़ चिर-फाड़ कर मैं खा जाउंगा।

यदा खो भिक्खवे, कुम्मो कच्छपो
जब भिक्खुओं,  कछुए ने
अंगान अञ्ञतरं वा अञ्ञतरं वा अङगं न अभिनिन्नामि,
सरीर का कोई न कोई अंग नहीं निकाला,

अथ सिंगालो कुम्मम्हा निब्बिज्जं
तब सियार कछुए से विमुक्त हो
 पक्कामि, ओतारं अलभमानो।
लौट गया अवसर लाभ न लेने से।

एवमेव खो, भिक्खवे, तुम्हेपि मारो पापिमा
उसी प्रकार भिक्खुओं! तुम पर पापी मार
सततं समितं पच्चुपट्ठितो-
सतत सदैव ताक लगाए रहता है।

तस्मातिह, भिक्खवे, इन्द्रियेसु गुत्तद्वारा विहरथ।
इसलिए भिक्खुओ! (तुम ) इन्द्रियों के संयम में विहरो ।
तस्स संवराय पटिपज्जथ।
उसके संयम का अभ्यास करो।
 (स्रोत- चतुत्थ पण्णासक; सड़ायतन वग्गः संयुत्त निकाय: पृ. 524)।
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गोचर-पसुत-  चारा खाने में रत । (देखें- गाथा 181 : धम्मपदं)   निन्नामेति- झुकना ।
निब्बिज्जति- निर्वेद प्राप्त करना।                                              पक्कमति - वापिस लौटना।   
ओतार(उतराव )- अवसर।                                                        समोदहति- इकट्ठा करना।          
उद्दालेति- फाड़ डालना।                                                             समित- निरंतर, सदैव
गुत्तद्वारा- संयत इन्द्रियों में संयत                                               पटिपज्जति- अभ्यास करना, आचरण में लाना। 

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