Thursday, June 7, 2018

गिलान वत्थु कथा (विनय पिटक)


भगवा एतद वोच -
तेन खो पन समयेन अञ्ञतरस्स भिक्खुनो कुच्छि विकाराबाधो होति।
उस समय एक भिक्खु को पेट की बीमारी थी।

सो सके मुत्तकरीसे पलिपन्नो सेती।
वह स्वयं के मल-मूत्र में पड़ा था।

अथ खो भगवा आयस्मता आनन्देन पच्छा समणेेन
तब भगवान आयु. आनंद को पीछे लिए 
आहिंडन्तो येन तस्स भिक्खुनो तेनुपसंकमि।
घूमते हुए जहाँ वह भिक्खु था, पहुचे।

अद्दसा खो भगवा तं भिक्खुं
भगवान ने उस भिक्खु को
सके मुत्तकरिसे पलिपन्नं सयमानंं।
स्वयं के मल-मूत्र में पड़ा देखा।

दिस्वान येन सो भिक्खु तेनुपसंकमि।
देखकर जहाँ वह भिक्खु था, गए।
उपसंकमित्वा तं भिक्खुं  एतदवोच-
जाकर उस भिक्खु को कहा-

"किं ते भिक्खु आबाधो।"
"क्या तुम्हें भिक्खु रोग है ?"

"कुच्छि विकारो मे भगवा।"
"पेट में विकार है मेरे, भगवान।"

"अत्थि पन ते, भिक्खु उपट्ठाको।"
" है किन्तु  तुम्हारे पास भिक्खु ! कोई परिचारक ?"

"नत्थि, भगवा।"
"नहीं है, भगवान।"

"किस्स तं भिक्खु न उपट्ठेन्ति।"
"क्यों तेरी भिक्खु परिचर्या नहीं करते ?"

"अहं खो,  भन्ते ! भिक्खूनंं अकारको।"
"मैं, भंते! भिक्खुओं का कोई काम करने वाला नहीं हूँ।"

"तेन मं भिक्खू न उपट्ठेन्ति।"
"इससे मेरी भिक्खु परिचर्या नहीं करते।"

अथ खो भगवा आयस्मन्तं आनन्दं आमंतेसि-
तब भगवान ने आनंद को संबोधित करते हुए कहा-

"गच्छ आनन्द! उदकं आहर,
"जा आनंद ! पानी ला,

 इमं भिक्खुं नहापेस्सामि' ति। "
इस भिक्खु को नहालायेंगे।" ( स्रोत- गिलान वत्थुकथा : महावग्ग : विनय पिटक )।
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अञ्ञतर- कोई 

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