*आरक्षण "जाति" पर आधारित नही है - भाग 1*
1) अगर आरक्षण "जाति" के आधार पर होता तो आदिवासी / Tribals / Scheduled Tribes यह कभी भी आरक्षण के दायरे मे नही आते, उन्हे आरक्षण नही दिया जाता क्योंकि आदिवासियों की सभ्यता मे जातियां नही है। There is no concept of Caste in Tribal societies.
2) आदिवासी सभ्यता मे वर्ण व्यवस्था, जाति व्यवस्था नही है, छूआछूत भी नही है। आदिवासियों मे जातियां 'नही' होने की वजह से उन्हें "जाति" का प्रमाणपत्र (Caste Certificate) 'नही' दिया जाता, उन्हें "जनजाती" का प्रमाणपत्र (Tribe Certificate) दिया जाता है। जबकि "जाति" का प्रमाणपत्र (Caste Certificate) केवल SC और OBC वर्ग को दिया जाता है।
3) जाति और जनजाति, Caste और Tribe मे जमीन आसमान का अंतर है, और यह अंतर गुणात्मक है । दोनो बिलकुल ही भिन्न भिन्न बातें है ।
जातियो का हर समूह सामाजिक दर्जे के लिहाज से एक दूसरे के उपर या नीचे (superior या inferior ) है, मतलब हर जाति समूह का सामाजिक दर्जा "असमान" है - The social status of every caste group is UN-EQUAL.
4) लेकिन आदिवासियों मे कोई भी जनजाति अपने आप को किसी दूसरी जनजाति से उपर (superior) या नीचे ( inferior) नही समझती है। मतलब हर जनजाति समूह का सामाजिक दर्जा "समान" है. The social status of every tribal group is EQUAL.
चमार, भूमिहार, कुर्मी / कुनबी, इत्यादि यह "जातियों" के समूह है, जिनमे क्रमिक असमान सामाजिक दर्जा दिखाई देता है, और इनका आपस मे सामाजिक व्यवहार, सम्मान, द्वेष यह एक दूसरे के सामाजिक दर्जे को देखकर होता है।
5) दूसरी तरफ गोंड, भील,महरा, कोरकू वगैरह यह "जन-जातियों" के समूह है, इसमे कोई समूह अपने आप को दूसरे समूह से सामाजिक तौर पर ऊंचा या नीचा नही समझता । इनके आपस के सामाजिक व्यवहार में श्रेष्ठता / कनिष्ठता का भाव नही दिखाई देता ।
6) पूरे देश मे 1108 असपृश जातियां (SC) है और 5000 से ज्यादा पिछडी (OBC) जातियां है याने कुल 6108 जातियां है । यह Main land society है जो छ हजार से ज्यादा जातियों का समूह है। इसी तरह पूरे देश मे 744 से ज्यादा जन-जातियां (Tribes/Tribal groups) है जो की Forest land society है ।
"जातियों " पर आधारित समाज रचना Veritcal है लेकिन "आदीवासियों" की समाज रचना Horizontal है.
7) आदिवासियों मे Castes/जातियां नही होने के बावजूद भी उन्हें आरक्षण का लाभ दिया जाता है, इससे यह सिद्ध होता है की आरक्षण "जाति" पर आधारित नही है। अगर ऐसा होता तो आदिवासी समूह आरक्षण के लिए पात्र नहीं होते।
अगर आरक्षण "जाति" के आधार पर नही दिया जाता तो उसका क्या आधार है ? Please read part 2.
