पिछले दिनों मेरा पुणे जाना हुआ. पुणे अर्थात 'पूना पेक्ट'. पुणे अर्थात पेशवाओं की नगरी. पुणे अर्थात 'ब्राह्मणों' का राजकारण. पेशवाओं के समय अछूतों को आम रास्ते पर चलने के दौरान अपने मुंह के पास एक मिटटी का बर्तन (गाढगा ) लटका कर चलना पड़ता था कि कहीं वे थूक दे तो उस जगह 'ब्राह्मण देवता' के पैर न पड़ जाय- ऐसे ही कुछ तस्वीर थी उस पुणे नगर की मेरे दिमाग में.
मगर अब, काफी कुछ बदल चुका है. अस्पृश्यता का कानूनन अंत हो चुका है और अब चमचमाती सडकों पर चलने के दौरान किसीको फुर्सत नहीं है कि वह आपकी जात पूछे.
पुणे की सड़के नापते वक्त मेरी भांजी जो जामिया-मिलिया में प्रोफ़ेसर है, का फोन आया कि में 'विलास वाघ' नामक एक शख्सियत से मिलूं और 'सावित्री बाई फुले' पर कुछ लिटरेचर हासिल करूँ.
डा हेमलता महिस्वर ने गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी बिलासपुर (म प्र) में हिंदी की हेड ऑफ़ डिपॉट रहते हुए 'दलित लिटरेचर' पर काफ़ी काम किया है. मुझे फक्र है कि हाई प्रोफाइल पद पर रहते हुए वह सिर्फ नौकरी न कर 'पे बैक टू सोसायटी' पर भी काम करती है. बाबा साहेब आम्बेडकर की कृपा से दलितों में शिक्षा का प्रसार तो हो रहा है और दलित समाज की इक्का-दुक्का महिलाएं कुछ ऊँचे पदों पर पहुंच गई हैं। मगर, कितनी महिलाएं हैं, जो अपने और अपने परिवार की जिम्मेदारी के साथ-साथ, समाज के प्रति अपनी सहभागिता का निर्वहन करती हैं ?
बहरहाल,पूछते-पूछते आखिर मैंने 'सुगावा प्रकाशन' पा ही लिया. यह बुद्धिस्ट और आम्बेद्करी साहित्य का ख्यात-प्राप्त संस्थान 562, सदाशिव पेठ के चित्रशाला बिल्डिंग में है. संस्थान में प्रवेश करते ही करीब 55 -60 वर्ष की एक शिष्ट महिला ने हम दोनों पति-पत्नी का स्वागत किया. मैं सामाजिक उद्देश्य के भ्रमण के दौरान अक्सर पत्नी को साथ रखता हूँ.पत्नी का आपकी सहभागिता में कदम-ब-कदम ताल मिलाना जरूरी है.
मिसेज वाघ ने बतलाया कि सावित्रीबाई फुले पर लिटरेरी कार्य उतना नहीं हुआ है जितनी कि वह हकदार है. मैंने सहमती में सिर हिलाते हुए कहा कि उनके पास जो भी लिटरेचर उपलब्ध हो, मुझे दिखा दे. मिसेज बाघ ने एकदम छोटी-छोटी दो पुस्तकें मुझे दी. मैंने मेडम बाघ से निवेदन किया कि वह और सर्च करें। मगर अफ़सोस, कुछ देर बाद ना में सिर हिलाते हुए मेडम काउंटर पर आ गई।
एक अन्य महिला लताबिसे सोनावने, जो महाराष्ट्र दलित महिला फोरम की नेत्री थी, से वही मुलाकात हुई. आप किसी महान उद्देश्य से जुड़े पर्सनालिटी से मिलते हैं या ऐसे संस्थान में जाते हैं तो आप अनायास और भी कई हस्तियों से मिलते हैं, जिन्हें आप अन्यथा मिलना चाहे तो काफ़ी प्रयास करना पड़ेगा. यह उन विभूतियों/ संस्थान के आस-पास घुमने वाले 'ओरे' का कमाल है.
