बुद्धचरित और डॉ अम्बेडकर
1. भारतीय समाज के एक बड़े वर्ग की दिलचस्पी बौद्ध धर्म में बढ़ती जा रही थी(बाबासाहब डॉ. अम्बेडकरः परिचयः बुद्धा एण्ड हिज धम्मा)। बाबासाहब स्वयं भी उत्तरोतर बुद्ध के धर्म की ओर आकृष्ट हो रहे थे। स्वाभाविक रूप से बुद्ध के चरित्र और उनकी शिक्षाओं के संबंध में एक ऐसे ग्रंथ की आवश्यकता थी, जो विशेषतया उस वर्ग की अपेक्षाओं की पूर्ति करें जो हिन्दुओं की हठधर्मी से निराश हो चुका था।
2. बुद्ध के चरित्र और शिक्षाओं के संबंध में डॉ. अम्बेडकर के पास ति-पिटक ग्रंथ थे। दीघनिकाय आदि पालि ग्रंथों के आधार पर बुद्ध का जीवन चरित्र लिखना सहज नहीं था(वही)।
3. यह कहने में कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं कि संसार में जितने भी धर्मों के संस्थापक हुए हैं, उनमें बुद्ध का चरित और उनकी शिक्षाएं अनुपम है, अनुत्तर है।
4. दीघनिकाय के ‘महापदान सुत्त’ में गौतम बुद्ध से पहले के छह बुद्धों और गौतम बुद्ध के चरित्र दिए गए हैं। गौतम बुद्ध से पहले सिखी, विपस्सी, वेस्सभू, ककुसंघ, कोणागमन और कस्सप ये छह बुद्धों का वर्णन हैं। इसमें पौराणिक विपस्सी बुद्ध का वर्णन विस्तार से और शेष पांच बुद्धों का वर्णन संक्षेप में दिया गया है(धर्मानन्द कोसम्बीः भगवान बुद्ध जीवन और दर्शनः परिशिष्ट- 1ः पृ. 205)।
5. ति-पिटक में एक ही स्थान पर बुद्धचरित नहीं है। वह जातक अट्ठकथा की निदान कथा में मिलता है। यह अट्ठकथा संभवतया बुद्धघोष(340-440 ईस्वी) के समकाल में लिखी गई थी। उससे पहले की सिंहली अट्ठकथाओं से बहुत सी बातें इस अट्ठकथा में आयी है। यह बुद्धचरित प्रधानतया ललितविस्तर के आधार पर लिखा गया है(धर्मानन्द कोसम्बीः भगवान बुद्ध जीवन और दर्शन पृ. 22)।
6. विपस्सी बुद्ध की जीवनी बहुत विस्तार के साथ दी गई और उस जीवन पर से ललितविस्तरकार ने अपने पुराण की रचना की है। इस प्रकार गौतम बुद्ध के जीवन चरित में बहुत सी असंगत उटपटांग बातें घुस गई है(धर्मानन्द कोसम्बीः भगवान बुद्ध जीवन और दर्शन पृ. 22)।
7. ललितविस्तर ग्रंथ सम्भवतया ईसा की प्रथम शताब्दी में या उससे कुछ वर्ष पहले लिखा गया था। यह महायान का ग्रंथ है(वही)।
8. 6. ललितविस्तर में वर्णित बुद्धजीवनी के कुछ ही समय बाद अश्वघोष ने ‘बुद्धचरित’ लिखा। शायद, ललितविस्तर से ही प्रेरणा ले कर। यह भी संस्कृत महाकाव्य है।
7. अश्वघोष, सम्राट कनिष्क (78-120 इस्वी) के समकालीन थे। संस्कृत महाकाव्य ‘बुद्धचरित’ की रचना उन्होंने कनिष्क के दरबार में रहते हुए की थी। चीनी यात्री इत्सिंग के अनुसार, इस ग्रंथ का पाठ भारत के अलावा जावा, सुमात्रा और उनके निकटवर्ती द्वीपों में भी होता था(डॉ. परमानन्द सिंहः भूमिकाः बौद्ध साहित्य में भारतीय समाज)।
10. बुद्धचरित के संबंध में बौद्ध वांगमय के अन्तर्गत हम अन्य स्रोत पर विचार करें तो अश्वघोष कृत ‘बुद्धचरित’ और अट्ठकथाओं के ‘निदान कथा’ में कुछ कम तथ्यहीन कथानक हैं(धर्मानन्द कोसम्बी : भगवान बुद्ध, पृ. 109)। स्मरण रहे, बाबासाहब अम्बेडकर ने ‘बुद्धा एण्ड हिज धम्मा’ में अश्वघोष के ‘बुद्धचरित’ से जगह-जगह उद्धरण लिए हैं।
11. सिंहली बौद्ध भिक्खु वनरतन मेघंकर जो सिंहल अधिपति भुवनेक बाहु प्रथम (1277-1288 ईस्वी) के समकालीन थे, ने 'जिनचरित' नाम से बुद्ध जीवनी अपनी मात मातृ-भाषा सिंहली में लिख कर भगवान बुद्ध की भाषा पालि में लिखी थी.