*आरक्षण "जाति" पर आधारित नही है - भाग 2*
1) संविधान का Article 15(4) और 15(5) यह सामाजिक और शैक्षिक तौर पर पिछडे वर्गों के लिए "शिक्षा" मे विशेष प्रावधान करने का अधिकार राज्य को देता है । यहाँ सामाजिक पिछड़ापन और शैक्षिक पिछड़ापन इन बातों पर जोर दिया गया है ।
Article 16(4) यह राज्य को "किसी" भी पिछड़े वर्ग के लिए अपनी सेवाओं मे नियुक्तियों (appointments) और पदों (posts) के लिए आरक्षण का प्रावधान करने के अधिकार देता है । यहाँ पिछड़ापन यह किसी भी तरह का हो सकता है ।
2) यहाँ दोनों जगह पर संविधान समाज के कुछ वर्ग के पिछड़े होने की बात को मान्य करता है और इसका संज्ञान लेते हुए "सामाजिक न्याय" को प्रस्थापित करने के लिए उन्हें विशेष सुरक्षा प्रदान करने की व्यवस्था करता है । OBC, SC, ST, NT, DNT यह वो अलग अलग तबके है जिनके पिछडे होने की पहचान हो चुकी है, यह गौर करने वाली बात है की यह सारे समूह भी अलग अलग विशेषता रखते है ।
3) OBC वर्ग को "शूद्र" घोषित किया गया था जो श्रमप्रधान, मेहनत मजदूरी करने वाला वर्ग था, SC वर्ग को "अस्पृश्य" "अछूत" (untouchable) घोषित किया गया था । ST, NT, DNT वर्ग को उनकी अपनी अलग सभ्यता, अलग बोली, अलग रूढ़ी पहचान, अलग रहन सहन इत्यादि कारणों से स्वीकार नही किया गया । इन सभी पिछड़े वर्गों की लोकसंख्या देश के आबादी की 75% से 85% है । प्रश्न यह है की भारत के समाज का इतना बड़ा यह वर्ग पिछड़ा क्यों रहा ?
4) क्या यह वर्ग आदिकाल से ही या इतिहास के शुरुवात से ही पिछड़ा रहा है ? क्या यह वर्ग नैसर्गिक तौर से ही पिछड़ा रहा है ? नही, इस वर्ग का पिछड़ापन यह किसी अनैसर्गिक व असामाजिक व्यवहार का सामूहिक परिणाम (collective result है।
5) वह कौनसा अनैसर्गिक व असामाजिक व्यवहार था जिसकी वजह से 75% से 85% समाज का वर्ग बाकी वर्ग से पीछे रहा ? What was this un-natural and anti-social behaviour because of which this 75% to 85% class remained backward ?
6) यह था असमानता का व्यवहार (Inequality), यह था भेदभाव का व्यवहार (Discrimination), यह था नैसर्गिक और मानवाधिकारों से वंचित रखने का व्यवहार (Deprivation of natural & human rights), यह था प्रगति के अवसरों को नकारने का व्यवहार (Denial of opportunities to progress).
इन चारों अनैसर्गिक असामाजिक व्यवहारों को चर्चा के लिए संक्षिप्त में हम ID3 कहेंगे, I से Inequality, D से Discrimination, D से Deprivation, D से Denial. एक बार I और तीन बार D, इस तरह से ID3.
7) OBC वर्ग के साथ, SC वर्ग के साथ, ST, NT, DNT वर्ग के साथ भी ID3 का व्यवहार हुआ । इस ID3 के व्यवहार का सामूहिक और ऐतिहासिक परिणाम है इन वर्गों का सामाजिक पिछड़ापन, शैक्षिक पिछड़ापन और आर्थिक पिछड़ापन ।
इसी पिछड़ेपन का नतीजा है इन वर्गों का देश के शासन प्रशासन (Governance & Administration) में प्रतिनिधत्व का अभाव, कानून बनाने (Law making) तथा कानून का अमल करने (Law implementation) की प्रक्रिया में प्रतिनिधत्व का अभाव।
8) पूरी दुनिया के विविध देशों में किसी न किसी समूह / समुदाय के साथ ID3 - Inequality, Discrimination, Deprivation, Denial के स्वरूप में अनैसर्गिक असामाजिक व्यवहार होता रहा है । इस ID3 का स्त्रोत/कारण अलग अलग देशों में अलग अलग है जैसे - जाती, वंश, वर्ण, लिंग, भाषा, धर्म, क्षेत्र (Caste, Race, Colour, Gender, Language, Religion, Region)
इसका परिणाम दुनिया के विविध देशों में विभिन्न समूहों के प्रताड़न/शोषण में हुआ जिसकी वजह से वह भी "पिछड़े" रह गए ।
9) इसलिए आरक्षण जैसी सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था केवल भारत मे ही नही बल्कि दुनिया के अन्य विकसित देशों में भी कानूनी तौर पर लागू की गई है - USA, Canada, Brazil, UK, Germany, Finland, France, Norway, Romania, South Africa, China, Japan, Taiwan, S Korea, Malaysia, Phillipines इत्यादी ।
इन देशों में वहाँ की स्थानिक परिस्थितियों के अनुरूप ऐसी व्यवस्था को अलग स्वरूपों में तथा अलग अलग नामों से बनाया गया है - Affirmative action, Reasonable accommodation, Positive action, Positive discrimination, Preferential Treatment, Policy of Equalisation, Proportional representation, Equal opportunities.
