Thursday, November 24, 2011

स्वामी अछूतानन्द हरिहर(6 May 1869- 20 Jul. 1933)

      स्वामी अछूतानन्द हरिहर, आदि-वंश  आन्दोलन के प्रणेता थे. उन्होंने उ.प्र. में इस सामाजिक-धार्मिक आन्दोलन की स्थापना की थी. उनका असली नाम हीरालाल था. अछुतानंद नाम तो उनके गुरु ने उन्हें प्रदान किया था.
        स्वामी जी जन्म 6 मई 1869 को उ.प्र. के फरुखाबाद जिले के सौरिख नामक छोटे-से गाँव में हुआ था. उनकी माता का नाम राम पियारी और पिता का नाम मोतीराम था. बालक हीरालाल के माता-पिता ने काफी समय पहले से ही सवर्ण हिन्दुओं की जातिगत-घृणा और कलह से तंग आ कर पैत्रिक गाँव छोड़ दिया था. वे जिला मैनपुरी के उमरी गाँव में आ बसे थे. बाद में हीरालाल के पिता जी ने आर्मी ज्वाइन कर लिया था. बालक हीरालाल बचपन से ही तीव्र बुद्धि के थे. उन्होंने 14 वर्ष की उम्र में स्कूल छोड़ दिया था. आपका ब्याह हिराबाई से हुआ था. संतान के नाम पर इनको चार पुत्रियाँ थी.
           शुरू में स्वामी जी ने आर्य समाजियों के साथ थे।   मगर, जल्दी ही हिन्दू आर्य-समाजियों से इनका भ्रम टूट गया. तब स्वामी जी ने जाति-पांति और छुआ-छूत के विरुद्ध स्वत्रंत रूप से आन्दोलन चलाया. उन्होंने गाँव-गाँव भ्रमण कर अपनी बात को लोगों के सामने रखा.
           स्वामी जी सन 1917 में दिल्ली आये. आपने अपने लोगों को जगाने के लिए यहाँ से आदि-हिन्दू नामक हिंदी मासिक पत्रिका का सम्पादन किया था.स्वामी अछुतानंद हरिहर के अनुसार आदि-हिन्दू जातियां अर्थात अनार्य इस भारत-भूमि के मूल निवासी थे.आर्यों जातियों ने यहाँ आकर छल-कपट से उनको दास बनाया और बाद में कई तरह की निर्योग्यताएं उन पर लाद दी. आर्य जातियों का यह षड्यंत्र यहीं तक सीमित नहीं रहा बल्कि, आगे चलकर अनार्य जातियों को पशुओं से भी बदतर जीवन जीने को बाध्य किया.
        स्वामी  अछूतानंद हरिहर ने दिल्ली में अछूत नेता वीररतन दास और जगतराम जाटिया के साथ मिल कर अखिल भारतीय स्तर पर अछूत महासभा का गठन किया. सन 1922 के दरम्यान दिल्ली में ही स्वामी जी ने अछूत जातियों का एक बड़ा सम्मेलन आयोजित कर उस में प्रिंस आफ वेल्स को आमंत्रित किया था. वहां आपने प्रिंस आफ वेल्स को अछूत जातियों के उत्थान से सम्बन्धित 17 बिन्दुओं का मेमोरेंडम दिया था. इस मेमोरेंडम के मांग की गई थी कि आदि-हिन्दू (दलित जातियों) के लिए पृथक चुनाव और प्रतिनिधित्व का प्रावधान हो. इसके साथ ही छुआ-छूत के उच्छेद के लिए कड़े नियम बनाये जाये. इन जातियों के शिक्षित बच्चों को नौकरी और व्यवसाय में प्राथमिकता मिले. बलात-श्रम पर पाबंदी लगे और गाँव के कोटवार इन जातियों के हो आदि आदि।
         सन 1927 में स्वामी जी ने एक पब्लिक मीटिंग में हिन्दू और मुसलमानों की तर्ज पर आदि हिन्दुओं(दलित जातियों) के लिए पृथक स्वत्रंता की मांग की थी. आपने कहा कि दलित जातियां इसकी सही हकदार है. 30 नव. 1930 को स्वामी जी ने सायमन कमीशन से मुलाकात की थी, जिसके सदस्य बाबा साहेब डा. आम्बेडकर थे.
डा. आम्बेडकर ने स्वामी जी को को गुरु माना है।  स्वामीजी को जब मालूम हुआ कि डा. आम्बेडकर, जो अछूत समाज के हैं और देश की दबी-कुचली जातियों के लिए कार्य कर रहे हैं तो उन्होंने डा. आम्बेडकर से मिलने की ठानी. सन 1928 में संपन्न 'आदि हिन्दू' महा सभा के एक अधिवेशन में उनकी पहली मुलाकात हुई थी. बाद में इन दोनों महापुरुषों ने देश के आजादी के साथ-साथ दबी-पिछड़ी जातियों के अधिकारों के लिए, जो उनके शोषकों को सुनाई दे , ऐसी आवाज बुलंद की.