शाम के करीब ८ बज रहे थे। घर-गृहस्थी भी कोई चीज होती है, शायद इसी वजह से मिसेज बाघ ने उठते हुए अपने असिस्टेंट को निर्देश दिया कि वह हमे लेकर घर पर आये. हम ना-नुकर करते हुए असिस्टेंट के पीछे हो लिए.
बाघ साहब का आवास करीब ही था। हमारा स्वागत 60 -65 वर्ष के एक शांत-सोम्य व्यक्तित्व ने किया. आप विसाल बाघ ही थे जिन्हें मैं मिलने भारी उत्सुक था. घर क्या था, पूरा आफिस था. एक असिस्टेंट डिक्टेट ले रहा था. 15 -20 मिनट बाद ही बाघ साहब हमसे मुखातिब हुए. परिचय हुआ. मैंने सविस्तार खुद को इंट्रोड्यूज किया. बाघ साहब सामाजिक सहभागिता में मेरी तड़प और कुछ करने की ललक सुन काफ़ी प्रसन्न हुए.
विस्तार से उन्होंने खुद अपने बारे में और जिस सामाजिक उद्देश्य के लिए वे जीते हैं, कार्य करते हैं, बतलाई. उन्होंने बतलाया कि प्रोफ़ेसर के पद से रिजाइन कर वे सामाजिक उत्थान के क्षेत्र में कूदे. नौकरी के कारण उन्हें समय नहीं मिल पा रहा था. बाद में उनकी पत्नी भी नौकरी छोड़ इस कार्य में जुट गई. जैसे कि चर्चा हुई, मैं नोट तो नहीं कर रहा था, मगर कुछ बातें जो मुझे याद रही, इस प्रकार हैं:-
विलास वाघ-दम्पति के सामाजिक सहभागिता के प्रति अपने उत्तरदायित्व का सोपान शुरू होता है, पुणे शहर की कमर्सियल सेक्स वर्करों के बेसहारा बच्चों के रहवास और उनके शिक्षण के लिए स्थापित 'सर्वेषां सेवा संघ बाल-गृह' से। यह बाल-गृह जो पुणे शहर में सन 1979 से संचालित किया जा रहा है.
तदन्तर वाघ-दम्पति ने बाबा साहेब डॉ भीमराव आम्बेडकर के 'शिक्षित बनो,संघर्ष करो और संघठित हो ' से अनुप्रेरित होकर समाज के अन्तिम वर्ग के बालक-बालिकाओं के शिक्षा और उनके सम्पूर्ण विकास के लिए 'समता शिक्षण संस्था' की स्थापना की. इस संस्था के तहत शिक्षा संस्थान 'आनन्द आश्रम विद्यालय' तलेगांव ढमढेरे ( शिरूर ) में चल रहा है. इसी संस्था के निर्देशन में एक और शिक्षण सस्था 'डॉ बाबा साहेब समाज कार्य महाविद्यालय' मोराने जिला धुले में संचालित है.
इन रचनात्मक कार्यों के अलावा बुद्धिस्ट-अम्बेडकरी वैचारिक मंच पर विलास वाघ पिछले 40 वर्षों से एक सशक्त और समृद्ध पत्रिका मराठी मासिक 'सुगावा' का प्रकाशन निरंतर कर रहे हैं. बेशक,पुणे के 'रेड लाइट एरिया' की सेक्स वर्करों के बच्चों के लिए वाघ-दम्पति ने होस्टल संचालित कर बुदिस्त-अम्बेडकरी वैचारिक मंच को एक नया आयाम दिया है। क्योंकि,रेड लाइट एरिया की सेक्स वर्कर अधिकतम दलित जातियों से हैं.
वाघ दम्पति का यह कृतित्व मैंने उनके पास से उठाई गई पत्र-पत्रिकाओं से लिया है ताकि सनद रहे और दलित समाज के वे लोग जिनको अपने समाज के प्रति कुछ कर गुजरने की तड़प है, पढ़े. "You decide who you want to be,by the light of your flame.Never let others tell you who are you." विलास वाघ का यह कोटेशन मुझे याद रहेगा.
ऐसे काम हमेशा प्रेरणादायक होते हैं.
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