12. पौराणिक कथाओं पर आधारित काव्यमय चित्र अंग्रेजी लेखक सर एकविन आरनोल्ड कृत ‘लाइट ऑफ एशिया’ था। यह मूलत: अंग्रेजी रचना है जो 1879 ईस्वी में प्रकाशित हुई थी. इसको बड़ी ख्याति मिली। विश्व की अनेको भाषाओँ में इसका अनुवाद हुआ था. हिंदी इसका पद्यानुवाद 'बुद्धचरित' शीर्षक से सन1922 में रामचंद्र शुक्ल ने किया था।
13. डॉ अम्बेडकर ने अपनी कृति 'बुद्धा एंड हिज धम्मा' मूल रूप से अंग्रेजी में, संदर्भित ग्रंथों का बिना उल्लेख किये लिखी थी किन्तु हिंदी अनुवाद करते समय डॉ भदंत आनंद कोसल्यायान ने शीघ्र ही इसकी प्रतिपूर्ति कर दी. इसके अनुसार, डॉ आंबेडकर ने प्रधानतया अश्वघोष का बुद्धचरित, दीघनिकाय, अंगुत्तरनिकाय, संयुक्तनिकाय. अट्ठकथा, जातकनिदान अट्ठकथा, महासच्चक सुत्त मज्झिमनिकाय, चुलवग्ग, महावग्ग(विनयपिटक), धम्मपद, थेरगाथा, थेरगाथा अट्ठकथा आदि हैं.
1. भारतीय समाज के एक बड़े वर्ग की दिलचस्पी बौद्ध धर्म में बढ़ती जा रही थी(बाबासाहब डॉ. अम्बेडकरः परिचयः बुद्धा एण्ड हिज धम्मा)। बाबासाहब स्वयं भी उत्तरोतर बुद्ध के धर्म की ओर आकृष्ट हो रहे थे। स्वाभाविक रूप से बुद्ध के चरित्र और उनकी शिक्षाओं के संबंध में एक ऐसे ग्रंथ की आवश्यकता थी, जो विशेषतया उस वर्ग की अपेक्षाओं की पूर्ति करें जो हिन्दुओं की हठधर्मी से निराश हो चुका था।
2. बुद्ध के चरित्र और शिक्षाओं के संबंध में डॉ. अम्बेडकर के पास ति-पिटक ग्रंथ थे। दीघनिकाय आदि पालि ग्रंथों के आधार पर बुद्ध का जीवन चरित्र लिखना सहज नहीं था(वही)।
3. यह कहने में कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं कि संसार में जितने भी धर्मों के संस्थापक हुए हैं, उनमें बुद्ध का चरित और उनकी शिक्षाएं अनुपम है, अनुत्तर है।
4. दीघनिकाय के ‘महापदान सुत्त’ में गौतम बुद्ध से पहले के छह बुद्धों और गौतम बुद्ध के चरित्र दिए गए हैं। गौतम बुद्ध से पहले सिखी, विपस्सी, वेस्सभू, ककुसंघ, कोणागमन और कस्सप ये छह बुद्धों का वर्णन हैं। इसमें पौराणिक विपस्सी बुद्ध का वर्णन विस्तार से और शेष पांच बुद्धों का वर्णन संक्षेप में दिया गया है(धर्मानन्द कोसम्बीः भगवान बुद्ध जीवन और दर्शनः परिशिष्ट- 1ः पृ. 205)।
5. ति-पिटक में एक ही स्थान पर बुद्धचरित नहीं है। वह जातक अट्ठकथा की निदान कथा में मिलता है। यह अट्ठकथा संभवतया बुद्धघोष(340-440 ईस्वी) के समकाल में लिखी गई थी। उससे पहले की सिंहली अट्ठकथाओं से बहुत सी बातें इस अट्ठकथा में आयी है। यह बुद्धचरित प्रधानतया ललितविस्तर के आधार पर लिखा गया है(धर्मानन्द कोसम्बीः भगवान बुद्ध जीवन और दर्शन पृ. 22)।
