लघुकथाः दरार
तब मैं जीजाजी के साथ रहता था। उस समय उनके परिवार में मेरी बर्ड़ी बहन और बड़ी बिटिया थी। जीजाजी, सरकारी नौकरी में सहायक खाद्य -निरीक्षक थे। तब उनकी पोसि्ंटग बालाघाट थी।
जिसकी किस्मत खुलती है, उसे ही गांव से शहर आने का मौका नसीब होता है। तब, मैं हाई-स्कूल में पढ़ रहा था। पढ़ाई के लिए मुझे बालाघाट मेरी बड़ी बहन लायी थी। जीजाजी की उदारता न होती तो बेशक, मैं उनके यहां टिक न पाता। तब इस परिवार में, जीजाजी का एक छोटा भाई भी रहता था। इसका नाम देवराज था। देवराज मेरे से एकाध साल छोटा होगा। मेरी उससे अच्छी पटती थी।
एक खाद्य-निरीक्षक के अन्डर में जिले की कई राईस-मिलें और खाद्य-दुकानें हुआ करती हैं। निरीक्षण के लिए जीजाजी जब-तब जाते और रात-बरात पीकर घर आते थे। वे या तो बिना भोजन किए चुपचाप सो जाते या बहन से मार-पीट करते।
पीकर आना और घरवाली से मार-पीट करना भारतीय समाज में आम बात है। यह ‘सीन’ कभी-कभी असहनीय भी हो जाता है। इससे निपटने महिलाएं या तो किसी ‘देवी’ का उपवास करती है या घुट-घुट कर जल-मरती है। मेरी बहन सन्तोषी माता का व्रत रखती थी।
ऐसा ही एक ‘व्रत-उद्यापन’ का दिन था। उपवास में सारा दिन चला गया था। शाम को बहन का उपवास खत्म होना था। जीजाजी का कोई पता नहीं था। समय काटने बहन पड़ोसन से, उन्हीं के आंगन में खड़ी हो बतिया रही थी।
रात करीब 10.30 बजे जीजाजी आए। बहन को आभास हो गया था किन्तु, वह बतियाते रही। शायद, अपनी झल्लाहट दूर कर रही थी। इस बीच जीजाजी मुझसे 2.3 बार पूछ चूके थे।
थोड़ी ही देर में बहन आई और किचन में चली गई। वह थाली लगाने लगी। इसी बीच, जीजाजी ने सिर के बाल पकड़ा और बहन को मारना-पीटना शुरू कर किया। वह पूछ रहे थे कि उसने आने में आधा घंटा क्यों लगया?
जीजाजी बूरी तरह पीट रहे थे। मुझे सहन नहीं हुआ। मैं घर के पीछे बाड़ी तरफ चला गया। किन्तु, देवराज, जो वहीं था, ने खड़े हो जीजाजी का हाथ पकड़ लिया। शायद जीजाजी को इस ‘सीन’ की अपेक्षा नहीं थी। हम सब, बिना भोजन किए चुपचाप सो गए।
सबेरे, जीजाजी ने हम दोनों को बुलाया और घर से निकल जाने का आदेश दिया। एकाध साल बाद मैं पुनः जीजाजी के यहां रहने लगा था किन्तु देवराज; उनके रिश्तों में आई दरार फिर कभी भर न सकी।
- अ. ला. उके
तब मैं जीजाजी के साथ रहता था। उस समय उनके परिवार में मेरी बर्ड़ी बहन और बड़ी बिटिया थी। जीजाजी, सरकारी नौकरी में सहायक खाद्य -निरीक्षक थे। तब उनकी पोसि्ंटग बालाघाट थी।
जिसकी किस्मत खुलती है, उसे ही गांव से शहर आने का मौका नसीब होता है। तब, मैं हाई-स्कूल में पढ़ रहा था। पढ़ाई के लिए मुझे बालाघाट मेरी बड़ी बहन लायी थी। जीजाजी की उदारता न होती तो बेशक, मैं उनके यहां टिक न पाता। तब इस परिवार में, जीजाजी का एक छोटा भाई भी रहता था। इसका नाम देवराज था। देवराज मेरे से एकाध साल छोटा होगा। मेरी उससे अच्छी पटती थी।
एक खाद्य-निरीक्षक के अन्डर में जिले की कई राईस-मिलें और खाद्य-दुकानें हुआ करती हैं। निरीक्षण के लिए जीजाजी जब-तब जाते और रात-बरात पीकर घर आते थे। वे या तो बिना भोजन किए चुपचाप सो जाते या बहन से मार-पीट करते।
पीकर आना और घरवाली से मार-पीट करना भारतीय समाज में आम बात है। यह ‘सीन’ कभी-कभी असहनीय भी हो जाता है। इससे निपटने महिलाएं या तो किसी ‘देवी’ का उपवास करती है या घुट-घुट कर जल-मरती है। मेरी बहन सन्तोषी माता का व्रत रखती थी।
ऐसा ही एक ‘व्रत-उद्यापन’ का दिन था। उपवास में सारा दिन चला गया था। शाम को बहन का उपवास खत्म होना था। जीजाजी का कोई पता नहीं था। समय काटने बहन पड़ोसन से, उन्हीं के आंगन में खड़ी हो बतिया रही थी।
रात करीब 10.30 बजे जीजाजी आए। बहन को आभास हो गया था किन्तु, वह बतियाते रही। शायद, अपनी झल्लाहट दूर कर रही थी। इस बीच जीजाजी मुझसे 2.3 बार पूछ चूके थे।
थोड़ी ही देर में बहन आई और किचन में चली गई। वह थाली लगाने लगी। इसी बीच, जीजाजी ने सिर के बाल पकड़ा और बहन को मारना-पीटना शुरू कर किया। वह पूछ रहे थे कि उसने आने में आधा घंटा क्यों लगया?
जीजाजी बूरी तरह पीट रहे थे। मुझे सहन नहीं हुआ। मैं घर के पीछे बाड़ी तरफ चला गया। किन्तु, देवराज, जो वहीं था, ने खड़े हो जीजाजी का हाथ पकड़ लिया। शायद जीजाजी को इस ‘सीन’ की अपेक्षा नहीं थी। हम सब, बिना भोजन किए चुपचाप सो गए।
सबेरे, जीजाजी ने हम दोनों को बुलाया और घर से निकल जाने का आदेश दिया। एकाध साल बाद मैं पुनः जीजाजी के यहां रहने लगा था किन्तु देवराज; उनके रिश्तों में आई दरार फिर कभी भर न सकी।
- अ. ला. उके
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