10) उदाहरण के तौर पर अमेरिका में निग्रोज, वंशिक अल्पसंख्यक लोगो को सुरक्षा प्रदान करने के लिए Civil Rights Act और Equal Employment Opportunity Act बनाया गया है । लेकिन इसका यह मतलब नही है की वह लोग काले वर्ण के होने की वजह से उन्हें इस तरह की कानूनन सुरक्षा दी गयी है,
उन लोगो के साथ भी असमानता का व्यवहार (Inequality) हुआ था , उन लोगो के साथ भी भेदभाव का व्यवहार हुआ था (Discrimination), उन लोगो को भी उनके नैसर्गिक और मानवाधिकारों से वंचित रखा गया था (Deprivation of natural & human rights), उन लोगो के भी प्रगती के अवसरों को नकारा गया था (Denial of opportunities to progress).
11) जिस तरह से भारत मे OBC, SC, ST, NT, DNT समूहों के साथ ID3 (Inequality, Discrimination, Deprivation, Denial) का अनैसर्गिक असामाजिक व्यवहार हुआ था
वही ID3 का व्यवहार America में निग्रोज, वांशिक अल्पसंख्यक समूहों के साथ हुआ था ।
वही ID3 का व्यवहार Canada में Metis, Inuit समूहों के साथ हुआ था ।
वही ID3 का व्यवहार Brazil में Pardo समूहों के साथ हुआ था ।
वही ID3 का व्यवहार Britain में महिलाओं तथा धार्मिक / वांशिक अल्पसंख्यक समूहों के साथ हुआ था ।
वही ID3 का व्यवहार France के ग्रामीण भौगोलिक क्षेत्र में रहने वाले समूहों के साथ हुआ था ।
वही ID3 का व्यवहार Norway में महिलाओं के साथ हुआ था ।
वही ID3 का व्यवहार Phillipines में मूलनिवासी समूहों के साथ हुआ था ।
वही ID3 का व्यवहार Romania में Roma समूहों के साथ हुआ था ।
वही ID3 का व्यवहार China में Hui, Miao इत्यादी वांशिक अल्पसंख्यक समूहों के साथ हुआ था ।
वही ID3 का व्यवहार Japan में Burakumin समूहों के साथ हुआ था ।
वही ID3 का व्यवहार South Africa में मूलनिवासी African लोगो के साथ हुआ था ।
12) भ,ारत सहित इन सभी देशों में जिन समूह/समुदाय में जो शोषण, प्रताड़न और पिछड़ापन पाया जाता है उसका सीधा और मुख्य कारण इनके साथ किया गया ID3 का व्यवहार है, और ईससे सुरक्षा प्रदान करने के लिए जिस तरह से इन सभी देशों ने कानूनी व्यवस्था की है उसी तरह से भारत मे संवैधानिक आरक्षण की व्यवस्था की है ।
इस तरह भारत मे आरक्षण का मूल आधार "जाति" ना होकर OBC, SC, ST, NT, DNT समूहों के साथ किया गया ID3 (Inequality, Discrimination, Deprivation, Denial) का अनैसर्गिक असामाजिक व्यवहार है । अगर आरक्षण "जाति" के आधार पर होता तो ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य इन वर्णो में जो जाति समूह है उन्हें भी आरक्षण का लाभ मिलता लेकिन इनके साथ किसी भी तरह का ID3 का व्यवहार नही हुआ जिसकी वजह से इनमे कोई पिछड़ापन नही दिखाई देता है ।
*आरक्षण जाति पर आधारित नही है - Part 3*
अगर आरक्षण जाति पर आधारित नही है तो जाति / जनजाति प्रमाण पत्र (Caste / Tribe certificate) की जरूरत क्यों होती है ?
