Friday, June 29, 2018

लोहिच्च सुत्त(दी. नि.)

ऐसा मैंने सुना, एक समय भगवान
एवं में सुत्तं, एकं  समयं भगवा
500  भिक्खु-संघ के बड़े भिक्खु-संघ के साथ
महत्ता भिक्खु-संघेन सद्धिं पञ्चमत्ते भिक्खु सतेहि
कोसल (देश) में चरिका करते हुए
कोसलेसु चारिकं चरमानो
जहाँ सालवतिका थी, वहां पहुंचे।
येन सालवातिका तदवसरि
उस समय लोहिच्च ब्राह्मण,
तेन खो पन  समयेन लोहिच्चो ब्राह्मणो
राजा पसेनदि कोसल द्वारा प्रदत्त
रञ्ञा पसेनदि कोसलेन दिन्नं
धन-धान्य संपन्न सालविता का स्वामी होकर रहता था।
सधञ्ञं  सालवतिकं अज्झावसति।

उस समय लोहिच्च  ब्राह्मण को
तेन खो पन समयेन लोहिच्चस्स ब्राह्मणस्स
यह बुरी धारणा उत्पन्न हुई थी।
एवरूपं पापकं दिट्ठिगतं उपन्नंं  होति-
संसार में ऐसा समण या ब्राह्मण
इध समणो वा ब्राह्मणो वा
नहीं है जो अच्छे धर्म को जाने
न कुसलं धम्मं अधिगच्छेय्य।
और जान कर अच्छे धर्म को दूसरों को बतलाए।
अपि च कुसलं धम्मं अधिगंत्वा न परस्स आरोचेय्य।
भला दूसरा, दूसरे के लिए क्या करेगा ?
किञ्हि परो परस्स करिस्सति ?

जैसे एक पुराने बंधन को काट कर
सेय्याथापि, नाम पुराण बंधनं छिन्दित्वा
दूसरा एक नया बंधन दाल दे;
अञ्ञंं नव बन्धनं करेय्य
इस प्रकार इस (समन या ब्राह्मणों के समझाने को)
एवं सम्पदं इदं
पाप(बुरा) और लोभ की बात मैं समझता हूँ।
पापकं लोभ धम्मं वदामि। 


लोहिच्च ब्राह्मण ने सुना-
अस्सोसि खो लोहिच्च ब्राह्मणो-
समण गोतम साक्य पुत्त
समणाो खलु, भो, गोतमो, सक्य पुत्तो
साक्य कुल से पब्बज्जित हो
सक्य कुला पब्बज्जितो
पांच सौ भिक्खुओं के बड़े संघ के साथ
पञ्चमत्तेहि भिक्खु सतेहि महता भिक्खु संघेहि
सालवतिका में आए हुए हैं।
सालबतिकं अनुप्पत्तो।
उन गोतम की
तं खो पन भवन्तं गोतमं
एवं कल्याणो कित्ति सद्दो अब्भुग्गतो-
ऐसी कल्याण कारी कीर्ति फैली हुई है-
वे भगवान, अर्हत, सम्यक-सम्बुद्ध
इतिपि  सो भगवा अरहं सम्मा सम्बुद्धो
विद्या आचरण संपन्न
विज्जा चरण सम्पन्नो
सुगत लोकविदू ,अनुपम, पुरुस दम्य सारथी
सुगतो लोकविदू अनुत्तरो पुरिस दम्म सारथि
स्त्री-पुरुषों के सत्था बुद्ध भगवान है
सत्था इत्थी पुरिस्सानं  बुद्धो भगवा'ति । 
इस प्रकार के अर्हतों का दर्शन अच्छा होता है
साधु खो पन तथा रूपानं अरहंतं दस्सनं ।

तब लोहिच्च ब्राह्मण ने रोसिक नामक नाई को बुलाकर कहा-
अथ खो लोहिच्च ब्राह्मणो रोसिकं न्हापितं आमंतेसि-
सुनो भद्र रोसिक, जहाँ समन गोतम हैं,
एहि त्वं सम्म रोसिके, येन समणो गोतमो तेनुपसंकम
जाकर मेरी ओर से
उपसंकमित्वा मम वचनेन
समण गोतम का कुशल-क्षेम पूछो-
समणं गोतमं फासु विहारं पुच्छ-
हे गोतम! लोहिच्च ब्राह्मण भगवान गोतम का
भो गोतम,  लोहिच्चो ब्राह्मणो भवन्तं गोतमं
कुशल मंगल पूछता है, और कहो-
फासु विहारं पुच्छति, एवं वदेहि-
'भगवान अपने भिक्खु-संघ के साथ
'अधिवासेतु भवं गोतमो सद्धिं भिक्खु संघेन
कल लोहिच्च ब्राह्मण के घर पर भोजन करना स्वीकार करें'
लोहिच्चस्स ब्राह्मणस्स स्वातनाय (कल दे लिए)  भत्तंं