      राउंड टेबल कन्फेरेंश के दौरान स्वामी अछूतानन्द हरिहर ने भारत में अछूतों के सर्व मान्य नेता के तौर पर डा. आम्बेडकर और राव बहादूर श्रीनिवासन को सपोर्ट के लिए देश के कई कोनों से टेलीग्राम कराये थे.यह स्वामी जी का प्रयास था की ब्रिटिश भारत में अछूतों को संसद और विधान सभाओं में प्रथक प्रधिनिधित्व और दलित जातियों वाले अधिसंख्यक सीटों पर दोहरे मत का अधिकार मिला था. किन्तु गाँधी जी के आमरण अनशन ने इन दोनों मांगों की मिटटी-पलीद कर दी. किसी तरह 24 सित. 1932  को पूना पेक्ट हुआ जिसके साक्षी स्वामी जी थे.
       स्वामी अछुतानंद हरिहर ने हिन्दू धर्म की काट के तौर पर 'आदि-हिन्दू धर्म'  इजाद किया था. आदि-हिन्दू धर्म की 7 मान्यताएं थी-1. इस देश के मूल निवासी होने से वे 'आदि-हिन्दू' हैं. आदि-हिन्दू  होने के नाते उनका कर्तव्य है कि वे अपनी इस मात्र- भूमि पर सत्य और न्याय का शासन स्थापित करे.2. आर्यों के आने  के पहले यहाँ के मूल-निवासियों की जो आस्था और मान्यताएं थी, वही उनका 'आदि-धर्म' है. 3. यह कि ईश्वर है और  ईश्वर सर्व शक्तिमान और सच्चा है. ईश्वर अवतार नहीं लेता. 4. सभी मनुष्य बराबर है और वे आपस में भाई-भाई है. वर्ण, जाति और वंश/कुल के आधार पर उन में किसी तरह के उंच-नीच का भेद गलत है. 5.क्रोध,मोह,लोभ और काम वासना से अलिप्त रहना मन का धर्म है. वेश्यागमन,जुआ, हिंसा और मद्य-पान से अलिप्त रहना शरीर का धर्म है.6. संत कबीर का कथन सत्य है कि सब ब्राहमण-ग्रन्थ झूठे, अन्यायी और उनके वर्ग हित को साधने वाले हैं. हिन्दुओं के धर्म-शास्त्र ही उनके अधोगति के कारण है और इसलिए वे ब्राह्मण देवताओं, ईश्वर के अवतारों, ब्रह्मनिक धार्मिक उपदेशों को त्यागने की शपथ लेते हैं.यह भी शपथ लेते हैं कि न तो वे कोई ब्राहमनिक-संस्कार करेंगे और न ही अपने किसी सामाजिक-धार्मिक संस्कार को संपन्न कराने ब्राह्मण पंडित को बुलाएँगे.7. वे अपने पूर्वजों के उच्च चरित्र और आदि-वंश के गर्व भरे इतिहास को प्रचार-प्रसार करेंगे.
      देश की शोषित-पीड़ित जातियों के लोग जो हिन्दुओं से भयाक्रांत थे और जिनके लिए अंग्रेजों से आजादी पाने का कोई अर्थ नहीं था, हिन्दुओं से अपनी आजादी के लिए संघर्षरत थे. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जो तब, बड़े जोर-शोर से आजादी का आन्दोलन चला रहा था, के कर्ता-धर्ताओं के  सामने स्वामी अछुतानंद हरिहर ने जमीदारी उन्मूलन की मांग रखी थी. स्वामीजी के पत्र के उत्तर में मोतीलाल नेहरू ने लिखा था- पहले आजादी के आन्दोलन में सहयोग करे. जमीदारी उन्मूलन के सम्बन्ध में स्वराज प्राप्त होने पर विचार किया जा सकता है.
        भारत के इस महान सपूत की मृत्यु  20  जुला. 1933 को 54 वर्ष की आयु में कानपूर के पास बेना झाबर में हुई थी. देश के कोने-कोने से आये दबे-कुचले लोगों ने उनकी शव-यात्रा में शरीक हो अपने नायक को नमन किया था.
              

3 comments:

  1. very nice I am proud of swami achhotanand ji . aadihindu- aaj ki jaroorat hai ...iska hum prachar karen

    K.P. Maurya
    founder & chairman - ANJAM (antarrashtriy jatav mahasangh)
    new delhi
    mobile :09910770135

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  2. भारत के दलिटी के असली मसीहा को शत 2 नमन।

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  3. नमन है ऐसे महापुरूष को जिस ने देश में हमें सम्मान दिया
    सर उठा कर जीने का गौरव हमे प्रदान किया

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