भाग 1 और 2 में भारत की संवैधानिक आरक्षण प्रणाली किस तरह 'जाति' पर आधारित नही है बल्कि उसका आधार ID3 है यह बात संवैधानिक प्रावधानों, समाजशास्त्रीय तथ्यों और अन्य देशों के उदाहरणों से हमने देखी है। लेकिन एक सवाल जो इस संदर्भ में सामने आना चाहिए था वो पूछा नही गया । वह सवाल यह है कि अगर आरक्षण जाति पर आधारित नही है तो जाति/जनजाति प्रमाण पत्र (Caste / Tribe certificate) की जरूरत क्यों होती है ?
अगर हम राशन की दुकान में कम कीमतों (subsidized rates) पर अनाज खरीदना चाहे तो वह दुकानदार हमे BPL का राशनकार्ड मांगेगा । यह राशनकार्ड वह जरिया है जिससे केवल जो लाभार्थी है, पात्र व्यक्ति है उसकी पहचान हो सके और उसी को ही इसका लाभ मिल सके, कोई अन्य व्यक्ति जिसे जरूरत नही है वह इसका लाभ न ले सके । उसी तरह जाति/जनजाति प्रमाणपत्र (Caste / Tribe certificate) यह केवल Identification के लिए है, पात्र समूह और व्यक्ति की पहचान करने के लिए है । यह प्रक्रिया दो स्तरों पर होती है :-
पहली संवैधानिक प्रक्रिया - इसमे उन 'समूहों' की पहचान की जाती है जिनके साथ ID3 का व्यवहार होने की वजह से उनमे सामाजिक, शैक्षिक तथा आर्थिक पिछड़ापन दिखाई देता है ।
Article 340 - OBC समूहों की पहचान करने के लिए है, Article 341 - SC समूहों की पहचान करने के लिए है और Article 342 - ST समूहों की पहचान करने के लिए है । इन तीन समूहों की तीन अलग अलग सूची (Lists) बनाई जाती है ।
दूसरी प्रशासकीय प्रक्रिया - इसमे जिन 'समूहों' की संवैधानिक रूप से पहले पहचान हो गयी है उन समूहों के 'व्यक्तियों' की पहचान की जाती है और केवल इन्ही व्यक्तियों को जाति/जनजाति प्रमाणपत्र (Caste / Tribe certificate) जारी किए जाते है ।
सवर्णो - ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य में भी अलग अलग जाति समूह होते है लेकिन उन्हें इस तरह के जाती प्रमाणपत्र (Caste certificate) नही दिए जाते क्योंकि उनके साथ किसी भी तरह का ID3 का व्यवहार न होने की वजह से उनमे कोई पिछड़ापन नही पाया जाता ।
जाति/जनजाति प्रमाणपत्र (Caste / Tribe certificate) यह केवल Identification के लिए है, ताकि केवल पात्र समूह और व्यक्ति को ही आरक्षण का संरक्षण प्राप्त हो सके ।
*आरक्षण जाति पर आधारित नही है - Part 4*
1) भाग 1 और भाग 2 में हमने जाना की भारत की संवैधानिक आरक्षण प्रणाली किस तरह 'जाति' पर आधारित ना होकर ID3 - Inequality, Discrimination, Deprivation, Denial पर आधारीत है और इस बात की पुष्टि संवैधानिक प्रावधानों, प्रशासकीय प्रक्रिया, समाजशास्त्रीय तथ्यों और अन्य देशों के उदाहरणों द्वारा भी हो गयी ।
