Tuesday, July 16, 2019

बोधिसत्व जन्म कथा

बोधिसत्व 
गौतम बुद्ध को जन्म से बुद्धत्व प्राप्त करने तक उन्हें 'बोधिसत्व' कहने की परम्परा बहुत प्राचीन है। ति-पिटक अंतर्गत ग्रंथों में सबसे प्राचीन ग्रन्थ* 'सुत्तनिपात' में कहा गया है-
"सो बोधिसत्तो रतनवरो अतुल्यो। 
मनुस्स लोके हित सुखाय जातो।
सक्यानं गामे जनपदे लुम्बिनेय्य।।"
धीरे-धीरे उनके साथ पूर्वजन्म की कथाएँ भी जोड़ दी गई जो कि ब्राह्मण/क्षत्रिय कुल से आए उनके अनुयायियों के लिए बिलकुल स्वाभाविक था।  

बोधिसत्व जन्म कथा-
ललितविस्तर हो, या दीघनिकाय का महापदानसुत्त अथवा जातक कथा; बोधिसत्व का जन्म कम चमत्कार भरा नहीं है ? बौद्ध राजदरबारी कवियों और कथाकारों ने हिन्दू उपनिषदों की तर्ज पर कल्पना के आकाश में उड़ने की कोई कसर नहीं छोड़ी।
महामाया पि देवी दस मासं कुच्छिना(कोख में) बोधिसतं परिहरि(धारण किया)। ञाति(सम्बन्धी) घरं गन्तुकामा(जाने की इच्छा से) महाराजस्स(महाराज को) आरोचेसि(सूचित किया)। राजा ‘साधू‘ ति सम्पटिच्छि(स्वीकार किया)।

कपिलवत्थु तो देवदह नगरा(नगर तक) याव मग्गं(मार्ग) समं(समतल) कारेसि(किया)। उभयं नगर वासीनं पि लुम्बिनी वनं नाम सालवनं अहोसि(था)। देवी सालवनं पाविसि(प्रवेश किया)। सा साल साखं गण्हि(पकड़ा)। तावदेव(उस समय) तस्सा(उनको) कम्मज-वाता(प्रसव-वेदना) चलिंसु(हुई थी)। अथ(तब) तस्सा(उसको) साणिं(कनात) परिक्खिपिंसु(चारों ओर घेरा)।

बोधिसत्तो धम्मा सनतो धम्म-कथिको विय निक्खमि(पैदा हुए)। दस पि दिसा अनु-दिसा विलोकेसि(देखा)। उत्तरायं दिसायं सत्त-पदं(सात कदम) वितिहारेन(चल) अगमासि(आएं)। ततो सत्तमे पदे(सातवें कदम पर) अट्ठासि (खड़े हो गए)।
‘अग्गो’(अग्र) अहं(मैं) अस्मि(हूं) लोकस्स(लोक में) ति आदिकं(आदि) आसभिं(वृषभ गर्जना) वाचं(शब्द) निच्छारेसि(निकालें)। सिहनाद नदि(गर्जना की) (भदंत आनंद कोसल्यायन: आवश्यक पालि 31 दिन में)।
और जब बाबासाहब डॉ.अम्बेडकर ने बौद्ध ग्रंथों में ही बुद्ध को चमत्कारों की भर्त्सना करते देखा, कालाम सुत्त की आगाज सुनी, अपने 'अप-कृत्यों' से निजात पाने निगंठनाथ (वर्द्धमान महावीर) अनुयायियों के उनकी पुनर्जन्म सम्बन्धी संकल्पना को झिड़कते देखा, जन्म से ब्राह्मण सिद्ध करने वाली अग्नि भारद्वाज ब्राह्मण की थ्यौरी को नकारते देखा, उनके अपने अनुयायियों को उन्हें 'सर्वज्ञ' कहे जाने पर निंदा करते देखा, तो विद्वान् डाक्टर को यह समझते देर नहीं लगी कि बुद्ध वैसे कदापि नहीं है, जैसे कि उन्हें दिखाया किया जाता है। बुद्ध ने इन अनर्गल बातों का न सिर्फ कडाई से खंडन किया बल्कि, उन्हें भी लताड़ते रहें जो उनके नाम पर इस तरह का कु-प्रचार करते रहे.
और इसलिए, बाबासाहब अम्बेडकर को 'बुद्धा एंड हिज धम्मा' लिखना आवश्यक जान पड़ा। बुद्ध अनुयायियों के लिए यह ग्रन्थ एक रिफरेन्स ग्रन्थ है, बुद्ध को समझने और जानने का । यद्यपि 'बुद्धा एंड हिज धम्मा' ति-पिटक ग्रंथो से ही लिखा गया है तो भी सामान्य पाठकों को ति-पिटक ग्रन्थ अत्यंत सावधानी से पढ़ने की जरुरत है.
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स्रोत -1. भगवान बुद्ध; जीवन और दर्शन पृ 78: धर्मानंद कोसंबी। 
आधार ग्रन्थ-  1. ललितविस्तर 2. 'जातक' की निदान कथा 3. महापदान सुत्त(दीघनिकाय)
*अशोक के भाबरू वाले शिलालेख में जिन 7 बुद्धोपदेशों को भिक्खुओं, भिक्खुनियों, उपासकों, उपासिकाओं को बार-बार सुनने और कंठस्त करने का सम्राट ने आग्रह किया है, उन में से 3 सुत्त निपात से हैं( भगवान बुद्ध; जीवन और दर्शन पृ 21-22).

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