'बहुत अच्छा' कह रोसिक नाई
'एवं, भो'ति' खो रोसिका न्हापितो
लोहिच्च ब्राह्मण की बात मान
लोहिच्चस्स ब्राह्मणस्स पटिस्सुत्वा
जहाँ भगवान थे, गया।
येन भगवा तेनुप संकमि, उप संकमित्वा
जा कर भगवान को अभिवादन करके एक ओर बैठ गया।
उपसंकमित्वा अभिवादेत्वा एकमंतंं निसीदि 
एक और बैठे हुए रोसिक नाई ने भगवान् से यह कहा-
एकमंतंं निसिन्नो खो रोसिको न्हापितो भगवन्तं एतद वोच-
भंते! लोहिच्च ब्राह्मण भगवान का
लोहिच्चो, भंते,  ब्राह्मणो भवन्तं गोतमं
कुशल मंगल पूछता है और कहता है-
फासु विहारं पुच्छति, एवं वदेति-
'भगवान अपने भिक्खुओं के साथ
'अधिवासेतु भंते, भगवा सद्धिं भिक्खु संघेन
कल लोहिच्च ब्राह्मण के घर भोजन स्वीकार करें।'
लोहिच्चस्स ब्राह्मणस्स स्वातनाय भत्तंं
भगवान् ने मौन रह कर स्वीकार कर लिया।
अधिवासेति भगवा तुण्हिभावेन।

तब रोसिक नाई भगवान् की स्वीकृति को जान
अथ खो रोसिका न्हापितो भगवतो अधिवादनंं विदित्वा उत्थायासना
भगवान को अभिवादन कर, प्रदक्षिणा कर
अभिवादेत्वा पदक्खिणंं कत्वा
जहाँ लोहिच्च ब्राह्मण था, वहां गया
येन लोहिच्च ब्राह्मणो तेनुप संकमि।
जा कर लोहिच्च ब्राह्मण से बोला-
उपसंकमित्वा लोहिच्चंं ब्राह्मणंं एतद वोच-
मैंने आपकी ओर से भगवान् से कहा-
अवोचुम्हा खो मयं भोतो वचनेन तं भगवन्तं-
भंते! लोहिच्च ब्राह्मण भगवान का
लोहिच्चो, भंते, ब्राह्मणो भवन्तं गोतमं
फासु विहारं पुच्छति, एवं वदेति-
भगवान अपने भिक्खुओं के साथ
'अधिवासेतु भंते, भगवा सद्धिं भिक्खु संघेन
कल लोहिच्च ब्राह्मण के घर भोजन स्वीकार करें।'
लोहिच्चस्स ब्राह्मणस्स स्वातनाय भत्तंं
और भगवान ने स्वीकार कर लिया।
अधिवुत्थं च पन तेन भगवा।

तब लोहिच्च ब्राह्मण ने उस राट के बीतने पर
अथ लोहिच्चो ब्राहमणो अच्चयेन(बीतने पर) तस्सा रत्तिया
अपने घर में अच्छी-अच्छी खाने-पीने की चीजें तैयार करा करके
सके निवेसने पणीतं खादनीयं भोजनीयं पटि-आदापेत्वा
रोसिक नाई को बुला करके कहा-
रोसिकं न्हापितं आमंतेसि-
सुनो भद्र रोसिक ! जहाँ समन गोतम हैं, वहां जाओ
एहि त्वं सम्म रोसिके, येन समणो गोतमो तेनुपसंकम
जाकर समन गोतम को समय की सूचना दो-
उपसंक मित्वा समणस्स गोतमस्स कालं आरोचेहि-
हे गोतम! भोजन का समय हो गया है, भोजन तैयार है।
कालो भो गोतमो, निट्ठितं भत्तंं।
बहुत अच्छा' कह रोसिक नाई
'एवं भो'ति  रोसिका न्हापितो
लोहिच्च ब्राह्मण की बात मान
लोहिच्चस्स ब्राह्मणस्स पटिस्सुत्वा
जहाँ भगवान थे, वहां गया
येन भगवा तेनुपसंकमि
जाकर भगवान् को अभिवादन कर एक और खड़ा हो गया
उपसंकमित्वा भगवन्तं अभिवादेत्वा एकमंतंं  अट्ठासि।
एक और खड़ा हो रोसिक नाई ने भगवान से कहा-
एकमंतंं ठितो खो रोसिका भगवन्तं आरोचेसि-
भंते ! समय हो गया है।  भोजन तैयार है।
कालो भंते, निट्ठितं भत्तंं'ति।

