Tuesday, June 19, 2018

बुद्ध की अहिंसा

बुद्ध हिंसा के विरुद्ध थे।  परन्तु वह न्याय के पक्ष में भी थे और जहाँ न्याय के लिए बल प्रयोग अपेक्षित होता है, वहां उन्होंने बल प्रयोग की अनुमति दी। यह बात जानने के बाद कि बुद्ध अहिंसा का प्रचार करते हैं , वैशाली के सेनाध्यक्ष सिंह सेनापति बुद्ध के पास गए और उनसे पूछा-

 "भगवन, अहिंसा का उपदेश देते हैं व प्रचार करते हैं।  क्या भगवन, एक दोषी को दंड से मुक्त करने व स्वतंत्रता देने का उपदेश देते और प्रचार करते हैं ? क्या भगवन यह उपदेश देते हैं कि  हमें अपनी पत्नियों, अपने बच्चों तथा अपनी संपत्ति को बचाने के लिए, उनकी रक्षा करने के लिए युद्ध नहीं करना चाहिए ? क्या अहिंसा के नाम पर हमें अपराधियों के हाथों कष्ट झेलते रहना चाहिए ? क्या तथागत उस समय भी युद्ध का निषेध करते हैं , जब वह सत्य और न्याय के हिट में हो ?

बुद्ध का उत्तर - 
"मैं जिस बात का प्रचार करता हूँ व उपदेश देता हूँ आपने उसे गलत ढंग से समझा है।  एक अपराधी और दोषी को अवश्य दंड दिया जाना चाहिए और एक निर्दोष व्यक्ति को मुक्त और स्वतन्त्र कर दिया जाना चाहिए। यदि एक दंडाधिकारी एक अपराधी को दंड देता है तो यह दंडाधिकारी का दोष नहीं है। दंड का कारण अपराधी का दोष व अपराध होता है। जो दंडाधिकारी दंड देता है, वह न्याय का ही पालन कर रहा होता है।  उस पर अहिंसा का कलंक नहीं लगता। जो व्यक्ति न्याय और सुरक्षा के लिए लड़ता है, उसे अहिंसा का दोषी नहीं बनाया जा सकता।

यदि शांति बनाये रखने के सभी साधन असफल हो गए हों,  तो हिंसा का उत्तरदायित्व उस व्यक्ति पर आ जाता है, जो युद्ध को शुरू करता है। व्यक्ति को दुष्ट शक्तियों के समक्ष आत्म समर्पण नहीं करना चाहिए। यहाँ युद्ध हो सकता है।  परन्तु यह स्वार्थ की या स्वार्थ पूर्ण उद्देश्यों की शर्तों के लिए नहीं होना चाहिए"(बुद्ध अथवा कार्ल मार्क्स : बाबासाहब डॉ अम्बेड कर, सम्पूर्ण वांगमय खंड 7 )।   

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