फिर भी आरक्षण को 'जातिगत' 'Caste based' बोला जाता है, लोगो के मन मस्तिष्क में यह डाला गया है की आरक्षण जाति पर आधारित है और पूरे देश मे इस तरह का माहौल तैयार किया गया है । सारे newspapers, news channels केवल आरक्षण यह शब्द प्रयोग नही करते, वह जातिगत आरक्षण, Caste based reservation ऐसा शब्द प्रयोग करते है ।
2) इस विषय पर चर्चा करने के लिए जिन लोगो को बुलाया जाता है वो यह मानकर चर्चा शुरू करते है कि आरक्षण जाति पर आधारित है। दुर्भाग्य की बात यह है की जो आरक्षण के पक्ष में बात करने वाले लोग है उन्होंने ऐसा बोलने वालों को कभी रोका नही, क्योंकि इतने सालों से वो भी यही बात सुनते आए है, इसलिए उन्होंने भी यह स्वीकार कर लिया है । आरक्षण को 'जाति' आधारित बताकर, 'जाति' के साथ जोड़कर आरक्षण विरोधी, संविधान विरोधी लोग क्या हासिल करना चाहते है ?
3) आरक्षण को 'जाति' के साथ जोड़कर वह यह प्रचार कर रहे है।कॉलेज के Students, युवा, दोस्त एक दूसरे को जाती से जानने लगते है और इससे समाज मे जातीयता, जातीवाद (Casteism) फैल रहा है । वो यह Reverse argument देना चाहते है कि अगर समाज से जातीयता, जातीवाद मिटाना चाहते हो तो पहले आपको जाति आधारित आरक्षण खत्म करना होगा ।
4) यह Reverse argument इसलिए है क्योंकि ब्राम्हणवादी वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था द्वारा किए गए ID3 के व्यवहार की वजह से आरक्षण जैसी सुरक्षा प्रणाली निर्माण करने की जरूरत पड़ी। अगर हमे आरक्षण समाप्त करना है तो पहले ब्राम्हणवादी वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था द्वारा किए गए ID3 के व्यवहार को नष्ट करना पड़ेगा। लेकिन ऐसा करने की बात कोई भी आरक्षण विरोधी करते नही दिखाई देता ।
5) ब्राम्हणवादी वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था द्वारा किया गया ID3 का व्यवहार यह सामाजिक मानसिक बीमारी है, Socio-psychological illness है जिससे सवर्ण वर्ग ग्रसित है। लेकिन उनकी बीमारी का असर, दुष्परिणाम पिछड़े वर्गों पर हो रहा था, जिसकी वजह से इनमे पिछड़ापन आ गया । इस बीमारी से बचाव करने के लिए आरक्षण रूपी दवाई / इलाज / treatment को ईजाद करना पड़ा । जिस दिन बीमारी खतम हो जाएगी उस दिन से दवाई लेने की जरूरत नही पड़ेगी, लेकिन क्या आरक्षण विरोधी इस बीमारी को खत्म करने की बात कर रहे है ? नही, वह केवल दवाई को खत्म करने की बात कर रहे है ।
6) इस आरक्षण रूपी दवाई को संविधान ने 1950 में निर्माण किया। इसके पहले देश मे आरक्षण की व्यवस्था नही थी तो क्या लोग एक दूसरे को जाति से नही जानते थे ? जाति के आधार पर व्यवहार नही करते थे ? अपनी जाति को श्रेष्ठ मानकर गर्व नही करते थे ? शुद्र यानी OBC पिछड़े जाति के लोगो को पढ़ने का अधिकार, व्यवसाय का अधिकार, धन संपत्ति अर्जित करने का अधिकार प्रदान करते थे ? अछुतो और आदिवासियों को मानवाधिकार प्रदान करते थे ?