तब भगवान जहाँ लोहिच्च ब्राह्मण का घर था, वहां गए।
अथ खो भगवा येन लोहिच्च ब्राह्मणस्स निवेसनं, तेनुपसंकमि
जा कर बिछे आसान पर बैठ गए।
उपसंक मित्वा पञ्ञते आसने निसीदि।
तब लोहिच्च ब्राह्मण ने बुद्ध सहित भिक्खु-संघ को
अथ खो लोहिच्चो ब्राह्मणो बुद्ध पमुखं भिक्खु-संघं
अपने हाथ से अच्छी-अच्छी खाने और पीने की चीजें
पणीतेन खादनीयेन भोजनीयेन सहत्था
परोस-परोस कर खिलाई।
संतप्पेसि, सम्पवारेसि।

तब लोहिच्च ब्राह्मण भगवान के
अथ खो लोहिच्चो ब्राह्मणो भगवन्तं
भोजन समाप्त कर हाथ हटा लेने के बाद
भूताविं ओनित पत्त पाणिं
स्वयं एक दूसरा नीचा आसान लेकर
अञ्ञतरं नीचं आसनं गहेत्वा
एक ओर बैठ गया।
एकमंतं निसीदि।
एक ओर बैठे लोहिच्च ब्राह्मण को
एकमंतं निसिन्नं खो लोहिच्च ब्राह्मणं
भगवान ने ऐसा कहा-
भगवा एतदवोच-

लोहिच्च, क्या यह सच्ची बात है, तुम्हें
सच्चं किर ते, लोहिच्च,
इस प्रकार की बुरी धारणा उत्पन्न हुई है-
एवरूपं पापकं दिट्ठि गतं उप्पन्नं-
यहाँ कोई समन वा ब्राह्मण नहीं
इध न समणो वा ब्राह्मणो
जो अच्छे धर्म को जाने---
यो कुसलं धम्मं अधिगच्छेय्य ---
हाँ गोतम, ऐसी ही बात है।
एवं भो गोतमं।

तुम क्या सोचते हो लोहिच्च!
तं किं मञ्ञसि लोहिच्च
तुम सालविता के स्वामी हो न ?
ननु त्वं सालविकं अज्झावससि ?
हाँ, हे गोतम।
एवं भो गोतम।
 जो कोई ऐसा कहे -
यो नु खो एवं वदेय्य
जो सालवतिका की आय है
या सालविकाय समुदय सञ्ञाति
उसे लोहिच्च ब्राह्मण अकेला ही उपभोग करें
लोहिच्च बाह्मणो येव तं एकको परिभुञ्जेय्य
दूसरों को कुछ नहीं दें
न अञ्ञेसं परि ददेय्य
यह हानिकरक है या नहीं  ?
तेसं  अयं अंतरायको वा न अंतरायको ?
हाँ, वह हानिकारक है, गोतम
अंतरायको, भो गोतम।

इसी तरह से, लोहिच्च !
एव मेव खो, लोहिच्च
जो ऐसा कहे -
यो एवं वदेय्य
भला दूसरा, दूसरे के लिए क्या करेगा ?
किञ्हि परो परस्स करिस्सति ?
यह हानिकरक है या नहीं  ?
अयं अंतरायको वा न अंतरायको ?
यह हानिकारक है, गोतम
अयं अंतरायको, भो गोतम(स्रोत- दीघ निकाय)।
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अज्झावसति - घर में रहता है।
तदवसरि- वह
स्वातनो- बीता कल
कालं आरोचेहि- समय की सूचना दो 

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