आजकल, मोदी और
मिडिया देश के प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह पर जिस तरह कीचड़ उछालते
हैं, कही से भी उसे उचित नहीं ठाहराया जा सकता । प्रजातन्त्र में बोलने की आजादी है। मगर, इस
आजादी की अपनी मर्यादा है। देश के प्रधानमंत्री, महामहिम राष्ट्रपति या सर्वोच्च न्यायालय के जज आदि देश के सर्वोच्च पदों पर बैठी इन हस्तियों पर टिपण्णी करने का अधिकार है। मगर , इसका एक डेकोरम है। डेकोरम को बिगाड़ कर मोदी जिस अशिष्ट भाषा का उपयोग करते हैं, वह कतई बर्दाश्त के लायक नहीं है।
बीजेपी ने एक मत से मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए अपना का उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। ऐसे में मोदी का प्रधानमंत्री बनने का ख़्वाब सपना ही है। आर एस एस ने मोदी को कहा है कि वह अपने बूते पर 272 सांसदों का बन्दोबस्त करे। अन्यथा की स्थिति में सुषुमा स्वराज , लालकृष्ण आडवाणी को तैयार रहने कहा है। ऐसी असहज स्थिति में मोदी को देश क्यों झेले ? आर एस एस का अजेंडा विवादस्पद रहा है। बीजेपी को छोड़ कर वह कभी किसी को स्वीकार्य नहीं रहा।
किसी व्यक्ति की कोई खास शैली हो सकती है। वह शैली उसकी पहचान है। मगर, मिडिया के तमाम न्यूज चेनलों की कौन सी शैली है ? क्या जरुरी है कि उसी भाषा में बात करे ? एकाध-दो न्यूज चेनलों पर इस बाबत चर्चा भी हो चुकी है। मगर, लगता है मोदी और बीजेपी का इन चेनलों के आकाओं से अरसा पहले गठजोड़ हो चूका है, कांग्रेस को गिराना है, चाहे जितना नीचे उतरना पड़े।
लगता है, नीचे उतरने का पाठ हेड क्वाटर लेवल पर पढाया गया है। क्योंकि, म प्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जो अपनी शालीनता के लिए जाने जाते है, मोदी की भाषा में बात करने लगे हैं। और शिवराज सिंह ही क्यों बीजेपी शासित छतीसगढ़ के मुख्य मंत्री डा रमणसिंह भी उसी नक्शे-कदम पर हैं।
लोकतंत्र में चुनाव होते रहते हैं। पार्टियाँ आती-जाती है। यह अच्छा है कि सत्ता बदले। चाहे केंद्र की हो या किसी राज्य की। सत्ता के स्थायित्व से सत्ताधीशों को भले ही फायदा हो, मगर, जनता को नुकसान होता है। बेशक, सत्ता परिवर्तन में बदबू नहीं होना चाहिए। चाहे भाषा की हो या दंगों की। विरोध का तरीका ऐसा हो कि अगली बार गले मिलने की गुंजाईश रहे।
दागी नेताओं को बचाने वाले अध्यादेश पर राहुल गाँधी ने एकाएक जो स्टेंड लिया, बीजेपी सकते में आ गई। अब उन्हें लगा कि प्रधानमंत्री का अपमान का हुआ है !
बीजेपी ने एक मत से मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए अपना का उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। ऐसे में मोदी का प्रधानमंत्री बनने का ख़्वाब सपना ही है। आर एस एस ने मोदी को कहा है कि वह अपने बूते पर 272 सांसदों का बन्दोबस्त करे। अन्यथा की स्थिति में सुषुमा स्वराज , लालकृष्ण आडवाणी को तैयार रहने कहा है। ऐसी असहज स्थिति में मोदी को देश क्यों झेले ? आर एस एस का अजेंडा विवादस्पद रहा है। बीजेपी को छोड़ कर वह कभी किसी को स्वीकार्य नहीं रहा।
किसी व्यक्ति की कोई खास शैली हो सकती है। वह शैली उसकी पहचान है। मगर, मिडिया के तमाम न्यूज चेनलों की कौन सी शैली है ? क्या जरुरी है कि उसी भाषा में बात करे ? एकाध-दो न्यूज चेनलों पर इस बाबत चर्चा भी हो चुकी है। मगर, लगता है मोदी और बीजेपी का इन चेनलों के आकाओं से अरसा पहले गठजोड़ हो चूका है, कांग्रेस को गिराना है, चाहे जितना नीचे उतरना पड़े।
लगता है, नीचे उतरने का पाठ हेड क्वाटर लेवल पर पढाया गया है। क्योंकि, म प्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जो अपनी शालीनता के लिए जाने जाते है, मोदी की भाषा में बात करने लगे हैं। और शिवराज सिंह ही क्यों बीजेपी शासित छतीसगढ़ के मुख्य मंत्री डा रमणसिंह भी उसी नक्शे-कदम पर हैं।
लोकतंत्र में चुनाव होते रहते हैं। पार्टियाँ आती-जाती है। यह अच्छा है कि सत्ता बदले। चाहे केंद्र की हो या किसी राज्य की। सत्ता के स्थायित्व से सत्ताधीशों को भले ही फायदा हो, मगर, जनता को नुकसान होता है। बेशक, सत्ता परिवर्तन में बदबू नहीं होना चाहिए। चाहे भाषा की हो या दंगों की। विरोध का तरीका ऐसा हो कि अगली बार गले मिलने की गुंजाईश रहे।
दागी नेताओं को बचाने वाले अध्यादेश पर राहुल गाँधी ने एकाएक जो स्टेंड लिया, बीजेपी सकते में आ गई। अब उन्हें लगा कि प्रधानमंत्री का अपमान का हुआ है !
No comments:
Post a Comment