अगर इन सभी बातों का उत्तर नहीं है, तो इसका मतलब है कि जब आरक्षण नही था, तब भी ब्राम्हणवादी वर्ण व्यवस्था और जाती व्यवस्था पूरे जोर से ID3 का व्यवहार कर रही थी, तो आरक्षण समाप्त करने से जातीवाद, जातीव्यवस्था खत्म हो जाएगी यह कहना केवल अतार्किक ही नही बल्कि हास्यास्पद भी है । इसलिए इसको हम Reverse argument कहते है ।
7) आरक्षण को 'जातिगत' 'Caste based' बताकर वह OBC SC ST बच्चों, नौजवानो, छात्र छात्राओं के मन मे न्यूनभाव (inferiority), अपराधभाव (guilt) पिरो रहे है, उनका मनोबल गिरा रहे है (demoralise) ताकि उन्हें शर्म आए ( embarass) यह बताते हुए की वह आरक्षण के माध्यम से चुने गए है ।
आरक्षण को 'जातिगत' 'Caste based' बताकर वह इस बात को छुपाना चाहते है की सवर्णो (ब्राम्हण, क्षत्रीय, वैश्य) ने OBC SC ST के साथ ID3 - Inequality, Discrimination, Deprivation, Denial का व्यवहार किया था ।
8) जैसे ही हम आरक्षण को ID3 आधारित बताते है वैसे ही यह व्यवहार जिन्होंने किया वो सवर्ण वर्ग (ब्राम्हण, क्षत्रीय, वैश्य) Focus में आ जाता है । ऐसा न हो इसलिए आरक्षण को जाति आधारित बताया जाता है ताकि OBC SC ST वर्ग Focus मे आता रहे ।
जैसे ही हम आरक्षण को ID3 आधारित बताते है तो
OBC SC ST वर्गों को उनके सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक पिछड़ेपन का कारण पता चल जाता है ।
OBC SC ST वर्गों को यह भी समझ मे आने लगता है की उन्हें शुद्र और अछूत क्यों घोषित किया गया, किसने किया ।
OBC SC ST वर्गों को यह समझ मे आने लगता है की ब्राम्हणवादी वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था क्या है, इससे कौन लाभान्वित हुए और कौन प्रताड़ित हुए ।
OBC SC ST वर्ग यह सोचने लगता है की इस ID3 के व्यवहार के विरोध मे किन लोगों ने संघर्ष किया और उन्हें मानवाधिकार किसने बहाल किये ।
OBC SC ST वर्ग को उनके संवैधानिक सुरक्षा एवं अधिकारों का एहसास होने लगता है ओर वह उनके प्रति जागरूक बनने लगते है ।
9) यह सारी बातें ब्राम्हणवादी वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था के विरोध में जाती है। लोगों का दृष्टिकोण ब्राम्हणवादी वर्ण व्यवस्था और जाती व्यवस्था के विरोध में जाता है और संविधान के समर्थन में हो जाता है, इसलिए आरक्षण को ID3 आधारित ना बताकर जाति आधारित बोला जाता है । यह बात केवल आरक्षण के विरोध तक सीमित नही रहती बल्कि इससे और गंभीर होकर संविधान के विरोध तक आकर रुकती है और इसीलिए दिल्ली के जंतर मंतर पर आरक्षण विरोधी लोगो ने संविधान को जलाया है ।
10) आरक्षण के सन्दर्भ मे इस सबसे बडी चालाकी, सबसे बडी बदमाशी, सबसे बडे झूठ, सबसे बडा फरेब को अगर हम उजागर कर पाए तो लोगो का दृृृष्टिकोण आरक्षण समाप्त करने की बजाए ब्राम्हणवादी वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था को नष्ट करने की तरफ हो जाएगा। OBC SC ST वर्ग के लोगो को आरक्षण को लेकर अपमानित या embarass नही होना पड़ेगा और focus मे ID3 का व्यवहार करने वाले लोग आ जाएंगे ।
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