छंद-रागो दुक्खस्स मूलं-
एकं समयं भगवा मल्लेसु
एक समय भगवान मल्लों के
विहरति उरुवेलकप्पं नाम मल्लानं निगमो।
विहार करते हैं, उरुवेल-कल्प नामक मल्लों के कस्बे में।
अथ खो भद्दको गामणी येन भगवा तेनुपसंकमि।
ऐसे में, भद्दक ग्रामीण, जहां भगवान थे, वहां गया ।
उपसंकमित्वा भगवन्तं अभिवादेत्वा एकमन्तं निसीदि।
उपस्थित हो, भगवान को अभिवादन कर एक ओर बैठ गया।
एकमन्तं निसिन्नो खो सो भद्दको गामणी भगवन्तं एतद वोच-
एक ओर बैठे वह भद्दक ग्रामीण भगवान को ऐसा कहा-
‘‘साधु मे, भन्ते, भगवा दुक्खस्स समुदयं च अत्थगं च देसेतु।’’
"कल्याण हो मेरा, भन्ते! भगवान दुक्ख के समुदय और अस्त होने का उपदेस करें।"
"तं किं मञ्ञसि, गामणी, अत्थि ते उरुवेलकप्पे मनुस्सा
" तुम क्या समझते हो ग्रामीण, है ऐसे उरुवेल में मनुस्स,
येसं ते गरहाय सोक उप्पज्जेय्युं ?"
जिनकी निंदा से तुम्हें सोक उत्पन्न हो" ?
"अत्थि मे, भन्ते।"
"है मुझे, भन्ते!"
"तं किं मञ्ञसि, गामणी, अत्थि ते उरुवेलकप्पे मनुस्सा
"तुम क्या समझते हो ग्रामीण, है ऐसे मनुस्स उरुवेल में
येसं ते गरहाय सोक न उप्पज्जेय्युं।"
जिनकी निंदा से तुम्हें सोक न उत्पन्न हो ?"
"अत्थि मे, भन्ते!"
"है मुझे, भन्ते!"
'को नु खो गामणी, हेतु; को पच्चयो
'क्या है, ग्रामीण, ! क्या हेतु है
येन ते एकच्चानं गरहाय उप्पज्जेय्युं ?'
जिससे किसी एक के निंदा से उत्पन्न होता हैं ?'
"येसं मे भन्ते, गरहाय उप्पज्जेय्युं,
"जिनकी मुझे भन्ते, निंदा से उत्पन्न हो,
अत्थि मे तेसु छन्दरागो।"
उन में मेरा छन्द-राग है।"
"येसं पन भन्ते, गरहाय न उप्पज्जेय्युं,
"किन्तु, भंते! जिनकी निंदा से उत्पन्न न हो,
नत्थि में तेसु छन्दरागो।"
उन में मेरा छन्द-राग नहीं है।"
"छन्दो ही गामणी, दुक्खस्स मूलं।"
"छन्द-राग ही ग्रामीण, दुक्ख का मूल है।"
"अच्छरियं भन्ते! अब्भुुतं भन्ते!
"भन्ते! आश्चर्य है, अदभुत है,
याव सुभासितं इदं भन्ते भगवता।"
भगवान ने इतना अच्छा समझाया।
(स्रोत- गामणी संयुत्तः आठवां परिच्छेदः सळायतन वग्गः संयुत्त निकाय पृ. 588 )।
एकं समयं भगवा मल्लेसु
एक समय भगवान मल्लों के
विहरति उरुवेलकप्पं नाम मल्लानं निगमो।
विहार करते हैं, उरुवेल-कल्प नामक मल्लों के कस्बे में।
अथ खो भद्दको गामणी येन भगवा तेनुपसंकमि।
ऐसे में, भद्दक ग्रामीण, जहां भगवान थे, वहां गया ।
उपसंकमित्वा भगवन्तं अभिवादेत्वा एकमन्तं निसीदि।
उपस्थित हो, भगवान को अभिवादन कर एक ओर बैठ गया।
एकमन्तं निसिन्नो खो सो भद्दको गामणी भगवन्तं एतद वोच-
एक ओर बैठे वह भद्दक ग्रामीण भगवान को ऐसा कहा-
‘‘साधु मे, भन्ते, भगवा दुक्खस्स समुदयं च अत्थगं च देसेतु।’’
"कल्याण हो मेरा, भन्ते! भगवान दुक्ख के समुदय और अस्त होने का उपदेस करें।"
"तं किं मञ्ञसि, गामणी, अत्थि ते उरुवेलकप्पे मनुस्सा
" तुम क्या समझते हो ग्रामीण, है ऐसे उरुवेल में मनुस्स,
येसं ते गरहाय सोक उप्पज्जेय्युं ?"
जिनकी निंदा से तुम्हें सोक उत्पन्न हो" ?
"अत्थि मे, भन्ते।"
"है मुझे, भन्ते!"
"तं किं मञ्ञसि, गामणी, अत्थि ते उरुवेलकप्पे मनुस्सा
"तुम क्या समझते हो ग्रामीण, है ऐसे मनुस्स उरुवेल में
येसं ते गरहाय सोक न उप्पज्जेय्युं।"
जिनकी निंदा से तुम्हें सोक न उत्पन्न हो ?"
"अत्थि मे, भन्ते!"
"है मुझे, भन्ते!"
'को नु खो गामणी, हेतु; को पच्चयो
'क्या है, ग्रामीण, ! क्या हेतु है
येन ते एकच्चानं गरहाय उप्पज्जेय्युं ?'
जिससे किसी एक के निंदा से उत्पन्न होता हैं ?'
"येसं मे भन्ते, गरहाय उप्पज्जेय्युं,
"जिनकी मुझे भन्ते, निंदा से उत्पन्न हो,
अत्थि मे तेसु छन्दरागो।"
उन में मेरा छन्द-राग है।"
"येसं पन भन्ते, गरहाय न उप्पज्जेय्युं,
"किन्तु, भंते! जिनकी निंदा से उत्पन्न न हो,
नत्थि में तेसु छन्दरागो।"
उन में मेरा छन्द-राग नहीं है।"
"छन्दो ही गामणी, दुक्खस्स मूलं।"
"छन्द-राग ही ग्रामीण, दुक्ख का मूल है।"
"अच्छरियं भन्ते! अब्भुुतं भन्ते!
"भन्ते! आश्चर्य है, अदभुत है,
याव सुभासितं इदं भन्ते भगवता।"
भगवान ने इतना अच्छा समझाया।
(स्रोत- गामणी संयुत्तः आठवां परिच्छेदः सळायतन वग्गः संयुत्त निकाय पृ. 588 )।
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