Monday, October 21, 2019

विभत्ति पयोगा(1)

विभत्ति पयोगा
अथ विभित्ति पच्चया दीपियन्ते।

कत्ता(कर्ता)/पठमा कारक-
पठमात्थमत्ते
1. कर्ता के अर्थ में। यथा-
दारको पठति। लड़का पढ़ता है।
बुद्धो देसेति। बुद्ध धम्मोपदेश करते हैं।
बालको गच्छति। बालक जाता है।
कञ्ञा पठति। कन्या पढ़ती है।
सो राजा अहोसि। वह राजा हुआ करता था।
एसो दारको होति। यह लड़का होता है।

कम्मे दुतिया-
1. कर्म में अर्थ में-
दारको पोथकं पठति। लड़का पुस्तक पढ़ता है।
सुदो ओदनं पचति। रसोइया भोजन पकाता है।

2. समय में-
सामणेरो मासं विनयं पठति।
सामणेर महिना भर विनय पढ़ता है।
गेहो दिवसं सुञ्ञो तिट्ठति। घर दिन भर सुना रहता है।
सो इध तेमासं वसि। वह यहां तीन महीने रहा।
द्वी‘हं अतिक्कतं। दो दिन व्यतीत हो गए।

3. दूरी में-
वणिजो कोसं गच्छति। बनिया कोस भर जाता है।
कोसं पब्बतो। कोस भर पहाड़ है।
कोसं पच्चन्तं गामा। कोस भर सीमान्त गांव है।
योजनं दीघो पब्बतो। पर्वत एक योजन लम्बा है।
कोसं कुटिला नदी। नदी कोसं भर टेढ़ी-मेढ़ी है।

4. गत्यात्मक क्रियाओं के साथ-
सो गामं गच्छति। वह गावं जाता है।

5. क्रिया-विशेषण रूप में-
राजा सुखं वसति।
राजा सुख से रहता है।
पुञ्ञाकारी सुखं सुपति।
पुन्यकारी सुख से सोता है।
पापकारी दुखं सेति।
पापकारी दुक्खपूर्वक जीता है।

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