Wednesday, January 8, 2020

महाबोधिविहार; तब और अब !

शायद,  12 वीं शताब्दी के पहले बोधगया मंदिर के नमूने बन कर बिका करते थे।  तिब्बत के यात्री अपने साथ इन नमूनों को ले गए थे। उन्हें देखने से मालूम होता है बोध गया के प्रधान मंदिर, जिसके पूरब तरफ तीन दरवाजे थे, के पश्चिम की ओर बोधि वृक्ष के पास भी एक दरवाजा-सा था।  उसके आस-पास बहुत से स्तूप और मंदिर थे और सभी एक चहार दिवारी से घिरे थे; जिसमें दक्षिण, पूर्व,उत्तर की ओर तीन विशाल द्वार भिन्न-भिन्न आकार के थे। वर्त्तमान बोधगया मंदिर का जब पिछली शताब्दी में जीर्णोंध्दार हुआ तो उसके कितने ही भाग गिर गए थे।  और जीर्णोध्दारकों के सामने पुराने मंदिर का कोई नमूना नहीं था इसलिए तिब्बत में प्राय: नमूने से वर्तमान मंदिर में कहीं-कहीं भिन्नता पाई जाती है(वही, पृ 251-52 )।

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