उदितनाम हजूर साहेब |
तब में पालेटेक्निक पढ़ रहा होगा, जब गुरूजी के साथ पहली बार कबीर आश्रम खरसिया आया था।
गुरूजी सत्संग के दौरान, बातों- बातों में आश्रम के बारे में, आश्रम पीठासीन प. उदितनाम हजूर साहेब के बारे में, व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में तरह-तरह की बातें बताया करते थे-
कि किस तरह वे आगंतुकों से, परिचितों से हाल-चाल पूछते हैं, मुस्करा कर स्वागत करते हैं और उनके ठहरने और खाने आदि की व्यवस्था के लिए शास्त्रीजी को बोलते हैं। उनकी छोट-छोटी बातें और बात करने का अंदाज गुरूजी हमें विस्तार से बतलाते थे।
और क्यों न बताएं, वे उनके गुरु जो थे। गुरूजी बार-बार जगदीश शास्त्री के बारे में बतलाया करते थे। शात्री जी तब हुजूर साहेब के सहायक थे। शास्त्रीजी के मायने ही सहायक था. गुरूजी बतलाते थे की किस तरह हुजूर साहेब आवश्यक होने पर शास्त्रीजी को झिड़कने में जरा भी संकोश नहीं करते थे। मगर यह वैसे ही था जैसे एक माँ अपने पुत्र को किसी हिदायत के समय सावधान करती है, छिड़कती है।
गुरूजी नहीं रहे। उनका देहांत हुए, आज करीब 13 साल हो रहे हैं। मुझे बात जैसे कल की ही लग रही है। गुरूजी, लगता है , यहीं कहीं बगल में हैं और मुझे छोटी-छोटी बातें बता रहे हैं।
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