Wednesday, January 26, 2011

कबीर

स्वामी रामानंद को अपने पितरों का श्राद्ध करने गाय के दूध की आवश्यकता हुई। स्वामीजी ने दूध लाने कबीर को भेजा। चलते-चलते कबीर ने देखा कि रास्ते में एक गाय मरी पड़ी है। कबीर को युक्ति सूझी। उन्होंने कहीं से घास का गट्ठर लिया और मृत गाय के मुंह के पास रख दिया। कबीर इन्तजार करने लगे कि गाय दूध दे तो वे गुरु के पास ले जाए।

काफ़ी समय बीत गया।  स्वामीजी कबीर का रास्ता देखते-देखते थक गए।  उन्होंने दूसरे शिष्य को दौड़ाया। शिष्य ने पूरा माजरा स्वामीजी को कह सुनाया। इस बीच कबीर भी स्वामीजी के सामने उपस्थित हो चुके थे। स्वामीजी आश्चर्यचकित हो कबीर को देखने  लगे।

कबीर ने कहा - "स्वामीजी! मैंने सोचा, मृत पितरों का श्राद्ध के लिए मृत गाय का दूध ही अच्छा रहेगा।  लेकिन वह गाय घास नहीं खाती और दूध भी नहीं देती। "  स्वामीजी बोले -"कबीर! मृत गाय कभी घास खाती है क्या ?" तब, कबीर ने झट कहा - "स्वामीजी! अगर कल की मरी गाय घास नहीं खाती तो वर्षों से मृत पितर दूध कैसे पियेंगे ?" स्वामीजी, कबीर को देखते रह गए।

यह किस्सा हम वर्षों से पढ़ते आ रहे हैं।  किन्तु न  तो स्वामीजी बदलें और न कबीर ही। स्वामीजी अलग-अलग भेष में आ रहें हैं तो दूसरी ओर, कबीर हार कर बैठ गया हो; ऐसा भी नहीं है । यह देखना दिलचस्प होगा कि सत्ता के गठजोड़ से स्वामीजी कितने दिनों आशाराम बने रहेंगे ?  
            

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