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यह फर 14 , 2014 का दिन था। दो दिन पहले ही अर्थात 12 फर को हम लोग भिलाई पहुँच गए थे। एक दिन का हमें रेस्ट चाहिए था। तक़रीबन 16 -18 घंटे सफ़र के बाद यह जरुरी भी होता है, खास कर हम जैसे उम्र दराज लोगों के लिए।
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भिलाई में काफी रिश्तेदार हैं। 14 फर.
एन्गेजमेन्ट प्रोग्राम के बारे में आवश्यक परामर्श करना था। दूसरे , दल्ली राजहरा जाने के लिए गाड़ियों का इंतजाम भी करना था।
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यूँ हमने और किसी को निमंत्रण नहीं दिया था। भिलाई से ही काफी लोग हो रहे थे। एंगेजमेंट में अधिक से अधिक 15 से 20 मेहमान भले प्रतीत होते हैं।
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भिलाई में मेरे एक दोस्त हैं -ओ पी वैश्य साहब। बड़े ही सीधे, शांत और हँस मुख। धैर्य, तो जैसे प्रकृति ने इन्हे उपहार में दिया है। मिलनसार, इतने कि कई बार झल्लाहट होती है। हर आदमी जैसे रुक कर इन से बात करना चाहता है। और यह भी जनाब, आराम से बात करते हैं। कहीं कोई जल्दी नहीं।
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मैंने वैश्य साहब को पहले ही सूचना दे दी थी कि दल्ली राजहरा में बेटे की बात पक्की हो गई है और एंगेजमेंट की तारीख लड़की वाले 14 फर तय कर गए हैं।
हमने एक टवेरा गाड़ी की। दूसरी मारुती वेन दिवंगत डी जे नागदेवे साहब की थी। डी जे नागदेवे मेरे काका ससुर हैं जिनके यहाँ अक्सर हम भिलाई प्रवास में रुकते हैं। तीसरी गाड़ी वैश्य साहब की थी। कुल मिला कर लेडिस-जेंट्स 18 मेहमान हो रहे थे।
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करीब दोपहर एक बजे हम लोग दल्ली राजहरा के लिए प्रस्थान कर सके।शेंडे जी लगातार अनुरोध कर रहे थे कि हम लोग जल्दी पहुंचे। मगर, अगर बारात का मामला हो तो फिर, आप जानते हैं कि क्या होता है ? लोगों को कलेक्ट करना वाकई, बहुत बड़ा काम है।
यह करीब तीन बज रहा होगा कि हम सब लोग आगे-पीछे दल्ली राजहरा पहुंचे। गाड़ी से उतरते ही स्वागत का आदान-प्रदान हुआ ।
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सभी फ्रेश हो जल्दी ही कार्यक्रम -स्थल पर आ गए। वहाँ पहले से ही लड़की पक्ष के मेहमान और स्थानीय गणमान्य लोग विराजमान थे।
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शेंडे जी ने ज्यादा ताम-झाम से बचते हुए निज निवास स्थल के छत पर कार्यक्रम आयोजित किया था। फरवरी का महीना वैसे ही सुहावना होता है। न अधिक ठंडी और न अधिक गर्मी। लोग रिलेक्स फिल कर रहे थे।
जल्दी ही भावी वर और वधु ने अपना-अपना स्थान ग्रहण किया। एकाएक ही सभी लोगों के आकर्षण का केंद्र वर -वधु हो गए।
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दरअसल, यह एक ऐसा वक्त होता है, जब पंडाल में बैठे सभी लोगों की नजरें वर-वधू की ओर होती हैं। जबकि वर-वधु की हालत बहुत पतली होती है। वर को समझ नहीं आता कि वह क्या करे ? वही वधू जमीन पर नजरें गड़ाए होती है।
इससे अच्छा तो पुराने ज़माने की शादियां थी जिस में वर-वधु के हाथ में बांस की खपच्चियों के पंखे थमा दिए जाते थे कि जरुरत पड़ी तो हवा करते और नहीं तो रखे हैं हाथ में।
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इसी समय मुझे ध्यान आया कि सगाई की रस्म सम्पन्न कराने वाले बौद्ध प्रचारक/कार्यकर्त्ता को आवश्यक टीप दे दिया जाए।
पिछली बार ऐसा ही हुआ। मेरी भांजी कई बार कह चुकी थी कि वह अपनी सगाई /शादी में वर के पैर नहीं पड़ेगी। परन्तु बेचारी, देखती रह गई।
इस बार, मैंने तय किया कि प्रिवेंटिव स्टेप उठाया जाए। मैंने उन्हें पास बुला कर कहा -
'कई स्थानों में वर-वधू को गुलदस्ते से एक-दूसरे का स्वागत करने के दौरान वधू को वर के पैर पड़ने को भी कहा जाता है। वधु द्वारा वर के पैर पड़ना एक गलत परम्परा है। इससे समाज में गलत संदेश जाता है। मैं चाहूंगा कि आप इसका ध्यान रखे।'
'आपका टोकना यद्यपि मुझे अच्छा नहीं लगा । मगर, बात आपने ठीक कही है। - मेरी बात का हल्का-सा बुरा मानते हुए उन्होंने मेरी ओर देख कर कहा। मैंने मासूम-सा चेहरा बनाते हुए उनसे क्षमा मांग ली ।
sir will you tell us this song notation
ReplyDelete( hamne jag ki ajab tasveer dekhi ek hasta hai das rote hai )