6. विपस्सी बुद्ध की जीवनी बहुत विस्तार के साथ दी गई और उस जीवन पर से ललितविस्तरकार ने अपने पुराण की रचना की है। इस प्रकार गौतम बुद्ध के जीवन चरित में बहुत सी असंगत उटपटांग बातें घुस गई है(धर्मानन्द कोसम्बीः भगवान बुद्ध जीवन और दर्शन पृ. 22)।
7. ललितविस्तर ग्रंथ सम्भवतया ईसा की प्रथम शताब्दी में या उससे कुछ वर्ष पहले लिखा गया था। यह महायान का ग्रंथ है(वही)।
8. 6. ललितविस्तर में वर्णित बुद्धजीवनी के कुछ ही समय बाद अश्वघोष ने ‘बुद्धचरित’ लिखा। शायद, ललितविस्तर से ही प्रेरणा ले कर। यह भी संस्कृत महाकाव्य है।
7. अश्वघोष, सम्राट कनिष्क (78-120 इस्वी) के समकालीन थे। संस्कृत महाकाव्य ‘बुद्धचरित’ की रचना उन्होंने कनिष्क के दरबार में रहते हुए की थी। चीनी यात्री इत्सिंग के अनुसार, इस ग्रंथ का पाठ भारत के अलावा जावा, सुमात्रा और उनके निकटवर्ती द्वीपों में भी होता था(डॉ. परमानन्द सिंहः भूमिकाः बौद्ध साहित्य में भारतीय समाज)।
10. बुद्धचरित के संबंध में बौद्ध वांगमय के अन्तर्गत हम अन्य स्रोत पर विचार करें तो अश्वघोष कृत ‘बुद्धचरित’ और अट्ठकथाओं के ‘निदान कथा’ में कुछ कम तथ्यहीन कथानक हैं(धर्मानन्द कोसम्बी : भगवान बुद्ध, पृ. 109)। स्मरण रहे, बाबासाहब अम्बेडकर ने ‘बुद्धा एण्ड हिज धम्मा’ में अश्वघोष के ‘बुद्धचरित’ से जगह-जगह उद्धरण लिए हैं।
11. सिंहली बौद्ध भिक्खु वनरतन मेघंकर जो सिंहल अधिपति भुवनेक बाहु प्रथम (1277-1288 ईस्वी) के समकालीन थे, ने 'जिनचरित' नाम से बुद्ध जीवनी अपनी मात मातृ-भाषा सिंहली में लिख कर भगवान बुद्ध की भाषा पालि में लिखी थी.
12. पौराणिक कथाओं पर आधारित काव्यमय चित्र अंग्रेजी लेखक सर एकविन आरनोल्ड कृत ‘लाइट ऑफ एशिया’ था। यह मूलत: अंग्रेजी रचना है जो 1879 ईस्वी में प्रकाशित हुई थी. इसको बड़ी ख्याति मिली। विश्व की अनेको भाषाओँ में इसका अनुवाद हुआ था. हिंदी इसका पद्यानुवाद 'बुद्धचरित' शीर्षक से सन1922 में रामचंद्र शुक्ल ने किया था।
13. डॉ अम्बेडकर ने अपनी कृति 'बुद्धा एंड हिज धम्मा' मूल रूप से अंग्रेजी में, संदर्भित ग्रंथों का बिना उल्लेख किये लिखी थी किन्तु हिंदी अनुवाद करते समय डॉ भदंत आनंद कोसल्यायान ने शीघ्र ही इसकी प्रतिपूर्ति कर दी. इसके अनुसार, डॉ आंबेडकर ने प्रधानतया अश्वघोष का बुद्धचरित, दीघनिकाय, अंगुत्तरनिकाय, संयुक्तनिकाय. अट्ठकथा, जातकनिदान अट्ठकथा, महासच्चक सुत्त मज्झिमनिकाय, चुलवग्ग, महावग्ग(विनयपिटक), धम्मपद, थेरगाथा, थेरगाथा अट्ठकथा आदि हैं.
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