Monday, July 29, 2019

निर्वाण

निर्वाण
दुक्ख के क्षय को 'निर्वाण' कहा गया है। किन्तु दुक्ख का क्षय किस तरह संभव है, इसके लिए सुत्तनिपात, जो बुद्धवचनों की प्रमाणिकता के लिए अधिक विश्वनीय है, में एक गाथा आयी है-
नन्दी-संयोजनो लोको, वितक्कस्स विचारणा।
तण्हाय विप्पहानेन, निब्बानं 'ति वुच्चति।। सुत्त निपात : 1109।।
नन्दी (तृष्णा/लोभ) वह तंतु है जिससे लोक-बंधन में मनुष्य गुथा होता है। तृष्णा को नियंत्रित करना ही 'निर्वाण' है.
सुत्तनिपात से ही एक और गाथा देखें-
यस्मिं कामा न वसन्ति, तण्हा यस्स न विज्जति ।
कथंकथा च यो तिण्णो, विमोक्खो तस्स न परो।। 1089।।
इसी तारतम्य में मराठी का एक अभंग देखें-
देह हाड़का च किल्ला, रक्त मासाने लिपिला।
मृत्यु आणि वृद्धपन, तैसे मत्सर अभिमान।
सर्वे वैरी हे आपुले, देह लपुनि बसले।
देह आशक्ति धरु नका, सांगे तथागत लोका।।

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